पॉलिटॉक्स ब्यूरो. बाला साहेब की जयंती पर मनसे प्रमुख राज ठाकरे के उद्धव सरकार पर किये वार का शिवसेना ने ‘सामना’ के जरिए कड़ा पपलटवार किया है. अपने मुख पत्र में लिखते हुए हुए शिवसेना ने कहा, ‘शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई, इसे रंग बदलना कैसे कहा जा सकता है? इस बारे में लोगों को आक्षेप कम लेकिन पेट दर्द ज्यादा है. भाजपा या दूसरे लोग महबूबा या किसी और से निकाह करते हैं तो चलता है लेकिन यही राजनीतिक व्यवस्था कोई और करे तो ये पाप कैसे? हमने जो सरकार बनाई, ये पाप नहीं बल्कि सामाजिक कार्य है. शिवसेना पर रंग बदलने का आरोप लगाने वाले पहले खुद के चेहरे पर लगे मुखौटे और चेहरे पर लगे बहुरंगी मेकअप को जांच लें’. शिवसेना ने राज ठाकरे के उस कटाक्ष पर पलटवार किया जिसमें उन्होंने कहा था कि हमने केवल अपना झंडे का रंग बदला है लेकिन रंग बदलकर सरकार में शामिल नहीं होंगे. मनसे प्रमुख ने इस बयान से शिवसेना के कांग्रेस और एनसीपी की गठबंधन पर निशाना साधा था. (Thackeray vs Thackeray)
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वहीं विपक्ष पर निशाना साधते हुए शिवसेना ने कहा कि गत पांच वर्षों में भारतीय जनता पार्टी जो कुछ नहीं कर पाई, वो महाविकास आघाड़ी सरकार ने 50 दिनों में कर दिखाया. ये देखकर कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्ववाली सरकार नहीं गिरनेवाली, पुराने प्यादों को रंग बदलकर नचाया जाने लगा है. संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली में हर राजनीतिक दल अपना-अपना एजेंडा और झंडा लेकर काम करता रहता है., लेकिन शिवसेना जैसी पार्टी ‘एक झंडा एक नेता’ के साथ 55 वर्षों से काम कर रही है. यह एक तपस्या और त्याग है सत्ता के लिए शिवसेना ने रंग बदला है, ये ऐसी बात कहनेवाले लोगों के दिमागी दिवालिएपन की निशानी है. (Thackeray vs Thackeray)
सामने में आगे लिखा गया, ‘एक महीना पहले इस तरह का ‘पारदर्शी’ मत प्रदर्शित करनेवाले अब मोर्चा निकालने की योजना बना रहे हैं, ये इस बात का द्योतक है कि प्यादों को कोई और नियंत्रित कर रहा है. भाजपा के शिवसेना द्वेष की बवासीर दूसरे रास्तों से बाहर निकल रही है और ये उनका पुराना खेल है. वीर सावरकर और हिंदूहृदयसम्राट बालासाहेब ठाकरे का हिंदुत्व का मुद्दा लेकर चलना बच्चों का खेल नहीं, फिर भी देश में कोई हिंदुत्व की बात पर अपनी घड़ी फिट कर रहा है तो हमारे पास उनका स्वागत करने की दिलदारी है. विचार ‘उधार’ के भले हों लेकिन हिंदुत्व के ही हैं. हो सके तो आगे बढ़ो’.
वहीं दूसरी ओर, घुसपैठियों को देश से बाहर निकाले जाने के मुद्दे पर शिवसेना और मनसे दोनों पार्टियों एक स्वर एक राय दिखाई दिए. शिवसेना ने पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मुसलमानों को देश के बाहर निकालने की बात का समर्थन किया. वहीं राज ठाकरे ने इस मुद्दे पर आवाज उठाने के लिए 9 फरवरी को रैली निकालने की बात कही. लेकिन घुसपैठियों के बहाने शिवसेना ने इशारों इशारों में मनसे और राज ठाकरे पर तंस कसा. सामना में लिखा, ‘देश में घुसे पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मुसलमानों को निकालो. उन्हें निकालना ही चाहिए, इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन इसके लिए किसी राजनीतिक दल को अपना झंडा बदलना पड़े, ये मजेदार है. दूसरी बात ये कि इसके लिए एक नहीं, दो झंडों की योजना बनाना ये दुविधा या फिसलती गाड़ी के लक्षण हैं. राज ठाकरे और उनकी 14 साल पुरानी पार्टी ने मराठी के मुद्दे पर पार्टी की स्थापना की लेकिन अब उनकी पार्टी हिंदुत्ववाद की ओर जाती दिख रही है. इसे रास्ता बदलना कहना ही ठीक होगा’.
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सामना में छपे लेख के अनुसार, ‘शिवसेना ने कहा कि शिवसेना ने मराठी के मुद्दे पर बहुत काम किया हुआ है इसलिए मराठियों के बीच जाने के बावजूद उनके हाथ कुछ नहीं लगा और लगने के आसार भी नहीं हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी को जैसी चाहिए, वैसी ही ‘हिंदू बांधव, भगिनी, मातांनो…’ आवाज राज ठाकरे दे रहे हैं. यहां भी इनके हाथ कुछ लग पाएगा, इसकी उम्मीद कम ही है. (Thackeray vs Thackeray) शिवसेना ने प्रखर हिंदुत्व के मुद्दे पर देशभर में जागरूकता के साथ बड़ा कार्य किया. शिवसेना ने हिंदुत्व का भगवा रंग कभी नहीं छोड़ा. यह रंग ऐसा ही रहेगा लेकिन इसलिए दो झंडे बनाने के बावजूद राज ठाकरे के झंडे को वैचारिक समर्थन मिल पाएगा, इसकी संभावना नहीं दिख रही’.
राज ठाकरे पर अपने प्रहार तीखे करते हुए शिवसेना ने कहा, ‘शिवसेना पर रंग बदलने का आरोप लगानेवाले पहले खुद के चेहरे पर लगे मुखौटे और चेहरे पर लगे बहुरंगी मेकअप को जांच लें. बीजेपी द्वारा 2014 और 2019 में गिरगिट की तरह रंग बदलने के कारण ही शिवसेना भगवा रंग कायम रखते हुए महाविकास आघाड़ी में शामिल हुई और अब शिवसेना कांग्रेस-राष्ट्रवादी के साथ मिलकर सत्ता बनाकर ‘तेवर’ बदलने को तैयार नहीं है, इसका अंदाजा लगते ही हिंदुत्ववादी वोटों में फूट डालने के लिए यह साजिश रची गई. गत 14 वर्षों में राज ठाकरे ‘मराठी’ के मुद्दे पर कुछ नहीं कर पाए और अब हिंदुत्व के मुद्दे पर भाग्य आजमा पाएंगे, इसमें भी संदेह है…
मनसे प्रमुख को अपने मुद्दे रखने और उसे आगे बढ़ाने का पूरा अधिकार है लेकिन उनकी आज की नीति और इसी मुद्दे पर 15 दिन पहले की नीति में कोई मेल नहीं दिख रहा. (Thackeray vs Thackeray) उन्होंने कल कहा कि नागरिकता कानून को हमारा समर्थन है और कानून के समर्थन के लिए हम मोर्चा निकालनेवाले हैं लेकिन एक महीने पहले उनकी अलग और उल्टी नीति थी. राज ठाकरे ने तिलमिलाकर इस कानून का विरोध किया था. उनका कहना था कि आर्थिक मंदी-बेरोजगारी जैसे गंभीर मसलों से देश का ध्यान भटकाने के लिए अमित शाह इस कानून का खेल खेल रहे हैं और इसमें वे सफल होते दिख रहे हैं लेकिन एक महीने के भीतर ही राज ठाकरे इस खेल का शिकार हो गए और उन्होंने ‘सीएए’ कानून के समर्थन का नया झंडा कंधे पर रख लिया है’.
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अपनी गठबंधन सरकार पर शिवसेना ने कहा कि तीन पार्टियों की विचारधारा अलग हो सकती है लेकिन ‘राज्य और जनता का कल्याण करने के लिए सरकार चलानी है’ इस संदर्भ में तीनों एकमत हैं. सरकार का उद्देश्य और नीति स्पष्ट है. सरकार संविधान के अनुसार चलाई जाएगी तथा रोटी, कपड़ा, मकान, रोजगार, किसान, मेहनतकशों के कल्याण और सुरक्षा जैसे समान नागरी कार्यक्रमों को लेकर आगे बढ़ेगी. (Thackeray vs Thackeray)