‘गेटवे ऑफ झारखंड’ झुमरी तलैया में मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहा ये उम्मीदवार

साल 1977 में अस्तित्व में आई थी कोडरमा संसदीय सीट, पिछले कई दशकों से फहरा रहा है बीजेपी का भगवा ध्वज, अन्नपूर्णा देवी दूसरी बार ठोक रही ताल, गठबंधन का खेल बिगाड़ रही जेएमएम

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झुमरी तलैया: एक ऐसा नाम, जिसे फिल्मी गाने सुनने के शौकीनों ने कई बाद सुना होगा. एक दशक पहले तक फरमाइशी फिल्मी गीत की फरमाइश करने वालों में झुमरी तलैया के श्रोताओं के नाम जरूर शामिल होता रहा है. इन्हीं फरमाइशों की बदौलत झारखंड के इस छोटे से कस्बे ने देश में अपनी पहचान बनाई. यह कस्बा झारखंड के कोडरमा जिले का तहसील मुख्यालय है और कोडरमा संसदीय क्षेत्र के तहत आता है. कोडरमा को ‘गेटवे ऑफ झारखंड’ कहा जाता है.

दुनियाभर में फैली थी कोडरमा की चमक

कोडरमा एक समय अभ्रक की खदानों के लिए मशहूर था. जिले में अभ्रक की 700 से अधिक खदाने थीं, जिसकी पहचान अभ्रक जिले के रूप में थी. ये खदानें समृद्धि का प्रतीक थीं. माइका की चमक ने इस कोडरमा की पहचान विश्वभर में बिखेरी. हालांकि 1980 के दशक में वन कानून के प्रभावी होने के बाद यह चमक धीरे-धीरे फीकी पड़ने लगी. अभ्रक की खदानों में हजारों लोगों को रोजगार मिलता था लेकिन खदानें बंद होने के साथ ही बेरोजगारी बढ़ी. रोजगार की तलाश में लोग दूसरे शहरों में पलायन करते चले गए. उसके बाद से रोजगार कोडरमा के चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बनता है.

दशकों से बीजेपी का चलता है सिक्का

कोडरमा लोकसभा सीट बीते कई दशकों से बीजेपी की परंपरागत सीट बनी हुई है. झारखंड बीजेपी अध्यक्ष और राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी इस सीट से तीन बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. उन्होंने यहां से एक बार बीजेपी, एक बार निर्दलीय और उक बार अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर चुनाव जीता था. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की अन्नपूर्णा देवी यहां से जीतकर पहली बार संसद पहुंची. पहली ही जीत के बाद उन्हें मोदी सरकार में शिक्षा राज्य मंत्री बनाया गया था. अन्नपूर्णा देवी राष्ट्रीय जनता दल छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुई थीं.

कोडरमा सीट का इतिहास

कोडरमा सीट 1977 में अस्तित्व में आई थी. यहां अब तक हुए 16 लोकसभा चुनावों में बीजेपी का दबदबा रहा है. बीजेपी ने 6 बार इस सीट पर कब्जा जमाया है जबकि कांग्रेस को 3 बाद यहां से जीत मिली है. साल 2004 में बीजेपी के टिकट पर बाबूलाल मरांडी यहां से जीते थे. उस चुनाव में बीजेपी प्रदेश में केवल कोडरमा सीट ही जीत पाई थी. 2006 में हुए उपचुनाव में मरांडी ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर यहां से जीत दर्ज की थी. वर्ष 2009 में मरांडी ने झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर कोडरमा का गढ़ जीत लिया.

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उसके बाद 2014 की मोदी लहर में बीजेपी उम्मीदवार रवींद्र राय कोडरमा से सांसद चुने गए. माले उम्मीदवार राजकुमार यादव दूसरे स्थान पर थे. उन्हें करीब एक लाख वोट मिले थे. जीत के बावजूद 2019 में बीजेपी ने उनका टिकट काटकर अन्नपूर्णा देवी को दिया और एक बार फिर मोदी लहर में अन्नपूर्णा ने 2019 के चुनाव में मरांडी को करीब साढ़े चार लाख से अधिक के अंतर से हराकर यहां बीजेपी का भगवा ध्वज फहरा दिया. अन्नपूर्णा को 62.3 फीसदी जबकि महागठबंधन के उम्मीदवार रहे मरांडी केवल 24.6 फीसदी वोट ही हासिल हो पाए. माले ने राजकुमार यादव तीसरे स्थान पर रहे.

जातिगत समीकरण

कोडरमा सीट पर ओबीसी और मुसलमान अधिक संख्या में हैं. सवर्ण जातियों की संख्या भी ठीक-ठाक है. ओबीसी और सवर्ण जातियों के समर्थन से बीजेपी कोडरमा में जीत का परचम लहराती रही है. इस बार झारखंड मुक्ति मोर्चा के बागी जेपी वर्मा के उतरने से कोडरमा की लड़ाई त्रिकोणीय हो गई है. वर्मा कोडरमा से पांच बार सांसद रहे रीतलाल प्रसाद वर्मा के परिवार से आते हैं. कुशवाहा जाति के वर्मा का परिवार कोडरमा में प्रभावी है. ऐसे में कुशवाहा कोडरमा में एक बहुत बड़ा फैक्टर हैं.

इस बार का सियासी समीकरण

बीजेपी की ओर से इस बार फिर से अन्नपूर्णा देवी पर दांव खेला गया है. उन्होंने पिछली बार बड़े अंतर से बाबूलाल मरांडी को यहां से हराया था. विपक्षी गठबंधन की ओर से कोडरमा सीट भाकपा (माले) को मिली है. इस सीट पर वाम दलों का अच्छा-खासा वोट है जिसके चलते माले ने बगोदर से विधायक रहे विनोद सिंह को पार्टी उम्मीदवार बनाया है. यहां से झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता और पूर्व विधायक जयप्रकाश वर्मा भी चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने कोडरमा की लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है. बीजेपी यहां काफी मजबूत स्थिति में है लेकिन विपक्षी गठबंधन भी कुछ कम नहीं है. हालांकि जेपी वर्मा गठबंधन का खेल बिगाड़ रहे हैं.

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