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आगामी एक दो महीनों में देश में आम चुनाव होने हैं. हालांकि राजस्थान में कांग्रेस की हालत पतली है. पहले विधानसभा में करारी हार के बाद अब लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस की करारी शिख्स्त की संभावनाएं दिख रही है. राजस्थान के दिग्गजों के चुनाव लड़ने से इनकार करने के चलते प्रदेश में लगातार तीसरी बार कांग्रेस का बेड़ा पार होते दिख नहीं रहा है. दरअसल पिछले दो लोकसभा चुनावों में कांग्रेस राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में से एक सीट पाने तक को तरस गयी है. बीजेपी ने साल 2014 और 2019 में सभी 25 सीटों (एक पर गठबंधन के तहत) पर जीत दर्ज की थी.

एक तरफ बीजेपी ने प्रदेश की हर सीट के लिए 3 से 5 दावेदार सलेक्ट कर लिए हैं. वहीं कांग्रेस की बात करें तो यहां पार्टी को योग्य उम्मीदवार तक नहीं मिल पा रहे हैं. सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी, प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, हरीश चौधरी, सचिन पायलट, अशोक चांदना, भंवर जितेंद्र सिंह, रघुवीर मीणा, रामलाल जाट, बृजेन्द्र ओला, प्रताप सिंह खाचरियावास, मुरारी लाल मीणा और शांति धारीवाल जैसे दिग्गजों को लोकसभा चुनाव लड़वाना चाहती है ताकि बीजेपी को क्लीन स्वीप करने से रोका जा सके.

कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने खुद एक महीने पहले जयपुर में कहा था कि इन नेताओं को पार्टी आम चुनावों में उतारकर मजबूत मुकाबला बनाना चाहती है. इसके विपरीत 9 फरवरी को दिल्ली में हुई एक बैठक में स्क्रीनिंग कमेटी के सामने इनमें से अधिकांश नेताओं ने लोकसभा चुनाव में उतरने से स्पष्ट इनकार कर दिया है.

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सूत्रों के अनुसार, गहलोत, सीपी जोशी, पायलट, डोटासरा, जितेंद्र सिंह, रघुवीर मीणा, मुरारी लाल मीणा, हरिश चौधरी संभवतया चुनाव नहीं लड़ने वाले हैं. किसी ने स्वास्थ्य संबंधी कारणों से, तो किसी ने नई पीढ़ी को आगे लाने की बात कहकर चुनाव लड़ने की मंशा को टाल दिया है. एक-दो बड़े नेता तो राज्यसभा से संसद जाने की भी कोशिश कर रहे हैं.

गौरतलब है कि कांग्रेस के टिकट पर यूपीए सरकार में मंत्री रहे सचिन पायलट व भंवर जितेंद्र सिंह सहित वैभव गहलोत, मोहम्मद अजहरूद्दीन, अशोक चांदना और कृष्णा पूनियां जैसे चर्चित चेहरे भी चुनाव हार चुके हैं. इनमें से कोई भी इस बार आम चुनाव में उतरने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है. इस बात पर मुहर लगाते हुए कांग्रेस से पूर्व सांसद रघुवीर मीणा ने बताया कि मैने और पार्टी के ज्यादातर सीनियर नेताओं, पूर्व मंत्रियों एवं पूर्व सांसदों ने चुनाव नहीं लड़ने की बात पिछले दिनों आलाकमान को प्रकट कर दी है.

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अब संभवत: यह मसला राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी तक ले जाया जाएगा. यह भी सच है कि कांग्रेस ने वर्ष 2014 में जिन्हें सांसद का टिकट दिया था, उनमें से ज्यादातर को वर्ष 2019 में भी टिकट दिया था. वे सभी लगातार दो बार चुनाव हार चुके हैं. वैसे जिस तरह से हाल ही बीजेपी के एक सीनियर नेता पूर्व मंत्री सुरेंद्र पाल सिंह टीटी के सामने एक युवा को टिकट दिया गया और करणपुर उप चुनाव जीता गया. ऐसे में पार्टी दिग्गजों की अनुपस्थिति में युवाओं पर भी दांव खेल सकती है.

इधर, 17-18 फरवरी को दिल्ली में एक राष्ट्रीय परिषद की बैठक होने वाली है जिसमें सभी वर्तमान सांसद, विधायक, जिला प्रमुख पदाधिकारी शामिल होंगे. वहां पार्टी जिसे भी आदेश देगी, उसे मजबूरन चुनाव लड़ने को तैयार होना पड़ेगा. इसके दूसरी तरफ, कांग्रेस को 25 सीटों पर अब ऐसे चेहरों पर विचार करना होगा जो चुनाव जीतने की क्षमता रखते हों. अब देखना रोचक होगा कि कांग्रेस आलाकमान दिग्गज नेताओं को सख्ती से लोकसभा चुनाव लड़ने को कहता है या फिर युवाओं पर दांव खेलकर बीजेपी की क्लीन स्वीप हैट्रिक करने से रोक पाती है.

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