यूपी में ‘प्रथम ग्रासे मक्षिकापात:’ ने बिगाड़ा ‘बड़ा खेल’, आयकर छापों के सियासी नफा-नुकसान पर चर्चाएं

उत्तरप्रदेश में चुनाव का घमासान, आयकर छापों से सपा को नुकसान या फायदा? सियासी गलियारों में इसको लेकर चर्चाओं का दौर, एक गलती ने बिगाड़ा बड़ा खेल, अब लकीर पीट रही है आयकर विभाग की टीमें

'प्रथम ग्रासे मक्षिकापात:'
'प्रथम ग्रासे मक्षिकापात:'

Politalks.News/UttarpradeshChunav. उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) सहित देश के पांच राज्यों चुनाव की तारीखों का ऐलान किसी भी दिन हो सकता है. माना जा रहा है कि चुनाव आयोग ने सभी तैयारियां पूरी कर ली है. वहीं दूसरी ओर यूपी में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) प्रमुख अखिलेश यादव के करीबी कारोबारी मित्र आयकर विभाग की टीमों के राडार पर हैं. ऐसे में सूबे के सियासी गलियारों में आजकल एक ही बात की चर्चा है कि इन छापों से सपा को नुकसान होगा या फायदा? दूसरी चर्चा यह है कि राजस्थानी बणियों में एक कहावत है कि अबकी बार तो ‘बोवणी’ ही खराब हुई है. यूपी में आयकर विभाग की टीमें सपा के करीबीयों पर चुन-चुन कर छापे तो मार रही है लेकिन उनके यहां मिल कुछ नहीं रहा है. अब इसका कारण बताया जा रहा है कि P नाम की गफलत में IT की टीमें पुष्पराज (Pushpraj Jaim Pumpi) की जगह पीयूष जैन के यहां चली गई…इतने में सभी व्यापारी सतर्क हो गए.

उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले विपक्षी पार्टियों से जुड़े नेताओं और उनके कारोबारियों के यहां आयकर विभाग की टीमों द्वारा छापा मार कर सबको डराने और कमजोर करने की रणनीति का दौर जारी है. पहले सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के करीबी और फाइनेंसर माने जाने वाले इत्र और गुटखा कारोबारियों के यहां छापा मारा गया. उसके बाद जूते बनाने वाली कंपनियों पर छापे मारे गए और फिर रियल इस्टेट कारोबारियों की बारी आई. आयकर विभाग और जीएसटी की कार्रवाई पहले भी हो सकती थी लेकिन ऐन चुनाव से पहले का समय चुन कर केंद्र ने मैसेज देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है.

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ऐसे में अब यूपी के सियासी गलियारों में सवाल यह है कि मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी के नेताओं और उनके करीबी कारोबारियों के यहां छापेमारी से सपा को कितना नुकसान होगा? या कहीं ऐसा तो नहीं है कि उसको फायदा हो जाएगा? लोगों की सहानुभूति उसके साथ हो जाएगी? इसको संयोग माना जा सकता है कि केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई शुरू होते ही ‘प्रथम ग्रासे मक्षिकापातः’ हो गया, जिसकी वजह से विपक्षी पार्टी को नुकसान की संभावना कम हो गई. (‘प्रथम ग्रासे मक्षिकापात:’ का अर्थ है. भोजन के दौरान पहले ग्रास में मक्खी का आ जाना) मतलब यह कि आईटी का पहला छापा इत्र के कारोबारी और सपा के एमएलसी पुष्पराज जैन उर्फ पम्मी जैन के यहां पड़ना था लेकिन नाम (P) और कारोबार (इत्र) में समानता की गफलत की वजह से छापा पीयूष जैन के यहां पड़ गया. उनके यहां लगभग दो सौ करोड़ रुपए नकद और 64 किलो सोना बरामद हुआ. बाद में पता चला कि पीयूष जैन का समाजवादी पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन तब तक इस छापेमारी ने बाकी सबको अलर्ट कर दिया.

इसके आठ दिन बाद सपा से जुड़े पुष्पराज जैन, अयूब खान जैसे बड़े व्यवसायियों के यहां छापा पड़ा और उसके बाद रियल इस्टेट की कंपनी एसीई ग्रुप के अजय चौधरी और अन्य के यहां छापा पड़ा. लेकिन तब तक नाम की गड़बड़ी और छापेमारी में देरी से सबको बचाव का मौका मिल गया और दूसरी ओर आम लोगों में यह मैसेज गया कि जान बूझकर और सिर्फ परेशान करने के लिए यह छापेमारी हो रही है. वहीं आयकर विभाग के सूत्रों की मानें तो पीयूष जैन के यहां हुई कार्रवाई के बाद अन्य छापेमारियों में एजेंसियों के हाथ कुछ खास नहीं लगा, उलटे सपा और उसके नेता अखिलेश यादव को मौका मिल गया सहानुभूति हासिल करने का. वोट में इसका कितना फायदा होगा यह नहीं कहा जा सकता है, लेकिन धारणा बनवाने में इससे जरूर मदद मिली है.

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सियासी गलियारों में चर्चा है कि, ‘भारतीय राजनीति में यह आम धारणा थी कि चुनाव से पहले अगर सरकार की ओर से विपक्षी पार्टियों के नेताओं और करीबियों को परेशान किया जाता है तो उनको प्रति सहानुभूति पैदा होती है. आपको यह भी बता दें कि पहले चाहे किसी पार्टी की सरकार हो, विपक्षी नेताओं को परेशान नहीं करती थी. यही कारण था कि सभी पार्टियों के आपस मे सबके मिले होने का मुहावरा देश की राजनीति में प्रचलित था. लेकिन केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद से यह मुहावरा और चलन दोनों बदल गए हैं. अब विपक्षी पार्टियों को जम कर परेशान भी किया जाता है और चुनाव से ठीक पहले छापे वगैरह मार कर पस्त भी किया जाता है.

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