Karnataka
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चुनावों में अब राजनीतिक पार्टियां चोरी-छिपे चंदा नहीं ले सकेंगी. इसकी जानकारी सांझा करनी होगी. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने आज बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड्स की वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान इन बॉन्ड्स पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. वहीं इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए दान या चंदा देने वालों के नाम, मिलने वाली राशि आदि की जानकारी चुनाव आयोग को देने के लिए कहा है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने तमाम राजनीतिक दलों को आदेश दिया है कि 15 मई तक मिले इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी सभी दल 30 मई तक सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को सौंपें. इस जानकारी में चंदा देने वालों का ब्यौरा भी देना होगा.

इससे पहले केंद्र की चुनाव तक हस्तक्षेप नहीं करने की याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर पारदर्शी राजनीतिक चंदे के लिए शुरू किए गए चुनावी बॉन्ड के क्रेताओं की पहचान नहीं है तो चुनावों में कालाधन पर अंकुश लगाने का सरकार का प्रयास निरर्थक होगा. सुप्रीम कोर्ट ने एक एनजीओ की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया जिसने इस योजना की वैधता को चुनौती दी है और मांग की है कि या तो चुनावी बॉन्ड जारी किए जाने पर रोक लगा दी जाए या चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये चंदा देने वालों के नाम सार्वजनिक किए जाएं.

इससे पहले केंद्र ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ से कहा था कि जहां तक चुनावी बॉन्ड योजना का सवाल है तो यह सरकार का नीतिगत फैसला है और नीतिगत फैसला लेने के लिए किसी भी सरकार को दोष नहीं दिया जा सकता है. पीठ ने सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से पूछा कि क्या बैंक को चुनावी बॉन्ड जारी करने के समय क्रेताओं की पहचान का पता होता है.

इस पर वेणुगोपाल ने सकारात्मक जवाब दिया और तब कहा कि बैंक केवाईसी का पता लगाने के बाद बॉन्ड जारी करते हैं, जो बैंक खातों को खोलने पर लागू होते हैं. पीठ ने कहा कि जब बैंक चुनावी बांड जारी करते हैं तो क्या बैंक के पास ब्योरा होता है कि किसे ‘एक्स’ बॉन्ड जारी किया गया और किसे ‘वाई’ बॉन्ड जारी किया गया. वेणुगोपाल ने कहा कि चुनावों में ऐतिहासिक रूप से काला धन इस्तेमाल होता रहा है. यह सुधारात्मक कदम है. इस योजना का चुनाव के बाद परीक्षण किया जा सकता है.

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