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दौसा में डॉ. किरोड़ी लाल मीणा दरकिनार, जसकौर मीणा को मिला टिकट

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दौसा लोकसभा सीट पर बीजेपी उम्मीदवार को लेकर कई दिनों से जारी संस्पेंस खत्म हो गया है. पार्टी ने राज्यसभा सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा को दरकिनार करते हुए पूर्व मंत्री जसकौर मीणा को प्रत्याशी घोषित कर दिया है. आपको बता दें कि बीते बुधवार को मीडिया में यह खबर सामने आई थी कि पार्टी ने जसकौर मीणा को टिकट दे दिया है, लेकिन इसकी अधिकृत घोषणा नहीं हुई. हालांकि प्रदेश बीजेपी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर जसकौर मीणा को उम्मीदवार बनाने की सूचना साझा की गई, जिसे बाद में हटा लिया गया.

इस बीच जसकौर ने दावा किया कि पार्टी ने उन्हें चुनाव की तैयारी करने की सूचना के साथ बधाई भी दे दी है. जसकौर ने यह भी कहा कि किरोड़ी लाल मीणा और ओमप्रकाश हुड़ला मेरे भाई हैं, हम तीनों मिलकर तीन गुना ताकत के साथ आएंगे और विश्वास है जीतेंगे. बकौल जसकौर वे चुनाव लड़ रही हैं.

आपको बता दें कि किरोड़ी लाल मीणा अपनी पत्नी गोलमा या परिवार में किसी को टिकट दिलाने चाहते थे, लेकिन प्रदेश नेतृत्व इससे सहमत नहीं हो पा रहा. वसुंधरा राजे निर्दलीय विधायक ओमप्रकाश हुड़ला की पत्नी को टिकट देने के पक्ष में थीं. उनके नाम पर सहमति नहीं बनने पर राजे ने बीच जसकौर मीणा का नाम आगे किया.

सभी धड़ों में गतिरोध सुलझाने के लिए केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पिछले मंगलवार को राज्यसभा सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा, विधायक ओम प्रकाश हुड़ला व पूर्व केंद्रीय मंत्री जसकौर मीणा को बुलाकर सहमति बनाने का प्रयास किया. तीनों से मुलाकात के बाद जावड़ेकर ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे से भी उनके आवास पर मुलाकात की. इसके बाद अपनी फाइनल रिपोर्ट पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह को भेज दी. इसमें जसकौर मीणा का नाम था, लेकिन किरोड़ी के खुलेआम विरोध के चलते घोषणा अटक गई.

जसकौर मीणा के बारे में बात करें तो उन्होंने बतौर शिक्षिका अपने करिअर की शुरूआत की थी. बाद में भाजपा की विचारधारा से प्रभावित होकर राजनीति में उतरी और सक्रिय भूमिका निभाई. वह बीजेपी सरकार में केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री रह चुकी हैं. वह 1999-2004 तक केंद्रीय राज्य मंत्री और सवाई माधोपुर से लगातार दो बाद 1998-1999, 1999-2004 तक सांसद रही.

जसकौर मीणा बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में शामिल रही हैं. मीणा लंबे समय तक केंद्रीय कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष के तौर पर भी कार्यरत रह चुकी हैं. जसकौर मीणा दौसा जिले के लालसोट के मंडावरी गांव की निवासी हैं और वसुन्धरा सरकार में मंत्री रहे वीरेन्द्र मीणा की बुआ हैं.

राजनीति के ‘जादूगर’ ने की मोदी के मंत्रियों की घेराबंदी

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की रणनीति के चलते गजेंद्र सिंह शेखावत, पीपी चौधरी, राज्यवर्धन सिंह राठौड़ और अर्जुनराम मेघवाल की घर में ही घिर गए हैं. मोदी के इन अप्रत्यक्ष चेहरों को घर में ही घेरने के लिए कांग्रेस के वार रूम में खास रणनीति बनी है और इस पूरी रणनीति के पीछे जादूगर कहे जाने वाले राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही है. यही कारण है कि स्टार प्रचारकों में शामिल ये पांचों मंत्री अभी तक अपने संसदीय क्षेत्र में ही अटके हुए हैं. पाली से पीपी चौधरी और बीकानेर से अर्जुन मेघवाल, जयपुर ग्रामीण से राज्यवर्धन और जोधपुर से गजेन्द्र सिंह मोदी की कैबिनेट के वो चेहरे हैं जो राजस्थान में चुनाव लड़ रहे हैं.

दूसरी ओर, लोकसभा चुनाव में अपनी जीत को लेकर बीजेपी दावा कर रही है कि देशभर में पार्टी का एक ही प्रत्याशी चेहरा है नरेंद्र मोदी. वजह है – भाजपा को लगता है कि प्रत्याशी की बजाय नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने से फायदा होगा ताकि अगर कहीं प्रत्याशी को लेकर कोई विरोध है तो उसे मोदी के नाम पर डायवर्ट कर संभावित नुकसान को भरा जा सकता है. इसको दूसरे लिहाज से देखा जाए तो मोदी की कैबिनेट के सदस्य जहां से चुनाव लड़ रहे हैं वो निश्चित रूप से नरेंद्र मोदी कहे जा सकते हैं

गजेंद्र सिंह शेखावत:
जोधपुर से कांग्रेस के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं था जो गजेन्द्र सिंह का मुकाबला कर सके. इसी वजह से यहां खुद मुख्यमंत्री के पुत्र वैभव गहलोत को मैदान में उतारा गया. इसका कारण था कि जोधपुर में अशोक गहलोत खुद का प्रभाव तो है ही, मुख्यमंत्री होने के चलते वोटों का ध्रुवीकरण करने में भी मदद मिलेगी. अब इस बात का कितना फायदा मिलेगा या नहीं यह तो परिणाम बताएगा, लेकिन इतना तय है कि कांग्रेस ने अपनी पहली रणनीति जो कि गजेन्द्र सिंह को घर में ही घेरने की थी उसमें सफलता हासिल कर ली.

पीपी चौधरी:
साल 2009 के लोकसभा चुनावों में पाली से पहली बार सांसद चुने गए बद्रीराम जाखड़ ने पुष्प जैन को हराया था. तब उन्होंने 54 प्रतिशत से भी ज्यादा मत हासिल किए थे, लेकिन अगले चुनाव में कांग्रेस ने और भाजपा ने अपने प्रत्याशी क्रमश: बद्री जाखड़ की बेटी और पीपी चौधरी के रूप में बदले तो चौधरी ने 62 प्रतिशत मत हासिल करते हुए चार लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज की। लेकिन इस बार खुद के घर में ही मोदी के मंत्री चौधरी घिर गए हैं.

टिकट वितरण से पहले जहां खुद की पार्टी के लोग ही उनकी टिकट कटवाने में लगे हुए थे. इसी को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने फिर एक बार बद्री जाखड़ पर दांव खेला है. पाली लोकसभा क्षेत्र के 8 विधानसभा क्षेत्र में तीन जोधपुर जिले में आते हैं. ओसियां, बिलाड़ा और भोपालगढ़ तीनों ही जाट बहुल क्षेत्र हैं. लेकिन भोपालगढ़ और बिलाड़ा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो जाने से वहां जाट चुनाव नहीं लड़ पा रहे हैं. लेकिन जाट समाज का दबदबा इन सीटों पर पहले से ही रहा है और इसी कारण पाली लोकसभा क्षेत्र से अपनी दावेदारी जता रहे है. यही कारण है कि सीरवी जाति से आने वाले पीपी चौधरी के सामने कांग्रेस ने जाट चेहरे को मैदान में उतारकर दांव खेलते हुए कहीं ना कही भाजपा की अंदरखाने के विरोध को हवा देते हुए चौधरी को घर में ही घेर लिया है.

राज्यवर्धन सिंह राठौड़:
पिछले लोकसभा चुनाव में निशानेबाज राज्यवर्धन ने जयपुर ग्रामीण लोकसभा सीट से कांग्रेस के कद्दावर नेता सीपी जोशी को बड़े अंतर से हराकर राजनीति का पहला मैच न केवल बड़ी आसानी से जीता, बल्कि मोदी के कैबिनेट में मंत्री भी बने. मूल रूप से बीकानेर के लूणकरनसर तहसील के गारबदेसर गांव के राज्यवर्धन पहली बार सांसद का चुनाव लड़े तो 62 फीसदी वोट हासिल किए. हालांकि मोदी लहर के साथ ही कहीं ना कहीं राज्यवर्धन की सेना के कर्नल से ज्यादा खिलाड़ी की छवि उनको जिताने में महत्वपूर्ण रही. यही वजह रही कि एक-एक सीट पर विचार मंथन कर टिकट बांटने वाली कांग्रेस का सबसे वाला चौंकाने वाला नाम जयपुर ग्रामीण पर रहा. राज्यवर्धन के मैडल जीतकर देश का नाम बढ़ाने वाली छवि का तोड़ भी कहीं न कहीं कांग्रेस ने उसी रूप में ढूंढ़ा और आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने को लेकर महिला के रूप में डिस्क्स थ्रोअर कृष्णा पूनियां को मैदान में उतारा।

राठौड़ और पूनियां दोनों ही कॉमनवेल्थ गेम्स में अपने-अपने खेल में गोल्ड जीत चुके हैं. यहां से लालचंद कटारिया और रामेश्वर डूडी के नाम ज्यादा चर्चा में थे, लेकिन कटारिया चुनाव लडऩा नहीं चाहते थे और डूडी रणनीति के हिस्से में फिट नहीं बैठे. इसलिए कांग्रेस ने एनवक्त पर कृष्णा पूनियां का नाम घोषित कर सबको चकित कर दिया. बात दें, मीडिया की सुर्खियों से लेकर पैनल में कहीं भी कृष्णा पूनियां का नाम नहीं था.

अर्जुनराम मेघवाल:
बीकानेर में लगातार तीन बार जीतने का रिकॉर्ड भाजपा के पास रहा है. हालांकि पूर्व महाराजा करणीसिंह यहां से लगातार पांच बार जीते लेकिन कांग्रेस-भाजपा की बात करें तो कांग्रेस भी लगातार तीन बार यहां से जीत नहीं पाई. अलबत्ता कांग्रेस के मनफूल सिंह भादू तीन बार बीकानेर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. जाट और एससी बहुल मानी जाने वाली इस सीट पर परिसीमन से पहले जाट और राजपूत समाज का ही कब्जा रहा और दूसरी कोई जाति का यहां सांसद नहीं बना। लेकिन 2009 में सुरक्षित सीट होने के बाद आईएएस से राजनीति में आए अर्जुन मेघवाल जीते और अब तीसरी बार जीत की हैट्रिक की उम्मीद को लेकर मैदान में है।

इस बार एक रणनीति के तहत काम कर रही कांग्रेस ने यहां से अर्जुन के ही मौसेरे भाई और पूर्व आईपीएस मदन मेघवाल को मैदान में उतारा है. जाट नेता रामेश्वर डूडी की पसंद के रूप में मदन मेघवाल को उतारकर कांग्रेस ने जाट वोटों को ध्रुवीकरण करने की कोशिश तो की ही है. जिले के दो मंत्रियों डॉ. बीडी कल्ला के सहारे ब्राह्मण वोटों पर सेंध और भंवरसिंह भाटी के जरिये राजपूत वोटों में सेंध लगाने का भी प्रयास किया है. वहीं कद्दावर नेता देवीसिंह भाटी की अर्जुन मेघवाल को लेकर हुई नाराजगी को भी कांग्रेस इन्कैश करने में लगी हुई है.
बीकानेर लोकसभा सीट को लेकर कांग्रेस कितनी सक्रिय है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आचार संहिता लगने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट 5 विधानसभा सीटों पर दौरा कर सभाएं कर चुके हैं. वहीं अंदखाने में खुद कांग्रेस में हुए विरोध को अपने बीकानेर दौरे के दौरान रात्रि विश्राम बीकानेर में करते हुए गहलोत ने सैटल कर दिया है. उस दौरे के बाद विरोध के स्वर गायब हो गए हैं.

कुल मिलाकर ये सारे समीकरण बता रहे हैं कि प्रचार के मामले में भाजपा को पछाड़ते हुए मोदी के चारों मंत्रियों को कांग्रेस ने घर में ही उलझा कर रख दिया है. अब देखने वाली बात यह होगी कि सत्ता के इस खेल में राजनीति के जादूगर अशोक गहलोत के ये दांव निशाने पर लग पाते हैं या नहीं. लेकिन इतना जरूर है कि कांग्रेस की सक्रियता के बाद इन मंत्रियों का स्टार प्रचारक के रूप में अन्य सीटों पर निकलना संभव नहीं लग पा रहा है.

‘पीएम मोदी होठों पर लिपगार्ड लगाते हैं और मॉडल की तरह कैटवॉक करते हैं’

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लोकसभा के चुनावी दंगल में सियासी बयानों के तीखे बाण तेज होते जा रहे हैं. इस बयानबाजी में बीजेपी-कांग्रेस के नेताओं के साथ अन्य दल भी शामिल हो गए हैं. इस होड़ में राजनीतिक दल विवादित बयान देने से भी बाज नहीं आ रहे हैं. आज रामनवमी का पर्व केवल धर्म और धार्मिक बयानबाजी से चर्चा में रहा. इन बयानों में एमपी सीएम कमलनाथ की सरकार में मंत्री लखन घनघोरिया टॉप पर रहे. उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी पर लिपगार्ड लगाने और कैटवॉक करने का तंज कसा. वहीं मायावती ने अली-बजरंग बली बयान से योगी आदित्यनाथ पर पलटवार किया. वहीं एआईयूडीएफ के नेता बदरुद्दीन अजमल ने पीएम नरेंद्र मोदी पर चाय की दुकान चलाने और पकौड़े बेचने का तंज कसा है.

‘पीएम मोदी होठों पर लिपगार्ड लगाते हैं और मॉडल की तरह कैटवॉक करते हैं’
– लखन घनघोरिया

कमलनाथ सरकार में मंत्री ने लखन घनघोरिया ने पीएम मोदी को लेकर एक अजीब बयान दिया है. मंत्री घनघोरिया ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि पीएम मोदी होठों पर लिपगार्ड लगाकर चलते हैं और वह कैटवॉक करते हैं जिससे उनकी चाल ही बदल गई है. उन्होंने कहा, ‘जिस देश की 70 परसेंट आबादी गरीबी रेखा से नीचे जी रही हो उस देश का प्रधानमंत्री दिन में 10 बार सज-संवरकर निकलता है. ऐसे निकलता है जैसे किसी फैशन शो में जा रहा हो. जैसे मॉडलिंग कर रहा हो. …और चाल देखो तो ऐसा लग रहा है जैसे मॉडलिंग कर रहा हो. बड़ा अजीब लगता है…होठों में लिपगार्ड होती है. अब तो विचित्र हो गया है…’

‘चुनाव बाद चाय की दुकान चलाएंगे मोदी, पकौड़े भी बेचेंगे’
– बदरुद्दीन अजमल

असम के चिरांग में बदरुद्दीन अजमल ने कहा कि सारे विपक्षी दल मिलकर मोदी को देश से बाहर निकालेंगे और इसके बाद किसी कोने में मोदी चाय की दुकान चलाएंगे. साथ में पकौड़ भी बेचेंगे. अजमल ने 12 साल पहले ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) बनाया. वह असम के धुबरी से सांसद हैं.

‘अली और बजरंगबली हमारे अपने हैं, हमें दोनों चाहिए’
– मायावती

बसपा चीफ मायावती ने यूपी के बदायूं में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कहा कि अली और बजरंगबली हमारे अपने हैं. हमें दोनों चाहिए क्योंकि वे हमारी दलित जाति से जुड़े हुए हैं. मायावती ने यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधते हुए कहा कि बजरंगबली की जाति की खोज मैंने नहीं बल्कि खुद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने की है. इस चुनाव में योगी आदित्यनाथ की पार्टी को न तो अली का वोट मिलेगा और न ही बजरंगबली का.

‘अली और बजरंग में झगड़ा मत कराओ’
– आजम खान

समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान ने एक जनसभा में पहुंचे लोगों से ‘बजरंग अली’ का नारा लगवाते हुए कहा कि आपस के रिश्ते को अच्छा करो. अली और बजरंग में झगड़ा मत कराओ. मैं तो एक नाम देता हूं बजरंग अली. उपपर पलटवार करते हुए बीजेपी के नेता सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि आजम खान की पहचान धर्म परिवर्तन को बढ़ावा देने वाले शख्स की है. आजम खान कम से कम बजरंगबली को बख्श दें.

‘गेरुआ कपड़ा पहन बैठे हैं हत्यारे, एक वोट मत देना’
– ममता बनर्जी

पं.बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सिलीगुड़ी में चुनावी रैली के दौरान बीजेपी पर जमकर प्रहार किया. बनर्जी ने बीजेपी और संघ पर हमला करते हुए कहा, ‘गेरुआ लिबास पहनकर हत्यारे बैठे हैं. इन लोगों को एक वोट मत देना.’ इधर पश्चिम बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप घोष ने खड़गपुर में कहा कि अगर हाथ में हथियार रखना भड़काना है तब तो सेना से भी हथियार ले लेना चाहिए.

फ्रांस के अखबार का दावा- अंबानी की कंपनी का हजार करोड़ रुपये का टैक्स माफ हुआ

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रफाल मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अनिल अंबानी की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं. फ्रांस के एक अखबार ने रिपोर्ट में दावा किया है कि फ्रांसीसी सरकार ने ‘रिलायंस फ्लैग एटलांटिक फ्रांस’ (आरएफएएफ) नाम की एक फ्रांसीसी कंपनी का एक हजार करोड़ रुपये का टैक्स माफ किया है. यह वही वक्त था जब भारत और फ्रांस के बीच 36 रफाल विमानों के सौदे पर बात चल रही थी.

फ्रांस के चर्चित अखबार ला मोंद की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी और अक्टूबर 2015 के बीच में फ्रांस सरकार ने ‘रिलायंस फ्लैग एटलांटिक फ्रांस’ (आरएफएएफ) नाम की एक फ्रांसीसी कंपनी पर 14 करोड़ 37 लाख यूरो यानी एक हजार करोड़ रु से भी ज्यादा की टैक्स वसूली रद्द की थी. आरएफएएफ का स्वामित्व अनिल अंबानी की रिलायंस कम्युनिकेशंस के पास है.

ला मोंद की रिपोर्ट के अनुसार, ‘अक्टूबर, 2018 में भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाले फ्रांस के एनजीओ शेरपा ने वहां के राष्ट्रीय वित्तीय कार्यालय (पीएनएफ) के पास एक शिकायत दर्ज कराई थी. इसमें रफाल सौदे में भ्रष्टाचार और पक्षपात के आरोपों की जांच करने की मांग की गई थी. आरएफएएफ इस समय अपने बड़े वित्तीय संकटों के लिए जानी जाती है. रिलायंस समूह की अन्य कंपनियों के लिए दूरसंचार से जुड़ी सेवाएं देने वाली इस कंपनी पर भारी टैक्स बकाया है. 31 मार्च, 2014 को इसका टर्नओवर करीब छह मिलियन यूरो (करीब 470 करोड़ रुपये) था.’

इस रिपोर्ट के बाद कांग्रेस और राहुल गांधी की रफाल मुद्दे पर किया गया भ्रष्टाचार का वादा सही होते नजर आ रहा है. राहुल और विपक्ष लंबे समय से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार को घेरे हुए है. राहुल ने कई रैलियों में यह दावा किया है कि पीएम ने खुद पेरिस जाकर यह सौदा इसलिए किया कि वे अपने मित्र अनिल अंबानी को फायदा पहुंचा सकें. दूसरी ओर, सरकार और अनिल अंबानी ने हमेशा ही इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है.

घर वापसी की तैयारी में कर्नल सोनाराम, आलाकमान से हरी झंडी का इंतजार

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बाड़मेर से टिकट कटने पर नाराज कर्नल सोनाराम ने घर वापसी की तैयारी कर ली है. हाथ का दामन थामने के लिए कर्नल ने दो दिन से दिल्ली में डेरा डाल रखा है. उन्होंने सीधे आलाकमान के जरिए कांग्रेस में वापसी की कवायद की है. हालांकि सीएम अशोक गहलोत उनके पक्ष के नहीं माने जाते हैं, लेकिन जोधपुर से वैभव गहलोत के चुनाव लड़ने के चलते वे पुरानी बातें भूलने को तैयार हो गए हैं. आपको बता दें कि जोधपुर लोकसभा सीट पर जाटों के अच्छी संख्या में वोट हैं.

गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों का एलान होने से पहले जब अशोक गहलोत जोधपुर दौरे पर थे तो सोनाराम गहलोत से सर्किट हाउस में मिलने आए थे, सीएम ने उन्हें मिलने का समय नहीं दिया. तब से ही सोनाराम के कांग्रेस में आने की अटकलें शुरू हो गई थी. असल में कर्नल को बाड़मेर सीट से विधानसभा चुनाव हारने के बाद यह लग गया था कि उन्हें इस बार लोकसभा का टिकट नहीं मिलेगा.

संभवत: इसीलिए सोनाराम ने विधानसभा का चुनाव हारने के बाद से ही कांग्रेस नेताओं से संपर्क साधना शुरू कर दिया था. उन्होंने विधानसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल की पार्टी और बीजेपी के बीच मिलिभगत का आरोप भी कांग्रेस की ओर कदम बढ़ाने के लिए लगाया. लोकसभा का टिकट नहीं मिलने के बाद वे खुलकर सामने आ गए. उन्होंने बीजेपी पर दूध में से मक्खी की तरह निकाल फेंकने का आरोप लगाया. सोनाराम ने बीजेपी नेतृत्व पर टिकट बेचने का आरोप भी लगाया.

आज राहुल गांधी दिल्ली से बाहर है. सीएम अशोक गहलोत, पीसीसी चीफ सचिन पायलट और प्रभारी अविनाश पांडेय कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मिलने के लिए दिल्ली पहुंच चुके हैं. तीनों ने कर्नल के कांग्रेस में आने पर मंथन भी कर लिया है. यदि राहुल गांधी ने हरी झंडी दिखा दो तो सोनाराम की कांग्रेस में वापसी पर मुहर लग सकती है. हालांकि हरीश चौधरी भी नहीं चाहते हैं कि कर्नल वापस कांग्रेस में आए, क्योंकि लोकसभा चुनाव में उनके सामने मानवेंद्र सिंह के अलावा एक और दावेदार खड़े हो जाएंगे.

गहलोत के विरोधी रहे हैं सोनराम

कर्नल सोनाराम जब कांग्रेस से विधायक थे तब अशोक गहलोत राजस्थान क मुख्यमंत्री थे. उस दौरान कर्नल खुलकर गहलोत के खिलाफ बयानबाजी करते थे. बताया जाता है कि उन्होंने मंत्री नहीं बनाने से नाराज होकर गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोला. बाद में सोनाराम चुनाव हार गए. अलगे चुनाव में वसुंधरा राजे ने उन्हें जसवंत सिहं का टिकट कटवाकर बाड़मेर से मैदान में उतार दिया. इस चुनाव में उनकी जीत हुई, लेकिन पिछले साल दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा.

राहुल बाबा बताएं कि बिना MA कैसे कर ली M.Phil: जेटली

राजनीति में एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए बयानबाजी का दौर चलता रहता है. मौका पड़ने पर कोई भी इसमें पीछे नहीं रहना चाहता. अभी अमेठी से भाजपा प्रत्याशी और केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की डिग्री को लेकर बयानबाजी थमीं ही नहीं थी, एक और नेता ‘डिग्री दिखाओ’ के सवाल से घिर गए हैं. हम बात कर रहे हैं कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अमेठी से ही कांग्रेस प्रत्याशी राहुल गांधी की. वरिष्ठ भाजपा नेता और केन्द्रीय मंत्री अरूण जेटली ने राहुल गांधी की एमफिल की डिग्री को लेकर सवाल खड़े किए हैं. भाजपा के वरिष्ठ नेता और केन्द्रीय मंत्री अरुण जेटली ने राहुल गांधी की डिग्री पर सवाल उठाते हुए उनसे पूछा है कि बिना MA किए आपने कैसे M.Phil की डिग्री पा ली?


राहुल गांधी द्वारा अमेठी से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में दिए गए हलफनामे के बाद सियासी बहस जोर पकड़ती जा रही है. दरअसल, राहुल गांधी ने 2004 और 2009 में बताया था कि उन्होंने ट्रिनिटी कॉलेज से डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स में M.Phil किया है, जबकि 2014 में कहा कि M.Phil डेवलपमेंट स्टडीज में किया गया है. सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रियाओं का सैलाब सा आ गया है. कोई ये भी बता रहा है कि एमफिल में राहुल गांधी एक विषय में पास होने लायक नंबर भी नहीं पाए.

केन्द्रीय मंत्री जेटली ने राहुल पर निशाना साधते हुए शनिवार को अपने फेसबुक ब्लॉग उनकी पढ़ाई पर सवाल खड़े किए है. इंडियाज़ ओपोजिशन इज ऑन ए रेंट ए कॉज कैंपेन हेडिंग के साथ अरुण जेटली ने लिखा- ‘आज बीजेपी कैंडिडेट (स्मृति ईरानी) की शैक्षणिक योग्यता पर बातें हो रही हैं. लेकिन इस दौरान राहुल गांधी की शैक्षणिक योग्यता को भुला दिया जा रहा है. राहुल गांधी की शैक्षणिक योग्यता को लेकर ऐसे कई सवाल हैं, जिनका जवाब नहीं मिला. बेशक उन्होंने बिना मास्टर डिग्री के एमफिल की पढ़ाई जो पूरी की है!

बता दें कि स्मृति ईरानी में अमेठी से नामांकन भरते वक्त जो हलफनामा दिया था, उसमें उनकी शैक्षणिक योग्यता पर फिर से सवाल उठे हैं. 2004 के हलफनामे में उन्होंने जो जानकारी दी थी, वो 2014 और 2019 के हलफनामे से बिल्कुल भी मेल नहीं खाता. इस पर कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने टीवी सीरियल ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ की थीम लाइन पर स्मृति ईरानी पर निशाना साधा है.

नामांकन के दौरान दिए गए हलफनामे में स्मृति ईरानी ने बताया कि वे ग्रेजुएट नहीं हैं. उन्हें बीच में ही कॉलेज छोड़ना पड़ा.जिसके बाद से कांग्रेस पार्टी स्मृति ईरानी की डिग्री का मुद्दा बना कह रही है कि स्मृति ईरानी का हलफनामा प्रमाणित करता है कि पूर्व में उन्होंने झूठ बोला था. लिहाजा उनका नामांकन ख़ारिज किया जाना चाहिए. अब डिग्री दिखाओ मामले में बीजेपी ने कांग्रेस को घेरने की तैयारी कर ली है और उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष की डिग्री पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं.

बीकानेर में अर्जुन मेघवाल की तीसरी जीत में अपने ही लगा रहे अडंगा

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चुनाव सिर पर हैं तो राजनीतिक पार्टियों में आपसी फूट और आतंरिक नाराजगी कोई नई बात नहीं है. यही वजह है कि लोकसभा सीटों पर चुनावों में उतरे प्रत्याशियों को प्रतिद्वंद्वी से कम और अपने ही लोगों से अधिक खतरा है. बीकानेर सीट पर ही कुछ यही हाल है जहां बीजेपी के प्रत्याशी अर्जुनराम मेघवाल मछली की आंख पर सटीक निशाना लगाएं, उससे पहले खुद ही अपनों का निशाना बनते जा रहे हैं. यहां से दो बार के सांसद अर्जुनराम मेघवाल लाख विरोध के बावजूद फिर से तीसरी बार मैदान में हैं. वह एक दलित नेता हैं और बीजेपी ने फिर से उन पर दांव खेला है. वहीं तीन बार सीट पर पटखनी खाने के बाद कांग्रेस ने परिवार के ही पूर्व आईपीएस मदन गोपाल को मैदान में उतारा है. गोपाल अर्जुनराम के मौसेरे भाई हैं और पिछले दोनों चुनावों में अर्जुन को जिताने में पर्दे के पीछे रहे थे. अब अर्जुन को परिवार के साथ-साथ पार्टी के आंतरिक गुटबाजी के खिलाफ भी मोर्चा खोलना पड़ गया है.

मोदी मैजिक के भरोसे ‘मेघवाल’
पिछले 10 सालों से से बीकानेर सांसद और तीन साल से केंद्र में राज्यमंत्री बनकर अपनी जगह बनाने वाले अर्जुन मेघवाल के लिए पिछले दो चुनाव इतने भारी नहीं रहे जितने इस बार है. भाई का सामने खड़ा होना और पार्टी में ही खुल्लम-खुल्ला विरोध दोनों अहम कारण हैं. पहले चुनाव में कांग्रेस की गुटबाजी का फायदा उठाते हुए मेघवाल भले ही कम अंतर से जीते लेकिन दूसरी बार मोदी लहर पर सवार होकर उनकी जीत का आंकड़ा तीन लाख बढ़ गया. टिकट मिलने के बाद पांच बार विरोध का सामना कर चुके अर्जुन का इतना विरोध 10 सालों में कभी नहीं हुआ. यही कारण है कि विरोध से चिंतित अर्जुन अब अपने प्रचार कार्यक्रम को सार्वजनिक करने से भी बच रहे हैं. अर्जुन को यह डर भी सता रहा है कि विरोध का ये ज्वार कहीं उनके राजनीतिक सफर को बीच मझधार में न डुबो दे, इसलिए सेफ गेम खेलते हुए अपनी चुनावी नैया को मोदी के मैजिक के सहारे किनारे पर ले जाने की कोशिश में हैं. यही वजह है कि खुद सासंद रहने के बाद भी अपनी उपलब्धियों पर बोलने के बजाय अर्जुन पीएम मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं.

आठ सीट का समीकरण
बीकानेर पूर्व, बीकानेर पश्चिम, खाजूवाला और कोलायत सहित चार सीटों पर चल रहे विरोध का पता खुद अर्जुनराम को पता है. देवी सिंह भाटी और श्रीकोलायत उनका खुलेआम विरोध कर रहे हैं, वहीं खाजूवाला के पूर्व विधायक डॉ. विश्वनाथ के साथ अर्जुन के छत्तीस के आंकड़े सियासी गलियारों में चर्चा में हैं. बीकानेर पूर्व की विधायक सिद्घि कुमारी अभी तक बीकानेर से बाहर हैं और बीकानेर पश्चिम के पूर्व विधायक गोपाल जोशी एक बार भी प्रचार में नहीं दिखे. नोखा के विधायक बिहारीलाल और देहात भाजपा जिलाध्यक्ष के तौर पर नजर तो आए हैं लेकिन प्रचार रैलियों में ईद का चांद ही बने रहे.

यूपी में अधपके चावल दे रहे राजनीति के मंझे खिलाड़ियों को कड़ी टक्कर

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इस बार का लोकसभा चुनाव कई मायनों में पिछले चुनावों के मुकाबले दिलचस्प होगा. इसकी वजह है कि उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में कई ऐसी सीटें हैं, जहां नए खिलाड़ी राजनीति में मंझे दिग्गजों को टक्कर देते नजर आ रहे हैं. सियासी दंगल के ये नए खिलाड़ी कहीं तो राजनीति की लंबी पारी खेल चुके खिलाड़ियों को चुनौती देंगे तो कहीं उनके आने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. हालांकि चुनावी परिणाम में थोड़ा समय शेष है लेकिन मुकाबला कहीं मायनों में मजेदार हो गया है. आइए जानत हैं ऐसी ही कुछ लोकसभा सीटों के बारे में …

आजमगढ़
मुलायम सिंह यादव की इस परम्परागत सीट पर फिर से सांसद बनने की अभिलाषा लिए समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव मैदान में उतर रहे हैं. विधान परिषद से लेकर लोकसभा तक के सदस्य रह चुके अखिलेश यादव यूपी की सत्ता की कमान भी संभाल चुके हैं. अखिलेश यादव जैसे दिग्गज के सामने भाजपा ने दिनेश लाल यादव निरहुआ को चुनावी समर में उतारा है. निरहुआ एक भोजपुरी स्टार हैं और राजनीति के मंच पर नए खिलाड़ी हैं. इसके बावजूद निरहुआ के मैदान में आने से आजमगढ़ लोकसभा सीट का चुनाव रोमांचक हो गया है.

गाजियाबाद
इस सीट पर भाजपा ने पिछली बार इसी सीट से सांसद रहे वीके सिंह पर दांव खेला है. वहीं सपा गठबंधन ने पहले तीन बार के विधायक रहे सुरेंद्र कुमार मुन्नी को टिकट दिया, बाद में वैश्य मतदाताओं में अच्छी पकड़ रखने वाले सुरेश बंसल को मैदान में उतारा. इन दिग्गजों के सामने कांग्रेस ने युवा महिला चेहरा डॉली शर्मा को टिकट देकर गाजियाबाद सीट की लड़ाई त्रिकोणीय कर दी.

बदायूं
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बदायूं लोकसभा क्षेत्र समाजवादी पार्टी का गढ़ है. सपा पिछले 6 लोकसभा चुनाव से इस सीट पर अजेय है. अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव दूसरी बार इस सीट से सांसद हैं और गठबंधन के प्रत्याशी भी हैं. कांग्रेस ने धर्मेंद्र यादव के सामने सलीम शेरवानी जैसे दिग्गज को टिकट दिया हैं. वहीं भाजपा ने संघमित्रा मौर्य को टिकट देकर मुकाबले को रोमांचक बना दिया है. संघमित्रा, प्रदेश के श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी हैं.

गोंडा
गोंडा लोकसभा सीट पर भाजपा ने अपने वर्तमान सांसद कीर्ति वर्धन सिंह को एक बार फिर मैदान में उतारा है. कीर्ति इस सीट से तीन बार सांसद रह चुके हैं. सपा-बसपा गठबंधन ने इस सीट पर विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह को टिकट दिया है. इन दो दिग्गजों के सामने कांग्रेस ने अपने सहयोगी दल (अपना दल) की अध्यक्ष कृष्णा पटेल को चुनावी समर में उतारा है. कृष्णा पटेल भले ही राजनैतिक दृष्टि से अपने विरोधियों के सामने नई हैं लेकिन उनकी सक्रियता ने गोंडा की हवा का रूख जरूर बदल कर रख दिया है.

बाराबंकी
बाराबंकी सीट से सांसद शाह पीएल पुनिया के बेटे तनुज पुनिया को कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाया है. तनुज पुनिया भले ही अभी तक पिता के चुनाव का प्रबंधन भले ही देखते रहे हों, लेकिन चुनाव की दृष्टि से राजनीति के नए चावल हैं. उनके सामने भाजपा के उपेंद्र रावत हैं जो जैदपुर सीट के विधायक हैं. वहीं समाजवादी पार्टी ने चार बार सांसद और तीन बार के विधायक रह चुके राजनीति के दिग्गज राम सागर रावत पर दांव खेल दोनों उम्मीदवारों की हवा टाइट कर दी है.

इटावा
वैसे तो यह सीट समाजवादियों का गढ़ रही है लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने यहां से जीत दर्ज की थी. लेकिन पार्टी ने मौजूदा सांसद अशोक दोहरे का टिकट काट कर आगरा से सांसद रहे रमा शंकर कटेरिया को थमाया है. टिकट कटने से नाराज अशोक दोहरे ने भाजपा से किनारा कर कांग्रेस का हाथ थामा और इस सीट पर फिर से दावा ठोका है. इन दोनों के सामने सपा-बसपा गठबंधन ने कमलेश कठेरिया को उतारा है. कमलेश का नाम यहां नया नहीं है क्योंकि उनके पिता प्रेमदास भी इटावा लोकसभा सीट से एक बार सांसद रह चुके हैं.

लखीनपुर
लखीनपुर खीरी लोकसभा सीट पर चुनाव अन्य सीटों से और भी मजेदार होने जा रहा है. इस सीट पर बीजेपी ने अपने वर्तमान सांसद अजय कुमार मिश्रा उर्फ टेनी को फिर से टिकट दिया है. उनके सामने कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व सांसद जफरअली नकवी चुनाव लड़ रहे हैं. इन दोनों के सामने सपा ने नए चेहरे पूर्वी वर्मा पर दांव लगाया है. पूर्वी वर्मा हालांकि राजनीति की कच्ची चावल हैं लेकिन राजनीति उनके खून में बसती है. उनके परिवार के लोग करीब दस बार इस सीट का प्रतिनिधित्व संसद में कर चुके हैं. ऐसे में पूर्वी पर खेला गया सपा का दाव किसी भी तरीके से कांग्रेस-बीजेपी के प्रत्याशी से कमतर नहीं माना जा रहा है.

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