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फिर निशाने पर आए शत्रुध्न सिन्हा, जिन्ना को बताया ‘कांग्रेस परिवार’ का हिस्सा

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बीजेपी छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए शत्रुध्न सिन्हा लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं. हाल ही में शत्रु सपा-बसपा महागठबंधन से लखनऊ चुनावी प्रत्याशी पूनम सिन्हा का प्रचार करने पहुंच गए थे जिसपर कांग्रेस प्रत्याशी ने ऐतराज जताया था. शत्रु अब जिन्ना का भूत लेकर फिर से सुर्खियों में हैं. दरअसल शत्रुध्न सिन्हा मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में एमपी के मुख्यमंत्री कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ के प्रचार में पहुंचे थे. यहां उन्होंने जिन्ना को ‘कांग्रेस परिवार’ का सदस्य बताया है.

अपने भाषण में शत्रु ने कहा, ‘कांग्रेस परिवार महात्मा गांधी से लेकर सरदार वल्लभ भाई पटेल तक, मोहम्मद अली जिन्ना से लेकर जवाहर लाल नेहरू तक, इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी और राहुल गांधी तक की पार्टी है. भारत की आजादी और विकास में इन सभी का योगदान है. इसलिए मैं कांग्रेस पार्टी में आया हूं और एक बार आ गया हूं तो अब मुड़कर कहीं वापस नहीं जाऊंगा.’

यहां उन्होंने छिंदवाड़ा में लोगों को संबोधित करते हुए शायराना अंदाज में बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि ‘कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, वरना कोई यूं ही बेवफा नहीं होता.’ आगे उन्होंने कहा कि बीजेपी में उन्होंने लोक शाही को धीरे-धीरे तानाशाही में परिवर्तित होते देखा है. यही वजह है कि मौजूदा बीजेपी नेतृत्व ने यशवंत सिन्हा, मुरली मनोहर जोशी, अरुण शौरी जैसे कद्दावर शख्सियतों को निपटा दिया गया.

बता दें कि शत्रुघ्न सिन्हा हाल ही में बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं. कांग्रेस ने उनको पटना साहिब से ही लोकसभा का टिकट दिया है. सिन्हा अभी तक इसी सीट से बीजेपी के सांसद रहे हैं. उनका मुकाबला बीजेपी के रविशंकर प्रसाद से है.

चौथे चरण के चुनाव प्रचार का आज आखिरी दिन, यूपी में दिग्गजों का जमावड़ा

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देश में लोकसभा चुनाव का चौथा चरण शुरू होने जा रहा है. चौथे चरण के लिए मतदान 29 अप्रैल को होंगे जिसमें 9 राज्यों की 71 सीटों पर वोटिंग होगी. आज चुनाव प्रचार का आखिरी दिन है. ऐसे में सियासी मैदान के सबसे बड़े गढ़ यूपी में आज दिनभर दिग्गजों का जमावड़ा देखने को मिलेगा. आज यहां सबसे व्यस्त कार्यक्रम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हैं. पीएम मोदी आज यूपी में 3 जनसभाओं को संबोधित करेंगे. मोदी की पहली जनसभा दोपहर 12 बजे कन्नौज में होनी हैं. उसके बाद दोपहर 12.30 बजे हरदोई और तीसरी व अंतिम जनसभा दोपहर 2 बजे सीतापुर में है.

बात करें कांग्रेस की तो पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की पहली जनसभा दोपहर 12.30 बजे रायबरेली के ऊंचाहार में होगी. उसके बाद संसदीय क्षेत्र अमेठी में दो जनसभाओं को संबोधित करेंगे. वहीं, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी उन्नाव और बाराबंकी में रोड शो करेंगी.

इनके अलावा, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव कन्नौज में दोपहर 12 बजे एक रोड शो करने वाले हैं. इस सीट से उनकी पत्नी डिंपल यादव मैदान में हैं. शाम चार एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को भी संबोधित करेंगे. वहीं मध्यप्रदेश के रीवा में बसपा प्रमुख मायावती एक जनसभा को संबोधित करेंगी.

ग्राउंड रिपोर्ट: अजमेर में मोदी भरोसे बीजेपी, कांग्रेस को उपचुनाव जैसी आस

पिछले लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी 25 सीटों पर बीजेपी ने कब्जा जमा लिया था लेकिन उपचुनाव में अजमेर और अलवर सीटें फिर से कांग्रेस के खाते में आ गईं. इस बार अजमेर संसदीय सीट पर उद्योगपति से सियासी गलियारों में कदम रखने वाले रिजु झुनझुनुवाला कांग्रेस की तरफ से मैदान में हैं. हालांकि पिछले साल सूबे में बीजेपी की सत्ता होने के बावजूद कांग्रेस यह सीट निकालने में कामयाब हुई थी लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक से अजमेर के समीकरण बदल गए. लिहाजा पीसीसी चीफ सचिन पायलट और मंत्री रघु शर्मा जैसे दिग्गज़ों ने यहां से चुनाव लड़ने से मना कर दिया था. अब रिजु ने पैसों की चमक और शहर की दिवारों पर लगे आकर्षक स्लोगन के दम पर खूब माहौल बनाने के प्रयास किए लेकिन मोदी लहर पर सवार भागीरथ चौधरी को टक्कर नहीं दे पा रहे हैं. बाहरी उम्मीदवार होने की वजह से स्थानीय नेताओं का भी रिजु को सहयोग नहीं मिल रहा. ऐसी स्थिति में उनकी सास बीना काक ने अपने दामाद के प्रचार की कमान संभाली हुई है.

जातीय समीकरण पर किसका पलड़ा भारी
जातीय समीकरणों पर गौर करें तो भागीरथ यहां भी रिजु झुनझुनवाला से ज्यादा मजबूत हैं. अजमेर उत्तर, अजमेर दक्षिण, उत्तर, पुष्कर, नसीराबाद, किशनगढ़, दूदू और केकड़ी में फिलहाल बीजेपी मजबूत स्थिति में दिख रही है. इस सीट पर SC/ST की आबादी लगभग 22 फीसदी है. जाटों की संख्या 16 से 17 फीसदी है. मुस्लिम आबादी 12 फीसदी और कुछ क्षेत्रों में राजपूत, वैश्य समुदाय का दबदबा है. 2018 के चुनाव के मुताबिक इस संसदीय सीट पर मतदाताओं की संख्या 18 लाख 42 हजार 992 है. इसमें पुरूष मतदाताओं की संख्या 9 लाख 43 हजार 546 और 8 लाख 99 हजार 424 महिला मतदाता हैं.

मौजूदा सियासी जमीनी हकीकत
रिजु का नाम प्रत्याशियों की लिस्ट में काफी बाद में आया. ऐसे में प्रचार की दौड़ में दस दिन पिछड़ने के बाद कांग्रेस के रिजु ने आर्थिक संसाधनों के बूते माहौल को गरमाहट दे दी है. लेकिन आंतरिक कलह और देरी से टिकट की घोषणा होने के फैक्टर उनपर भारी पड़ रहे हैं. वहीं भागीरथ चौधरी स्थानीय होने के साथ-साथ बीजेपी के मजबूत संगठन का भरपूर फायदा उठाते दिखाई दे रहे हैं.

अजमेर की राजनीतिक पृष्ठभूमि
अजमेर लोकसभा सीट पर 1998-99 छोड़ दें तो 1989 से बीजेपी के रासा सिंह रावत पांच बार सांसद रहे. 2009 के आम चुनावों में सचिन पायलट ने बीजेपी की किरण माहेश्वरी को हराकर इस सीट पर कब्जा जमाया. 2014 की मोदी लहर में पायलट यह सीट बीजेपी के जाट नेता सांवरलाल जाट के हाथों गंवा बैठे. केंद्रीय मंत्री सांवर लाल जाट के निधन के बाद इस सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर वापसी की. रघु शर्मा फिलहाल केकड़ी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं.

जीत का यह रहेगा फॉर्मूला
इस सीट पर मोदी लहर और राष्ट्रवाद हावी है. ऐसे में रिजु हो या फिर भागीरथ चौधरी, जो भी उम्मीदवार एससी-एसटी, मुस्लिम और राजपूत वोटरों को जो अपने पक्ष में कर पाया, वही इस मुकाबले में सिरमौर बनेगा. एंटी जाट वोट बैंक का ध्रुवीकरण भी खेल बदल सकता है. सचिन पायलट, अशोक गहलोत और राहुल गांधी की जनसभा भी रिजु के पक्ष में माहौल बना सकती है.

चुनाव नहीं लड़ रहे राज ठाकरे ने बीजेपी की नाक में दम क्यों कर रखा है?

एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे इन दिनों अपनी चुनावी सभाओं को लेकर चर्चा में हैं. बीजेपी ने चुनाव आयोग ने इनकी शिकायत की है. बीजेपी ने राज ठाकरे पर आरोप लगाया है कि उनकी पार्टी प्रदेश की एक भी लोकसभा सीट पर चुनाव नही लड़ रही है तो वे इतनी बड़ी सभाएं क्यों कर रहे हैं. इसके लिए पैसा कहां से आ रहा है.

आपको बता दें कि राज ठाकरे की पार्टी ने लोकसभा चुनाव में एक भी प्रत्याशी नही उतारा है, लेकिन वे महाराष्ट्र में बीजेपी के खिलाफ लगातार सभाएं कर रहे हैं. इनमें ठाकरे प्रधानमंत्री मोदी पर जमकर निशाना साध रहे हैं. यह कोई नहीं बात नहीं है, लेकिन उनका तरीका एकदम नया है. एमएनएस प्रमुख सभाओं में प्रधानमंत्री मोदी के 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान दिए गए भाषणों के वीडियो दिखाते हैं और इसमें उठाए गए मुद्दों पर इस चुनाव में चुप्पी पर सवाल खड़े करते हैं.

राज ठाकरे की यह तरीका सोशल मीडिया पर गदर मचा रहा है. विपक्ष के किसी नेता ने बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी को इतनी तैयारी के साथ नहीं घेरा है, जितना ठाकरे घेर रहे हैं. बीजेपी की महाराष्ट्र इकाई राज ठाकरे की सभाओं में आ रही भीड़ से चिंतित है. स्थानीय नेताओं ने इसकी रिपोर्ट शीर्ष नेतृत्व को दी है. कई दौर के मंथन के बाद तय हुआ कि मामले की शिकायत चुनाव आयोग में की जाए. पार्टी ने ऐसा कर भी दिया है.

बीजेपी को उम्मीद है कि चुनाव आयोग उनकी शिकायत पर संज्ञान लेगा और राज ठाकरे की सभाओं पर रोक लगाएगा. इस बीच एक चैनल के इंटरव्यू में यह पूछे जाने पर कि एमएनएस की रैलियों से कांग्रेस-एनसीपी को फायदा हो रहा है, राज ठाकरे ने कहा कि मेरे भाषण पूरे देश में लोकप्रिय हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि मेरे भाषणों के क्लिप दूसरी भाषाओं में दिखाई जा रही हैं, सभी पार्टियों को इसका फायदा हो रहा है.

गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव से पहले यह चर्चा थी कि एमएनएस और एनसीपी का गठबंधन हो सकता है, लेकिन बाद में एनसीपी और कांग्रेस के बीच गठजोड़ हो गया. एनसीपी और कांग्रेस ने एमएनएस के साथ गठबंधन इसलिए भी नहीं किया क्योंकि दोनों दलों को ये डर था कि राज ठाकरे के साथ आने से प्रदेश में रह रहे बाहरी राज्यों के लोग उनसे दूर छिटक सकते हैं, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा. यही नहीं, बीजेपी इस मुद्दे को बिहार और उत्तर प्रदेश में भी जमकर उछालेगी.

महाराष्ट्र की राजनीति के जानकारों की मानें तो राज ठाकरे की सभाओं के पीछे आगामी विधानसभा चुनाव है. एमएनएस प्रमुख नरेंद्र मोदी का विरोध कर शिवसेना से नाराज धड़े को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं. उनका मानना है कि शिवसेना के अनेक नेता और कार्यकर्ता लोकसभा चुनाव में भाजपा से गठबंधन करने से खफा हैं, ये सब विधानसभा चुनाव में उनके साथ आ सकते हैं.

दरअसल, एमएनएस महाराष्ट्र में अपना वजूद बचाने के लिए जूझ रही है. वर्तमान में विधानसभा में उसका एक भी विधायक नहीं है. 2014 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने एक सीट जीती थी, लेकिन वे भी शिवसेना में शामिल हो गए. बता दें कि 2006 में राज ठाकरे शिवसेना से अलग होकर एमएनएस का गठन किया था. 2009 के चुनाव में पार्टी को 13 सीटों पर सफलता मिली थी.

उत्तरप्रदेश: मैदान में नहीं, फिर भी इन नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी

यूपी के लोकसभा चुनाव में कई सियासी धुरंधर ऐसे हैं जो खुद तो चुनावी दंगल में नहीं उतरे लेकिन उनके परिवार के सदस्य या नजदीकी के मैदान में होने से उनकी प्रतिष्ठा दांव पर है. हालात कुछ ऐसे हैं कि खुद चुनाव लड़ने पर वह जितनी मेहनत करते, उससे कहीं ज्यादा मेहनत उन्हें अपने ‘प्रियजन’ की कामयाबी के लिए करनी पड़ रही है. ऐसे ही कुछ नेताओं के बारे में यहां बताया जा रहा है.

राम गोपाल यादव – समाजवादी पार्टी
राम गोपाल यादव को समाजवादी पार्टी का थिंक टैंक माना जाता है. राम गोपाल यादव वर्तमान में राज्यसभा सदस्य हैं. मुलायम सिंह की तरह चुनाव के दौरान पार्टी के प्रचार की जिम्मेदारी उनके कंघों पर भी होगी लेकिन फिरोजाबाद सीट उनके लिए भी अहम बन गई है. यहां से उनके पुत्र अक्षय यादव सपा के टिकट पर मैदान में हैं. हालांकि, अक्षय इस सीट से मौजूदा सांसद भी हैं लेकिन इस बार उनकी टक्कर किसी और से नहीं बल्कि अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव से है.

कल्याण सिंह – बीजेपी
राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह भले ही संवैधानिक पद पर हों, लेकिन यूपी की एटा सीट उनकी प्रतिष्ठा से जोड़ कर देखी जा रही है. दो बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह के बेटे राजवीर एटा संसदीय सीट से एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं. 2014 का लोकसभा चुनाव राजवीर अपने पिता कल्याण सिंह की सीट एटा से जीत चुके हैं. वर्तमान में राजवीर इसी सीट से सांसद हैं. मैदान में भले ही राजवीर सिंह हों लेकिन दांव पर इज्जत कल्याण सिंह की लगी हुई है.

स्वामी प्रसाद मौर्य – बीजेपी
बसपा छोड़ कर भारतीय जनता पार्टी में आए स्वामी प्रसाद मौर्य योगी सरकार में मंत्री हैं. उनके ऊपर भी लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी है. फिलहाल उनका पूरा ध्यान बदायूं सीट पर केंद्रित है. दरअसल इस सीट से बीजेपी ने मौर्य की बेटी संघमित्रा को उतारा है. उसके साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि बदायूं सीट समाजवादियों का गढ़ है और अखिलेश के भाई धर्मेंद्र यादव इस सीट से लगातार चुनाव जीतते आए हैं. ऐसे में संघमित्रा की सफर बदायूं सीट पर आसान नहीं होगा.

पीएल पुनिया – कांग्रेस
रिटायर्ड आईएएस पीएल पुनिया सपा और बसपा के करीबी संबंध होने के बावजूद कांग्रेस से राजनीति कर रहे हैं. वर्तमान में राज्यसभा सदस्य होने के साथ वह छत्तीसगढ़ कांग्रेस कमिटी के प्रभारी भी हैं. 2009 के लोकसभा चुनाव में पीएल पुनिया राजधानी से सटी बाराबंकी सीट से सांसद रहे लेकिन पिछली बार मोदी लहर में हार गए. इस बार बाराबंकी से उनके पुत्र तनुज पुनिया कांग्रेस के टिकट से मैदान में हैं. अब यह सीट पुनिया के लिए नाक का सवाल बनी हुई है.

राम लाल राही – कांग्रेस
1991 में कांग्रेस की नरसिंम्हा राव सरकार में गृह राज्य मंत्री रहे रामलाल राही मिश्रिख संसदीय सीट से दो बार सांसद रहे. उनके पुत्र बीजेपी में हैं और वर्तमान में हरगांव सीट से विधायक हैं. रामलाल राही ने पिछले दिनों फिर कांग्रेस में वापसी की. कांग्रेस ने राही की पुत्रवधु मंजरी राही को उनकी लोकसभा सीट मिश्रिख से मैदान में उतारा है. चुनाव भले ही बहू लड़ रही है लेकिन प्रतिष्ठा तो रामलाल राही की ही दांव पर है.

अमर सिंह – बीजेपी
भारतीय राजनीति में अमर सिंह कोई अनजाना नाम नहीं है. यूपी से अपना सियासी सफर शुरू करने वाले अमर सिंह कभी मुलायम सिंह के दाहिने हाथ माने जाते थे अब उनका हाथ बीजेपी के साथ है. अमर सिंह की खास मानी जाने वाली अभिनेत्री जया प्रदा ने भी हाल ही में सपा का साथ छोड़ बीजेपी का दामन थामा है और पार्टी के टिकट पर रामपुर से मैदान में हैं. हालांकि वह पूर्व में भी इसी सीट से सपा सांसद रह चुकी हैं. सीधी टक्कर सपा के आजम खान से है. अगर जया प्रभा यहां से चुनाव हारती हैं तो किरकिरी तो अमर सिंह की ही होगी न.

करौली-धौलपुर सीट पर आसान नहीं है राजोरिया की सियासी डगर

लोकसभा चुनाव की चौसर बिछी हुई है. करौली-धौलपुर सीट पर कुल पांच प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. बीजेपी ने मौजूदा सांसद मनोज राजोरिया पर फिर से दांव खेला है तो कांग्रेस ने धौलपुर जिले में सरमथुरा निवासी युवा उम्मीदवार संजय जाटव को प्रत्याशी बनाया है. प्रमुख तौर पर देखा जाए तो कांग्रेस के संजय जाटव और बीजेपी के डॉ.मनोज राजोरिया ही मुकाबले में है. बसपा प्रत्याशी राम कुमार बैरवा नामांकन दाखिल करने के बाद से ही मैदान में नजर ही नहीं आ रहे. हालांकि राजोरिया मौजूदा सांसद हैं लेकिन इस बार चुनाव में उनकी राह आसान नजर नहीं आ रही है.
वजह है- पार्टी की गुटबाजी और अंतर्कलह राजोरिया पर भारी पड़ रही है. विगत पांच सालों में पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं से उनकी दूरी भी अब उनके गले की फांस बन गई है. करौली में बीजेपी का प्रधान कार्यालय तो खोल दिया गया है लेकिन कार्यकर्ताओं के अभाव में सूना नजर आ रहा है. करौली रेल लाइन का मुद्दा भी राजोरिया के पसीने छुड़ा रहा है. हालात यह हैं कि रेल लाइन के मुद्दे को लेकर लोग गले ना पड़ जाए, इस कारण राजोरिया ने करौली जिला मुख्यालय सहित क्षेत्र में अभी एक बार भी जनसंपर्क करने की हिम्मत नहीं जुटा सके हैं.
वहीं कांग्रेस प्रत्याशी संजय जाटव पर करौली जिले में कैबिनेट मंत्री रमेश मीणा का वरद हस्त माना जा रहा है. रमेश मीणा स्वयं विगत तीन दिन से उनके साथ जनसंपर्क में जुटे हुए हैं, वहीं बाड़ी क्षेत्र में विधायक गिर्राज मलिंगा कांग्रेस की विजयश्री के प्रयास में लगे हुए हैं.
संसदीय क्षेत्र के जातिगत समीकरणों का विश्लेषण करें तो संजय जाटव अपने तीन लाख सजातीय जाटव बैरवा मतों के साथ काफी मजबूत दिख रहा है. इसके अलावा मीणा माली मुस्लिम और गुर्जर मतों का कांग्रेस के पक्ष में होना जीत का प्रमुख आधार माना जा रहा है.
विश्लेषकों का कहना है कि इस बार गुर्जर कांग्रेस के साथ नहीं हैं लेकिन क्षेत्र में सचिन पायलट की पकड़ कांग्रेस प्रत्याशी को मजबूत किए हुए है. इधर बीजेपी के मनोज राजोरिया के पास उनके जातिगत वोटों की संख्या केवल 15 से 20 हजार है. राजपूत, जाट और सामान्य वर्ग के वोट बैंक बीजेपी के साथ जा सकते हैं लेकिन रेल के मुद्दे ने इन मतों को विभाजित किया हुआ है. विपक्ष भी रेल के मुद्दे पर राजोरिया को घेर रही है. वहीं रेल विकास समिति और प्रबुद्ध लोग भी इस मुद्देेे को छोड़ते नहीं दिख रहे.
बता दें, पिछले लोकसभा चुनाव में राजोरिया को करौली जिले से हार का सामना करना पड़ा था. इसकी वजह  वसुंधरा राजे की धौलपुुर क्षेत्र में मजबूत पकड़ रही. पिछले लोकसभा चुनाव में वसुंधरा राजे ने 3 दिन तक धौलपुर में डेरा डाले रखा था और सभी समाज वर्ग के लोगों पर दबाव बनाकर राजोरिया के पक्ष में मोड़ने में सफल रहीं.
लेकिन इस बार के चुनावों में स्थिति थोड़ी अलग जाती दिख रही है. स्थानीय लोगों का मानना है कि इस बार प्रदेश की सत्ता से बाहर हो चुकी वसुंधरा राजे उस फिज़ा को बरकरार नहीं रख पाई हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए यहां पार पाना पिछली बार के मुकाबले आसान नहीं होगा. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि करौली-धौलपुर सीट कांग्रेस के लिए जितनी आसान नजर आ रही है, उतनी ही बीजेपी को मौजूदा परिस्थितियां अपने पक्ष में करने के लिए जमकर पसीना बहाना पड़ेगा.

राजस्थान: 13 सीटों पर कल शाम थम जाएगा चुनाव प्रचार, मतदान 29 को

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देश में लोकसभा चुनाव के तीन चरण का मतदान हो चुका है और चौथे चरण का मतदान 29 अप्रैल को होना है. राजस्थान में लोकसभा चुनाव दो चरण में सम्पन्न होंगे. जिसमें 29 अप्रैल को 13 लोकसभा सीटों और 6 मई को 12 सीटों पर मतदान होने वाला है. चौथे चरण प्रदेश की 13 सीटों पर भी मतदान होगा. प्रदेश में 29 अप्रैल को जिन 13 सीटों पर मतदान होना है उनमें अजमेर, टोंक-सवाई माधोपुर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चितौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारां संसदीय सीटें शामिल है. एक नजर डालते हैं इन सीटों पर.

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जोधपुर संसदीय सीट इस बार प्रदेश के साथ-साथ देश की हॉट सीटों में शुमार है. यहां से कांग्रेस ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत को प्रत्याशी बनाया है. जहां वैभव का मुकाबला केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत से है. जोधपुर के चुनावी नतीजे दोनों प्रत्याशियों का भविष्य तय करेंगे. वैभव के साथ इस सीट पर उनके पिता अशोक गहलोत की भी प्रतिष्ठा दांव पर है. गहलोत जोधपुर से पांच बार सांसद रह चुके हैं. वो अभी वर्तमान में जोधपुर लोकसभा क्षेत्र की सरदारपुरा विधानसभा सीट से विधायक हैं.

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वहीं, अजमेर लोकसभा सीट पर भी इसी चरण मे मतदान होना है. यहां से कांग्रेस ने युवा और नए चेहरे रिजु झूनझूनवाला पर दांव खेला है. वहीं बीजेपी ने किशनगढ़ के पूर्व विधायक भागीरथ चौधरी को उम्मीदवार बनाया है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सांवरलाल जाट ने कांग्रेस के सचिन पायलट को शिकस्त दी थी. साल 2018 में सांवरलाल जाट के निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस के रघु शर्मा ने बीजेपी के रामस्वरुप लांबा को मात दी थी.

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इसके अलावा टोंक-सवाई माधोपुर सीट पर इस बार मुकाबला दिलचस्प है. यहां बीजेपी के वर्तमान सांसद सुखबीर सिंह जौनपुरिया और कांग्रेस प्रत्याशी नमोनारायण मीणा के बीच टक्कर है. नमोमारायण मीणा इस सीट से 2004 और 2009 में सांसद रह चुके हैं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें दौसा से प्रत्याशी बनाया था. जहां उनको करारी हार का सामना करना पड़ा था. वहीं कांग्रेस ने टोंक-सवाई माधोपुर से क्रिकेटर मोहम्म्द अजहरूद्दीन को टिकट दिया था.

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तो पाली लोकसभा सीट पर मुकाबला साल 2014 के उम्मीदवारों के बीच है. बीजेपी ने वर्तमान सांसद पीपी चौधरी को टिकट दिया है. वहीं कांग्रेस की तरफ से पूर्व सांसद बद्रीराम जाखड़ को प्रत्याशी बनाया गया है. बद्री जाखड़ साल 2009 में पाली से सांसद चुने गए थे. वहीं, साल 2014 में कांग्रेस ने यहां से बद्रीराम जाखड का टिकट काटकर उनकी बहन मुन्नी देवी गोदारा को प्रत्याशी बनाया था.

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साथ ही संसदीय सीट बाड़मेर-जैसलमेर में इस बार मुकाबला रोचक व दिलचस्प है. यहां कांग्रेस ने मानवेंद्र सिंह को प्रत्याशी बनाया है. मानवेंद्र पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह जसोल के पुत्र हैं. साल 2014 के चुनाव में बीजेपी ने सिंह परिवार का टिकट काटकर कांग्रेस से बीजेपी में आए कर्नल सोनाराम को दिया था. जिससे बागी होकर जसवंत सिंह ने बाड़मेर से निर्दलीय चुनाव लड़ा लेकिन वो सोनाराम से चुनाव हार गये थे. इसी विधानसभा चुनाव से पूर्व मानवेंद्र सिंह ने कांग्रेस ज्वॉइन की थी. इस बार कांग्रेस ने मानवेन्द्र सिंह पर दांव खेला है. वही बीजेपी ने बायतु के पूर्व विधायक कैलाश चौधरी को प्रत्याशी बनाया.

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इसके साथ ही जालोर में मुकाबला कांग्रेस के रतन देवासी और बीजेपी के वर्तमान सांसद देवजी पटेल के बीच है. रतन देवासी हाल ही में रानीवाडा सीट से विधानसभा का चुनाव हार गये थे. पार्टी ने उन पर फिर से विश्वास जताया है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से उदयलाल आंजना को मैदान में उतारा गया था. वहीं निर्दलीय बूटा सिंह ने भी लगभग पौने दो लाख मत हासिल किए थे.

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वहीं, उदयपुर सीट पर इस बार मुकाबला त्रिकोणीय नजर आ रहा है. इसी विधानसभा चुनावों में आदिवासी इलाकों में उभरकर आई पार्टी बीटीपी ने इस बार मुकाबला त्रिकोणीय बनाया हुआ है. जहां बीजेपी के वर्तमान सांसद अर्जुनलाल मीणा, कांग्रेस के रघुवीर मीणा और भारतीय ट्राइबल पार्टी के बिरधीलाल छानवाल के बीच मुकाबला है. कांग्रेस के लिए बीते विधानसभा चुनाव के नतीजे अच्छे नही रहे थे. कांग्रेस प्रत्याशी रघुवीर मीणा स्वयं उदयपुर ग्रामीण से चुनाव हार गये थे.

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साथ ही बांसवाड़ा- डूंगरपुर में भी मुकाबला त्रिकोणीय बना हुआ है. यहां एक बड़ी शक्ति बनकर उभरी बीटीपी दोनों पार्टियों के लिए मुसीबत का सबब बनी हुई है. हाल ही के विधानसभा चुनाव में बीटीपी ने प्रदेश की दो सीटों पर कब्जा किया था. वहीं अन्य सीटों पर भी उसका प्रदर्शन अच्छा रहा था. बीटीपी ने लोकसभा चुनाव में कांतिलाल रोत को प्रत्याशी बनाया है. वहीं कांग्रेस ने पूर्व सांसद ताराचंद भगोरा पर दांव खेला है. वहीं बीजेपी ने वर्तमान सांसद मानशंकर निनामा का टिकट काटकर कनकमल कटारा को प्रत्याशी बनाया है.

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वहीं, चितौड़गढ़ से बीजेपी ने वर्तमान सांसद सीपी जोशी पर पुन: विश्वास जताया है. उनका मुकाबला राजसमंद के पूर्व सांसद गोपाल सिंह ईड़वा से होगा. गोपाल साल 2009 में राजसमंद लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर संसद पहूंचे थे. लेकिन साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के सामंने अपना क्षेत्र नहीं बचा पाए थे. पार्टी ने इस बार उनको नए क्षेत्र चितौडगढ़ से प्रत्याशी बनाया है. उनको यहां बीजेपी के सीपी जोशी की चुनौती को पार करना होगा.

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इसके अलावा राजसमंद संसदीय सीट पर बीजेपी के सांसद हरिओम सिंह राठौड ने बीमारी के कारण चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान पहले ही किया था. जिसके बाद पार्टी यहां से किसी जिताऊ प्रत्याशी की तलाश में. काफी जद्दोजहद के बाद जयपुर राजघराने की पूर्व राजकुमारी दीया कुमारी को प्रत्याशी बनाया है. दीया साल 2013 में सवाई माधोपुर विधानसभा से विधायक रह चुकी हैं. यहां दीया का मुकाबला कांग्रेस के देवकीनंदन गुर्जर से है. देवकी विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के करीबी है और वे साल 2013 में भीलवाडा की नाथद्वारा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके है.

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तो भीलवाडा में मुकाबला कांग्रेस के रामपाल शर्मा और बीजेपी के सुभाष बहेड़िया के बीच है. रामपाल शर्मा भी सीपी जोशी के नजदीकी माने जाते हैं. उनके टिकट में अहम भूमिका सीपी जोशी की ही रही है. सीपी जोशी साल 2009 में इस क्षेत्र से सांसद रह चुके है. 2014 के चुनाव में यहां कांग्रेस ने हिंडोली विधायक अशोक चांदना को प्रत्याशी बनाया था.

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इसके अलावा कोटा सीट पर मुकाबला बीजेपी के ओम बिड़ला और कांग्रेस के रामनारायण मीणा के बीच है. ओम बिड़ला पर पार्टी ने पुन: भरोसा दिखाते हुए उन्हें चुनावी समर में उतारा है. रामनारायण मीणा वर्तमान में पीपल्दा सीट से विधायक है. वहीं साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बिड़ला ने कांग्रेस के इज्यराज सिंह को हराया था लेकिन वो विधानसभा चुनाव से पूर्व बीजेपी में आ गए थे. उनकी पत्नी इस समय कोटा की लाड़पुरा सीट से विधायक है.

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वहीं झालावाड़-बांरा लोकसभा सीट से बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पुत्र सांसद दुष्यंत सिंह को चुनावी समर में उतारा है. वहीं कांग्रेस ने बीजेपी से कांग्रेस में आए प्रमोद शर्मा पर दांव खेला है. इस सीट पर पहले प्रमोद जैन भाया का दावा मजबूत था लेकिन पार्टी ने प्रमोद शर्मा पर ही दांव खेलना उचित समझा. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि प्रमोद शर्मा दुष्यंत के सामने कितनी चुनौती पेश कर पाते है.

प्रदेश की इन 13 लोकसभा सीटों पर 29 अप्रैल को मतदाता अपना सांसद चुनकर दिल्ली भेजने वाले है. इसके बाद बाकी की 12 संसदीय सीटों पर 6 मई को मतदान होगा. इस बार के लोकसभा चुनावों में बीजेपी साल 2014 के चुनावों के नतीजे दोहराने के लिए पूरी कोशिश में जुटी है तो वहीं कांग्रेस भी मिशन-25 के तहत मतदाताओं तक पहुंचने में लगी है. लेकिन अंतिम फैसला तो जनता को ही करना है. जिसमें वो किसे चुनकर दिल्ली भेजती है ये देखने वाली बात रहेगी.

उत्तर प्रदेश के चुनावी रण में पेराशूटी उम्मीदवारों के भरोसे कांग्रेस!

सत्ता की कुर्सी के लिए जरूरी जादुई आंकड़े तक पहुंचने के लिए राजनैतिक दलों के लिए पार्टी की नीति और कार्यकर्ताओं से किए गए वादे कोई महत्व नहीं रखते. जैसे ही चुनाव करीब आते हैं, राजनैतिक दल अपने वादों से उलट जुगाड़ू और जिताऊ उम्मीदवारों की तलाश शुरू कर देते हैं. ताजा उदाहरण के तौर पर कांग्रेस को ही देख लीजिए. पिछले लोकसभा और 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी ने स्थानीय कार्यकर्ताओं से वादा किया था कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी अपने कार्यकर्ताओं पर विश्वास कर उन्हें चुनाव लड़वाएगी लेकिन चुनाव आते ही कांग्रेस अध्यक्ष अपने द्वारा किए गए वादों को भूल बैठे. नतीजा यह रहा कि यहां एक-दो नहीं बल्कि करीब डेढ़ दर्जन ऐसी सीटें हैं जहां पार्टी हाईकमाल ने बाहरी या जुगाड़ू प्रत्याशियों पर दांव खेला है. आइए जानते हैं पेराशूटी उम्मीदवारों के बारे में-

इटावा:
पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाओं को किनारे कर हाईकमान ने इस सीट पर चंद दिनों पहले बीजेपी से कांग्रेस में शामिल हुए अशोक दोहरे को मैदान में उतारा है. अशोक दोहरे वर्तमान में यहां से सांसद हैं और टिकट कटने पर कांग्रेस में शामिल हो गए. इस सीट पर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य और प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता अशोक सिंह प्रबल दावेदार बताए जा रहे थे.

सीतापुर:
कांग्रेस ने सीतापुर सीट पर भी हाल ही में पार्टी ज्वॉइन करने वाली कैसरजहां को टिकट दिया है. कैसरजहां सीतापुर सीट से बसपा के टिकट पर 2009 में सांसद चुनी गई थीं लेकिन इस बार उन्हें टिकट नहीं मिला. नाराज कैसरजहां ने बसपा छोड़ कांग्रेस का हाथ थाम लिया. यहां से पूर्व मंत्री अम्मार रिजवी जैसे कई दिग्गज टिकट मांग रहे थे.

देवरिया:
पूर्वांचल की इस सीट पर कांग्रेस ने नियाज अहमद को पंजे का चुनाव चिंह देकर चुनावी दंगल में उतारा है. नियाज अहमद कुछ दिन पहले ही बसपा छोड़ कांग्रेस में आए हैं. पार्टी में शामिल होते ही उन्हें कांग्रेस ने गिफ्ट स्वरूप देवरिया से टिकट थमा दिया. जबकि इससे पहले कांग्रेस हाईकमान ने पूर्व विधायक अखिलेश प्रताप सिंह को यहां से चुनाव लड़ाने का आश्वासन दिया था. विधानसभा चुनावों के बाद से ही अखिलेश लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे हुए थे लेकिन अब सब शांत हो गया है.

बांदा:
बुंदेलखंड की बांदा संसदीय सीट पर कांग्रेस ने दस्यु सरगना बाल कुमार पटेल पर दांव लगाया है. चुनाव से पहले सपा पार्टी छोड़ पार्टी में शामिल हुए पटेल का उस क्षेत्र में खासा वोट बैंक माना जाता है. इस सीट से कांग्रेस के पूर्व मंत्री विवेक सिंह टिकट मांग रहे थे. दिल्ली हाईकमाल सहित आला नेताओं ने उन्हें आश्वासन के ​साथ चुनावी तैयारियों में जुटने का आश्वासन भी दिया था.

मोहनलालगंज:
लखनऊ की मोहनलालगंज सीट पर कांग्रेस ने राम शंकर भार्गव को दिया टिकट वापिस लेकर पूर्व मंत्री आरके चौधरी को मैदान में उतारा. पहले इस सीट पर भार्गव को टिकट दिए जाने का ऐलान किया जा चुका था और उन्होंने जनसंपर्क भी शुरू कर दिया था. लेकिन पार्टी ने भार्गव से मुंह मोड़कर जिताऊ प्रत्याशी के चक्कर ने बसपा से पार्टी में शामिल हुए आरके चौधरी को टिकट थमा दिया.

बहराइच:
इस सीट पर कांग्रेस में अपनों को छोड़ जुगाड़ू प्रत्याशी के रूप में सावित्री बाई फुले को हाथ का साथ दिया है. फुले 2014 में बीजेपी के टिकट पर यहां से सांसद चुनी गई थीं, लेकिन इस बार टिकट कटने से उन्हें कांग्रेस की याद आयी. टिकट घोषणा से पहले यहां से पूर्व सांसद कमल किशोर कमांडो मजबूत दावेदार माने जा रहे थे.

यूपी की इन सीटों पर पेराशूटर

  • हरदोई : वीरेंद्र कुमार वर्मा – बीजेपी
  • मिश्रिख : मंजरी राही – बीजेपी
  • जौलान : बृजलाल खाबरी – बीएसपी
  • फतेहपुर : राकेश सचान – सपा
  • बासगांव : कुश सौरभ – रिटायर्ड आईपीएस
  • बिजनौर : नसीमुद्दीन सिद्दीकी – पिछले चुनाव के बाद कांग्रेस में आए
  • गौतमबुद्धनगर : डॉ. अरविंद सिंह चौहान – बसपा सरकार में मंत्री रहे जयवीर सिंह के पुत्र
  • घोसी : बाल कृष्ण चौहान – बीएसपी
  • बस्ती : राज किशोर सिंह – सपा
  • भदोही : रमाकांत यादव – बीजेपी
  • आगरा : प्रीता हरित – भारतीय राजस्व सेवा की नौकरी छोड़ कर आईं
  • मुरादाबाद : इमरान प्रतापगढ़ी – पहली बार राजनीति में, प्रतिष्ठित शायर
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