लोकसभा चुनाव की चौसर बिछी हुई है. करौली-धौलपुर सीट पर कुल पांच प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. बीजेपी ने मौजूदा सांसद मनोज राजोरिया पर फिर से दांव खेला है तो कांग्रेस ने धौलपुर जिले में सरमथुरा निवासी युवा उम्मीदवार संजय जाटव को प्रत्याशी बनाया है. प्रमुख तौर पर देखा जाए तो कांग्रेस के संजय जाटव और बीजेपी के डॉ.मनोज राजोरिया ही मुकाबले में है. बसपा प्रत्याशी राम कुमार बैरवा नामांकन दाखिल करने के बाद से ही मैदान में नजर ही नहीं आ रहे. हालांकि राजोरिया मौजूदा सांसद हैं लेकिन इस बार चुनाव में उनकी राह आसान नजर नहीं आ रही है.
वजह है- पार्टी की गुटबाजी और अंतर्कलह राजोरिया पर भारी पड़ रही है. विगत पांच सालों में पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं से उनकी दूरी भी अब उनके गले की फांस बन गई है. करौली में बीजेपी का प्रधान कार्यालय तो खोल दिया गया है लेकिन कार्यकर्ताओं के अभाव में सूना नजर आ रहा है. करौली रेल लाइन का मुद्दा भी राजोरिया के पसीने छुड़ा रहा है. हालात यह हैं कि रेल लाइन के मुद्दे को लेकर लोग गले ना पड़ जाए, इस कारण राजोरिया ने करौली जिला मुख्यालय सहित क्षेत्र में अभी एक बार भी जनसंपर्क करने की हिम्मत नहीं जुटा सके हैं.
वहीं कांग्रेस प्रत्याशी संजय जाटव पर करौली जिले में कैबिनेट मंत्री रमेश मीणा का वरद हस्त माना जा रहा है. रमेश मीणा स्वयं विगत तीन दिन से उनके साथ जनसंपर्क में जुटे हुए हैं, वहीं बाड़ी क्षेत्र में विधायक गिर्राज मलिंगा कांग्रेस की विजयश्री के प्रयास में लगे हुए हैं.
संसदीय क्षेत्र के जातिगत समीकरणों का विश्लेषण करें तो संजय जाटव अपने तीन लाख सजातीय जाटव बैरवा मतों के साथ काफी मजबूत दिख रहा है. इसके अलावा मीणा माली मुस्लिम और गुर्जर मतों का कांग्रेस के पक्ष में होना जीत का प्रमुख आधार माना जा रहा है.
विश्लेषकों का कहना है कि इस बार गुर्जर कांग्रेस के साथ नहीं हैं लेकिन क्षेत्र में सचिन पायलट की पकड़ कांग्रेस प्रत्याशी को मजबूत किए हुए है. इधर बीजेपी के मनोज राजोरिया के पास उनके जातिगत वोटों की संख्या केवल 15 से 20 हजार है. राजपूत, जाट और सामान्य वर्ग के वोट बैंक बीजेपी के साथ जा सकते हैं लेकिन रेल के मुद्दे ने इन मतों को विभाजित किया हुआ है. विपक्ष भी रेल के मुद्दे पर राजोरिया को घेर रही है. वहीं रेल विकास समिति और प्रबुद्ध लोग भी इस मुद्देेे को छोड़ते नहीं दिख रहे.
बता दें, पिछले लोकसभा चुनाव में राजोरिया को करौली जिले से हार का सामना करना पड़ा था. इसकी वजह  वसुंधरा राजे की धौलपुुर क्षेत्र में मजबूत पकड़ रही. पिछले लोकसभा चुनाव में वसुंधरा राजे ने 3 दिन तक धौलपुर में डेरा डाले रखा था और सभी समाज वर्ग के लोगों पर दबाव बनाकर राजोरिया के पक्ष में मोड़ने में सफल रहीं.
लेकिन इस बार के चुनावों में स्थिति थोड़ी अलग जाती दिख रही है. स्थानीय लोगों का मानना है कि इस बार प्रदेश की सत्ता से बाहर हो चुकी वसुंधरा राजे उस फिज़ा को बरकरार नहीं रख पाई हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए यहां पार पाना पिछली बार के मुकाबले आसान नहीं होगा. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि करौली-धौलपुर सीट कांग्रेस के लिए जितनी आसान नजर आ रही है, उतनी ही बीजेपी को मौजूदा परिस्थितियां अपने पक्ष में करने के लिए जमकर पसीना बहाना पड़ेगा.

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