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महाराष्ट्र: पार्थ और रोहित में से कौन संभालेगा ‘NCP’ की विरासत?

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार ने इस बार लोकसभा चुनाव में न उतरकर एक तरह से राजनीति से संन्यास ले लिया है. कयास यही लगाए जा रहे हैं कि अक्टूबर में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा के चुनावों के बाद शरद पवार किसी न किसी को एनसीपी की विरासत सौंप पार्टी के लिए एक मार्गदर्शक की भूमिका का निर्वाह करेंगे. ठीक वैसे ही जैसा समाजवादी पार्टी के पूर्व मुखिया मुलायम सिंह यादव ने किया था. एनसीपी की विरासत किसी पवार सदस्य को ही मिलेगी, यह तो पक्का है लेकिन किसे, यह भविष्य के गर्भ में छिपा है.

वैसे इस विरासत को संभालने के लिए दो नाम सबसे आगे चल रहे हैं. पहले हैं पार्थ पवार जो शरद पवार के भाई अनंतराव के बेटे अजित पवार के सुपुत्र हैं. अजित महाराष्ट्र में राजनेता के रूप में उभरने में सफल रहे और वह एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन में डिप्टी सीएम भी बने. अब तक एनसीपी के उत्तराधिकारी के तौर पर उनका नाम ही सबसे आगे चल रहा है. वहीं दूसरा नाम है रोहित पवार जो शदर पवार के सबसे बड़े भाई दिनकरराव गोविंदराव पवार ऊर्फ अप्पा साहेब के पोते हैं जिनकी पॉपुलर्टी दिनों दिन बढ़ती जा रही है.

हालांकि शरद पवार की सुपुत्री सुप्रिया सुले भी राजनीति में सक्रिय हैं और लगातार तीन बार से महाराष्ट्र की बारामती से पार्टी से सांसद बनती आ रही हैं लेकिन उनका नाम इस लिस्ट में नहीं है. वजह रही कि सुप्रिया अब तक केवल दिल्ली की राजनीति में ही व्यस्त रहीं. पार्टी के आंतरिक मामलों में उन्होंने न कभी ध्यान दिया और न ही हस्तक्षेप किया. ऐसे में उनके पार्टी को संभालने की संभावनाएं एकदम नगण्य है.

बात करें पार्थ पवार की तो मौजूदा चुनावों में पार्थ करीब दो लाख वोटों से मावल लोकसभा सीट से चुनाव हार बैठे. यहां से शिवसेना के श्रीरंग बार्ने ने जीत हासिल की. हालांकि पार्थ दूसरे नंबर पर रहे लेकिन वीआईपी सीट से हार पार्थ अपने परिवार में चुनाव हारने वाले पहले उम्मीदवार बन गए. पार्थ के पिता अजित पवार भी उन्हें विरासत संभालने का सपोर्ट कर रहे हैं. हालांकि रोहित के आने से पहले पार्थ ही एनसीपी की विरासत के असली दावेदार रहे.

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शरद पवार के सबसे बड़े भाई दिनकरराव गोविंदराव पवार ऊर्फ अप्पा साहेब पवार के सुपुत्र हैं रोहित पवार. अप्पा साहेब पवार फैमेली से राजनीति में उतरने वाले पहले सदस्य थे. अप्पा साहेब ने महाराष्ट्र में किसानों और मजदूरों के हितों की लड़ाई लड़ने वाले बड़े नेता के तौर पर अपनी राजनीतिक पहचान बनाई. अप्पा साहेब ही शरद पवार को राजनीति में लाए और कांग्रेस से जुड़ने के लिए राजी किया. 1999 में सोनिया गांधी से टकराव के बाद शरद पवार को कांग्रेस से निकाला गया. उसके बाद शरद पवार ने खुद की नेशनल कांग्रेस पार्टी बनाई. इसके बाद महाराष्ट्र में राजनीति की हवा बदलने लगी और पवार परिवार का दबदबा कायम हुआ. अब उनकी पार्टी का भविष्य रोहित के युवा कंधों पर भी है.

रोहित राजनीति में अभी तक बड़े स्तर पर नहीं जा पाए हैं. 2017 में रोहित ने पवार परिवार के बारामती के होम टाउन से जिला परिषद का चुनाव जीता था. तब से वह खामोशी के साथ राज्य में अपनी जमीन तैयार कर रहे हैं. जहां एक ओर पार्थ सार्वजनिक तौर पर उपस्थित नहीं रहते, वहीं रोहित बड़े आत्मविश्वास के साथ अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं. यहीं वजह है कि राकांपा में कई पार्टी कार्यकर्ता और नेता उन्हें शरद पवार के बाद वास्तविक जननेता के रूप में देखते हैं. कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का यह भी कहना है कि अप्पा साहेब शरद पवार को राजनीति में लेकर आए थे. ऐसे में रोहित को इस राजनीतिक परिवार की जिम्मेदारी को आगे ले जाना चाहिए.

अब यहां दो विकल्प होंगे, उनमें टकराव होना निश्चित है. वैसे तो पार्थ और रोहित चचेरे भाई हैं लेकिन दोनों में आंतरिक गतिरोध भी है. जब शरद पवार ने अपनी लोकसभा सीट पार्थ के लिए छोड़ने और चुनाव न लड़ने का ऐलान किया था तब रोहित ने सार्वजनिक तौर पर फेसबुक पोस्ट कर शरद पवार को अपने फैसले पर पुर्नविचार करने की सलाह दी थी. पार्थ ने इस बात पर ऐतराज भी जताया था.

शरद पवार ने अपने सुपुत्री सहित अपने भाई अनंतराव के बेटे अजित पवार को राजनीति में प्रमोट किया. अजित राजनीति में सफल रहे और महाराष्ट्र में राजनेता के तौर पर अपनी अच्छी छवि कायम की. वह एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन में डिप्टी सीएम भी बने. अब उन्होंने पार्थ और रोहित को तीसरी पीढ़ी के तौर पर आगे बढ़ाने का काम किया है.

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सूत्रों के अनुसार, पार्थ को मावल लोकसभा सीट से हारने का बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है. हालांकि आगामी विधानसभा में उनका चुनाव लड़ना पक्का है. वहीं रोहित अपनी छवि मजबूत करने के लिए एक कठिन सीट चुन सकते हैं. इसके उन्हें तीन फायदे होंगे. पहला तो ये कि उन्हें अपनी हैसियत का पता लग जाएगा. वहीं पारिवारिक विरासत के सहारे सफल होने का ठप्पा लगवाने से भी बच जाएंगे.

अगर रोहित चुनाव हारते भी हैं तो भी पार्टी कार्यकर्ता उनसे सहानुभूति रखेंगे और यही सोचेंगे कि अजित पवार और उनके चचेरे भाई पार्थ ने उन्हें सफल नहीं होने दिया. हालांकि रोहित का कहना है कि पार्टी के नेता कभी राजनीतिक वारिस तय नहीं करते. यह जनता तय करती है. कुल मिलाकर रोहित हर मामले में पार्थ से रेस में आगे दिख रहे हैं. दूसरी ओर, दोनों भाई परिवार और स्वयं के बीच भी किसी तरह के विवाद से साफ तौर पर इनकार करते हैं.

चौथी बार सीएम बने येदियुरप्पा ने एक बार भी पूरा नहीं किया पांच साल का कार्यकाल

कर्नाटक के मांड्या जिले के बुकानाकेरे में सिद्धलिंगप्पा और पुत्तथयम्मा के घर 27 फरवरी 1943 को जन्मे बीएस येदियुरप्पा ने मात्र 300 रुपए की नौकरी से अपने कैरियर की शुरुआत की थी. येदियुरप्‍पा काफी साधारण परिवार से थे. शुरूआती जिंदगी में संघर्ष करने वाले येदियुरप्‍पा ने एक चावल मील में क्लर्क की नौकरी से अपने जीवन की शुरूआत की. क्‍लर्क की नौकरी और 300 रुपए प्रतिमाह की तनख्‍वाह पाने वाले येदियुरप्‍पा और उनके परिवार का जीवन काफी मुकिश्‍लों से कटता था. लेकिन येदियुरप्पा की जिंदगी बदली और जिस कंपनी में क्‍लर्क थे उसी कंपनी की मालिक की बेटी से उनकी शादी हो गई.

जब येदियुरप्‍पा ने राजनीति में एंट्री की तो उन्‍होंने अपना जीवन चलाने के लिए एक हार्डवेयर की शॉप भी खोली. हार्डवेयर की शॉप चल निकली और उनका राजनीतिक जीवन भी. चावल मिल के क्लर्क और एक किसान नेता से आगे बढ़कर दक्षिण में पहली बार भाजपा की सरकार के रूप में कमल खिलाने वाले बीएस येदियुरप्पा पहली बार 12 नवम्बर 2007 को कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने.

येदियुरप्पा के पिछले तीनों कार्यकालों की बात करें तो वे अपना कोई भी कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए हैं. पहली बार येदियुरप्पा ने 12 नवंबर 2007 को कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी और आठवें ही दिन 19 नवंबर 2007 को उन्हें सीएम की कुर्सी छोड़े देनी पड़ी थी. ये वो वक्त था जब येदियुरप्पा और एचडी कुमारास्वामी को समझौते के तहत बराबर-बराबर अवधि के लिए मुख्यमंत्री पद साझा करना था.

येदियुरप्पा ने एचडी कुमारस्वामी को समर्थन देकर फरवरी 2006 में मुख्यमंत्री पद पर बैठाया था. अक्टूबर 2007 में येदियुरप्पा को कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनना था लेकिन कुमारस्वामी ने ऐसा नहीं किया. इस पर येदियुरप्पा ने समर्थन वापस लेते हुए कुमारास्वामी को सीएम की कुर्सी से चलता कर दिया. दोनों नेताओं के रिश्ते में आई दूरी के चलते तब कर्नाटक में तकरीबन एक महीने तक राष्ट्रपति शासन लागू था.

नवंबर 2007 में कुमारास्वामी ने येदियुरप्पा को समर्थन देने की हामी भरी तब राज्य में राष्ट्रपति शासन खत्म हुआ और 12 नवंबर 2007 को येदियुरप्पा पहली बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने. मुख्यमंत्री के पद पर उनका पहला कार्याकाल ज्यादा दिन तक नहीं चला और मंत्रालयों के बंटवारे में आए मतभेद के चलते येदियुरप्पा ने कु्मारास्वामी से नाता तोड़ 19 नवंबर 2007 को सीएम पद से इस्तीफा दे दिया.

वर्ष 2008 में येदियुरप्पा की किस्मत एक बार फिर चमकी जब राज्य में भाजपा ने शानदार जीत दर्ज की थी. 30 मई 2008 को येदियुरप्पा ने दूसरी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. इस बार भी येदियुरप्पा मुख्यमंत्री के रूप में पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके. भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते येदियुरप्पा को 31 जुलाई 2011 को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा.

तब येदियुरप्पा ने भाजपा से नाता तोड़ अपनी अलग पार्टी तैयार कर ली थी. वर्ष 2014 में येदियुरप्पा ने एक बार फिर भाजपा का दामन थाम लिया और 17 मई 2018 को वे तीसरी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने. मुख्यमंत्री के रूप में येदियुरप्पा का तीसरा कार्यकाल महज छह दिन 17 मई 2018 से लेकर 23 मई 2018 तक ही रहा और बहुमत के अभाव में येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा.

पिछले तीनों कार्यकालों में एक बार भी मुख्यमंत्री के रूप में पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए बीएस येदियुरप्पा ने शुक्रवार को फिर से चौथी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की. बीएस येदियुरप्पा चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. फिलहाल किसी भी विधायक को मंत्री पद की शपथ नहीं दिलाई गयी है. माना जा रहा है कि विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के बाद विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाई जाएगी. येदियुरप्पा सरकार को 31 जुलाई तक अपना बहुमत सदन में पेश करना होगा.

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इससे पहले बीएस येदियुरप्पा ने शुक्रवार को सुबह 10 बजे राज्यपाल वजुभाई वाला पटेल से मुलाकात कर सरकार बनाने का दावा पेश किया. येदियुरप्पा के सरकार बनाने का दावा पेश करने के पीछे पार्टी आलाकमान से आंतरिक गतिरोध की बात भी चर्चा में रही. हालांकि बीजेपी के पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की ओर से कर्नाटक में येदियुरप्पा के नेतृत्व में सरकार बनाने के सकारात्मक बयान से इस बात को दबाने की कोशिश की गई. बीएस येदियुरप्पा ने शुक्रवार को राजभवन में मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की. राज्यपाल वजुभाई वाला पटेल ने उन्हें पद व गोपनियता की शपथ दिलाई. इस मौके पर येदियुरप्पा के सुपुत्र विजयेंद्र भी राजभवन में मौजूद रहे.

गौरतलब है कि कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी की जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन सरकार के 15 बागी विधायकों के सदन से इस्तीफा देने के बाद गठबंधन सरकार अल्पमत में आ गई थी. लगभग दो हफ्ते के सियासी ड्रामे के बाद 23 जुलाई को फ्लोर टेस्ट में 6 मत से कुमारस्वामी सरकार गिर गयी. फिलहाल बागी विधायकों के इस्तीफे और अयोग्य होने की कार्यवाही जारी है. गुरुवार को विधानसभा स्पीकर रमेश कुमार ने तीन बागी विधायकों को अयोग्य घोषित किया है जिनमें एक निर्दलीय विधायक भी शामिल है.

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अमित शाह के निर्देशों के विपरीत येदियुरप्पा लेंगे शपथ

गुरुवार को दिल्ली में हुई पार्टी अध्य्क्ष अमित शाह और कर्नाटक के नेताओं की मुलाकात के बाद खबरें आई कि अमित शाह ने कर्नाटक के बीजेपी नेताओं को साफ-साफ निर्देश दिए हैं कि जल्दबाजी करने की जरुरत नहीं है, बागी विधायकों पर विधानसभा अध्यक्ष के फैसले का इंतजार करना चाहिए. लेकिन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के निर्देशों के 24 घण्टे के भीतर ही कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा का पार्टी हाइकमान की मंजूरी के बिना राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश करना हैरान करता है.

शुक्रवार को बीएस येदियुरप्पा ने सुबह 10 बजे राज्यपाल वजुभाई वाला पटेल से मुलाकात कर सरकार बनाने का दावा पेश किया. येदियुरप्पा शुक्रवार शाम 6 बजे मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण करेंगे. शपथ ग्रहण के सात दिनों के भीतर येदियुरप्पा को विधानसभा में बहुमत साबित करना होगा.

हालांकि शुक्रवार को येदियुरप्पा के सरकार बनाने के दावा पेश करने और शाम छः बजे शपथग्रहण की खबरें आने के बाद फिर मीडिया में खबर आई कि अमित शाह ने बयान दिया है कि हमारी पार्टी बीजेपी येदियुरप्पाजी के नेतृत्व में कर्नाटक में सरकार बनाने जा रही है. लेकिन जानकारों का मानना है कि अगर कर्नाटक बीजेपी में सबकुछ सही चल रहा है तो शायद कुमारस्वामी सरकार के गिरने के दूसरे दिन ही येदियुरप्पा के नेतृत्व में सरकार बनाने की घोषणा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके पार्टी नेतृत्व द्वारा की गई होती.

बता दें, कुमारस्वामी सरकार के लगभग 15-20 दिन चले ‘कर्नाटक-संकट’ के दौरान सबसे ज्यादा जल्दबाजी बीएस येदियुरप्पा को ही थी कि कब ये सरकार गिरे और येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बनें. इस बात की पुष्टि उन दिनों में येदियुरप्पा के दिए गए बयानों से होती है. सूत्रों की मानें तो कुमारस्वामी की विदाई वाले दिन देर रात तक बीजेपी नेताओं की बैठक चली और बीजेपी के सभी विधायकों को यह संदेश पहुंचा दिया गया कि वे सभी दूसरे दिन बीजेपी के प्रदेश मुख्यालय में जमा हो जाएं, वहां पर बीजेपी की विधायक दल की बैठक होने वाली थी. दूसरे दिन येदियुरप्पा भी अपने घर से बीजेपी दफ्तर के लिए निकले चुके थे लेकिन अचानक उनके रूट में बदलाव हुआ और वो वापस अपने निवास चले गए.

गौरतलब है कि कुमारस्वामी सरकार के गिरने के बाद येदियुरप्पा काफी जल्दबाजी में नजर आये और उन्होंने उसी दिन अपने आवास पर अपने खास पंडितों को बुलाकर शपथ ग्रहण के लिए गुरुवार दोपहर तीन बजकर 28 मिनट से 3 बजकर 48 मिनट का वक्त या फिर शुक्रवार शाम 4 बजे का मुहूर्त भी निकलवा लिया था. लेकिन उस दिन पार्टी हाईकमान के निर्देश के बाद येदियुरप्पा के अरमानों को झटका जरूर लगा.

खैर जो भी हो, येदियुरप्पा आज फिर प्रदेश के कप्तान बन जाएंगे. उन्होंने शपथ ग्रहण में पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी और सिद्धारमैया को भी निमंत्रण भेजा है. सत्ता संभालने के बाद येदियुरप्पा को अगले सात दिनों में विधानसभा में बहुमत साबित करना होगा.

पता रहे, गुरुवार को कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष द्वारा बागी तीन विधायकों को अयोग्य करार देने के स्पीकर के फैसले को कांग्रेस के बाकी बागी विधायकों को वापस बुलाने के मौके के तौर पर देखा जा रहा है. ऐसे में अगर कांग्रेस व्हिप जारी करती हे तो सभी विधायकों को सदन में मौजूद रहना पड़ेगा और कांग्रेस-जेडीएस के पक्ष में ही वोट करना होगा. अब येदियुरप्पा के आज शपथ लेने के फैसले के बाद बड़ा सवाल खड़ा हो गया कि ऐसे में येदियुरप्पा किस तरह फ्लोर टेस्ट में बहुमत साबित कर पाएंगे? कहिं बीएस येदियुरप्पा को बीजेपी के चाणक्य अमित शाह की सलाह और निर्देशों की अवेहलना भारी ना पड़ जाए.

विधानसभा में पाक-विस्थापितों पर बोले राजेन्द्र राठौड़

कारगिल विजय दिवस विशेष ‘हम अपने खून से लिखेंगे कहानी ऐ वतन मेरे’

किसी शायद ने क्या खूब लिखा है …

हम अपने खून से लिखेंगे कहानी ऐ वतन मेरे,
करे कुर्बान हंस कर ये जवानी ऐ वतन मेरे.
दिली ख्वाइश नहीं कोई मगर ये इल्तजा बस है,
हमारे हौसले पा जाये मानी ऐ वतन मेरे.

देश के हर किसी नौजवान के दिल से आज कुछ ऐसी ही भावनाएं बहती दिखेंगी. आज कारगिल विजय दिवस है. कारगिल विजय को आज पूरे 20 साल हो गए हैं लेकिन वे पुरानी यादें आज भी सभी के​ दिलोंदिमाग में ताजा हैं. असल में आज का दिन पाक के साथ हुए कारगिल युद्ध का आखिरी दिन है और इसे विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है.

कारगिल युद्ध भारतीय सेना के साहस और जांबाजी का ऐसा उदाहरण है जिस पर हर देशवासी को गर्व है. भारत और पाकिस्तान के बीच मई से जुलाई, 1999 के बीच कश्मीर के कारगिल जिले में हुए सशस्त्र संघर्ष का नाम है. कारगिल युद्ध करीब 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई को उसका अंत हुआ. यह युद्ध ऊंचाई वाले इलाके पर हुआ था. भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाली जगहों पर हमला किया और पाकिस्तानी सेना को सीमा में वापिस जाने को मजबूर किया. पाकिस्तानी घुसपैठियों के खिलाफ सेना की ओर से की गई कार्रवाई में भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए तो 1363 से अधिक घायल हुए.

इस लड़ाई में पाकिस्तान के करीब तीन हजार सैनिक मारे गए थे. हालांकि पाक का दावा है कि उसके 357 सैनिक ही मारे गए. इस युद्ध में भारत ने जमीन से बोफोर्स तोपें और हवा में 32 हजार फीट की ऊंचाई से एयर पावर का उपयोग किया. मिग-27 और मिग-29 का बखूबी इस्तेमाल कर भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तानी सेना की धज्जियां बिखेर कर रखी दी. इसके बाद देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के तौर पर मनाने के निर्देश दिए.

आरटीआई संशोधन विधेयक के बाद अब तीन तलाक बिल भी होगा पारित!

संसद में गुरुवार का दिन केन्द्र सरकार के लिए बड़ी सफलता वाला रहा. एक तरफ जहां सरकार ने लोकसभा में तीन तलाक बिल 82 वोट के बदले 303 वोट से पारित करवा लिया, तो वहीं राज्यसभा में सरकार ने विपक्षी एकजुटता का तानाबाना तोड़ते हुए सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक बिल पारित करवा लिया.

राज्यसभा में गुरुवार को सरकार ने एक बड़ी सफलता हासिल की. राज्यसभा में संख्या बल की कमी से परेशान रहने वाली मोदी सरकार ने सूचना का अधिकार संशोधन बिल पारित करवा लिया. बिल के समर्थन में 117 वोट पड़े जबकि इसके विरोध में सिर्फ 75 वोट पड़े. कांग्रेस समेत कई विरोधी पार्टियों ने इस बिल का विरोध किया था. एक दिन पहले ही कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने सूचना के अधिकार (आरटीआइ) संशोधन और तत्काल तीन तलाक सहित सात विधेयकों का रास्ता रोकने की रणनीति तैयार की थी।

सूचना का अधिकार संशोधन बिल के सम्बन्ध में विपक्ष का कहना था कि सरकार इस बिल के जरिए सूचना का अधिकार कानून को कमजोर करना चाह रही है. इन दलों ने मांग की थी कि बिल को राज्यसभा की सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए. एक दिन पहले ही विपक्ष की रणनीति तय हुई थी और उस पर हस्ताक्षर करने वालों में बीजद और टीआरएस भी शामिल थे. सूत्रों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से बात की और फिर बीजद का रुख बदल गया. जबकि दो दिन पहले लोकसभा में दोनों दलों ने आरटीआइ संशोधन विधेयक का विरोध किया था.

यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विपक्ष को एकजुट करते हुए कहा था की दोनों सदनों में इस बिल का पुरजोर विरोध किया जाएगा. चूंकि राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत की कमी है इसलिए ऐसा माना जा रहा था कि राज्यसभा में बिल को पारित करवाना बहुत मुश्किल होगा. लेकिन बीजू जनता दल (बीजद) और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के सहयोग से सरकार ने आरटीआइ संशोधन विधेयक पारित करा लिया. अब इस बात की संभावना बहुत तेज हो गई है कि तत्काल तीन तलाक सहित कुछ दूसरे विधेयकों पर भी राज्यसभा में विपक्ष का अब तक का बहुमत अल्पमत में बदल सकता है.

बता दें, कांग्रेस सहित दूसरे विपक्षी दलों ने आरटीआई संशोधन विधेयक को पारित होने से रोकने के लिए हंगामे का कोई मौका नहीं छोड़ा. हालांकि मतदान के बाद हार देखकर सभी विपक्षी दल सदन से वॉकआउट कर गए. इससे पहले सरकार ने आरटीआइ संशोधन विधेयक पर विपक्ष की सारी आशंकाओं का एक-एक करके जवाब दिया.
सरकार ने साफ किया कि इस संशोधन के जरिये सिर्फ सेवा शर्तो और वेतन-भत्तों में बदलाव किया जा रहा है. साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि मुख्य सूचना आयुक्त का दर्जा सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश या मुख्य चुनाव आयुक्त जैसा नहीं है. मौजूदा कानून के तहत मुख्य सूचना आयुक्त का दर्जा सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के बराबर रखा गया था.

राज्यसभा में कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने सरकार पर लोकतंत्र की हत्या का आरोप लगाते हुए कहा कि मोदी सरकार संसद को भी सरकारी विभाग की तरह चलाना चाहती है. आजाद ने कहा कि ऐसी सरकार पर उन्हें कोई भरोसा नहीं है. कांग्रेस इस पूरे मामले से इसलिए भी नाखुश थी क्योंकि वह संशोधन विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजने पर अड़ी थी, लेकिन सरकार ने उसकी बात नहीं मानी.

असल में कांग्रेस के लिए इस विधेयक का पारित होना एक बड़ा झटका है. अब तत्काल तीन तलाक विधेयक राज्यसभा में आना है और बीजद ने पहले ही तीन तलाक बिल को समर्थन दे चुका है. हां, राजग का घटक दल जदयू जरूर इस विधेयक के विरोध में है. अब सबकी नजरें इस बात पर है कि सरकार तीन तलाक विधेयक पर विपक्ष की रणनीति को कैसे तोड़ेगी. सनद रहे, कि राज्यसभा में अब राजग और विपक्ष की संख्या बल में बहुत कम अंतर रह गया है और थोड़े बदलाव से ही पूरा परिदृश्य बदल जाएगा.

लोकसभा से आरटीआइ संशोधन विधेयक पहले ही पारित हो चुका है. ऐसे में अब राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून का रूप ले लेगा.

इमरान खान ने कबूला- पाकिस्तान में आज भी हैं 40 हजार आतंकी

मध्यप्रदेश में बीजेपी के 4 विधायक कांग्रेस में होंगे शामिल!

मध्यप्रदेश में विपक्ष में बैठी बीजेपी बुधवार को लगे झटके से अभी उबर भी नहीं पायी होगी कि गुरुवार को आये एक ताजा बयान ने फिर बीजेपी नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी. बयान भी ऐसा जिससे एमपी में सियासी लहरे तेज गति से बहने लगी. मध्य प्रदेश नदी न्यास के अध्यक्ष कंप्यूटर बाबा ने दावा करते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के चार और विधायक उनके संपर्क में हैं. बाबा ने यह भी बताया कि जिस दिन राज्य के मुख्यमंत्री कमलनाथ निर्देश देंगे, सभी को कांग्रेस में शामिल करा लिया जाएगा. कम्प्यूटर बाबा केशर बाग रोड इलाके में कान्ह और सरस्वती नदी का दौरा करने पहुंचे थे.

कम्प्यूटर बाबा ने बिना किसी विधायक का नाम लिए बताया कि सभी चारों विधायक बीजेपी से खासे नाराज हैं और किसी भी दिन कांग्रेस में शामिल हो सकते है. बाबा के इस बयान के बाद बीजेपी नेताओं में सरगर्मी जाहिर तौर पर बढ़ गयी है.

बुधवार को मध्यप्रदेश विधानसभा में आपराधिक कानून संशोधन बिल पर हुई वोटिंग में बीजेपी के दो विधायकों नारायण त्रिपाठी और शरद कौल ने कांग्रेस के पक्ष में मतदान करते हुए बीजेपी को कड़ा झटका दिया. नारायण त्रिपाठी मैहर विधानसभा सीट से विधायक हैं जबकि शरद कौल ब्‍यौहारी विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी विधायक हैं. वोटिंग के बाद दोनों विधायकों ने बयान दिया कि हम बीजेपी में खुश नहीं हैं.

इससे पहले एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने प्रदेश की कमलनाथ सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि अगर ये सरकार कर्नाटक की कुमारस्वामी सरकार की तरह गिर जाए तो इसकी जिम्मेदार खुद कांग्रेस होगी. इसके बाद विपक्ष के नेता गोपाल भार्गव ने बयान देते हुए कहा कि अगर हमारे नंबर 1 और नंबर 2 इशारा करें तो 24 घंटे में मध्य प्रदेश सरकार गिर सकती है.

इसके बाद मध्यप्रदेश में भी सरकार पर संकट का खतरा मंडराने लगा था लेकिन बुधवार को दो विपक्ष के विधायकों के साथ मिलने और गुरूवार को कम्प्यूटर बाबा के बयान के बाद अब खतरा कांग्रेस पर नहीं बल्कि विपक्ष पर विधायक खोने का मंडराने लगा है.

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