संसद में गुरुवार का दिन केन्द्र सरकार के लिए बड़ी सफलता वाला रहा. एक तरफ जहां सरकार ने लोकसभा में तीन तलाक बिल 82 वोट के बदले 303 वोट से पारित करवा लिया, तो वहीं राज्यसभा में सरकार ने विपक्षी एकजुटता का तानाबाना तोड़ते हुए सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक बिल पारित करवा लिया.

राज्यसभा में गुरुवार को सरकार ने एक बड़ी सफलता हासिल की. राज्यसभा में संख्या बल की कमी से परेशान रहने वाली मोदी सरकार ने सूचना का अधिकार संशोधन बिल पारित करवा लिया. बिल के समर्थन में 117 वोट पड़े जबकि इसके विरोध में सिर्फ 75 वोट पड़े. कांग्रेस समेत कई विरोधी पार्टियों ने इस बिल का विरोध किया था. एक दिन पहले ही कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने सूचना के अधिकार (आरटीआइ) संशोधन और तत्काल तीन तलाक सहित सात विधेयकों का रास्ता रोकने की रणनीति तैयार की थी।

सूचना का अधिकार संशोधन बिल के सम्बन्ध में विपक्ष का कहना था कि सरकार इस बिल के जरिए सूचना का अधिकार कानून को कमजोर करना चाह रही है. इन दलों ने मांग की थी कि बिल को राज्यसभा की सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए. एक दिन पहले ही विपक्ष की रणनीति तय हुई थी और उस पर हस्ताक्षर करने वालों में बीजद और टीआरएस भी शामिल थे. सूत्रों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से बात की और फिर बीजद का रुख बदल गया. जबकि दो दिन पहले लोकसभा में दोनों दलों ने आरटीआइ संशोधन विधेयक का विरोध किया था.

यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विपक्ष को एकजुट करते हुए कहा था की दोनों सदनों में इस बिल का पुरजोर विरोध किया जाएगा. चूंकि राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत की कमी है इसलिए ऐसा माना जा रहा था कि राज्यसभा में बिल को पारित करवाना बहुत मुश्किल होगा. लेकिन बीजू जनता दल (बीजद) और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के सहयोग से सरकार ने आरटीआइ संशोधन विधेयक पारित करा लिया. अब इस बात की संभावना बहुत तेज हो गई है कि तत्काल तीन तलाक सहित कुछ दूसरे विधेयकों पर भी राज्यसभा में विपक्ष का अब तक का बहुमत अल्पमत में बदल सकता है.

बता दें, कांग्रेस सहित दूसरे विपक्षी दलों ने आरटीआई संशोधन विधेयक को पारित होने से रोकने के लिए हंगामे का कोई मौका नहीं छोड़ा. हालांकि मतदान के बाद हार देखकर सभी विपक्षी दल सदन से वॉकआउट कर गए. इससे पहले सरकार ने आरटीआइ संशोधन विधेयक पर विपक्ष की सारी आशंकाओं का एक-एक करके जवाब दिया.
सरकार ने साफ किया कि इस संशोधन के जरिये सिर्फ सेवा शर्तो और वेतन-भत्तों में बदलाव किया जा रहा है. साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि मुख्य सूचना आयुक्त का दर्जा सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश या मुख्य चुनाव आयुक्त जैसा नहीं है. मौजूदा कानून के तहत मुख्य सूचना आयुक्त का दर्जा सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के बराबर रखा गया था.

राज्यसभा में कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने सरकार पर लोकतंत्र की हत्या का आरोप लगाते हुए कहा कि मोदी सरकार संसद को भी सरकारी विभाग की तरह चलाना चाहती है. आजाद ने कहा कि ऐसी सरकार पर उन्हें कोई भरोसा नहीं है. कांग्रेस इस पूरे मामले से इसलिए भी नाखुश थी क्योंकि वह संशोधन विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजने पर अड़ी थी, लेकिन सरकार ने उसकी बात नहीं मानी.

असल में कांग्रेस के लिए इस विधेयक का पारित होना एक बड़ा झटका है. अब तत्काल तीन तलाक विधेयक राज्यसभा में आना है और बीजद ने पहले ही तीन तलाक बिल को समर्थन दे चुका है. हां, राजग का घटक दल जदयू जरूर इस विधेयक के विरोध में है. अब सबकी नजरें इस बात पर है कि सरकार तीन तलाक विधेयक पर विपक्ष की रणनीति को कैसे तोड़ेगी. सनद रहे, कि राज्यसभा में अब राजग और विपक्ष की संख्या बल में बहुत कम अंतर रह गया है और थोड़े बदलाव से ही पूरा परिदृश्य बदल जाएगा.

लोकसभा से आरटीआइ संशोधन विधेयक पहले ही पारित हो चुका है. ऐसे में अब राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून का रूप ले लेगा.

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