बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनोट को भारतीय जनता पार्टी की तरफ से टिकट मिलने से पहले ही वे पार्टी की स्पोकपर्सन मानी जाती थी. राजनीति में कदम रखने से पहले ही वे फिल्म इंडस्ट्री में नेपोटिज्म के खिलाफ आवाज उठाने लगी थी. उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा और कांग्रेसी नेता राहुल गांधी का विरोध जताना उनकी आदतों में शुमार हो गया. अब उन्हें बीजेपी की ओर से हिमाचल की मंडी संसदीय क्षेत्र से लोकसभा के लिए टिकट मिला है. वे पहले बाद चुनाव लड़ रही हैं. यहां से उनके सामने हिमाचल के 6 बार मुख्यमंत्री रह चुके वीरभद्र सिंह के सुपुत्र विक्रमादित्य को मैदान में उतारा गया है. इसके बाद मंडी लोकसभा सीट में पारा काफी हॉट हो गया है.
विक्रमादित्य कांग्रेस टिकट पर शिमला रूरल विधानसभा सीट से दो बार विधायक MLA बन चुके हैं. वे इस समय राज्य की कांग्रेस सरकार में पीडब्ल्यूडी मिनिस्टर हैं. वीरभद्र सिंह के निधन के बाद देश में यह पहले आम चुनाव हैं और विक्रमादित्य भी पहली बार लोकसभा चुनाव में उतर रहे हैं. आजादी के बाद से मंडी सीट पर राजपूत और ब्राह्मण नेताओं का ही दबदबा रहा. विक्रमादित्य और कंगना दोनों राजपूत परिवारों से ताल्लुक रखते हैं. ऐसे में राजपूत और ब्राह्मणों का वोट बैंक का बंटना तय है.
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दूसरी ओर, कंगना यहां एक चेहरा मात्र हैं. वे केवल और केवल मोदी नाम के पीछे हैं. हालांकि पर्दे के पीछे यहां से बीजेपी के पूर्व सीएम जयराम ठाकुर चुनाव लड़ रहे हैं. मंडी जिले में उनका प्रभाव ही बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत है. वहीं स्व.वीरभद्र के सुपुत्र को उतार कांग्रेस ने बड़ा दांव चला है. मंडी सीट हमेशा से वीरभद्र परिवार का अभेद गढ़ रही है. ऐसे में आम चुनाव में पहली बार उतरे विक्रमादित्य को हल्के में लेना सभी के लिए गलत साबित हो सकता है.
इस बार के आम चुनाव में बीजेपी कांग्रेस पर नहीं बल्कि विक्रमादित्य पर व्यक्तिगत हमले कर रही है. वहीं कांग्रेस कंगना को बाहरी बता रही है. दरअसल मंडी कंगना का गृह जिला है लेकिन वे छोटी उम्र से ही मुंबई में रही हैं. ऐसे में कांग्रेस उम्मीदवार का यह भी कहना है कि कंगना को स्थानीय सदस्याओं का कोई ज्ञान नहीं है. वहीं विक्रमादित्य ने मंडी की जनता से नई टनल बनवाने, कुल्लू में मेडिकल कॉलेज खोलने, ब्यास नदी का चैनेलाइजेशन करने, मंडी को स्मार्ट सिटी बनाने, सड़कों की हालत सुधारने और टूरिज्म सेक्टर से जुड़े कई वायदें किए हैं. हालांकि मंडी की 9 विधानसभा सीटों पर बीजेपी विधायकों का विराजमान होना कंगना को मजबूत कर रहा है. वहीं मंडी विक्रमादित्य के लिए घर जैसा है.
मंडी का जातिगत समीकरण
मंडी संसदीय क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 13,77,173 मतदाता हैं. इनमें से 6,85,832 पुरूष एवं 6,78,225 महिला मतदाता हैं. 47 हजार से अधिक फस्ट टाइम वोटर्स और 13,113 सर्विस वोटर्स भी हैं. राजपूत और एससी मतदाताओं की संख्या काफी ज्यादा है. मंडी संसदीय क्षेत्र में सबसे अधिक 33.06% राजपूत वोटर हैं. यहां अनुसूचित जाति (SC) की 29.85% और ब्राह्मण आबादी 21.4% है. यहां लगभग 13% ओबीसी और 5% आबादी अनुसूचित जनजाति की भी है. अनुसूचित जाति की 30% आबादी होने के बावजूद इस जाति से केवल एक बार 1952 में यहां सांसद बन पाया.
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विधानसभा-वार स्थिति में कांग्रेस सत्ता होने के बावजूद काफी पिछड़ी हुई है. मंडी संसदीय क्षेत्र में 17 विधानसभा आती है जिनमें से 12 पर बीजेपी और 5 पर कांग्रेस के विधायक मौजूद हैं.
कंगना बनाम विक्रमादित्य
इतिहास पर नजर डालें तो मंडी सीट वीरभद्र परिवार का गढ़ रही है. उनके परिवार का यहां से 50 साल से भी पुराना नाता है. वीरभद्र सिंह खुद यहां से 3 बार सांसद बने जबकि 3 बार उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह कांग्रेस के टिकट पर जीतकर लोकसभा पहुंचीं. बुशहर रियासत का हेडक्वार्टर शिमला के रामपुर में है और रामपुर का इलाका मंडी संसदीय हलके में ही आता है. इस लिहाज से देखें तो मंडी विक्रमादित्य के लिए घर जैसा है. दूसरी ओर, खुद को हिमाचल की बेटी बताने वाली कंगना मंडी की ही रहने वाली हैं. उनका घर सरकाघाट इलाके के भांबला गांव में है. कंगना रनोट को लेकर भी आम लोगों में अच्छी-खासी उत्सुकता है. लोग इस बड़ी बॉलीवुड सेलिब्रिटी को करीब से देखना चाहते हैं. वहीं राजपरिवार से होने के कारण विक्रमादित्य का यूथ में खासा क्रेज नजर आता है.
कुल मिलाकर मंडी संसदीय क्षेत्र में विक्रमादित्य और कंगना रनोट के बीच चुनावी जंग काफी करीब रहने वाली है. कंगना को केवल मोदी का सहारा है लेकिन विक्रमादित्य अपने पिता की विरासत को ले जाने में लगे हुए हैुं. वहीं कंगना पहले ही कह चुकी हैं कि चुनाव जीतने के बाद वे एक्टिंग को पूरी तरह छोड़कर राजनीति में रमने जा रही हैं. अब जीते चाहें कोई भी लेकिन दोनों के बीच जंग काफी मजेदार एवं कांटे की रहने वाली है.