Thursday, January 16, 2025
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अयोध्या मामला-18वां दिन: ‘इंसाफ का तकाजा है कि पूरी जगह मुसलमानों को लौटा दी जाए’

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अयोध्या (Ayodhya) में रामजन्म भूमि (RamJanam Bhumi) और बाबरी मस्जिद विवादित भूमि मामले में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में 18वें दिन की सुनवाई हुई. आज सुबह सुन्नी वक्फ बोर्ड (Sunni Waqf Board) के वकील राजीव धवन ने अपनी दलील पेश की. उन्होंने रामलला (Ram Lalla) के वकील की दलीलों को सरासर गलत बताते हुए कहा कि मेरे काबिल मित्र ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 1934 के बाद मुसलमानों ने वहां नमाज नहीं पढ़ी लेकिन सच तो ये है कि उसके बाद से हमें वहां जाने ही नहीं दिया गया. वहीं धवन ने निर्मोही अखाड़ा के दावे का भी पुरजोर विरोध किया.

वक्फ बोर्ड के वकील ने कहा कि कोर्ट को देखना होगा कि जगह किसके पास थी और किस तरह से उसे वहां से हटा दिया गया. धवन ने कहा, ’22 और 23 दिसंबर 1949 की रात को मस्जिद के भीतर एक साजिश के तहत मूर्तियों को रख दिया गया. मुसलमान (Muslims) तो वहां जा नहीं पा रहे थे? लेकिन हिंदू पूजा करते रहे. आगे चलकर जगह पर पूरा कब्ज़ा लेने के लिए रथयात्रा निकालने लगे. इसी का नतीजा था कि 1992 में इमारत गिरा दी गई. यह कहा गया कि उसे हिंदुओं ने नहीं गिराया, उपद्रवियों ने गिराया. वो उपद्रवी कौन थे? क्या उन्होंने गले पर क्रॉस पहना हुआ था? इंसाफ का तकाजा है कि पूरी जगह मुसलमानों को लौटा दी जाए.’

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील ने कहा कि 1949 में एक सोची समझी साजिश के तहत दिसंबर, 1949 को वहां कुछ मूर्तियों को लाकर रख दिया गया और हिंदूओं ने कहा कि भगवान अपने आप प्रकट हो गए. अगर कोर्ट भगवान के प्रकट होने के अंधविश्वास को मानता है तो हमारा दावा ऐसे ही खत्म हो जाता है. अगर ऐसा नहीं है तो इंसाफ होना चाहिए.

धवन ने विवादित भूमि पर मस्जिद का दावा करते हुए कहा कि 1934 से पहले इमारत के भीतरी हिस्से में नमाज पढ़ी जाती थी, इस बात की गवाही कई लोगों ने दी. यही नहीं, उसके मुख्य मेहराब पर और अंदर दो जगह अल्लाह लिखा हुआ था. फिर कोई कैसे कह सकता है कि वह मस्जिद नहीं थी? उन्होंने कहा कि कुछ हिंदू प्रतीक चिन्ह मिलने से वहां पर हिंदुओं का दावा नहीं हो जाता.

सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ने निर्मोही अखाड़े के दावे का भी खंडन किया. धवन ने संविधान पीठ को बताया कि अखाड़ा के वकील कह रहे हैं कि रामलला विराजमान की याचिका खारिज कर दी जाए. फिर उसी जगह पर अखाड़ा को कब्जा दिया जाए क्योंकि वे सदियों से मंदिर की देखभाल और देवता की सेवा का काम कर रहे थे. यानी अगर उनकी बात मान ली जाए तो भी ये जगह मुसलमानों को नहीं मिल सकेगी जो सरासर गलत है. वकील ने कहा कि विवादित इमारत के बाहरी हिस्से में निर्मोही अखाड़े के लोग पूजा कर रहे थे. उन्होंने अंदर भी कब्जा देने की कोशिश की. यह पूरा विवाद इसी का नतीजा है.

वरिष्ठ अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट को ये भी बताया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को कई बार वैकल्पिक जगह दिए जाने का प्रस्ताव मिला है. इस तरह का प्रस्ताव दिया जाना ही अपने आप में साबित करता है कि वक्फ बोर्ड का दावा कितना मजबूत है.

पिछली सुनवाई के लिए पढ़ें यहां

बुधवार को इस मामले की अगली सुनवाई की जाएगी.

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