अयोध्या रामजन्मभूमि (Ayodhya Ram Janambhumi)और बाबरी मस्जिद विवादित भूमि मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में 17वें दिन की सु​नवाई हुई. इस दौरान मुस्लिम पक्षकार की ओर से वकील राजीव धवन ने कहा कि भूमि विवाद का निपटारा कानून के हिसाब से हो, न कि स्कन्द पुराण और वेद के जरिए. अयोध्या में लोगों की आस्था हो सकती है, लेकिन यह सबूत नहीं.

राजीव धवन ने रामलला पक्ष के वकील वैद्यनाथन को निशाने पर लेते हुए कहा, ‘मेरे मित्र ने विवादित स्थल पर लोगों द्वारा परिक्रमा करने संबंधी एक दलील दी, लेकिन कोर्ट को मैं बताना चाहता हूं कि पूजा के लिए की जाने वाली भगवान की परिक्रमा सबूत नहीं हो सकती. यह सबूत नहीं है. हम सिर्फ इसलिए इस पक्ष को मजबूती से देख रहे हैं क्योंकि वहां की शिला पर एक मोर या कमल था. इसका मतलब यह नहीं है कि मस्जिद से पहले एक विशाल संरचना थी.’

वकील धवन ने कहा कि स्वयंभू का मतलब भगवान का प्रकट होना होता है. इसको किसी खास जगह से नहीं जोड़ा जा सकता. हम स्वयंभू और परिक्रमा के दस्तावेजों पर भरोसा नहीं कर सकते.

धवन ने पुराने मुकदमों और फैसलों के हवाला देते हुए कहा कि देवता की सम्पत्ति पर अधिकार केवल सेवायत का होता है. ब्रिटिश राज में प्रिवी काउंसिल के आदेश का हवाला देते हुए धवन ने कहा कि 1950 में सूट दाखिल हुआ और निर्मोही अखाड़े ने 1959 में दावा किया. घटना के 40 साल बाद मंदिर ने दावा किया. ये कैसी सेवायत है? देवता का कोई ज़रूरी/आवश्यक पक्षकार नहीं रहा. यहां तो देवता और सेवायत ही आमने-सामने हैं. देवता के लिए अनुच्छेद 32 के तहत कोर्ट में दावा नहीं किया जा सकता.

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कोर्ट में धवन ने इस मामले में इतिहास और इतिहासकारों पर भरोसा नहीं करने करने की दलील रखी. इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आपने भी तो इतिहास के सबूत रखे हैं, उसका क्या? इस पर दलील रखते हुए वकील धवन ने कहा कि वैदिक काल में मन्दिर बनाने और वहीं मूर्तिपूजा करने की कोई परम्परा नहीं थी.

धवन ने ये भी कहा कि महाभारत (Mahabharat) तो इतिहास की कथा है, लेकिन रामायण (Ramayan) तो काव्य है क्योंकि वाल्मीकि ने खुद इसे काव्य और कल्पना से लिखा है. रामायण तो राम और उनके भाइयों की कहानी है. तुलसीदास ने भी मस्जिद के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है जबकि उन्होंने राम के बारे में सबसे बाद में लिखा.

पिछली सुनवाई के लिए पढ़ें यहां

मामले की अगली सुनवाई मंगलवार को होगी.

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