मध्यप्रदेश उपचुनाव: बीजेपी की जीत पक्की लेकिन चौंका सकते हैं सिंधिया के गढ़ में नतीजे

ग्वालियर-चंबल संभाग ​के चुनावी ​परिणाम शुरु करेंगे भाजपा की राजनीति का अलग दौर, 10 नवंबर को आएंगे उपचुनाव के नतीजे, इससे पहले कांग्रेस और बीजेपी ने किया जीत का दावा

Jyotiraditya Scindia Mp Byelection
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Politalks.News/MP. मध्यप्रदेश उपचुनाव संपन्न हो चुके हैं और इंतजार है केवल नतीजों का. 28 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे 10 नवंबर हो आएंगे. पॉलिटॉक्स के एक सर्वे के मुताबिक उपचुनाव में बीजेपी की जीत तय है और शिवराज सरकार को कोई नुकसान नहीं होगा. भाजपा भी अपनी जीत पर पूरी तरह आश्वस्त है लेकिन एमपी में फिर से शिवराज सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले बीजेपी के राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के लिए खबर बुरी है. जैसा कि सर्वे में सामने आ रहा है, सिंधिया के गढ़ और प्रभाव क्षेत्रों से आने वाले नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं.

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विश्लेषण में सामने आया है कि ग्वालियर-चंबल संभाग में परिणाम पार्टी को चौंका सकते हैं. यह ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाला क्षेत्र है. यहां उपचुनाव की 16 सीटें हैं और इनमें से अधिकांश सीटों पर सिंधिया फेक्टर फेल साबित हो रहा है. तुलसीराम सिलावट के भी बमुश्किल जीत की संभावना है जबकि डंग जैसे नेताओं के लिए विस क्षेत्र में नाराजगी तो पहले से ही चल रही है. उपचुनाव में बढ़ा मतदान का प्रतिशत भी इस ओर स्पष्ट तौर पर इशारा कर रहा है. इस मामले में राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सिंधिया के प्रभाव वाले क्षेत्र में पार्टी को नुकसान की आशंका यदि सही साबित हुई तो मध्य प्रदेश में भाजपा की राजनीति का अलग दौर शुरू होगा.

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हालांकि, जब तक चुनावों के नतीजे साफ नहीं हो जाते, तब तक चुनावी विश्लेषण को अंतिम नहीं माना जा सकता. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अब तक ज्योतिरादित्य सिंधिया को बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने मन से स्वीकार नहीं किया. वहीं कांग्रेस से बीजेपी में आए जिन सिंधिया समर्थकों को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया, उनकी पार्टी में स्वीकार्यता को लेकर शुरू से ही असमंजस था. पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के सामने एक हिचक यह भी थी कि बीजेपी में आने से पहले दशकों तक जिन नेताओं को भला-बुरा कहा गया, अब उनके लिए जनता से वोट किस तरह मांगें. कई क्षेत्रों में तो हाथ छोड़ कमल का दामने थामने वाले नेताओं को घुसने तक नहीं दिया गया.

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ग्वालियर में कम वोटिंग प्रतिशत सिंधिया के पक्ष में जाने की पूरी पूरी संभावना है. दोनों सीटों पर 50 फीसदी से भी कम मतदान हुआ है. ये सिंधिया का अभेद किला है जहां सेंध लगना थोड़ा मुश्किल है. लेकिन अन्य इलाकों में भी बीजेपी को केवल 8 से 12 सीटें मिलती दिख रही है. इतनी सीटें शिवराज सिंह सरकार के पूर्ण बहुमत प्राप्त करने के लिए काफी है. इतनी सीटें जीतने के बाद बीजेपी (107) 116 के मैजिक फिगर को पार कर जाएगी और उसके बाद निर्दलीय एवं सपा-बसपा के साथ की भी जरुरत नहीं होगी.

दूसरी ओर, बीजेपी के पास तो सत्ता यथावत रहेगी लेकिन कांग्रेस की साख भी बची रहेगी. 28 में से 15 से अधिक सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों को स्पष्ट विजयश्री मिल रही है. बसपा और निर्दलीय प्रत्याशियों की जीत के आसान काफी क्षीण हैं. अगर ये सभी आंकड़े और अनुमान सही होते हैं तो इसमें गलती कांग्रेस नहीं बल्कि बीजेपी की है. यहां न तो स्थानीय नेता कांग्रेस से पार्टी में आए नेताओं को ही अपना पाए, न ही अपनी नाराजगी छिपा पाए. उपचुनावों के प्रचार के दौरान यह भी प्रसंग सुनने में आए कि जब मतदाताओं ने कार्यकर्ताओं व नेताओं से प्रति प्रश्न किए कि जिन्हें अब तक बुरा कहते थे, अब वे अच्छे कैसे हो गए? इस तरह के सवालों ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए असहज स्थिति पैदा की.

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खैर जो भी परिणाम होंगे, 10 नवंबर को सामने आ ही जाएंगे. लेकिन ये तो सच है कि अगर सिंधिया के प्रभाव वाले क्षेत्र में बीजेपी को नुकसान की आशंका सही साबित हुई तो मध्य प्रदेश में भाजपा की राजनीति का अलग दौर शुरू होगा. वहीं विपक्ष को इन सीटों पर मिली जीत अगली बार के लिए कांग्रेस के लिए अच्छी राह प्रशस्त करेगी. इधर, कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों ने उपचुनाव जीतने का दावा किया है.

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