जानवरों के खाने लायक चावल बांटने को कमलनाथ ने बताया अपराध, शिवराज सरकार पर साधा निशाना

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने शिवराज सरकार को लिखी चिट्ठी, रिपोर्ट में चावल के सैंपल इंसानों के खाने के लिए अनफिट, विपक्ष ने किया सत्ताधारी पार्टी पर हमला तो सरकार ने कहा- नहीं मिला ऐसा कोई पत्र

Shivraj Singh Vs Kamalnath
Shivraj Singh Vs Kamalnath

Politalks.News. मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ (Kamalnath) ने भारत सरकार के उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के एक प्रभाग की चिट्ठी का हवाला देते हुए शिवराज सरकार पर हमला बोला है. मंत्रालय की चिट्ठी में कोरोना महामारी के दौरान प्रदेश के आदिवासी बहुल जिलों में घोड़ों और मवेशियों के खाने लायक चावल सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए लोगों में बांटे जाने का मामला सामने आया है. यह अनाज सरकारी दुकानों से लोगों को बांटा गया था. पत्र में ये भी पुष्टि की गई है कि ये चावल इंसानों के खाने के लिए सही नहीं हैं. इस मामले पर कमलनाथ ने प्रदेश की बीजेपी सरकार पर निशाना साधते हुए इसे आपराधिक कृत्य करार दिया है. हालांकि सरकार ने ऐसे किसी भी पत्र से इनकार किया है.

दरअसल, भारत सरकार के उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के एक प्रभाग ने चिट्ठी लिखी है. मंत्रालय के खाद्य और जन वितरण विभाग के स्टोरेज एंड रिसर्च डिवीजन ने मध्य प्रदेश सरकार को भेजी गई चिट्ठी में कहा है कि बालाघाट और मंडला जिलो में चार गोदामों और एक फेयर प्राइस शॉप से चावल के 32 नमूने लिए. इनकी जांच NABL से मान्यता प्राप्त सेंट्रल ग्रेन्स एनालिसिस लैबोरेट्री में हुई है. मंत्रालय के खाद्य और जन वितरण विभाग के स्टोरेज एंड रिसर्च डिवीजन ने ये पत्र 21 जुलाई को शिवराज सिंह सरकार को भेजा है.

Letter
Letter

चिट्ठी में कहा गया कि मध्य प्रदेश के दो आदिवासी जिलों से लिए गए चावल के नमूनों की जांच से सामने आया कि ये इंसानों के खाने के लिए सही नहीं हैं और 1-a कैटेगरी में आते हैं यानी ये अनाज सिर्फ मवेशियों के खाने के लिए ही फिट है. ये अस्वीकृति सीमा से बाहर और फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पीएफए मानकों के मुताबिक भी नहीं थे. यह फीड 1 की श्रेणी में आते हैं जो कि बकरी, घोड़े और भेड़ जैसे पशुधन के लिए ही उपयुक्त है.

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मामला सामने आने के बाद सूबे के पूर्व सीएम कमलनाथ ने सरकार के इस कार्य को आपराधिक कृत्य करार दिया है. कमलनाथ ने ट्वीट करते हुए लिखा, ‘मध्य प्रदेश में कोरोना महामारी में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत जिस चावल का वितरण किया गया वो मनुष्य के खाने के योग्य नहीं था, यह केंद्र सरकार की जांच के उपरांत लिखे एक पत्र के माध्यम से सामने आया है. यह इंसानियत और मानवता को तार-तार करने वाला एक आपराधिक कृत्य भी है.’

इधर, मध्य प्रदेश सरकार ने हालांकि केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की ओर से लिखे गए ऐसे किसी भी पत्र की जानकारी होने से इनकार किया है. मध्य प्रदेश के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री बिसाहु लाल साहू ने कहा कि मुझे इस तरह के किसी भी पत्र की जानकारी नहीं है, लेकिन अगर कोई ऐसा है तो हम गलती करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेंगे.

गौरतलब है कि केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने 30 जुलाई और 2 अगस्त, 2020 के बीच बालाघाट और मंडला जिलो में चार गोदामों और एक फेयर प्राइस शॉप से चावल के 32 नमूने लिए. इनकी जांच NABL से मान्यता प्राप्त सेंट्रल ग्रेन्स एनालिसिस लैबोरेट्री में हुई. ये लैब भारत के साथ-साथ सार्क (दक्षिण एशियाई सहयोग क्षेत्र) के अन्य देशों के लिए भी रेफरल लैब है.

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मंत्रालय की ओर से जारी सर्वत्र मानकों के मुताबिक 32 लिए गए नमूनों के विश्लेषण से पता चलता है कि न ये सिर्फ अस्वीकृति सीमा से बाहर, बल्कि FSSAI (फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) के पीएफए मानकों के मुताबिक भी नहीं थे.

मामला मीडिया में आने के बाद विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने प्रदेश की बीजेपी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि सत्तारूढ़ पार्टी को सिर्फ प्रचार में ही दिलचस्पी है. कांग्रेस ने दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है.

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