jammu kashmir election
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कश्मीर घाटी का कुलगाम इलाका, जहां कभी मुगल बादशाह और डोगरा रियासत के राजा शिकार खेलने आते थे. शाहजहां के लिए चिनारबाग वाला यह स्थल उपजाऊ जमीन की वजह से इसे कश्मीर का अन्न भंडार भी कहा जाता है. आतंकवाद से भी यह क्षेत्र लंबे समय से प्रभावित रहा है. यहां 18 सितंबर को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होना है. खास बात ये है कि कुलगाम में पिछले 28 साल से जब भी विधानसभा चुनाव हुए, हर बार CPI (M) के यूसुफ तारिगामी ही जीतते आ रहे हैं. तारिगामी जम्मू-कश्मीर में कम्युनिस्ट पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं.

यहां 1996 से 2014 तक केवल चार बार चुनाव हुए और हर बार तारिगामी ने जीत का विजयी परचम लहराया. जम्मू-कश्मीर में पिछली बार विधानसभा चुनाव 2014 में हुए थे. हालांकि अपने अंतिम चुनाव में तारिगामी केवल सिर्फ 334 वोट से जीते थे. इस बार भी रास्ता कांटों भरा है क्योंकि इस बार मुकाबला सयार सर के तौर पर मशहूर सयार अहमद रेशी से है.

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सयार अहमद रेशी निर्दलीय चुनाव में ताल ठोक रहे है. रेशी को प्रतिबंधित संगठन जमात-ए-इस्लामी का समर्थन हासिल है. कुलगाम हमेशा से जमात का गढ़ रहा है. जमात ने 2014 में PDP कैंडिडेट नाजिर अहमद लावे को समर्थन दिया था, तब युसुफ तारिगामी हारते-हारते बचे थे. इस इलाके में तारिगामी और रेशी की इतनी दहशत है कि बीजेपी ने कुलगाम में अपना कोई प्रत्याशी तक खड़ा नहीं किया है. पीपुल्स कांग्रेस के नजीर अहमद लावे दोनों को चुनौती दे रहे हैं. कुलगाम में इस बार नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस और CPI (M) का अलायंस चुनाव लड़ रहा है. इसके बावजूद निर्दलीय सयार रेशी से दोनों उम्मीदवारों को खतरा महसूस किया जा रहा है.

आर्टिकल-370, कश्मीरी पंडित बड़ा मुद्दा

जम्मू कश्मीर में आर्टिकल-370, बेरोजगारी और कश्मीरी पंडित बड़े मुद्दे हैं जिनका हल मोदी सरकार बीते कई सालों में निकाल नहीं पाए हैं. किसानों को सही कीमत और जानकारी नहीं मिल रही है. युवा रोजगार न होने के चलते गलत संगत में पड़ रहे हैं. मनरेगा से भी गिने चुने लोगों को रोजगार मिलता है. एक बड़ा मुद्दा आतंकवाद भी है. कुलगाम में सबसे ज्यादा आतंक प्रभावित इलाके रेडवानी, रामपोरा, नाउपोरा, बटपोरा, टेंगपोरा हैं. कुलगाम में अब भी बड़ी आतंकी घटनाओं की खबरें आती रहती हैं. इसी साल 5-6 जुलाई को कुलगाम में 6 आतंकियों और सिक्योरिटी फोर्स के बीच एनकाउंटर हुआ था. इसमें दो जवान शहीद हुए और सभी 6 आतंकी मारे गए थे.

हालांकि स्थानीय लोगों का कहना है कि मौजूदा विधायक यूसुफ तारिगामी ने काफी विकास कराया है. इसके बाद भी काफी कुछ अभी करना शेष है. ऐसे में जमात के सयार अहमद रेशी की चुनौती भारी पड़ सकती है. पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती की पीडीपी अभी कमजोर स्थिति में है. ऐसे में नजीर अहमद लावे केवल अलांइस का वोट काटने का काम ही करेंगे. अब देखना होगा कि करीब तीन दशक से अजेय यूसुफ तारिगामी अपनी बढ़त बरकरार रख पाते हैं या फिर घाटी को एक नया विधायक मिलने जा रहा है.

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