Politalks.News/New Delhi. दिल्ली के शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने आज केंद्र की मोदी सरकार को खुश कर दिया. यह मामला ऐसा था जिस पर केंद्र सरकार भी उलझी हुई थी. मोदी सरकार के नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में तीन महीने तक दिल्ली के शाहीन बाग में हजारों की संख्या में जमा हुए प्रदर्शनकारियों ने लाखों लोगों का जीना मुश्किल कर दिया था. इस दौरान इन प्रदर्शनकारियों को केंद्र सरकार टस से मस नहीं कर सकी थी. शाहीन बाग प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने आज अहम फैसला सुनाते हुए प्रदर्शनकारियों को फटकार लगाई है जो बीच सड़क पर रास्ता रोक आम लोगों के लिए मुसीबत बनते हैं.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच ने कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर लंबे समय तक धरने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती. जबकि शाहीन बाग में पिछले दिसंबर से मार्च तक धरना प्रदर्शन चला था. राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ 14 दिसंबर से प्रदर्शन शुरू हुआ था जो 3 महीने से ज्यादा चला. शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों को दिल्ली पुलिस भी हटा नहीं सकी थी. वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार ने भी कई बार अपने मंत्रियों को शाहीन बाग में भेजा था, लेकिन वे अपनी जिद पर अड़े रहे थे. शाहीन बाग के आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र और असहमति साथ-साथ चलते हैं, पर सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चितकाल तक कब्जा नहीं किया जा सकता, जैसा कि शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन के दौरान हुआ.
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मोदी सरकार के लिए चुनौती बन गया था शाहीन बाग-
शाहीन बाग में तीन महीने से अधिक चला धरना मोदी सरकार के लिए चुनौती बन गया था. यहां बैठे प्रदर्शनकारियों को विपक्ष के कई नेता शह भी दे रहे थे. केंद्र सरकार की सबसे ज्यादा फजीहत फरवरी महीने में हुई थी जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दिल्ली और गुजरात का दौरा किया था. डोनाल्ड ट्रंप के आने से पहले केंद्र की सरकार चाहती थी कि शाहीन बाग के प्रदर्शनकारी अपना विरोध प्रदर्शन खत्म कर दें लेकिन वह डटे रहे थे. कोरोना महामारी के बावजूद भी प्रदर्शनकारी धरना प्रदर्शन करते रहे.
इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस के कारण महामारी की रोकथाम के लिए 22 मार्च को पूरे देश में लॉकडाउन का एलान कर दिया. उसके बावजूद भी प्रदर्शनकारियों ने धरना खत्म करने में आनाकानी की, लेकिन आखिरकार उन्हें प्रदर्शन स्थल से उठना पड़ा. बाद में जब केंद्र सरकार ने जून महीने में अनलॉक वन का एलान किया तो शाहीन बाग के प्रदर्शनकारी एक बार फिर से धरना स्थल पर जुटने की कोशिश करने लगे, लेकिन पुलिस बलों ने उन्हें वहां से हटा दिया.
अदालत ने कहा कि ऐसे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस को कार्रवाई करनी चाहिए-
आपको बता दें कि शाहीन बाग पर जमा हजारों की भीड़ पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी सख्त ऐतराज जताया था. कोर्ट ने फरवरी में सीनियर वकील संजय हेगडे और साधना रामचंद्रन को जिम्मेदारी दी कि प्रदर्शनकारियों से बात कर कोई समाधान निकालें, लेकिन कई राउंड की चर्चा के बाद भी बात नहीं बन पाई थी. बाद में कोरोना के चलते लॉकडाउन होने पर 24 मार्च को प्रदर्शन बंद हो पाया.
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सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले के बाद देशभर में उन प्रदर्शनकारियों के पैर उखड़ गए हैं जो सड़कों पर प्रदर्शन करने के लिए अपनी राजनीति करते हैं. देश की शीर्ष अदालत ने आज कहा कि शाहीन बाग इलाके से लोगों को हटाने के लिए दिल्ली पुलिस को कार्रवाई करनी चाहिए थी. विरोध प्रदर्शनों के लिए शाहीन बाग जैसे सार्वजनिक स्थलों पर कब्जा करना स्वीकार्य नहीं है. प्रशासन को खुद कार्रवाई करनी होगी और वे अदालतों के पीछे छिप नहीं सकते.
यहां आपको बता दें कि दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ करीब 100 दिनों तक लोग सड़क रोक कर बैठे थे. दिल्ली को नोएडा और फरीदाबाद से जोड़ने वाले एक अहम रास्ते को रोक दिए जाने से इतने दिनों तक रोजाना लाखों लोगों को भारी परेशानी रही.