कर्नाटक में सत्तारुढ़ कांग्रेस में सर्वोच्य पद को लेकर अंदरुनी विवाद अब खुलकर सामने आ गया है. एक तरफ सिद्धारमैया मुख्यमंत्री पद छोड़ने को तैयार नहीं हैं, वहीं उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने भी अब अपने तेवर तीखे करने शुरू कर दिए हैं. डीके ‘सीक्रेट डील’ के तहत ढाई-ढाई साल के सीएम फॉर्मूले का हवाला दे रहे हैं. हालांकि इस फॉर्मूले को लेकर कांग्रेस में लंबे समय से विवाद चल रहा है, लेकिन पार्टी आलाकमान इस समस्या को अब तक सुलझा नहीं सकी है. इधर, कर्नाटक में जातीय समीकरण भी ऐसा है कि आलाकमान के लिए सिद्धारमैया को हटा पाना और डीके को चुनने सहित कोई भी फैसला लेना आसान नहीं होगा.
भले ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की ओर से दिल्ली में कर्नाटक के विवाद को सुलझाने की बात बार बार कही जा रही है लेकिन हकीकत तो ये है कि सिद्धारमैया और शिवकुमार समर्थित गुट एक दूसरे के खुलकर सामने आ गए हैं. वहीं दक्षिणी राज्य में जातीय गुट भी अपने-अपने नेता को लेकर अलर्ट हो गए हैं. स्थिति यह हो गई कि एक जातीय गुट ने मौजूदा मुख्यमंत्री को हटाने के खिलाफ चेतावनी दी तो दूसरे गुट ने शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाए जाने का समर्थन कर पार्टी को पशोपेश में डाल दिया है.
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इधर, कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग समुदाय महासंघ (KSFBCC) ने कांग्रेस को चेतावनी दी है कि अगर सिद्धारमैया को सीएम पद से हटाया गया तो यह सही नहीं होगा और पार्टी पर असर पड़ेगा. वहीं कर्नाटक राज्य वोक्कालिगारा संघ का कहना है कि शिवकुमार के साथ अगर अन्याय हुआ तो कड़ा विरोध किया जाएगा.
जातिगत समीकरण उलझा रहा सत्ता का गणित
कर्नाटक का जातीय समीकरण सत्ता के समीकरण को उलझा सा रहा है. राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को ताकतवर अहिंदा का समर्थन हासिल है. अहिंदा (AHINDA)- अल्पसंख्यक, पिछड़े वर्ग और दलित समुदायों के लिए संक्षिप्त ‘कन्नड़’ नाम है. इसे सिद्धरमैया का वोट बैंक माना जाता है. राज्य के 224 सीटों वाली विधानसभा में 19 विधानसभा क्षेत्रों में करीब 80% वोटर अहिंदा गुट से जुड़े हुए हैं. जबकि 42 चुनाव क्षेत्रों में, 80% अहिंदा वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. इसी तरह 83 से ज्यादा चुनाव क्षेत्रों में, 70% वोटर अहिंदा बिरादरी से जुड़े लोग हैं. इसके अलावा, 49 चुनाव क्षेत्रों में 60 फीसदी से ज्यादा, 22 चुनाव क्षेत्रों में 50% से ज्यादा वोटर और 5 चुनाव क्षेत्रों में, 90% से ज्यादा वोटर माइनॉरिटी, पिछड़े वर्ग और दलित हैं.
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कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष और डिप्टी सीएम शिवकुमार ‘वोक्कालिगा’ समुदाय से आते हैं. वोक्कालिगा राजनीतिक रूप से राज्य में पावरफुल है और यह कृषक समुदाय से जुड़ा हुआ है. वोक्कालिगा की स्थिति का आकलन ऐसे भी लगाया जा सकता है कि इस बिरादरी से आने वाले कई नेता मुख्यमंत्री और एक तो प्रधानमंत्री तक बनने में कामयाब रहे हैं.
मुख्यमंत्री बनने वालों में के हनुमंतैया, केसी रेड्डी, एचडी देवगौड़ा, एसएम कृष्णा, सदानंद गौड़ा और एचडी कुमारस्वामी के नाम प्रमुख हैं. देवगौड़ा देश के प्रधानमंत्री भी बने.
दोनों संघ एक दूसरे के सामने
वोक्कालिगारा संघ का कहना है कि शिवकुमार के साथ अगर अन्याय हुआ तो कड़ा विरोध किया जाएगा. क्कालिगा संघ के अध्यक्ष श्रीनिवास का कहना है, ‘शिवकुमार ने विधानसभा चुनाव के दौरान कड़ी मेहनत की थी, उन्होंने पूरे राज्य दौरा किया, संगठन को मजबूत बनाने का काम किया. उन्हीं की वजहों से कांग्रेस को 2023 के चुनाव में 140 सीटों पर जीत मिली थी इसलि वोक्कालिगा संघ चाहता है कि शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाया जाए.’
वहीं KSFBCC ने सिद्धारमैया का समर्थन कर कांग्रेस आलाकमान को परेशानी में डाल दिया है. संघ ने चेतावनी दी है कि अगर सिद्धारमैया को सीएम पद से हटाया गया तो यह सही नहीं होगा. संघ के अध्यक्ष केएम रामचंद्रप्पा ने कहा है, ‘अहिंदा समुदाय किसी के आगे नहीं झुकेगा. अगर धर्मगुरु और वोक्कालिगा संघ आंदोलन करता है तो हम भी अपने नेता को नहीं छोड़ेंगे. अहिंदा समुदाय की 70 फीसदी आबादी ने सिद्धारमैया सरकार का समर्थन कर रही है. अहिंदा समुदाय के किसी नेता को गिराने की कोशिश की गई तो हम यह बर्दाश्त नहीं करेंगे.’
सुलह कराना आसान काम नहीं
फिलहाल कर्नाटक के सियासी विवाद को दिल्ली में सुलझाने की कोशिश की जा रही है. बताया जा रहा है कि इस मामले को सुलझाने के लिए राहुल गांधी खुद सिद्धारमैया और शिवकुमार सहित चुनिंदा नेताओं के साथ बैठक करेंगे. अंदरुनी कलह में कर्नाटक के कई जातीय गुट भी उतर आए हैं और जिस तरह का लगातार विवाद बना हुआ है वो आलाकमान के लिए सुलझा पाना आसान नजर नहीं आ रहा है. अब देखना है कि कांग्रेस किस तरह से जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए अपने दोनों अनुभवी नेताओं को राजी कर पाती है.



























