पाॅलिटाॅक्स ब्यूरो. दिल्ली विधानसभा और भाजपा दो ऐसे पहलू हैं, जो राजनीतिक पंडितों की समझ से बाहर हैं. यह अलग बात है कि आजादी के बाद से दिल्ली के अब तक के 7 मुख्यमंत्रियों में से 3 मुख्यमंत्री भाजपा के रहे हैं लेकिन वो तीनों एक ही कार्यकाल (1998-1998) में मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद पिछले 21 सालों से दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के लिए भाजपा तडप रही है. बात करें बीजेपी के दिग्गज नेता रहे और संघ से जुडे दिवंगत मदनलाल खुराना की, तो मदन लाल खुराना ही वह शख्स थे, जिन्होंने भाजपा को दिल्ली विधानसभा में बहुमत के आंकडे तक पहुंचाया. खुराना भाजपा से पहले ऐसे नेता थे, जो 1993 में दिल्ली के मुख्यमंत्री बने.
दिल्ली विधानसभा चुनाव से जुडा रौचक पहलू यह भी है कि उनसे पहले कांग्रेस के दो नेता चौधरी ब्रहम प्रकाश और गुरू मुख निहाल सिंह 1952 से 1956 तक मुख्यमंत्री रहे. लेकिन इस समय कमिश्नरी सिस्टम होने के कारण मुख्यमंत्री के पास कोई खास पाॅवर नहीं होती थी. उसके बाद 36 साल यानि 1956 से 1992 तक दिल्ली में कोई चुनाव नहीं हुए. इतने लंबे अंतराल के बाद 1993 में जब चुनाव है तो मदनलाल खुराना की अगुवाई में भाजपा ने दिल्ली की 70 में से 49 सीटें जीतीं वहीं कांग्रेस मात्र 14 सीटों पर सिमटी गई.
दिल्ली में पहली बार भाजपा की सरकार बनी और जनसंघ के महासचिव रहे मदनलाल खुराना मुख्यमंत्री बनें. 2 दिसंबर 1993 में मदन लाल खुराना ने मुख्यमंत्री पद का सफर शुरू किया लेकिन 2 साल 87 दिन का समय भी नहीं बीता था कि खुराना को पद से हटना पड गया, कारण रहा प्याज… दिल्ली में प्याज की बढी हुई कीमतों के चलते भाजपा में असंतोष फैल गया और मदन लाल खुराना को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पडा. इसके बाद भाजपा ने साहिब सिंह वर्मा को दिल्ली की कमान सौंपीं लेकिन भाजपा का यह प्रयोग भी सफल नहीं रहा और 1998 में मात्र 52 दिनों के लिए भाजपा को सुषमा स्वराज को अपना तीसरा मुख्यमंत्री बनाना पड़ा. यहां गौर करने वाली बात यह है कि भाजपा को पहली बार राज करने के लिए मिले पांच साल में भी तीन मुख्यमंत्री बनाने पड़ गए.
15 अक्टूबर 1936 को पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में जन्में दिंवगत मदनलाल खुराना से जुडा बड़ा रौचक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि दिल्ली में अपने दम पर भारतीय जनता पार्टी को खड़ा करने वाले खुराना को भारत के विभाजन के समय अपना घर छोड़ना पड़ा था और वो लंबे समय तक नई दिल्ली के कीर्ति नगर के शरणार्थी शिविर में रहे. खुराना 1965 से 67 तक जनसंघ के महमंत्री रहे. एक महत्वपूर्ण बात यह कि मदनलाल खुराना ने ही सबसे पहले दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग उठाई थी. जिस समय खुराना मुख्यमंत्री बने उस समय केंद्र में कांग्रेस के पीवी नरसिंम्हा राव की सरकार थी.
1984 के आम चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी की बुरी तरह से हार हुई तब राजधानी दिल्ली में फिर से पार्टी को खड़ा करने में मदन लाल खुराना का बड़ा योगदान रहा. केन्द्र में पहली बार जब भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनी तो मदन लाल खुराना केंद्रीय मंत्री बने. उन्होंने दिल्ली भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी बखुबी निभाई. मदन लाल खुराना राजस्थान के राज्यपाल भी रहे.
सबसे पहले मदनलाल खुराना 1977 से 1980 तक दिल्ली के कार्यकारी पार्षद रहे. उसके बाद दो बार महानगर पार्षद बने. दिल्ली को जब पूर्ण राज्य का दर्जा मिला तो वह 1993 में पहले मुख्यमंत्री चुने गए और 1996 तक मुख्यमंत्री रहे. 14 जनवरी 2004 से 1 नवम्बर 2004 तक खुराना राजस्थान के कार्यवाहक राज्यपाल रहे. एक और महत्वपूर्ण बात यह कि वर्ष 2005 में लालकृष्ण आडवाणी की आलोचना के कारण मदनलाल खुराना को भाजपा से निकाल दिया गया, लेकिन सितंबर 2005 में ही उन्हें फिर से पार्टी में वापस ले लिया गया.
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2013 में मदनलाल खुराना को ब्रेन हेमरेज हुआ जिस कारण से व्व सक्रिय राजनीति से दूर हो गए. जीवन के अंतिम दो वर्षों में खुराना गंभीर रूप से बिमारी रहे और 27 अक्टूबर 2018 को 82 वर्षीय खुराना ने रात 11 बजे कीर्ति नगर के अपने घर में आख़िरी सांस ले दुनिया को अलविदा कह दिया. भले ही दिल्ली भाजपा के पास नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त हो लेकिन फरवरी 2020 में होने जा रहे दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा को मदलाल खुराना जैसे करिश्माई नेता की आवश्यकता साफ नजर आ रही है.