Thursday, February 6, 2025
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उत्तर प्रदेश: योगीराज में खूनी होली, भाजपा विधायक को गोली मारी

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर सदर से भाजपा विधायक योगेश वर्मा पर फायरिंग की खबर है. गोलीकांड उस समय हुआ जब विधायक पार्टी कार्यालय में आयोजित होली मिलन समारोह में शिरकत कर रहे थे. यहां उन्हें बधाई देने वाले लोगों का तांता लगा हुआ था. उसी समय किसी ने विधायक पर फायरिंग कर दी. गोली उनके पैर में लगी.

फायरिंग की इस घटना से हडकंप मच गया. विधायक को उनके परिवार वाले और समर्थक तुरंत लखीमपुर के एक निजी अस्पताल में लेकर गए. डॉक्टरों के अनुसार अब उनकी हालत खतरे से बाहर है. विधायक योगेश वर्मा ने पुलिस को दिए बयान में इलाके के खनन माफिया पर गोली मारने का आरोप लगाया है.

स्थानीय पुलिस ने इस संबंध में मुकदमा दर्ज कर लिया है. आरोपियों की सरगर्मी से तलाश की जा रही है. अभी तक इस मामले में किसी की गिरफ्तारी नहीं हो पाई है. इस घटना से विधायक के समर्थकों में खासा रोष है. मौके की नजाकत को समझते हुए लखीमपुर में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया है.

मोदी-शाह पर फिर भारी वसुंधरा का हठ, नहीं लड़ेंगी लोकसभा चुनाव

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री और अमित शाह के भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद यह माना जाता है कि इन दोनों की मर्जी के बिना पार्टी में पत्ता भी नहीं हिलता. इस जोड़ी का कहा पार्टी के भीतर पत्थर की लकीर की तरह है, जिससे दाएं-बाएं होने की हिम्मत करना करना तो दूर भाजपा का कोई नेता इस बारे में सोचता तक नहीं. भाजपा में मोदी-शाह के इस वर्चस्व को यदि किसी ने तोड़ा है तो वे वसुंधरा राजे हैं. उन्होंने न केवल इस जोड़ी को चुनौती दी, बल्कि तीन बार घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया.

प्रदेश अध्यक्ष और विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण के मसलों पर मोदी-शाह से सरेंडर करवा चुकीं वसुंधरा लोकसभा चुनाव में भी ऐसा करती हुई दिखाई दे रही हैं. पार्टी चाहती है कि राजे बारां-झालावाड़ सीट से बेटे दुष्यंत सिंह की जगह चुनाव लड़ें, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री ने ऐसा करने से साफ इंकार कर दिया है. राजे से जुड़े सूत्र पहले से यह दावा कर रहे थे कि वे किसी भी सूरत में लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगी, लेकिन मंगलवार देर रात तक चली केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक के बाद इस मामले में कयासों का दौर थम गया.

समिति बैठक खत्म होने के बाद मीडिया से बातचीत में राजे से साफ कर दिया कि वे लोकसभा चुनाव नहीं लड़ रहीं. सूत्रों के अनुसार पार्टी नेतृत्व ने उन्हें चुनाव लड़ने को राजी करने के लिए खूब मशक्कत की, लेकिन वे टस से मस नहीं हुईं. असल में मोदी-शाह चाहते हैं कि वसुंधरा की कार्यशैली राजस्थान में पार्टी के प्रदर्शन को प्रभावित करती है इसलिए उन्हें दिल्ली बुलाकर प्रदेश में नया नेतृत्व तैयार किया जाए.

दूसरी ओर राजे दिल्ली की बजाय प्रदेश की राजनीति में ही सक्रिय रहना चाहती हैं. उन्हें यह भरोसा है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में भी सत्ता की अदला-बदली का क्रम जारी रहेगा और भाजपा की सरकार बनेगी. उस समय राजे राज्य की राजनीति में सक्रिय नहीं रहीं तो उनका मुख्यमंत्री बनना आसान नहीं होगा. यही नहीं, उनके बारां-झालावाड़ सीट से चुनाव लड़ने की स्थिति में पुत्र दुष्यंत सिंह का सियासी भविष्य भी अधरझूल में फंस जाएगा. गौरतलब है कि दुष्यंत इस सीट से लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके हैं.

भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में वसुंधरा राजे

सूत्रों की मानें तो पार्टी नेतृत्व ने वसुंधरा को किसी दूसरी सीट से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव भी दिया था, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया. दरअसल, दुष्यंत सिंह तीन बार सांसद तो रह चुके हैं पर उनका चुनावी प्रबंधन अभी भी राजे ही संभालती हैं. इलाके की राजनीति के जानकारों के अनुसार दुष्यंत सिंह लोकप्रियता के मामले में राजनीति की सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं. क्षेत्र में उनसे नाराजगी का स्तर जीत के समीकरण खराब करने के स्तर तक पहुंच चुका है. इस स्थिति में वसुंधरा अपने बेटे को चुनावी रण में अकेला छोड़ने का खतरा मोल नहीं लेना चाहेंगी.

राजे के इस बयान के बाद कि वे लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगी, यह साफ हो गया है कि पूरी मशक्कत करने के बाद भी मोदी-शाह पूर्व मुख्यमंत्री के हठ का तोड़ नहीं ढूंढ पा रहे. यह लगातार तीसरा मौका है जब अमित शाह को वसुंधरा राजे की जिद के सामने सरेंडर करना पड़ा है. इससे पहले प्रदेशाध्यक्ष के मामले में उन्हें उनके आगे झुकना पड़ा था. गौरतलब है कि पिछले साल फरवरी में दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में भाजपा की करारी हार के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने वसुंधरा के ‘यस मैन’ माने जाने वाले अशोक परनामी को रवाना कर दिया था.

अमित शाह राजस्थान में पार्टी की कमान केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के हाथों में सौंपना चाहते थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी शेखावत को प्रदेशाध्यक्ष बनाना चाहते थे, लेकिन वुसंधरा राजे ने इस पर सहमति व्यक्त नहीं की. पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने राजे को राजी करने के लिए सभी जतन किए, लेकिन वे टस से मस नहीं हुईं.

आखिरकार मोदी-शाह की पसंद पर वसुंधरा का वीटो भारी पड़ा और मदन लाल सैनी प्रदेशाध्यक्ष बने. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री और अमित शाह के भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद यह पहला मौका था जब इन दोनों को पार्टी के किसी क्षेत्रीय क्षत्रप ने न केवल सीधी चुनौती दी, बल्कि घुटने टेकने पर भी मजबूर कर दिया.

वसुंधरा और केंद्रीय नेतृत्व के बीच दूसरी सियासी भिडंत पिछले साल नवंबर में हुई. उस समय राजे विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की सूची लेकर अमित शाह के पास गई थीं. इसमें ज्यादातर मौजूदा विधायकों के नाम थे, जिन्हें देखकर अमित शाह खफा हो गए. उन्होंने सत्ता विरोधी माहौल से निपटने के लिए आधे से ज्यादा विधायकों की जगह नए चेहरों को मौका देने के कहा, लेकिन आखिर में उम्मीदवारों के जो नाम सामने वे वसुंधरा की पसंद के ही निकले. कुछ नामों को छोड़कर उन्हें ही टिकट मिला, जिन्हें वसुंधरा खेमे का माना जाता है. टिकट काटने में भी राजे की ही मर्जी चली.

वैभव गहलोत को जोधपुर में भारी पड़ सकती है सवर्णों की नाराजगी

Politalks News

लोकसभा चुनाव के रण में दावेदारों में से उम्मीदवारों को तराशने का काम तेजी से चल रहा है. जैसे—जैसे टिकट तय होने का समय नजदीक आता जा रहा है वैसे—वैसे नेताओं की धड़कन तेज होती जा रही है. कोई आला नेताओं के यहां हाजिरी लगा रहा है तो कोई भगवान के दर पर मत्था टेक रहा है. इस भागदौड़ के बीच राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने बेटे वैभव का सियासी भविष्य संवारने की जद्दोजहद में जुटे हैं.

सूत्रों की मानें तो गहलोत अपने बेटे को जोधपुर सीट से चुनावी मैदान में उतारने का फैसला कर चुके हैं. जोधपुर गहलोत का गृह जिला है. उन्होंने अपनी सियासत यहीं से शुरू की और प्रदेश की सत्ता के शिखर तक पहुंचे. यह किसी से छिपा नहीं है कि गहलोत जोधपुर की राजनीति की नस—नस से वाकिफ हैं. बावजूद इसके वैभव को यहां से चुनावी रण में उतारना उनके लिए बड़ा जुआ होगा.

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो जोधपुर में वैभव गहलोत की राह में सवर्ण वर्ग के मतदाता रोड़ा बन सकते हैं. यह सीट आठ विधानसभा क्षेत्रों से मिलकर बनी है. यदि दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने इन आठ सीटों में से सिर्फ दो सीटों पर सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को टिकट दिया. पार्टी ने फलोदी सीट से महेश व्यास और शेरगढ़ से मीना कंवर को मैदान में उतारा.

बाकी छह सीटों में से चार पर ओबीसी के प्रत्याशी उतारे. इनमें सरदारपुरा से अशोक गहलोत, जोधपुर शहर से मनीषा पंवार, लूणी से महेंद्र विश्नोई और लोहावट से किसनाराम विश्नोई का नाम शामिल है. बाकी दो सीटों पर कांग्रेस ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे. इनमें सूरसागर से प्रो. अयूब खान और पोकरण से सालेह मोहम्मद का नाम शामिल है.

विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस की ओर से ब्राह्मण बाहुल्य मानी जाने वाली सूरसागर सीट पर मुस्लिम, वैश्य बाहुल्य मानी जाने वाली जोधपुर शहर सीट पर ओबीसी और राजपूतों के प्रभाव वाली मानी जाने वाली पोकरण सीट पर मुस्लिम को टिकट देना चर्चा का विषय बना था. यदि लोकसभा चुनाव में भी इसी तर्ज पर कांग्रेस जातिगत समीकरणों को दरकिनार कर वैभव गहलोत को मैदान में उतारती है तो पार्टी का यह निर्णय सामान्य वर्ग को अखर सकता है.

जोधपुर सीट पर जातिगत समीकरणों की बात की जाए तो 19 लाख मतदाताओं में से करीब साढे चार लाख राजपूत, दो लाख ब्राह्मण और डेढ़ लाख वैश्य हैं. यानी सामान्य वर्ग के मतदाताओं की संख्या लगभग साढे सात लाख है. यदि इन्हें किनारे कर वैभव गहलोत को टिकट दिया जाता है तो इतने बड़े वर्ग को साधना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगी.

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का टिकट वितरण ही पार्टी से सामान्य वर्ग की नाराजगी की इकलौती वजह नहीं है. अशोक गहलोत के सत्ता संभालने के कुछ दिन बाद हुए तबादलों में जेडीए के सामान्य वर्ग के डेढ़ दर्जन से अधिक तकनीकी अधिकारियों को इधर—उधर करना भी इस फेहरिस्त में शामिल है.

इसके अलावा सामान्य वर्ग को आर्थिक आधार पर मिले 10 प्रतिशत आरक्षण का लागू नहीं होना भी एक मुद्दा है. कनिष्ठ लिपिक भर्ती में गुर्जर सहित अन्य जातियों को तो पांच प्रतिशत आरक्षण दिया गया, लेकिन सामान्य वर्ग को आरक्षण नहीं मिला. इस मामले को समता आंदोलन समिति जोर—शोर से उठा रही है. समिति ने जोधपुर में मुख्यमंत्री गहलोत और उनके पुत्र वैभव का विरोध करने का ऐलान किया है.

ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि राजनीति के जादूगर माने जाने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत किस तरह से जोधपुर के जातिगत समीकरणों को साधते हैं. यदि वे इन्हें साधने में कामयाब नहीं हुए तो बेटे वैभव का पहला चुनाव भंवर में फंस सकता है.

गोवा के नए मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत पहली परीक्षा में पास, साबित किया बहुमत

गोवा की नए मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत पहली परीक्षा में पास हो गए हैं. उनकी सरकार ने विधानसभा में बहुमत साबित कर दिया है. सरकार के पक्ष में कुल 20 विधायकों ने मतदान किया जबकि बहुमत के लिए 19 की जरूरत थी. सरकार बनाने से पहले भाजपा ने 21 विधायकों के समर्थन का दावा किया था, लेकिन एक विधायक के स्पीकर बनने की वजह से शक्ति परीक्षण के दौरान यह संख्या 20 रह गई.

बता दें कि मनोहर पर्रिकर का निधन होने के बाद प्रमोद सावंत ने सोमवार देर रात मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने नई सरकार को बुधवार को विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए कहा था. सावंत के साथ 11 मंत्रियों ने भी शपथ ली. इनमें से महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी के सुदीन धावलीकार और गोवा फॉरवर्ड पार्टी के विजय सरदेसाई को उपमुख्यमंत्री बनया गया है.

उल्लेखनीय है कि गोवा विधानसभा में कुल 40 सीटें हैं, लेकिन फिलहाल कुल विधायकों की संख्या 36 है. इनमें से कांग्रेस के 14 भाजपा के 12, जीएफपी के 3, एमजीपी के 3, निर्दलीय 3 और एनसीपी के 1 विधायक हैं. भाजपा को जीएफपी, एमजीपी और निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल है. यानी भाजपा के पास कुल 21 विधायक हैं.

हालांकि पर्रिकर के निधन के बाद कांग्रेस ने गोवा में सरकार बनाने का दावा पेश किया था. पार्टी ने राज्यपाल को पत्र लिखकर कहा है कि राज्य में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है, ऐसे में उन्हें सरकार बनाने के लिए बुलाया जाए.

तारिक अनवर का विवादित बयान, कहा- पीएम मोदी का कोई वंश नहीं

लोकसभा चुनाव के रण में वार-पलटवार का सिलसिला जारी है. कांग्रेस नेता तारिक अनवर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से बुधवार को लिखे ब्लॉग में कांग्रेस के वंशवाद की आलोचना करने पर एतराज जताते हुए कहा कि पीएम का कोई वंश नहीं है इसलिए वे वंशवाद की आलोचना करते हैं.

समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में तारिक अनवर ने कहा, ‘वो शायद इसलिए ऐसा बोल रहे हैं, क्योंकि उनका कोई वंश ही नहीं है. पूरी दुनिया में अपने वंश को आगे बढ़ाया जाता है. राजनीति हो या कोई और पेशा सब में वंश को आगे बढ़ाया जाता है. पीएम मोदी को अपना वंश ही नहीं बढ़ाना है इसीलिए वो एसा बोल रहे हैं.’

बता दें कि प्रधानमंत्री के ब्लॉग में कांग्रेस पर वंशवादी राजनीति करने का आरोप लगाया. ब्लॉग में उन्होंने लिखा, ‘2014 में लोगों ने वंशवाद पर ईमानदारी, विनाश की जगह विकास को चुना. साल 2014 का जनादेश ऐतिहासिक था. भारत के इतिहास में पहली बार किसी गैर वंशवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला था. जब कोई सरकार फैमिली फर्स्ट की बजाए इंडिया फर्स्ट की भावना के साथ चलती है तो यह उसके काम में भी दिखायी देता है.’

बयान पर बवाल मचने के बाद तारिक अनवर ने सफाई दी है. उन्होंने कहा, ‘जिसका वंश होगा वही वंशवाद की बात करेगा. बीजेपी में जिसका वंश है वो भी वंशवाद फैला रहे हैं. इसके लिए सिर्फ कांग्रेस पर क्यों आरोप लगाए जाते हैं?’

वैभव गहलोत को सबसे बड़ा खतरा

बिहार: महागठबंधन में खींचतान खत्म, आज पटना में होगा औपचारिक एलान

बिहार में लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटे महागठबंधन में सीटों के बंटवारे में फंसा पेंच निकल गया है. सूत्रों के अनुसार आरजेडी 19, कांग्रेस 9, आरएलएसपी 5, हम 3, वीआईपी 2 और लेफ्ट को दो सीटों पर चुनाव लड़ेगा. गौरतलब है कि कांग्रेस की ओर से 11 सीटें मांगने पर बिहार में महागठबंधन का बंटवारा अटक गया था. कांग्रेस के इस रुख पर तेजस्वी यादव ने नाराजगी जाहिर करते हुए इशारों में निशाना साधा था.

जानकारी के मुताबिक महागठबंधन के घटक दल आज पटना में साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीटों के बंटवारे का एलान कर सकते हैं. सूत्रों के अनुसार यह फॉर्मूला कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के बीच मंगलवार को फोन पर हुई बातचीत के बाद निकला है. दोनों ने यह माना कि अलग-अलग चुनाव लड़ने से भाजपा को सीधा फायदा होगा और विपक्ष का सूपड़ा साफ हो जाएगा.

एक चर्चा यह भी है कि महागठबंधन में सीटों के बटवारे पर गतिरोध को दूर करने के लिए शत्रुघ्न सिन्हा ने अहम भूमिका निभाई. उन्होंने ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को 11 सीटों का हठ छोड़ 9 सीटों पर सहम​ति देने के लिए तैयार किया. कहा जा रहा है कि कांग्रेस की 9 सीटों में पटना साहिब भी शामिल है. सिन्हा यहीं से सांसद हैं. सूत्रों के अनुसार ‘बिहारी बाबू’ पटना साहिब से कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरेंगे. इस सीट से केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद भाजपा के उम्मीदवार हो सकते हैं.

गौरतलब है कि एनडीए के सहयोगी दलों के बीच सीटों का बंटवारा हो चुका है. भाजपा के हिस्से में पटना साहिब, पाटलीपुत्र, साराण, आरा, बक्सर, औरंगाबाद, मधुबनी, बेगुसराय, उजियारपुर, पूर्वी चंपारण, शिवहर, दरभंगा, पश्चिम चंपारण, मुजफ्फरपुर, अररिया, महाराजगंज और सासाराम सीट आई है जबकि जेडीयू के खाते में सुपौल, किशनगंज, कटिहार, गोपालगंज, सीवान, भागलपुर, सीतामढ़ी, जहानाबाद, काराकाट, गया, पूर्णिया, मधेपुरा, बाल्मिकीनगर, मुंगेर, बांका, झांझरपुर और नालंदा सीटें आई हैं.

वहीं, एलजेपी के उम्मीदवार वैशाली, हाजीपुर, समस्तीपुर, खगड़िया, नवादा और जमुई से मैदान में उरतेंगे. काबिलेगौर है कि बिहार में भाजपा और जेडीयू 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं जबकि एलजेपी के हिस्से 6 सीटें आई हैं. 2014 लोकसभा चुनाव में एनडीए बिहार की 31 सीटें जीतने पर कामयाब हुआ था, पर उस वक्त जेडीयू एनडीए का हिस्सा नहीं था. भाजपा ने जेडीयू के साथ सीटों के बंटवारे पर सहमति बनाने के लिए अपनी जीती हुई 5 सीटें छोड़ी हैं.

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