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लोकसभा चुनाव के रण में दावेदारों में से उम्मीदवारों को तराशने का काम तेजी से चल रहा है. जैसे—जैसे टिकट तय होने का समय नजदीक आता जा रहा है वैसे—वैसे नेताओं की धड़कन तेज होती जा रही है. कोई आला नेताओं के यहां हाजिरी लगा रहा है तो कोई भगवान के दर पर मत्था टेक रहा है. इस भागदौड़ के बीच राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने बेटे वैभव का सियासी भविष्य संवारने की जद्दोजहद में जुटे हैं.

सूत्रों की मानें तो गहलोत अपने बेटे को जोधपुर सीट से चुनावी मैदान में उतारने का फैसला कर चुके हैं. जोधपुर गहलोत का गृह जिला है. उन्होंने अपनी सियासत यहीं से शुरू की और प्रदेश की सत्ता के शिखर तक पहुंचे. यह किसी से छिपा नहीं है कि गहलोत जोधपुर की राजनीति की नस—नस से वाकिफ हैं. बावजूद इसके वैभव को यहां से चुनावी रण में उतारना उनके लिए बड़ा जुआ होगा.

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो जोधपुर में वैभव गहलोत की राह में सवर्ण वर्ग के मतदाता रोड़ा बन सकते हैं. यह सीट आठ विधानसभा क्षेत्रों से मिलकर बनी है. यदि दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने इन आठ सीटों में से सिर्फ दो सीटों पर सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को टिकट दिया. पार्टी ने फलोदी सीट से महेश व्यास और शेरगढ़ से मीना कंवर को मैदान में उतारा.

बाकी छह सीटों में से चार पर ओबीसी के प्रत्याशी उतारे. इनमें सरदारपुरा से अशोक गहलोत, जोधपुर शहर से मनीषा पंवार, लूणी से महेंद्र विश्नोई और लोहावट से किसनाराम विश्नोई का नाम शामिल है. बाकी दो सीटों पर कांग्रेस ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे. इनमें सूरसागर से प्रो. अयूब खान और पोकरण से सालेह मोहम्मद का नाम शामिल है.

विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस की ओर से ब्राह्मण बाहुल्य मानी जाने वाली सूरसागर सीट पर मुस्लिम, वैश्य बाहुल्य मानी जाने वाली जोधपुर शहर सीट पर ओबीसी और राजपूतों के प्रभाव वाली मानी जाने वाली पोकरण सीट पर मुस्लिम को टिकट देना चर्चा का विषय बना था. यदि लोकसभा चुनाव में भी इसी तर्ज पर कांग्रेस जातिगत समीकरणों को दरकिनार कर वैभव गहलोत को मैदान में उतारती है तो पार्टी का यह निर्णय सामान्य वर्ग को अखर सकता है.

जोधपुर सीट पर जातिगत समीकरणों की बात की जाए तो 19 लाख मतदाताओं में से करीब साढे चार लाख राजपूत, दो लाख ब्राह्मण और डेढ़ लाख वैश्य हैं. यानी सामान्य वर्ग के मतदाताओं की संख्या लगभग साढे सात लाख है. यदि इन्हें किनारे कर वैभव गहलोत को टिकट दिया जाता है तो इतने बड़े वर्ग को साधना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगी.

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का टिकट वितरण ही पार्टी से सामान्य वर्ग की नाराजगी की इकलौती वजह नहीं है. अशोक गहलोत के सत्ता संभालने के कुछ दिन बाद हुए तबादलों में जेडीए के सामान्य वर्ग के डेढ़ दर्जन से अधिक तकनीकी अधिकारियों को इधर—उधर करना भी इस फेहरिस्त में शामिल है.

इसके अलावा सामान्य वर्ग को आर्थिक आधार पर मिले 10 प्रतिशत आरक्षण का लागू नहीं होना भी एक मुद्दा है. कनिष्ठ लिपिक भर्ती में गुर्जर सहित अन्य जातियों को तो पांच प्रतिशत आरक्षण दिया गया, लेकिन सामान्य वर्ग को आरक्षण नहीं मिला. इस मामले को समता आंदोलन समिति जोर—शोर से उठा रही है. समिति ने जोधपुर में मुख्यमंत्री गहलोत और उनके पुत्र वैभव का विरोध करने का ऐलान किया है.

ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि राजनीति के जादूगर माने जाने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत किस तरह से जोधपुर के जातिगत समीकरणों को साधते हैं. यदि वे इन्हें साधने में कामयाब नहीं हुए तो बेटे वैभव का पहला चुनाव भंवर में फंस सकता है.

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