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नामांकन दाखिल करने के बाद बोलीं सोनिया- मोदी जी 2004 मत भूलिए

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यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने आज अपनी परम्परागत सीट रायबरेली से पांचवीं बार नामांकन दाखिल कर दिया. पर्चा दाखिल करने से पहले सोनिया गांधी ने हवन कर पंडितों का आशीर्वाद लिया. उसके बाद रोड शो कर शक्ति प्रदर्शन किया. इस दौरान उनके साथ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और रॉबर्ट वाड्रा भी मौजूद रहे. नामांकन दाखिल करने के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर लेते हुए कहा, ‘2004 मत भूलिए. वाजपेयी भी अजेय थे लेकिन हम जीते.’

आपको बता दें कि देश में वाजपेयी की पॉपुलर्टी को देखते हुए सभी सियासी पंडितों ने एनडीए सरकार वापसी का दावा किया था लेकिन 2004 में सभी सियासी पंडितों के दावों को खारिज करते हुए कांग्रेस ने वाजपेयी सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया था. सोनिया रायबरेली सीट पर 2004 से प्रतिनिधित्व करती आ रहीं हैं. सोनिया ने साल 2004, 2006 के उपचुनाव, 2009 और 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की. साल 1957 के बाद कांग्रेस ने इस सीट पर उपचुनाव सहित 19 बार जीत दर्ज की है.

इस बार उनका मुकाबला कभी कांग्रेस में रहे दिनेश प्रताप सिंह से है. दिनेश को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है. रायबरेली सीट पर सपा-बसपा गठबंधन ने उम्मीदवार नहीं उतारा है. रायबरेली सीट गांधी परिवार का मजबूत गढ़ रही है और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कर्मभूमि मानी जाती है। इसी सीट से फिरोज गांधी, इंदिरा गांधी, अरुण नेहरू, शीला कौल और सतीश शर्मा चुनाव लड़ चुके हैं. रायबरेली सीट पर 6 मई को मतदान होना है.

बढ़ सकती हैं ‘चौकीदार’ की मुश्किलें, रैली में आचार संहिता का उल्लंघन!

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चुनावी चौसर में उम्मीदवारों के साथ-साथ पार्टी के शीर्ष नेता दम-खम लगाने में कहीं पीछे नहीं रहना चाहते और धुंआधार रैलियां कर वोटरों को लुभाने की कोशिश की जा रही है. इसी बीच पीएम नरेन्द्र मोदी द्वारा महाराष्ट्र में एक चुनावी रैली में अपने संबोधन के बयान को एक निर्वाचन अधिकारी द्वारा आचार संहिता का उल्लघंन माना है. बता दें कि, रैली में पीएम मोदी द्वारा, युवा मतदाता जो पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करने वाले हैं, उनसे कहा गया कि वे अपना वोट पुलवामा आतंकी हमले के शहीदों और बालाकोट एयर स्ट्राइक के वीर जवानों को समर्पित करें. इसके बाद मामले ने तूल पकड़ा.

दरअसल, हाल ही में महाराष्ट्र के लातूर में चुनाव रैली में पीएम मोदी द्वारा अपने संबोधन में कहा गया कि, ‘मैं जरा कहना चाहता हूं मेरे फर्स्ट टाइम वोटरों को. क्या आपका पहला वोट पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक करने वाले वीर जवानों के नाम समर्पित हो सकता है क्या? मैं मेरे फर्स्ट टाइम वोटर से कहना चाहता हूं कि आपका पहला वोट पुलवामा (हमले) के वीर शहीदों को समर्पित हो सकता है क्या?’….जिसे लेकर सियासत गर्माने के बाद निर्वाचन आयोग तक मामला पहुंच गया है.

मामले को लेकर अंग्रेजी समाचार पत्र इंडियन एक्सप्रेस ने एक चुनाव अधिकारी द्वारा इसे आदर्श आचार संहिता का सीधा उल्लघंन बताया है. महाराष्ट्र के मुख्य चुनाव अधिकारी (सीईओ) को सौंपी अपनी रिपोर्ट में जिला निर्वाचन अधिकारी (डीईओ), उस्मानाबाद ने बताया है कि पीएम मोदी द्वारा रैली में अपने संबोधन के बयान आचार संहिता के उस नियम का सीधा उल्लघंन है, जिसके अनुसार सरकार द्वारा सियासी फायदे के लिए सेनाओं के इस्तेमाल पर पाबंदी है.

वहीं, समाचार पत्र ने अपने राजनीतिक सूत्रों के दावे के अनुसार यह भी जानकारी दी है कि रिपोर्ट मिलने के बाद महाराष्ट्र के मुख्य चुनाव अधिकारी ने भी पीएम मोदी के इस बयान को प्राथमिक रूप से आदर्श आचार संहिता का उललंघन माना है. वहीं डीईओ द्वारा दी गई रिपोर्ट को निर्वाचन आयोग को भी भेजे जाने की बात की है जिस पर आगे की कार्रवाई उन्हीं को करना बताया है. अगर निर्वाचन आयोग डीईओ की रिपोर्ट पर अपनी सहमति देता है तो पीएम मोदी की मुश्किलें बढ़ने के साथ उन्हें अपने बयान को लेकर सफाई देने को कहा जा सकता है. निर्वाचन अधिकारियों से मिले संकेतों के मुताबिक इस पूरे मामले को लेकर चुनाव आयोग इसी सप्ताह कोई निर्णय ले सकता है.

बता दें कि गत 19 मार्च को ही निर्वाचन आयोग द्वारा सभी सियासी पार्टियों को हिदायत दी गई थी कि अपने नेताओं व प्रत्याशियों को अवगत करवा दें कि वे चुनाव प्रचार व रैलियों के दौरान सेनाओं की बात करने से बचें. वहीं उससे पहले भी 9 मार्च को भी चुनाव प्रचार में सेना व सैन्य मिशन से संबधित तस्वीरें इस्तेमाल नहीं करने को लेकर निर्वाचन आयोग द्वारा एक एडवाइजरी जारी कर चेताया गया था.

राजस्थान लोकसभा: पहले चरण में 13 सीटों पर 153 नामांकन दाखिल, 27 निरस्त

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राजस्थान में लोकसभा चुनाव के पहले चरण की प्रक्रिया के बाद दूसरे चरण के लिए नामांकन शुरू हो गए हैं. पहले चरण में 13 और दूसरे चरण में प्रदेश की 12 सीटों पर मतदान होगा. पहले चरण के लिए प्रदेशभर में दाखिल नामांकन पत्रों की जांच पूरी हो चुकी है. निर्वाचन विभाग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, कुल 180 आवेदन में से 153 नामांकन जांच में वैध पाए गए. विभिन्न कमियां पाए जाने पर 27 नामांकन पत्र खारिज किए गए हैं. टोंक-सवाईमाधोपुर, उदयपुर एवं बांसवाड़ा सहित तीन निर्वाचन क्षेत्र ऐसे हैं जहां कोई भी रिजेक्शन पाया गया. यहां से कुल 24 नामांकन पत्र दाखिए किए गए थे.

जालौर निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक नामांकन पत्र दाखिल हुए हैं. यहां 28 नामांकन पत्र भरे गए जिनमें से 4 नामांकन निरस्त हुए। सबसे कम नामांकन बांसवाड़ा में हुए. यहां 5 नामांकन पत्र भरे गए और सभी सही पाए गए हैं.

इस तरह भरे गए नामांकन

  • टोंक-सवाईमाधोपुर: 10 नामांकन दाखिल, सभी वैध
  • उदयपुर: 09 नामांकन दाखिल, सभी वैध
  • बांसवाड़ा: 05 नामांकन दाखिल, सभी वैध
  • अजमेर: 11 नामांकन दाखिल, एक निरस्त
  • पाली: 14 नामांकन दाखिल, एक निरस्त
  • जोधपुर: 12 नामांकन दाखिल, दो निरस्त
  • बाड़मेर: 16 नामांकन दाखिल, तीन निरस्त
  • चित्तौड़गढ़: 13 नामांकन दाखिल, दो निरस्त
  • राजसमंद: 12 नामांकन दाखिल, एक निरस्त
  • भीलवाड़ा: 07 नामांकन दाखिल, तीन निरस्त
  • जालौर: 28 नामांकन दाखिल, चार निरस्त
  • कोटा: 24 नामांकन दाखिल, चार निरस्त
  • बारां-झालावाड़: 11 नामांकन दाखिल, छह निरस्त

गौरतलब है कि राज्य में लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण में अजमेर, टोंक-सवाईमाधोपुर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालौर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चितौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारां सहित 13 सीटों पर वोटिंग होनी है. मतदान 29 अप्रैल को होगा. इन 13 सीटों पर 2.57 लाख से अधिक मतदाता अपने मत का इस्तेमाल करेंगे. 28 हजार से अधिक मतदान बूथ बनाए गए हैं. दूसरे चरण के नामांकन 18 अप्रैल तक दा​खिल किए जाएंगे. मतदान 6 मई को होंगे.

मध्य प्रदेश: अपनी विरासत दूसरी पीढ़ी को सौंपने जा रहे हैं कमलनाथ

मध्य प्रदेश की राजनीति एक ऐसे मोड़ पर है जब एक पीढ़ी अपनी विरासत दूसरी पीढ़ी को सौंपने जा रही है. बात कर रहे है मध्य प्रदेश की छिंदवाड़ा लोकसभा सीट की, जहां पिछली नौ बार के सांसद और लोकसभा में वरिष्ठ नेता कमलनाथ अपने बेटे नकुलनाथ को अपनी राजनीतिक विरासत देकर खुद मुख्यमंत्री के तौर पर प्रदेश की सत्ता चलाएंगे. आज तक कमलनाथ ने कभी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा है लेकिन अब पहली बार विधानसभा चुनाव के दंगल में उतर रहे हैं. वहीं नकुलनाथ ने छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से नामांकन दर्ज किया है.

1980 में इंदिरा गांधी के कहने और संजय गांधी के आदेश पर मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य छिंदवाड़ा लोकसभा से चुनाव लड़ने पहुंचे कमलनाथ ने पहले ही चुनाव में अपनी अलग पहचान स्थापित की. छिंदवाड़ा लोकसभा के अंर्तगत आने वाले पातालकोट जिसके बारे में कहा जाता था कि यहां धूप भी बड़ी मुश्किल से पड़ती थी, वहां सांसद रहते कमलनाथ ने विकास की ऐसी गंगा बहाई कि गुजरात मॉडल की तरह पिछले विधानसभा चुनाव में छिंदवाड़ा मॉडल की खूब चर्चा हुई. वैसे पहले संजय गांधी की मौत और उसके बाद इंदिरा गांधी की हत्या ने कमलनाथ के राजनीतिक करिअर के उठान पर असर ज़रूर डाला लेकिन वे कांग्रेस और गांधी परिवार के प्रति प्रतिबद्ध बने रहे.

कमलनाथ के अनुसार, उनकी लोकसभा सीट नागपुर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यालय के बेहद ही करीब है. उन्होंने जितने भी लोकसभा चुनाव लड़े, आरएसएस ने उनके खिलाफ जमकर प्रचार किया. संघ स्वयंसेवक यहां चुनाव आते ही डेरा डाल देते थे और घर-घर जाकर उनके खिलाफ दुष्प्रचार करते थे लेकिन उन्होंने अपने काम से उनके इस दुष्प्रचार का जवाब दिया. अब कमलनाथ के सुपुत्र नकुलनाथ के समक्ष भी यही चुनौतियां आएंगी.

हालांकि कमलनाथ ने सांसद रहते छिंदवाड़ा के विकास के साथ ही यहां के लोगों का जीवन स्तर सुधारने के लिए कई अभूतपूर्व काम किए. आदिवासी और नामालूम इलाक़े से 1980 में पहली बार जीतने वाले कमलनाथ ने छिंदवाड़ा की तस्वीर पूरी तरह से बदल दी है. उन्होनें यहां स्कूल-कालेज सहित आईटी पार्क तक बनवाए हैं. स्थानीय लोगों को रोजगार मिले, इस सोच के साथ उन्होंने केन्द्र में मंत्री रहते वेस्टर्न कोल्ड फील्ड्स और हिन्दुस्तान यूनिलिवर जैसी कंपनियों को छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में स्थापित कराया. उन्होंने यहां कई ट्रेनिंग सेंटर भी खुलवाए ताकि स्थानीय लोग आत्मनिर्भर बन सकें.

नौ बार लोकसभा चुनाव जीत लोकतंत्र के सबसे बडे़ मंदिर पहुंच चुके कमलनाथ इस बार छिंदवाड़ा से लोकसभा से नहीं, बल्कि विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. लगातार 1980, 84, 89, 91, 98, 99, 2004, 2009 और 2014 में उन्होंने यहां से जीत दर्ज की. 1996 में हवाला कांड में नाम आने के बाद पार्टी ने जब उनको टिकट नहीं दिया तो उन्होंने छिंदवाड़ा से अपनी पत्नी अलका नाथ को चुनाव लड़वाया और कमलनाथ के नाम पर उन्होंने भी जीत दर्ज की. हालांकि वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकीं. उनके इस्तीफे के बाद हुए हुए उपचुनाव में कमलनाथ को बीजेपी प्रत्याशी और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सुन्दर लाल पटवा से हार का स्वाद चखना पड़ा था. अगले साल 1998 में फिर हुए चुनावों में इस बार पटवा कमलनाथ के सामने पानी भरते नजर आए.

कमलनाथ की छिंदवाड़ा लोकसभा में लोकप्रियता इस कदर हावी है कि 2013 के विधानसभा चुनाव में लोकसभा की सात विधानसभाओं में से चार पर बीजेपी विधायकों का कब्जा होने के बावजूद 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में कमलनाथ ने जीत दर्ज की. यही वजह है कि छिंदवाड़ा को कमलनाथ का गढ़ कहा जाता है इसीलिए उन्होंने छिंदवाड़ा के शिकारपुर में अपना बंगला बनवाया है, जहां उनका हेलीकॉप्टर सीधे उतरता है. अब उसी कमलनाथ के गढ़ में उनके बेटे नकुल नाथ अपने पिता की विरासत को आगें बढ़ाने मैदान में उतर रहे हैं. 9 अप्रैल, 2019 को जहां कमलनाथ विधायक का चुनाव लड़ने के लिए छिंदवाड़ा विधानसभा से नामांकन दाखिल किया तो वहीें छिंदवाड़ा लोकसभा से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर नकुलनाथ ने भी पर्चा दाखिल किया है.

दरअसल, कमलनाथ को प्रदेश का मुख्यमंत्री बने रहने के लिए विधायक होना जरूरी है. वहीं छिंदवाड़ा लोकसभा सीट को जीत नकुलनाथ अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाना चाहते हैं. छिंदवाड़ा लोकसभा चुनाव में नकुलनाथ के सामने बीजेपी ने नत्थन शाह को चुनाव मैदान में उतारा है जो छिंदवाड़ा लोकसभा की जुन्नारदेव विधानसभा सीट से 2013 में विधायक रहे और आरएसएस के कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से देखे जाते रहे हैं. ऐसे में उनका वास्तविक मुकाबला नागपुर यानि राष्ट्रीय स्वमंसेवक संघ से है. इस तरह कमलनाथ की परंपरागत लोकसभा सीट पर अपने पिता की विरासत को संभालना और उसे आगे बढ़ाना नकुलनाथ के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी, वहीं कमलनाथ के सामने बीजेपी से युवा नेता विवेक साहू बंटी होंगे जो उन्हें विधानसभा चुनाव में चुनौती देंगे.

चुनाव आयोग पर क्यों लग रहे है पक्षपात के आरोप?

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भारत में चुनाव आयोग की स्थापना स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से विभिन्न प्रातिनिधिक संस्थानों में प्रतिनिधि चुनने के लिए गया था. भारतीय चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को हुई थी. चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वह सभी पार्टियों और उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने के लिए समान मैदान उपलब्ध कराये. हालांकि चुनाव आयोग पर समय-समय पर सत्ता पक्ष की पैरवी करने के आरोप लगते रहे है. इस बार भी विभिन्न दलों ने चुनाव आयोग पर सत्ता के दबाव में काम करने का आरोप लगाया है.

चुनावी प्रकिया में देरी
2014 के चुनाव की प्रकिया की घोषणा चुनाव आयोग ने 5 मार्च को की थी लेकिन इस बार चुनाव की घोषणा करने में चुनाव आयोग ने देरी की. इसको लेकर आयोग पर आरोप लगे कि सरकार को प्रचार और सरकारी कार्यक्रमों के लिए आयोग ने चुनाव की घोषणा में देरी की. चुनाव को सात चरणों में कराने के मामले में भी आयोग की आलोचना की गई. इसका कारण यह है कि तमिलनाड़ु जैसे बड़े राज्य में तो चुनाव को सिर्फ एक ही चरण में कराया जायेगा बल्कि पश्चिम बंगाल के चुनाव 7 चरणों में कराये जायेंगे.

सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग
झारखंड़ व पश्चिम बंगाल के मामले में भी आयोग पर पक्षपात के आरोप लग रहे है. पश्चिम बंगाल में भाजपा की शिकायत के बाद कोलकत्ता के पुलिस कमिश्नर को हटाकर उनके स्थान पर राजेश कुमार को लगाया. वहीं झारखंड़ में विपक्षी दलों के विरोध के बावजूद सुधीर त्रिपाठी राज्य के मुख्य सचिव के पद पर कार्यरत रहे. बाद में भारी विरोध होने पर उन्हें पद से हटाया गया. झारखंड़ के डीजीपी डी.के. पांडेय के मामले में भी चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है. डीजीपी कई बार खुले मंचो से भाजपा की तारीफ कर चुके है लेकिन चुनाव आयोग ने उनको हटाने का फैसला स्वतः नही लिया, बल्कि शिकायत के बाद आयोग पांडेय को हटाने पर विचार कर रही है.

सरकारी संस्थाओं का गलत इस्तेमाल
चुनाव की घोषणा से पूर्व तो विपक्ष सरकार पर आरोप लग रहा था कि सरकार ईडी, सीबीआई आदि राष्ट्रीय एजेंसियों का विपक्ष के नेताओं के खिलाफ गलत इस्तेमाल कर रही है. चुनाव के ऐलान के बाद विपक्षी नेताओं व उन से जुड़े लोगों पर हो रही छापेमारी से आयोग पर सरकार के दबाव में काम करने का आरोप लग रहा है. पहले कर्नाटक की जेडीएस- कांग्रेस सरकार के अफसरों, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के ओएसडी और अन्य अफसरों पर और टीडीपी सांसद जयदेव गाला पर हुई छापेमारी के बाद यह आरोप लगे कि सभी छापेमारी की कार्यवाही विपक्ष के नेताओं पर ही क्यों की जा रही है. क्या चुनाव में काले धन का इस्तेमाल सिर्फ विपक्षी पार्टियां ही कर रही है.

आवश्यक योजनाओं पर रोक
ओडिशा में नवीन पटनायक ने आरोप लगाया कि आयोग हमारे साथ भेदभावपूर्ण रवैये से बरताव कर रहा है. ओडिशा मे आयोग ने पटनायक सरकार की तरफ से किसानों के लिए दिसंबर में शुरु की गई कलिय़ा स्कीम पर रोक लगाई है. इस स्कीम में लघु एवं भूमिहीन किसानों के लिए इंश्योरेंस के साथ वित्तीय, आजिविका, कृषि समर्थन देने की योजना है. भाजपा ने इस पर रोक लगाने की मांग की थी, जिसके बाद आयोग ने ये निर्णय लिया. पटनायक ने कहा कि चुनाव आयोग भाजपा के इशारे पर कार्य कर रहा है.

चुनाव प्रचार में सेना और धार्मिक मुद्दों का इस्तेमाल
चुनाव आयोग सेना के चुनाव में इस्तेमाल को लेकर आदेश जारी कर चुका है. इसमें कहा गया है कि सशस्त्र बल देश की सुरक्षा और राजनीतिक प्रणाली के रखवाले है. आधुनिक लोकतंत्र में वे गैर राजनीतिक और निष्पक्ष होते है. राजनीतिक दल और राजनेता अपने प्रचार में सशस्त्र बलों का कोई भी उल्लेख करते वक्त एहतियात बरतें. प्रधानमंत्री मोदी ने बालाकोट में भारतीय सेना की तरफ से की गई एयर स्ट्राइक को लेकर सरकार के लिए वोट मांगे. महाराष्ट्र के लातूर में उन्होंने बालाकोट में एयर स्ट्राइक और पुलवामा में शहीद हुए जवानों के नाम पर वोट करने की अपील की जिसको लेकर विपक्षी दलों ने मोदी की शिकायत चुनाव आयोग से की. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि जब गठबंधन के नेताओं को अली पर विश्वास है और वह अली-अली कर रहे हैं, तो हम भी बजरंगबली के अनुयायी हैं और हमें बजरंगबली पर विश्वास है. यह बयान देते हुए योगी ने धार्मिक आधार पर वोट मांगने का प्रयास किया जो कि आचार संहिता का उल्लंघन है. इससे पहले भी उन्होंने भारतीय सेना को ‘मोदी की सेना’ के नाम से संबोधित किया था. नियमों के अनुसार जाति, धर्म, और क्षेत्र के आधार पर प्रत्याशी चुनाव में वोट नही मांग सकते है. बयान को लेकर विभिन्न दलों ने मोदी और योगी पर कारवाई की मांग की है.

नमो टीवी पर रोक की मांग
विपक्ष ने चुनाव आयोग से शिकायत की नमो टीवी के नाम से एयर फ्री चैनल के माध्यम से भी भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी का महिमा मंड़न कर चुनावी लाभ लिया जा रहा है. आरोप है कि प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत ब्रांडिग करने एवं भाजपा को चुनावी लाभ दिलाने की मंशा से इस चैनल को प्रसारित किया जा रहा है. विपक्षी नेताओं ने यहां तक तर्क दिए कि फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन 1984 में इलाहाबाद संसदीय सीट के चुनाव लड़ने पर उनकी फिल्मों का प्रसारण रोक दिया था. इस मामले में भी वैसी ही कारवाई की जाए. वहीं प्रधानमंत्री के ‘मैं भी चौकीदार’ कार्यक्रम का प्रसारण दुरदर्शन पर होने की शिकायत भी कांग्रस ने चुनाव आयोग से की थी. कांग्रेस ने कहा था कि भाजपा के कार्यक्रम के लिए दुरदर्शन का इस्तेमाल आचार संहिता का उल्लंघन है. हालांकि चुनाव आयोग ने 11 अप्रेल को रिलीज होने वाली प्रधानमंत्री मोदी के जीवन पर आधारित बायोपिक पर रोक लगाई है.

चुनाव आयोग के तेजतर्रार अफसर
भारत में चुनावों को लेकर चुनाव आयोग ने निर्विवाद रुप से बेहतरीन काम करके दिखाया है. भारत में 1952 में हुए चुनावों को लेकर विश्व में यह राय थी कि भारत इस प्रकिया में विफल हो जायेगा. लेकिन भारत के प्रथम चुनाव आयुक्त सूर्यकुमार सैन और तमाम चुनाव आयोग के सदस्यों ने बेहतरीन काम करके दिखाया. सैन ने बगैर किसी के दबाव में आए कार्य किया. नेहरु चाहते थे कि चुनाव 1951 में संपन्न किए जाए लेकिन सैन ने 1952 में चुनाव को निष्पक्ष कराया. भारत के 10वें चुनाव आयुक्त टीएन शेषन का खौफ अफसरों और नेताओं में साफ दिखाई देता था. नेता-अफसर एक—दूसरे से मिलने में डरा करते थे.

लोकसभा चुनाव: 20 राज्यों की 91 सीटों पर वोटिंग शुरू

17वीं लोकसभा के लिए हो रहे चुनाव के पहले चरण में 20 राज्यों की 91 लोकसभा सीटों पर वोटिंग शुरू हो गई है. इन सीटों पर कुल 1279 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं. इनमें मोदी सरकार के 8 मंत्री भी शामिल हैं. गाजियाबाद से वीके सिंह, गौतमबुद्ध नगर से महेश शर्मा, बागपत से सत्यपाल सिंह, नागपुर से नितिन गडकरी, चंद्रपुर से हंसराज अहीर, बैंगलुरु उत्तर से सदानंद गौड़ा, अल्मोड़ा से अजय टमटा और अरुणाचल पश्चिम से किरण रिजिजू चुनाव लड़ रहे हैं.

आपको बता दें कि पहले चरण में लोकसभा की 91 सीटों के साथ-साथ आंध्र प्रदेश, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और ओडिशा में विधानसभा चुनाव के लिए भी वोट डाले जा रहे हैं. आंध्र प्रदेश की सभी 175 विधानसभा सीटों, सिक्किम की सभी विधानसभा सीटों 32, अरुणाचल प्रदेश की सभी 60 सीटों और ओडिशा की 28 विधानसभा सीटों पर आज चुनाव हो रहे हैं.

इन राज्यों में हो रही है वोटिंग:

अंडमान निकोबार: यहं सिर्फ एक सीट पर चुनाव हो रहा है. इस सीट पर 15 उम्मीदवार मैदान में है. पिछली बार ये सीट बीजेपी ने जीती थी और यहां 70.67 फीसदी वोटिंग हुई थी.

आंध्र प्रदेश: यहां सभी 25 सीटों पर चुनाव हो रहा है. इन 25 सीटों पर 319 उम्मीदवार मैदान में हैं. पिछली बार टीडीपी ने 15 सीट, वाईएसआर कांग्रेस ने 8 सीट और बीजेपी ने 2 सीट जीती थी और यहां 78.97 फीसदी वोटिंग हुई थी.

अरुणाचल प्रदेश: यहां 2 सीटों पर चुनाव हो रहा है. इन पर 12 उम्मीदवार मैदान में हैं. पिछली बार यहां एक सीट कांग्रेस ने और एक सीट बीजेपी ने जीती थी और यहां 79.88 फीसदी वोटिंग हुई थी.

असम: यहां 5 सीटों पर चुनाव हो रहा है. इन 5 सीटों पर 41 उम्मीदवार मैदान में हैं. पिछली बार यहां एक सीट कांग्रेस ने और 4 सीट बीजेपी ने जीती थी और यहां 78.66 फीसदी वोटिंग हुई थी.

बिहार: यहां 4 सीटों पर चुनाव हो रहा है. इन 4 सीटों पर 44 उम्मीदवार मैदान में हैं. पिछली बार यहां की चारों सीटें एनडीए (बीजेपी 4 और एलजेपी 1) ने जीती थी और यहां 51.82 फीसदी वोटिंग हुई थी.

छत्तीसगढ़: यहां 1 सीट पर चुनाव हो रहा है. इस 1 सीट पर 7 उम्मीदवार मैदान में हैं. पिछली बार यहां बीजेपी जीती थी और इस सीट पर 59.32 फीसदी वोटिंग हुई थी.

जम्मू-कश्मीर: यहां 2 सीटों पर चुनाव हो रहा है. इन 2 सीटों पर 33 उम्मीदवार मैदान में हैं. पिछली बार यहां की एक सीट बीजेपी और एक पीडीपी ने जीती थी और यहां 53.56 फीसदी वोटिंग हुई थी.

लक्षद्वीप: यहां एक सीट पर चुनाव हो रहा है. इस पर 6 उम्मीदवार मैदान में है. पिछली बार ये सीट एनसीपी ने जीती थी और यहां 86.62 फीसदी वोटिंग हुई थी.

महाराष्ट्र: यहां 7 सीटों पर चुनाव हो रहा है. इन 7 सीटों पर 116 उम्मीदवार मैदान में हैं. पिछली बार यहां की सातों सीटें एनडीए (बीजेपी 5 और शिवसेना 2) ने जीती थी और यहां 64.15 फीसदी वोटिंग हुई थी.

मणिपुर: यहां एक सीट पर चुनाव हो रहा है. इस पर 8 उम्मीदवार मैदान में है. पिछली बार ये सीट कांग्रेस ने जीती थी और यहां 84.12 फीसदी वोटिंग हुई थी.

मेघालय: यहां 2 सीटों पर चुनाव हो रहा है. इन 2 सीटों पर 9 उम्मीदवार मैदान में हैं. पिछली बार यहां की एक सीट कांग्रेस और एक एनपीईपी ने जीती थी और यहां 70.67 फीसदी वोटिंग हुई थी.

मिजोरम: यहां एक सीट पर चुनाव हो रहा है. इस पर 6 उम्मीदवार मैदान में है. पिछली बार ये सीट कांग्रेस ने जीती थी और यहां 61.95 फीसदी वोटिंग हुई थी.

नागालैंड: यहां एक सीट पर चुनाव हो रहा है. इस पर 4 उम्मीदवार मैदान में है. पिछली बार ये सीट कांग्रेस ने जीती थी और यहां 87.91 फीसदी वोटिंग हुई थी.

ओडिशा: यहां 4 सीटों पर चुनाव हो रहा है. इन 4 सीटों पर 26 उम्मीदवार मैदान में हैं. पिछली बार यहां की चारों सीटें बीजेडी ने जीती थी और यहां 64.67 फीसदी वोटिंग हुई थी.

सिक्किम: यहां एक सीट पर चुनाव हो रहा है. इस पर 11 उम्मीदवार मैदान में है. पिछली बार ये सीट एसडीएफ ने जीती थी और यहां 83.64 फीसदी वोटिंग हुई थी.

तेलंगाना: यहां 17 सीटों पर चुनाव हो रहा है. इन 17 सीटों पर 443 उम्मीदवार मैदान में हैं. पिछली बार यहां की 11 सीटें टीआरएस, दो सीटें कांग्रेस, एक सीट बीजेपी, एक सीट वाईएसआर कांग्रेस, एक सीट टीडीपी और एक सीटी एआईएमआईएम ने जीती थी. यहां 71.17 फीसदी वोटिंग हुई थी.

त्रिपुरा: यहां एक सीट पर चुनाव हो रहा है. इस पर 13 उम्मीदवार मैदान में है. पिछली बार ये सीट सीपीएम ने जीती थी और यहां 86.17 फीसदी वोटिंग हुई थी.

उत्तर प्रदेश: यहां 8 सीटों पर चुनाव हो रहा है. इन 8 सीटों पर 96 उम्मीदवार मैदान में हैं. पिछली बार यहां की 8 सीटें बीजेपी ने जीती थी और यहां 66.52 फीसदी वोटिंग हुई थी.

उत्तराखंड: यहां 5 सीटों पर चुनाव हो रहा है. इन 5 सीटों पर 52 उम्मीदवार मैदान में हैं. पिछली बार यहां की 5 सीटें बीजेपी ने जीती थी और यहां 60.72 फीसदी वोटिंग हुई थी.

पश्चिम बंगाल: यहां 2 सीटों पर चुनाव हो रहा है. इन 2 सीटों पर 18 उम्मीदवार मैदान में हैं. पिछली बार ये दोनों सीट टीएमसी ने जीती थी और यहां 82.96 फीसदी वोटिंग हुई थी.

आपको बता दें कि चुनाव आयोग ने लोकसभा की 543 सीटों पर सात चरणों में चुनाव कराने का फैसला किया है. 11 अप्रैल, 18 अप्रैल, 23 अप्रैल, 29 अप्रैल, 6 मई, 12 मई और 19 मई को वोट डाले जाएंगे. वोटों की गिनती 23 मई को होगी. चुनाव आयोग की ओर से जारी कार्यक्रम के अनुसार पहले चरण में 91, दूसरे चरण में 97, तीसरे चरण में 115, चौथे चरण में 71, पांचवें चरण में 51, छठे चरण में 59 और सातवें चरण में 59 सीटों पर वोट डाले जाएंगे.

हनुमान बेनीवाल से छिनी बोतल, अब टायर पर होना पड़ेगा सवार

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हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) का चुनाव चिन्ह ‘बोतल’ चुनाव आयोग ने छीन लिया है. चुनाव आयोग ने ‘टायर’ चुनाव चिन्ह आवंटित किया है. हनुमान बेनीवाल को नागौर से इसी चुनाव चिन्ह से लोकसभा का चुनाव लड़ना होगा. जानकारी के अनुसार चुनाव आयोग ने बोतल का चुनाव चिन्ह गुजरात की एक पार्टी को आवंटित कर दिया है. पार्टी का नाम राष्ट्रीय पावर बताया जा रहा है.

जानकारी के अनुसार 15 दिन पहले हनुमान बेनीवाल को चुनाव आयोग ने चुनाव चिन्ह में बदलाव की सूचना भेजी थी. आयोग ने इसमें कहा था कि आरएलपी तीन राज्यों से चुनाव नहीं लड़ रही है इसलिए वह स्थानीय स्तर की पार्टी है जबकि गुजरात की राष्ट्रीय पावर पार्टी कई राज्यों में चुनाव लड़ रही है. पार्टी ने चुनाव आयोग से बोतल का चुनाव चिन्ह मांगा था, जो उसे मिल गया.

हालांकि हनुमान बेनीवाल ने चुनाव आयोग के इस फैसले को चुनौती दी है, लेकिन जानकारों के मुताबिक इसमें बदलाव होने की गुंजाइश न के बराबर है. सूत्रों के अनुसार जब से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को चुनाव आयोग का पत्र मिला है, तब से पार्टी के तमाम पदाधिकारियों में बेचैनी और मायूसी छाई हुई है. आपको बता दें कि हनुमान बेनीवाल और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के पदाधिकारियों ने बड़ी मशक्कत से राजस्थान में ‘बोतल’ चुनाव चिन्ह को प्रसिद्ध किया था. इस स्थिति में बेनीवाल की पार्टी से बोतल का चुनाव चिन्ह छिनता है तो यह पार्टी के लिए बड़ा झटका होगा.

गौरतलब है कि 5 दिन पहले ही हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन किया है. बेनीवाल खुद नागौर लोकसभा क्षेत्र से एनडीए के उम्मीदवार हैं. इससे पहले बोतल के चुनाव चिन्ह पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के संयोजक हनुमान बेनीवाल ने राजस्थान में पिछले साल दिसंबर में हुए विधानसभा चुनावों में 57 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. इनमें बेनीवाल सहित तीन प्रत्याशी जीतने में सफल रहे.

जोधपुर सीट से जीत के लिए यह खास काम कर रहे हैं वैभव गहलोत

कहते हैं कि किसी भी सफल पुरुष के पीछे किसी ने किसी महिला का हाथ जरूर होता है यह कहावत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर बिल्कुल सटीक बैठती है। यूं तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को राजनीति का जादूगर कहा जाता है लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को आज इस मुकाम तक पहुंचाने में प्रदेश की जनता का जितना हाथ है, उतना ही हाथ उनकी बड़ी बहन विमला का है।

बचपन से ही अशोक गहलोत अपनी बहन विमला के सानिध्य में पढ़ाई-लिखाई कर बड़े हुए और उन्हीं के यहां रहकर उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की। यही कारण है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कोई भी शुभ काम शुरू करने से पहले अपनी बड़ी बहन विमला का आशीर्वाद लेना नहीं भूलते। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ अब उनके पुत्र वैभव गहलोत भी इसी परंपरा को आगे बढ़ाने में लगे हैं। शायद वैभव गहलोत को इस बात का एहसास हुआ है कि उनके पिता मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सफलता के पीछे उनकी बड़ी बहन विमला का आशीर्वाद ही है।

यही वजह रही कि जब वैभव गहलोत अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरूआत करने जा रहे थे तो सबसे पहले उन्होंने अपनी बुआ विमला का आशीर्वाद लेना उचित समझा। नामांकन दाखिल करने से पहले वैभव गहलोत सीधे अपनी बुआ विमला के घर पहुंचे और अपनी बुआ का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया. विमला देवी ने भी हमेशा की तरह अपने लाडले भतीजे को आशीर्वाद और स्नेह के साथ दुलारा. उसके बाद उन्होंने वैभव के हाथ पर रक्षा सूत्र बांधकर नेकी भी दी। यहां से आशीर्वाद लेने के बाद वैभव गहलोत सीधे ही नामांकन भरने पहुंचे।

आमतौर पर कोई भी प्रत्याशी नामांकन दाखिल करता है तो वह पहले भगवान के चरणों में सिर झुका कर और पूजा अर्चना कर अपना नामांकन दाखिल करता है लेकिन वैभव ने अपनी बुआ का आशीर्वाद लेकर राजनीतिक सफर की शुरुआत की है। जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तीसरी बार मुख्यमंत्री बने तो उस दौरान विमला ने मीडिया से बातचीत में कहा था कि हर चुनाव में अशोक गहलोत मतदान के बाद सीधे उनके पास आते हैं और यहां से आशीर्वाद लेने के बाद ही जयपुर लौटते हैं।

2013 के चुनाव में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व्यस्तता के चलते मतदान करने के बाद अपनी बहन विमला से बिना मिले जयपुर निकल गए और चुनावी परिणाम से तो सभी वाकिफ हैं। इस चुनाव में कांग्रेस 50 सीटें भी नहीं निकाल पाई थी. इस बार जब 2018 में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मतदान किया, उसके तुरंत बाद अपनी बहन के घर पहुंचे और उनसे आशीर्वाद लेकर जयपुर की ओर निकले। जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री पद पर बनने की घोषणा हुई तो विमला देवी ने कहा था कि पिछले चुनाव में व्यवस्थाओं के चलते अशोक गहलोत उनके पास नहीं आ सके थे जिसके चलते शायद वे मुख्यमंत्री नहीं बन पाए लेकिन इस बार वह उनके यहां आकर उनका आशीर्वाद लिया तो आज एक बार फिर वह मुख्यमंत्री बन रहे हैं।

अपने पिता अशोक गहलोत से प्रेरणा लेकर वैभव गहलोत ने भी आज इस परंपरा को जारी रखा है। अब देखना होगा कि हमेशा अपने भाई अशोक गहलोत के कलाई में रक्षा सूत्र बांधकर उन्हें विपरीत परिस्थितियों में सफलता दिलाने वाली उनके बड़ी बहन विमला अपने भतीजे के लिए कितना लकी साबित होती है।

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