लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में 66 फीसदी मतदान, जम्मू-कश्मीर में सबसे कम
लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में 11 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में 95 संसदीय सीटों के हुए गुरूवार को केवल 66 फीसदी मतदाताओं ने अपने वोट का इस्तेमाल किया. हिंसा की छुटपुट घटनाओं को छोड़कर मतदान शांतिपूर्वक हुआ. सर्वाधिक मतदान पं.बंगाल में हुआ है. यहां 76.43 फीसदी मतदान हुआ है. सबसे कम जम्मू-कश्मीर में हुआ. यहां केवल 45.28 फीसदी वोटिंग हुई है. मणिपुर में 76.15 फीसदी और असम में 76.14 फीसदी मतदान हुआ है.
इनके अलावा, पुडुचेरी में 75.15, छत्तीसगढ़ में 66.50, तमिलनाडू में 72 फीसदी, ओडिशा में 64, बिहार में 65.52, उत्तर प्रदेश में 62.3 और महाराष्ट्र में 62 फीसदी मतदाताओं ने वोट डाले. कर्नाटक में 61.80 फीसदी और जम्मू-कश्मीर में केवल 43.37 फीसदी मतदान हुआ. पं.बंगाल में पहले चरण में भी 81 फीसदी मतदान हुआ था.
मतदान सुबह सात बजे शुरू हुआ था जो शाम 6 बजे तक चला. सुरक्षा की दृष्टी से कुछ क्षेत्रों में दोपहर तीन बजे तक और कुछ में शाम चार बजे तक ही वोट डालने का समय निश्चित किया गया था. कुछ पर शाम बजे तक भी वोटिंग हुई. तमिलनाडू के मदुरै निर्वाचन क्षेत्र में रात के 8 बजे तक वोट डाले गए. आपको बता दें कि लोकसभा के दूसरे चरण में 13 राज्यों की 97 सीटों पर मतदान होना था लेकिन तमिलनाडू के वेल्लूी में आयकर छापे में 11 करोड़ रुपये से अधिक नकदी बरामद होने मतदान रद्द हो गया. वहीं सुरक्षा दृष्टि से पूर्वी त्रिपुरा सीट पर चुनाव स्थगित कर दिया गया था. तीसरे चरण का मतदान 23 अप्रैल को होगा.
मुलायम सिंह ने खेला आखिरी चुनाव का कार्ड, कहा- भारी बहुमत से जिताना
कहते हैं राजनीति में कोई किसी का परमानेंट दुश्मन या दोस्त नहीं होता है. यह बात आज उस समय बिल्कुल सटीक बैठी जब पिछले ढ़ाई दशक से धुर-विरोधी सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव व बसपा सुप्रीमो मायावती एक मंच पर साथ दिखे. यह घटना भारतीय सियासत की ऐतिहासिक तस्वीर बन गई जिसका गवाह बना उत्तरप्रदेश का मैनपुरी. यहां चुनावी महारैली के मंच पर सपा नेता पिता-पुत्र मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के बीच में बसपा सुप्रीमो मायावती बैठी थीं. दोनों दिग्गज नेता एक-दूसरे की ओर देख मुस्कुराए और एक-दूसरे के संबोधन पर तालियां भी बजाई. सपा और बसपा के बीच 1995 के बाद ऐसी तकरार हो गई थी कि उसे खत्म होने में 24 साल का लंबा वक्त लग गया.
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यूपी के मैनपुरी में सपा-बसपा-रालोद की संयुक्त चुनावी रैली में पिछले 24 साल तक प्रतिदंद्वी रहे मायावती और मुलायम की दोस्ती की तस्वीर देखने को मिली. साल 1995 में के बाद से ही दोनों एक-दूसरे के धुर-विरोधी रहे हैं. मैनपुरी की रैली में बसपा सुप्रीमो मायावती यहां से लोकसभा प्रत्याशी मुलायम सिंह यादव के लिए चुनाव प्रचार करने पहुंची थी. दोनों नेता एक साथ दिखे तो उनके चेहरे पर केवल मुस्कुराहट थी जहां पुरानी दुश्मनी की कोई जगह नहीं दिखी. नेताजी ने अपने कार्यकर्ताओं से मायावती को मिलवाने के साथ उनसे पैर छूने का भी कहा. इसके साथ ही मुलायम ने कहा, “हम मायावती जी का स्वागत करते हैं, मैंने हमेशा से मायावती का सम्मान किया है.”
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इस अवसर पर रैली को संबोधित करते हुए सपा संयोजक मुलायम सिंह ने कहा कि, ये उनका आखिरी चुनाव है इसलिए उन्हें ज्यादा से ज्यादा वोट देकर जिताएं. अपने छोटे से संबोधन में मुलायम सिंह ने मायावती का नाम 6 बार लिया और एक बार बहुजन समाज पार्टी का जिक्र किया. मुलायम ने कहा कि मैं इस बार आपके कहने पर आखिरी बार चुनाव लड़ रहा हूं. इस बार मैनपुरी हमारा हो गया है. सब लोग हमारे हो गए हैं. इस बार हमें भारी बहुमत से जीता देना. उन्होंने कहा कि जब भी जरूरत पड़ी है, तब-तब मायावती ने हमारा साथ दिया है और हमने भी उनका साथ दिया है, इसलिए मायावती का सम्मान जरूर करना.
वहीं, बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने भाषण में मुलायम सिंह यादव की जमकर तारीफ की और कहा कि मुलायम सिंह ही पिछड़ों के असली नेता हैं. मायावती ने नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए कहा कि वह खुद को ओबीसी बताते हैं लेकिन वो फर्जी ओबीसी हैं. गौरतलब है कि 2 जून 1995 को हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद ये पहला मौका है जब मायावती और मुलायम सिंह यादव एक साथ एक मंच पर आए और 26 साल के बाद दोनों नेताओं एक साथ चुनावी सभा को संबोधित किया. उससे पहले साल 1993 में मुलायम सिंह यादव और कांसीराम एक साथ नजर आए थे.
ममता बनर्जी की बायोपिक ‘बाघिनी’ पर लग सकती है रोक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर आधारित फिल्म ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ के बाद अब पं.बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बायोग्राफी पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं. इस फिल्म का नाम ‘बाघिनी’ है जो 3 मई को भारतीय सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है. कथित तौर पर इस फिल्म को ममता बनर्जी की जीवनी से प्रेरित बताया जा रहा है. बीजेपी ने निर्वाचन आयोग से अनुरोध किया है कि बंगाल में चुनाव प्रक्रिया समाप्त होने तक फिल्म की रिलीज पर रोक लगाई जाए. इस बारे में निर्वाचन आयोग ने राज्य के निर्वाचन अधिकारी से रिपोर्ट मांगी है.
पीटीआई की एक खबर के मुताबिक, बीजेपी ने आयोग से अनुरोध किया था कि चुनाव प्रक्रिया समाप्त होने तक फिल्म ‘बाघिनी’ की रिलीज पर रोक लगाई जाए. पार्टी ने निर्वाचन आयोग से तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो की कथित बायोपिक की समीक्षा की मांग भी रखी है. बीजेपी के अलावा सीपीआई पार्टी ने भी फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने की मांग की है.
उधर, फिल्म के निर्माताओं का कहना है कि इस फिल्म का उद्देश्य केवल सामाजिक संदेश देना है. ममता बनर्जी सिर्फ बंगाल की नहीं, बल्कि पूरे देश की बड़ी नेता हैं. वहीं ममता की पार्टी टीएमसी ने खुद को फिल्म से अलग कर करते हुए कहा है कि उनका इस ‘बायोपिक’ से कोई लेना-देना नहीं है.
इससे पहले विवेक ओबेरॉय स्टारर फिल्म ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ के साथ भी कुछ इसी तरह की घटना हुई थी. पहले यह फिल्म 12 अप्रैल को रिलीज होने वाली थी लेकिन बाद में फिल्म निर्माता संदीप सिंह ने इसे 5 अप्रैल को रिलीज करने का निर्णय लिया. इस फिल्म में मोदी के जीवन के अलग-अलग किरदारों को दिखाया जाना है. इस फिल्म में विवेक ओबेरॉय नौ अलग-अलग अवतारों में नजर आएंगे. लेकिन कुछ पार्टियों के विरोध के चलते चुनाव आयोग ने इस फिल्म की रिलीज पर चुनाव परिणाम तक रोक लगा दी. सोशल मीडिया से इस फिल्म के ट्रेलर को भी हटा दिया गया है. इस फिल्म के साथ पीएम मोदी वेब सीरीज़ और नमो टीवी पर भी बैन लग गया है.
24 साल बाद चुनावी मंच पर एक साथ दिखे माया-मुलायम
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में आज सपा-बसपा-रालोद महागठबंधन की चौथी संयुक्त सभा है. इस सभा की खासियत यह है कि यहां मुलायम सिंह यादव और बसपा चीफ मायवती 24 साल बाद मंच सांझा करते हुए नजर आएंगे. मुलायम सिंह यादव खुद मैनपुरी संसदीय सीट से प्रत्याशी हैं. कभी मुलायम सिंह के खिलाफ वोट करने की अपील करने वाली मायावती आज फिर मुलायम सिंह के लिए वोट मांगती नजर आएगी. मुलायम सिंह ने 2014 में आजमगढ़ और मैनपुरी सीट से चुनाव लड़ा था और दोनों जगह उन्हें विजयश्री मिली. बाद में उन्होंने मैनपुरी सीट छोड़ दी जहां से तेजप्रताप यादव सांसद चुने गए.
गेस्ट हाउस कांड के बाद जुदा हो गई थी राह
मुलायम सिंह ने 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन किया था. 1993 के विधानसभा चुनाव में सपा-बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा जिसमें उन्हें जीत हासिल हुई. मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने लेकिन बसपा संस्थापक काशीराम के साथ हुए उनके विवादों के कारण बसपा ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इससे मुलायम सिंह काफी नाराज थे. इसके बाद जब मायावती अपने कार्यकर्ताओं और विधायकों के साथ स्टेट गेस्ट हाउस में आगामी रणनीति पर विचार कर रही थी, तभी समाजवादी पार्टी समर्थकों ने वहां हमला बोल दिया. मायावती ने किसी तरह छुपकर अपनी जान बचाई. इस कांड ने दोनों पार्टियों के बीच एक गहरी खाई पैदा कर दी. आगामी चुनावी में बीजेपी के सर्मथन से मायावती ने सरकार बनाई और प्रदेश का पहली दलित मुख्यमंत्री बनी.
अखिलेश-मायावती में बना बुआ-भतीजे का रिश्ता
उत्तर प्रदेश में विधानसभा और बाद में लोकसभा चुनाव में करारी हार का सामना करने के बाद सपा और बसपा दोनों को ही यह आभास हो गया था कि बीजेपी को अकेले हराया नहीं जा सकता. उसके बाद सपा चीफ अखिलेश यादव और बीएसपी प्रमुख मायावती ने मिलकर गोरखपुर व फुलपुर लोकसभा उपचुनाव में गठबंधन की नींव रखी और परिणाम सकारात्मक मिला. योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री और केशव प्रसाद मोर्य के उपमुख्यमंत्री बनने के बाद खाली हुई इन दोनों सीटों पर बसपा ने अपने प्रत्याशी नहीं उतारे बल्कि सपा उम्मीदवारों को समर्थन दिया. नतीजा-दोनों सीटें सपा के खाते में आ गिरी. वर्तमान लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन में चुनाव लड रहे है. जिनमें बसपा 38 सपा 37 और रालोद 3 सीट पर चुनाव लड़ रही है. अमेठी और रायबरेली सीट पर गठबंधन ने उम्मीदवार खड़ा नहीं किया है. यहां से राहुल गांधी और सोनिया गांधी मैदान में हैं.
26/11 के शहीद हेमंत करकरे को लेकर साध्वी प्रज्ञा ने दिया ये विवादित बयान
26/11 मुंबई हमले में शहीद एटीसी चीफ हेमंत करकरे को लेकर साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने एक विवादित बयान दिया है. बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ एक बैठक के दौरान उन्होंने मीडिया को बताया, ‘मैंने हेमंत करकरे को कहा था कि तेरा सर्वनाश होगा और उसे आतंकियों ने मार डाला. उन्हें उनके कर्मों की सजा मिली है. उन्होंने मुझे गलत तरीके से फंसाया था. हेमंत करकरे मुझे किसी भी तरह से आतंकवादी घोषित करना चाहते थे.’ उन्होंने यह भी कहा कि उसने मुझे गालियां दी. मुझे रोकने के लिए षड्यंत्र किया और 9 साल जेल में बंद रखा. इस कारण मैं 20 साल पीछे चली गई. बता दें, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को बीजेपी ने मध्यप्रदेश की भोपाल लोकसभा सीट से टिकट दिया है. उनके सामने कांग्रेस के दिग्विजय सिंह मैदान में हैं.
साध्वी प्रज्ञा ने आगे कहा, ‘वह मुझसे हर तरह के सवाल करता था, ये कैसे हुआ, वह कैसे हुआ. मैंने कहा, मुझे नहीं पता, भगवान जाने. तो उसने कहा क्या मुझे यह जानने के लिए भगवान के पास जाना होगा. मैंने कहा, जरूर अगर आपको आवश्यकता है तो आप जरूर जाइए. ठीक सवा महीने में जिस दिन आतंकवादियों ने उसको मारा, उस दिन उसका अंत हुआ. आपको विश्वास करने में थोड़ी तकलीफ होगी, देर लगेगी, लेकिन मैंने उससे कहा था कि उसका सर्वनाश होगा. उसने मुझे कई यातनाएं दीं, कई गंदी गालियां दीं. वह मेरे लिए ही नहीं, किसी के लिए भी असहनीय होंगी. ठीक सवा महीने में सूतक लगता है. जिस दिन मैं गई थी, उस दिन इसके सूतक लग गए थे.’
गौरतलब है कि हेमंत करकरे एक आईपीएस अधिकारी थे और मुंबई में हुए आतंकी हमले में आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हुए थे. वह 2008 में हुए मालेगांव सीरियल बम धमाकों की जांच कर रहे थे. इस घटना में छह लोगों की मौत हो गई थी. इसी मामले में साध्वी प्रभा को लंबे समय तक जेल में रहना पड़ा था. बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया था. 26 नवंबर, 2009 में करकरे को भारत सरकार ने मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया था.
आपको बता दें कि राजनीतिक कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला ने चुनाव आयोग से साध्वी प्रज्ञा को चुनाव लड़ने से रोकने का अनुरोध किया है. आयोग को लिखे एक पत्र में उन्होंने शिकायत की है कि महाराष्ट्र के आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) ने पाया कि साल 2008 में हुए मालेगांव बम धमाके में ठाकुर मुख्य षड्यंत्रकर्ता है. इस घटना में छह लोगों की मौत हो गई थी. चूंकि प्रभा ठाकुर पर आतंकवाद संबंधी आरोप हैं, ऐसे में उन्हें भोपाल संसदीय सीट से चुनाव लड़ने से रोका जाए.
कांग्रेस से नहीं मिला ‘न्याय’ तो शिवसेना में शामिल हुई प्रियंका चतुर्वेदी
अपने साथ पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा हुए दुर्व्यवहार के बाद कोई कार्रवाई नहीं होने से नाराज कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने कांग्रेस छोड़ शिवसेना पार्टी का दामन थाम लिया. शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे ने उन्हें पार्टी की सदस्यता ग्रहण कराई. इस मौके पर प्रियंका ने कहा कि मैंने पार्टी की निस्वार्थ सेना की है लेकिन मैं अपने साथ हुए व्यवहार से दुखी हूं. साथ ही मैं खुद को मुंबई से कटा हुआ महसूस कर रही थी. शिवसेना में मुझे सम्मान मिला है. शिवसेना से टिकट मिलने की बात पर उन्होंने कहा कि मैंने किसी भी टिकट की कोई मांग नहीं की है. शिवसेना में शामिल होने के तुरंत बाद उन्होंने अपने ट्वीटर हैंडल से ‘कांग्रेस प्रवक्ता’ पद को हटा दिया है.
कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी कुछ समय से पार्टी से नाराज चल रही थीं. इसी के चलते उन्होंने कांग्रेस प्रवक्ता के साथ पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है और अपना इस्तीफा पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को भेज दिया है. दरअसल यूपी के मथुरा में राफेल डील को लेकर एक प्रेस प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उनसे अभद्र व अमर्यादित व्यवहार किया था. हालांकि प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने संज्ञान में लेकर कार्यकर्ताओं के विरूद्ध त्वरित कार्यवाही की लेकिन कार्यकर्ताओं के खेद प्रकट करने के तुरंत बाद उनपर हुई कार्रवाई को निरस्त कर दिया गया. इसके बाद प्रियंका चतुर्वेदी ने अपने आॅफिशियल ट्वीटर हैंडल से इस घटना पर अफसोस प्रकट करते हुए पार्टी में गुंड्डे भर्ती किये जाने का बयान दिया था.
बुधवार को ट्वीट करते हुए उन्होंने कहा कि पार्टी में उन गुंडों को तवज्जो दी जा रही है, जो महिलाओं के साथ बदसलूकी करते हैं. कांग्रेस में मुझे धमकानेवालों को यूं ही छोड़ दिया गया, जिससे उन्हें काफी तकलीफ पहुंची है. इनका बिना किसी कड़ी कार्रवाई के बच जाना काफी दुर्भाग्यपूर्ण हैं. अब पार्टी के कार्यकर्ताओं से उन्हें धमकी मिल रही है. ट्वीट के साथ एक लेटर भी जुड़ा हुआ है जिसमें पूर्व विधायक फज़ले मसूद द्वारा पार्टी के कुछ लोगों को माफीनामा दिए जाने की बात कही गई है.
Deeply saddened that lumpen goons get prefence in @incindia over those who have given their sweat&blood. Having faced brickbats&abuse across board for the party but yet those who threatened me within the party getting away with not even a rap on their knuckles is unfortunate. https://t.co/CrVo1NAvz2
— Priyanka Chaturvedi (@priyankac19) April 17, 2019
कल जूता कांड, आज हार्दिक पटेल को पड़ा थप्पड़
लगता है कि हार्दिक पटेल के सितारे इन दिनों गर्दिश में चल रहे हैं. पहलेे तो न्यायालय में चल रहे एक केस में दो साल की सजा के चलते उनके चुनाव लड़ने पर रोक लग गई. आज सुबह एक चुनावी रैली के दौरान एक शख्स ने उनका गाल लाल कर दिया. फिलहाल हमलावर की पहचान नहीं हो पाई है. मामला गुजरात के सुरेंद्र नगर का है.
हुआ कुछ यूं कि हार्दिक कांग्रेस के समर्थन में सुरेंद्र नगर में एक चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे. इसी दौरान सभा से उठकर एक अनजान शख्स मंच पर आया और भाषण देते हुए हार्दिक पटेल के गाल पर थप्पड़ जड़ दिया. अचानक हुए इस हमले से एकबार तो हार्दिक के साथ मंच पर बैठे महानुभाव और कार्यकर्ता भी सकते में आ गए. बाद में समर्थकों ने उस व्यक्ति को पकड़ कर पिटाई कर दी. पुलिस ने बीच-बचाव कर उसे भीड़ के चंगुल से छुड़ाया.
थप्पड़ कांड के बाद पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने इसका पूरा दोष बीजेपी पर मढ़ दिया. हार्दिक ने कहा कि बीजेपी मुझे मार देना चाहती है इसलिए मुझ पर हमला करा रही है. हम चुप नहीं बैठेंगे.
बता दें कि इससे पहले गुरूवार को दिल्ली में बीजेपी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडिया को संबोधित कर रहे पार्टी प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव पर एक शख्स ने जूता दे मारा. जूता उनके गाल से लगते हुए दाये कंधे पर लगा. जूता फेंकने वाले व्यक्ति को बीजेपी कार्यकर्ताओं ने तुरंत दबोच लिया और पुलिस को सौंप दिया. जूता फेंकने वाले शख्स का नाम डॉ.शक्ति भार्गव है. वह उत्तर प्रदेश के कानपुर का निवासी है.
यूपी सरकार के कई मंत्री-विधायकों का सियासी कद तय करेगा लोकसभा चुनाव
लोकसभा चुनाव के चुनावी दंगल में सियासी और जातीय समीकरणों को साधने के लिए यूपी के मंत्री-विधायक चुनावी मैदान में तो कूद पड़े हैं पर उनके लिए यह चुनाव उतना आसान नहीं है. इस बार का लोकसभा चुनाव यूपी सरकार के कई मंत्रियों और विधायकों का इम्तिहान भी होगा क्योंकि यह चुनाव उनका भविष्य भी तय करेगा और कद भी. इस बात को समझते हुए अधिकांश बीजेपी प्रत्याशी केवल सरकार के विकास कार्यों और मोदी लहर में तरने का प्रयास कर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस व सपा-बसपा गठबंधन जातिगत रणनीतियों के मुहरे बैठाने में लगे हुए हैं.
सरकार के काम के सहारे रीता बहुगुणा जोशी
यूपी सरकार की पर्यटन और महिला कल्याण मंत्री प्रयागराज (इलाहाबाद) से चुनाव मैदान में हैं. उन्हें अपने पिता हेमवंती नंदन बहुगुणा की विरासत का फायदा मिल सकता है. इसी वजह से उन्हें भाजपा ने चुनावी मैदान में उतारा है. इलाहाबाद हेमवती नंदन बहुगुणा की कर्मभूमि भी रही है. इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इतिहास की प्रोफेसर रही जोशी यहां से मेयर भी रही. वर्तमान में लखनऊ कैंट से विधायक और प्रदेश सरकार में मंत्री हैं. लेकिन इस सीट के आंकड़े जोशी के खिलाफ जा सकते हैं. इस सीट से अब तक केवल एक ही बार महिला उम्मीदवार सरोज दूबे ने 1991 में जीत का स्वाद चखा है. ऐसे में रीता सरकार के कामों के सहारे मैदान जीतने की कोशिश में है.
अंदरुनी गुटबाजी से निपटना बघेल की चुनौती
सुरक्षित सीट आगरा से पिछले चुनाव में रामशंकर कठेरिया भाजपा के टिकट पर जीत हासिल कर दिल्ली पहुंचे थे. इस बार कठेरिया को इटावा और पशुधन मंत्री एसपी सिंह बघेल को पार्टी ने आगरा से उतारा है. बघेल के लिए सबसे बड़ी मुश्किल बीजेपी की अंदरूनी गुटबाजी से निपटना है. दूसरी ओर, विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि टूरिज्म के डेवलपमेंट के ज्यादातर काम पिछली सरकार ने किए हैं. इन सारी मुश्किलों के बावजूद जातीय समीकरण और बघेल का व्यवहार लोगों को भा रहा है. वर्तमाल में बघेल फिरोजाबाद की टुंडला सीट से विधायक हैं.
त्रिकोणीय भंवर में फंसे मुकुट बिहारी वर्मा
अंबेडकर नगर सीट से सहकारिता मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा चुनाव मैदान में हैं. उन्हें चुनौती देने के लिए कांग्रेस ने यहां से फूलन देवी के पति उम्मेद सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है. दुर्दांत डकैत रहीं फूलन देवी बाद में सांसद भी रहीं. उनकी हत्या के बाद अब उनके पति उम्मेद सिंह निषाद फूलन देवी की सियासी विरासत को बचाने में जुटे हैं. इसी सीट से पर रीतेश पांडेय बसपा के उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में है. रीतेश अम्बेडकर नगर की जलालपुर सीट से विधायक भी हैं. बता दें, अंबेडकर नगर से बसपा सुप्रीमो मायावती का सियासी सफर शुरू हुआ था. यह सीट मायावती के संसदीय क्षेत्र के रूप में जानी जाती है. उन्होंने यहां से चार बार जीत हासिल की. अंबेडकर नगर की आबादी 24 लाख है जिसमें 75% आबादी सामान्य वर्ग और 25% आबादी अनुसूचित जाति की है. ऐसे में तीनों उम्मीदवार सामान्य वोट बैंक पर फोकस कर रहे हैं.
ब्राह्मणों के भरोसे सत्यदेव पचौरी
भाजपा सरकार में खादी एवं ग्रामोद्योग मंत्री सत्यदेव पचौरी कानपुर से बीजेपी उम्मीदवार हैं. उनके सामने कांग्रेस के पूर्व मंत्री श्रीप्रकाश जायवाल मैदान में हैं. सत्यदेव पचौरी 2004 में भी उनके खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं, तब श्रीप्रकाश जायसवाल ने उन्हें हराया था. कानपुर लोकसभा सीट में पांच विधानसभा सीटें हैं जिसमें गोविंदनगर, सीसामऊ, आर्यनगर, किदवई नगर और कानपुर कैंट शामिल है. कानपुर लोकसभा सीट पर कुल जनसंख्या 16 लाख से अधिक है. इसमें ब्राह्मण वोटरों की संख्या छह लाख से ज्यादा होने के चलते कानपुर लोकसभा सीट ब्राह्मण बहुल मानी जाती है. भाजपा और पचौरी इन्हीं ब्राह्मण वोटों के भरोसे ही चुनावी मैदान में हैं.
गुर्जर वोट के सहारे प्रदीप चौधरी
तीन बार के विधायक प्रदीप चौधरी कैराना सीट से बीजेपी प्रत्याशी हैं. कांग्रेस ने हरेंद्र सिंह मलिक को चुनावी मैदान में उतारा है. बीजेपी यहां जाट वोटरों को अपने पाले में करने के इरादे से उतरी थी, लेकिन उसके वोटों का बंटवारा हो गया. अब वह गुर्जर वोटों के सहारे वह इस सीट को जीतने का ख्वाब देख रहे हैं.
प्रियंका रावत खेमे से नाराजगी पड़ सकती है भारी
विधानसभा चुनाव में पीएल पूनिया के बेटे तनुज पूनिया को हराकर विधानसभा पहुंचे उपेंद्र एक बार फिर तनुज के खिलाफ ही चुनाव लड़ रहे हैं. चुनाव में चेहरा तनुज का जरूर हैं लेकिन पर्दे के पीछे पीएल पूनिया यहां से चुनाव लड़ रहे हैं और अपनी ताकत झोंकने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे. हालांकि उपेंद्र का दावा किसी भी तरह से कम नहीं है लेकिन प्रियंका रावत खेमे की नाराजगी से उन्हें पार पाना होगा.