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कहते हैं राजनीति में कोई किसी का परमानेंट दुश्मन या दोस्त नहीं होता है. यह बात आज उस समय बिल्कुल सटीक बैठी जब पिछले ढ़ाई दशक से धुर-विरोधी सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव व बसपा सुप्रीमो मायावती एक मंच पर साथ दिखे. यह घटना भारतीय सियासत की ऐतिहासिक तस्वीर बन गई जिसका गवाह बना उत्तरप्रदेश का मैनपुरी. यहां चुनावी महारैली के मंच पर सपा नेता पिता-पुत्र मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के बीच में बसपा सुप्रीमो मायावती बैठी थीं. दोनों दिग्गज नेता एक-दूसरे की ओर देख मुस्कुराए और एक-दूसरे के संबोधन पर तालियां भी बजाई. सपा और बसपा के बीच 1995 के बाद ऐसी तकरार हो गई थी कि उसे खत्म होने में 24 साल का लंबा वक्त लग गया.

यूपी के मैनपुरी में सपा-बसपा-रालोद की संयुक्त चुनावी रैली में पिछले 24 साल तक प्रतिदंद्वी रहे मायावती और मुलायम की दोस्ती की तस्वीर देखने को मिली. साल 1995 में के बाद से ही दोनों एक-दूसरे के धुर-विरोधी रहे हैं. मैनपुरी की रैली में बसपा सुप्रीमो मायावती यहां से लोकसभा प्रत्याशी मुलायम सिंह यादव के लिए चुनाव प्रचार करने पहुंची थी. दोनों नेता एक साथ दिखे तो उनके चेहरे पर केवल मुस्कुराहट थी जहां पुरानी दुश्मनी की कोई जगह नहीं दिखी. नेताजी ने अपने कार्यकर्ताओं से मायावती को मिलवाने के साथ उनसे पैर छूने का भी कहा. इसके साथ ही मुलायम ने कहा, “हम मायावती जी का स्वागत करते हैं, मैंने हमेशा से मायावती का सम्मान किया है.”

इस अवसर पर रैली को संबोधित करते हुए सपा संयोजक मुलायम सिंह ने कहा कि, ये उनका आखिरी चुनाव है इसलिए उन्हें ज्यादा से ज्यादा वोट देकर जिताएं. अपने छोटे से संबोधन में मुलायम सिंह ने मायावती का नाम 6 बार लिया और एक बार बहुजन समाज पार्टी का जिक्र किया. मुलायम ने कहा कि मैं इस बार आपके कहने पर आखिरी बार चुनाव लड़ रहा हूं. इस बार मैनपुरी हमारा हो गया है. सब लोग हमारे हो गए हैं. इस बार हमें भारी बहुमत से जीता देना. उन्होंने कहा कि जब भी जरूरत पड़ी है, तब-तब मायावती ने हमारा साथ दिया है और हमने भी उनका साथ दिया है, इसलिए मायावती का सम्मान जरूर करना.

वहीं, बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने भाषण में मुलायम सिंह यादव की जमकर तारीफ की और कहा कि मुलायम सिंह ही पिछड़ों के असली नेता हैं. मायावती ने नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए कहा कि वह खुद को ओबीसी बताते हैं लेकिन वो फर्जी ओबीसी हैं. गौरतलब है कि 2 जून 1995 को हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद ये पहला मौका है जब मायावती और मुलायम सिंह यादव एक साथ एक मंच पर आए और 26 साल के बाद दोनों नेताओं एक साथ चुनावी सभा को संबोधित किया. उससे पहले साल 1993 में मुलायम सिंह यादव और कांसीराम एक साथ नजर आए थे.

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