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क्या यूपी में बीजेपी के वोट काटने के लिए चुनाव लड़ रही है कांग्रेस?

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पिछले दिनों कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के बयान पर बड़ा बवाल हुआ. बयान ये था कि हमने यूपी में जो उम्मीदवार खड़े किए हैं, वो इस रणनीति पर किए है – या तो वे जीतने में सक्षम होंगे या बीजेपी का नुकसान करेंगे. प्रियंका ने यह भी कहा कि सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के उम्मीदवारों को कांग्रेस से नुकसान नहीं होगा. प्रियंका के इस बयान के बाद बवाल तो मचना ही था.

आनन-फानन में बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने इस मामले में प्रेस कांफ्रेस करते हुए कांग्रेस को वोट-कटवा पार्टी करार दे दिया. उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस पार्टी यूपी में जीतने के लिए नहीं बल्कि बीजेपी के वोट काटने के लिए चुनाव लड़ रही है.

चुनाव से पूर्व यह संभावना थी कि यूपी में कांग्रेस भी महागठबंधन में शामिल होकर चुनाव लड़ेगी. कांग्रेस की सपा और बसपा के बीच इस संदर्भ में बातचीत भी हुई लेकिन गठबंधन नहीं हो सका. गठबंधन का न होना बीजेपी के लिए फायदे का सौदा माना गया क्योंकि अनुमान ये था कि कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने से सपा-बसपा के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगेगी जिसका फायदा बीजेपी को होगा. लेकिन अब प्रियंका गांधी वाड्रा तक ने कह दिया है कि कांग्रेस के प्रत्याशी सीधा बीजेपी को नुकसान पहुंचाते नजर आएंगे.

कांग्रेस का महागठबंधन के साथ एक मिनी गठबंधन तो पहले से ही देखने को मिल रहा है. कांग्रेस ने मैनपुरी, आजमगढ़, कन्नौज, फिरोजाबाद, मुजफ्फरनगर, बागपत और अंबेडकरनगर में अपने उम्मीदवार खड़े नहीं किए हैं. मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव, आजमगढ़ से सपा प्रमुख अखिलेश यादव, कन्नौज से डिंपल यादव, फिरोजाबाद से रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव, मुजफ्फरनगर से रालोद सुप्रीमो अजित सिंह, बागपत से अजित सिंह के पुत्र जयंत सिंह और अंबेडकरनगर से सतीश मिश्रा के जवाईं रितेश पांडे चुनाव लड़ रहे हैं.

महागठबंधन ने रायबरेली और अमेठी सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं. रायबरेली से सोनिया गांधी और अमेठी से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी चुनाव मैदान में हैं.

आइए जानते हैं उन पांच सीटों के बारे में जहां कांग्रेस के उम्मीदवार बीजेपी को नुकसान पहुंचा रहे हैं…

1. मेरठ लोकसभा सीट:
इस संसदीय सीट पर चुनाव प्रथम चरण में ही संपन्न हो गए हैं. यहां बीजेपी की तरफ से वर्तमान सांसद राजेंद्र अग्रवाल हैट्रिक जमाने के लिए चुनावी समर में उतरे हैं. राजेंद्र 2009 में भी इस सीट को अपने नाम कर चुके हैं. हाजी याकूब कुरैशी महागठबंधन में बसपा के हिस्से में आई इस सीट पर उम्मीदवार हैं जिन्हें दलित-मुस्लिम समीकरण को साधने के लिए उतारा गया है. कांग्रेस ने यहां हरेंद्र अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया है जो बीजेपी के लिए परेशानी का सबब है.

हरेंद्र और राजेंद्र दोनों ही वैश्य समुदाय से आते है तो जाहिर है कि कांग्रेस को मिलने वाले वोट बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल का ही करेंगे. कांग्रेस प्रत्याशी मुस्लिम और दलित वोटबैंक में सेंध लगाते नजर नहीं आते हैं.

2. कैराना लोकसभा सीट:
यहां भी मतदान पहले चरण में हो चुके हैं. यह वही संसदीय सीट है जहां सपा-बसपा–रालोद गठबंधन की नींव रखी गई थी. कैराना के पूर्व सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद हुए उपचुनाव में यहां रालोद के टिकिट पर सपा नेत्री तब्बुसम हसन को चुनाव लड़वाया गया था. उनके सामने थी हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह. चुनाव में सपा और बसपा सुप्रीमो यह देखना चाहते थे कि जाटों में अजित सिंह की पकड़ कितनी मजबूत है और क्या अजित सिंह मुस्लिम उम्मीदवार को जाटों के वोट दिला पाएंगे?

गठबंधन का फॉर्मुला काम कर गया और तब्बसुम हसन चुनाव जीतकर संसद पहुंची. गठबंधन में अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल का दावा और मजबूत हुआ. 2019 के चुनाव में ये सीट सपा के हिस्से आई तो पार्टी ने फिर से तब्बसुम हसन पर दांव खेल दिया. बता दें कि तब्बसुम दिवंगत नेता मुन्नवर हसन की पत्नी है और उनके नाम देश के सभी सदनों अर्थात विधानसभा, विधानपरिषद, राज्यसभा और लोकसभा में सबसे कम उम्र में प्रतिनिधित्व करने का रिकार्ड गिनीज़ बुक में दर्ज है.

बीजेपी ने यहां से मृगांका का टिकट काट गंगोह विधायक प्रदीप गुर्जर पर दांव खेला है. यहां भी कांग्रेस बीजेपी के लिए परेशानी बनकर उभरी. सपा जहां पूरी तरह मुस्लिम और जाट वोट बैंक के उपर निर्भर रही. ऐसे में बीजेपी को अन्य वोट बैंक के पक्ष में लामबंद होने की आस थी लेकिन कांग्रेस ने हरेंद्र मलिक को प्रत्याशी बना बीजेपी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. हरेंद्र मलिक चार बार विधायक और एक बार राज्यसभा सांसद रह चुके हैं. चुनाव में ये देखने को मिला कांग्रेस ने बीजेपी के वोटबैंक में ही सेंधमारी की.

मलिक परिवार का इस क्षेत्र में असर विगत चुनावी नतीजों से साफ देखा जा सकता है. उनके पुत्र पंकज मलिक कैराना लोकसभा के अंतर्गत आने वाली शामली विधानसभा से दो बार विधायक चुने गए हैं. 2017 के चुनाव में उनको हार का सामना करना पड़ा था.

3. गाजियाबाद लोकसभा सीट:
यहां भी चुनाव संपन्न हो चुका है. यह सीट पूरी तरह ब्राह्मण बाहुल्य है. पहले ये सीट आसानी से बीजेपी के हिस्से में जाती हुई दिखाई दे रही थी. लेकिन कांग्रेस ने यहां बीजेपी के लिए बड़ी समस्या खड़ी कर दी. यहां से बीजेपी ने वर्तमान सांसद पूर्व सेनाध्यक्ष वीके सिंह को चुनावी समर में उतारा. वहीं कांग्रेस ने डॉली शर्मा को प्रत्याशी बनाकर बीजेपी के लिए परेशानी खड़ी कर दी.

यूपी में राम मंदिर आंदोलन के बाद ब्राह्मण समाज को बीजेपी का परम्परागत वोट बैंक माना जाता है लेकिन डॉली शर्मा के मैदान में आने के बाद ब्राह्मण वोटों का कुछ हिस्सा तो कांग्रेस के खाते में जाएगा, यह सच है जिसका सीधा नुकसान बीजेपी को होगा.

सपा यहां दलित-मुस्लिम-वैश्य समीकरण पर चुनाव लड़ रही है. सपा ने यहां पहले सुरेन्द्र मुन्नी को उम्मीदवार बनाया. बाद में उनका टिकट बदल कर वैश्य चेहरे बीएसपी के पूर्व विधायक सुरेश बंसल को थमा दिया. बंसल गाजियाबाद विधानसभा क्षेत्र से 2012 में बसपा के टिकट पर विधायक चुने गए थे. अगर ये समीकरण काम करता है तो इसका बड़ा कारण कांग्रेस प्रत्याशी डॉली शर्मा होगी.

4. अमरोहा लोकसभा सीट:
इस संसदीय सीट के हालात भी बीजेपी की परेशानी बढ़ाने वाले हैं. यहां बीजेपी ने दांव वर्तमान सांसद कंवर सिंह तंवर पर खेला. सामने थे जेडीएस छोड़कर नए-नए बसपा में आए दानिश अली. बीजेपी को चुनाव से पहले ये इल्हाम था कि मुस्लिम प्रत्याशी होने के कारण दलित समाज के अलावा सभी हिंदू वोट उसके पाले में आएंगे, लेकिन कांग्रेस ने जिस चेहरे पर दांव खेला वो बीजेपी के मनसूबों पर पानी फेर गया. कांग्रेस ने सचिन चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाया जो बीजेपी के वोट में सेंधमारी करते नजर आए. अब इसका फायदा गठबंधन उम्मीदवार दानिश अली उठा सकते हैं.

5. गोरखपुर लोकसभा सीट:
यह क्षेत्र योगी आदित्यनाथ के किले के रुप में मशहुर था लेकिन उनके मुख्यमंत्री बनते ही उपचुनाव में यह किला ढह गया. ये खबर योगी के लिए किसी झटके से कम नहीं ​थी. इस किले को वापिस हासिल करने के लिए योगी ने गोरखपुर के वर्तमान सांसद प्रवीण निषाद को बीजेपी में शामिल कराकर उन्हें संतकबीरनगर से पार्टी का प्रत्याशी बनाया है. प्रवीण ‘निषाद पार्टी’ के अध्यक्ष संजय निषाद के सुपुत्र हैं. उनकी निषाद समाज में अच्छी पकड़ मानी जाती है.

सपा ने यहां से रामभुआल निषाद को प्रत्याशी बनाया है. गठबंधन उपचुनाव की तर्ज पर ही मुस्लिम-निषाद समीकरण पर काम कर रहा है. कांग्रेस ने गोरखपुर से मधुसूदन तिवारी को उम्मीदवार बनाया है. अब बीजेपी के लिए संकट यह है कि पार्टी और कांग्रेस, दोनों के उम्मीदवार ब्राह्मण समाज से हैं. अब इस स्थिति में वोटों का बंटना तो निश्चित है जो जिसका नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ेगा, यह पक्का है.

पीएम मोदी ने झूठे वादे कर दिया धोखा, नहीं दी दो करोड़ नौकरी: राहुल गांधी

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प्रदेश में 6 मई को होने जा रहे दूसरे चरण के मतदान के लिए प्रचार-प्रसार जोरों पर है. पार्टी के शीर्ष नेता हर हाल में अपने उम्मीदवारों को जिताने की जद्दोजहद में लगे हैं. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भी भरतपुर संसदीय सीट से पार्टी प्रत्याशी अभिजीत जाटव के समर्धन में चुनावी सभा को संबोधित करने पहुंचे. राहुल की रैली का उत्साह सभा स्थल पर उपस्थित लोगों में साफ देखा जा सकता था. इस अवसर पर उनके साथ प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी उपस्थित रहे. चुनावी सभा में पीएम मोदी और बीजेपी उनके निशाने पर रही.

राहुल गांधी ने चुनावी सभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए उन्हें झूठे वादे करने वाला बताया. राहुल इस दौरान पीएम को बेरोजगारी, किसान के मुद्दे पर घेरते नजर आए. उन्होंने कहा कि मोदी अब बेरोजगारी, किसान की चर्चा नहीं करते. 15 लाख खाते में डालने की बात की थी लेकिन एक पैसा नहीं डाला. बेवकूफ बनाने के लिए कहा कि बैंक अकाउंट खोल रहा हूं. अब मोदी के खोले बैंक अकाउंट में हम पैसा डालना चाहते हैं. पीएम मोदी ने 2 करोड़ नौकरियों के अवसर मुहैया कराने का वादा किया था, लेकिन युवाओं को बेरोजगार छोड़ उन्‍हें धोखा दिया है.

राहुल गांधी ने इस दौरान कांग्रेस की न्याय योजना के बारे में विस्तृत जानकारी दी. उन्होंने कहा कि जैसे ही न्याय योजना का पैसा मिलेगा. लोग बाजार से सामान खरीदने लगेंगे, जैसे ही लोग सामान खरीदना शुरू करेंगे दुकानें और फैक्ट्रियां फिर से शुरू हो जाएंगी, युवाओं को जॉब मिलने लगेगा, न्याय योजना इस तरह तस्वीर बदल देगी. कांग्रेस अध्यक्ष यहां पीएम मोदी को अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर घेरने से नहीं चूके. उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी ने देश के करोड़ों लोगों से पैसा छीनकर मेहुल चौकसी, विजय माल्या जैसे लोगों को लोन दिया, नोटबंदी से पैसा छीनते ही बाजार से लोगों ने सामान खरीदना बंद कर दिया. देश की अर्थव्यवस्था जाम हो गई.

आगे राहुल गांधी ने अपने संबोधन में कहा कि मोदी ने 15 बड़े लोगों के 5 लाख करोड़ से ज्यादा माफ कर दिए, तो हम गरीबों के खाते में पैसा क्यों नहीं डाल सकते. हमने देश के ख्यात अर्थशास्त्रियों से विचार विमर्श किया, उन्होंने 4 माह तक इस पर काम किया. उन्होंने 72 हजार रूपए सालाना का आंकड़ा दिया. 5 करोड़ परिवारों को 25 करोड़ रुपए तब तक दिए जाएंगे, जब तक 12 हजार रुपए से ज्यादा की प्रतिमाह की आमदनी नहीं हो जाती.

राजस्थान में गरजे पीएम मोदी, सर्जिकल स्ट्राइक पर कांग्रेस को घेरा

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को प्रदेश में तीन चुनावी सभाओं को संबोधित करने पहुंचे. पीएम मोदी ने करौली-धौलपुर संसदीय सीट से मनोज राजौरिया, सीकर से स्वामी सुमेधानंद सरस्वती व बीकानेर से अर्जुन राम मेघवाल के समर्थन में चुनावी सभाओं को संबोधित किया. इस दौरान पीएम ने विपक्ष को आड़े हाथों लिया. साथ ही कांग्रेस सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे पर उनके निशाने पर रही. अपने संबोधन में कटाक्ष करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि कभी सर्जिकल स्ट्राइक का मजाक बनाने वाले अब कहते हैं ‘मी टू, मी टू’.

पीएम मोदी ने चुनावी रैली में संबोधन के दौरान केंद्र सरकार के काम और उपलब्धियां गिनाईं. साथ ही कहा कि देश को आज एक मजबूत सरकार की दरकार है न कि कांग्रेस की तरह मजबूर सरकार. उन्होंने कहा कि हमने जो कहा है वो करके दिखाया है. इस दौरान पीएम मोदी ने पाकिस्तान में मोदी के खौफ की बात कही और सेना के शौर्य को अपने भाषण के जरिए जनता में वोट बटोरने के रूप में इस्तेमाल करने कोशिश में नजर आए. सेना द्वारा पुलवामा आतंकी हमले के बाद की गई एयर स्ट्राइक को पाकिस्तान पर कड़ा जवाब बताया.

सीकर में चुनावी सभा को संबोधित करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर कांग्रेस पर जमकर वार किए. जिसमें उन्होंने बीते साल से चर्चा में आए कैंपेन ‘मी टू’ का जिक्र कर कांग्रेस को घेरा. पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस अब दावा कर रही है कि उसने कई बार सर्जिकल स्ट्राइक की थी. पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस किसी भी तरह ये साबित करने में तुली है कि उन्होंने भी स्ट्राइक की, कांग्रेसी अब सर्जिकल स्ट्राइक की तारीख भी सामने लाए हैं. पहले उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक का मजाक बनाया, फिर उन्होंने विरोध किया और अब वो कह रहे हैं- ‘मी टू, मी टू’.

साथ ही पीएम मोदी ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा कि मुझे लगता है कि कांग्रेस में ऐसे लोग है जो उम्र के किसी भी पड़ाव में वीडियो गेम खेलते रहते हैं और शायद सर्जिकल स्ट्राइक को भी वीडियो गेम समझकर आनंद लेते होंगे. एसी कमरों में बैठकर कागज में सर्जिकल स्ट्राइक कांग्रेस ही कर सकती है. ये कैसी स्ट्राइक थी, जिसके बारे में आतंकियों को कुछ नहीं पता, स्ट्राइक करने वालों को कुछ नहीं पता, पाकिस्तान को कुछ नहीं पता और न ही देश की जनता को कुछ पता है.

साथ ही पीएम मोदी ने गुरूवार को कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला द्वारा यूपीए सरकार के दौरान सर्जिकल स्ट्राइक की तारिख बताने पर घेरा. उन्होंने कहा कि हमने 3 बार सर्जिकल स्ट्राइक की, कल कहा कि हमने 6 बार की, अब कुछ दिन में कह देंगे कि हमने हर रोज स्ट्राइक की. जब कागज पर ही या वीडियो गेम में ही स्ट्राइक करनी हो तो 6 हो या 3 हो, 20 हो या 25 हों, इन झूठे लोगों को क्या फर्क पड़ता है. इसके अलावा पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस के एक नेता ने सेना को गली का गुंडा कहा, कांग्रेस के और नेता वायुसेना को झूठा कहते हैं. कांग्रेस राष्ट्र रक्षा करने वालों का हर मौके अपमान करती है.

वहीं बीकानेर में पीएम ने पानी के मुद्दे पर कांग्रेस को घेरते हुए आरोप लगाया कि पहले ऐसी सरकारें थी जिन्होंने भारत के हक का पानी पाकिस्तान को दिया था. उन्होंने कहा कि मैं आपको वादा करता हूं कि 23 मई को जब फिर एक बार मोदी सरकार बनेगी तो जो पानी आज पाकिस्तान को जा रहा है वो पानी हिंदुस्तान के खेतों में जाएगा. साथ ही गठबंधन पर हमला बोलते हुए पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस और महामिलावटी लोगों को देश की जनता ने बीते चरणों के मतदान में ठीक से सबक सिखा दिया है. राजस्थान में जब इस 29 अप्रैल को जब वोट पड़े तो लोगों ने कांग्रेस को पानी पी-पीकर सजा दी है.

इसके अलावा पीएम मोदी ने यूपी में कांग्रेस महा सचिव प्रियंका गांधी वाड्रा द्वारा एक सपेरा बस्ती में सांप पकड़ने पर भी कटाक्ष किया. पीएम ने चुनावी रैली के संबोधन करते हुए कहा कि एक दौर था, जब कांग्रेस के नामदार विदेशी मेहमानों को सांप, नेवलों का खेल दिखाकर खुश करते थे. आज ये नामदार परिवार की चौथी पीढ़ी भी यही दिखाकर यही काम कर रही है. ये चौथी पीढ़ी आज भी सांप-सपेरों के खेला दिखाकर वोट मांग रही है. लेकिन अब समय बदल चुका है. आज देश की जनता स्नेक चार्मर(सपेरा) नहीं है. माउस चार्मर है. अब वो कंप्यूटर का माउस चलाती है.

संजय गांधी के ‘गिल्ली बिल्ली’ कैसे बने राजनीति के जादूगर?

बात 70 के दशक के शुरूआत की है. यह वह दौर था जब कांग्रेस में संजय गांधी की तूती बोला करती थी. हर राज्य में उनके चहेते नेता थे. इनमें से कोई सत्ता के शिखर पर था कोई संगठन का सूत्रधार. राजस्थान में जिन गिने-चुने नेताओं पर संजय गांधी का वरदहस्त था उनमें जर्नादन सिंह गहलोत का नाम सबसे ऊपर था. साल 1972 में विधानसभा चुनाव के बाद जर्नादन सिंह उनकी आंखों का तारा बने, जिसमें उन्होंने जयपुर के भैरों सिंह शेखावत सरीखे दिग्गज नेता को पटकनी दी.

उस दौरान कांग्रेस के भीतर यह चर्चा जोर-शोर से होती थी कि देर-सवेर राजस्थान में सत्ता की कमान जर्नादन सिंह गहलोत के हाथों में होगी, लेकिन ऐसा हो नहीं सका. कुछ ही महीनों में जर्नादन सिंह गहलोत संजय गांधी की नजरों से उतर गए और उनकी जगह दूसरे गहलोत ने ले ली. ये दूसरे गहलोत और कोई नहीं बल्कि अशोक गहलोत थे.

हालांकि संजय गांधी और अशोक गहलोत का परिचय पुराना था. इसका जरिया बने उनके पिता लक्ष्मण सिंह, जो जाने-माने जादूगर थे. ऐसा कहा जाता है कि लक्ष्मण सिंह गांधी परिवार के करीबी थे. वे जब भी दिल्ली जाते गांधी परिवार से जरूर मिलकर आते थे. इस दौरान कई बार अशोक गहलोत भी उनके साथ गए. परिचय हुआ और मेलजोल बढ़ा. कांग्रेस के कई पुराने नेता बताते हैं कि उस समय संजय गांधी और उनकी पूरी मंडली अशोक गहलोत को ‘गिल्ली बिल्ली’ नाम से पुकारती थी.

बताया जाता है कि लक्ष्मण सिंह जब भी गांधी परिवार से मिलने जाते थे, राजीव गांधी और संजय गांधी उनसे जादू दिखाने का आग्रह करते थे. यह भी कहा जाता है बाद में अशोक गहलोत भी गांधी परिवार को जादू के करतब दिखाने लगे. जादू देखने-दिखाने के इस सिलसिले के इतर संजय गांधी ने अशोक गहलोत में छिपे नेता को उस समय पहचाना जब इंदिरा गांधी ने उनके बारे में जिक्र किया.

दरअसल, पढ़ाई के दौरान अशोक गहलोत अक्सर पूर्वी बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में लोगों की मदद करने के लिए जाते थे. संयोग से जिस दिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इन शिविरों का जायजा लेने पहुंचीं, उस दिन गहलोत वहीं थे. इस दौरान इंदिरा को गहलोत के कामकाज की जानकारी मिली, जिसे देखकर बहुत प्रभावित हुईं. उस समय गहलोत की उम्र महज 20 साल थी.

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बताया जाता है कि गहलोत में राजनीति की संभावनाओं को देखते हुए इंदिरा गांधी ने उन्हें इंदौर में होने वाले अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के अधिवेशन में बुलाया. यहां संजय गांधी से उनकी लंबी चर्चा हुई. संजय ने ही उन्हें राजनीति में आने का न्यौता दिया. गहलोत के हामी भरने पर उन्हें नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन यानी एनएसयूआई की राजस्थान इकाई का पहला अध्यक्ष बनाया गया.

उनकी इस नियुक्ति से एक दिलचस्प किस्सा जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि आलाकमान में गहलोत को पद देने की इतनी जल्दी थी कि उनका नियुक्ति पत्र लेकर एक शख्स मोटरसाइकिल से दिल्ली से जयपुर आया. इस नियुक्ति के बाद अशोक गहलोत ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. पहले संजय गांधी और बाद में इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद यह कयास लगाए जाने लगे कि ‘गॉडफादर’ खोने के बाद गहलोत कुछ नहीं कर पाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

साल 1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अशोक गहलोत को मैदान में उतारा, लेकिन वे जीत नहीं पाए. इसके बाद साल 1980 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें जोधपुर सीट से मौका दिया, जिसमें उनकी जीत हुई. केंद्र में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी, जिसमें गहलोत को राज्यमंत्री बनाया गया. साल 1984 में हुए चुनाव में भी गहलोत जोधपुर से सांसद बने और केंद्र सरकार में राज्य मंत्री के रूप में भूमिका निभाई.

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साल 1984 में इंदिरा गांधी के मृत्यु और राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कांग्रेस के भीतर अशोक गहलोत की पकड़ और मजबूत हुई. एक समय ऐसा आया जब गहलोत राजीव गांधी के ‘आंख-कान’ बन गए. बड़े ही नहीं, सामान्य राजनीतिक निर्णय लेने से पहले भी राजीव गांधी का गहलोत से मशविरा करना आम बात थी. इसी दौरान राजीव गांधी ने तमाम दिग्गज नेताओं को दरकिनार कर साल 1985 में अशोक गहलोत को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया.

1991 में राजीव गांधी की मृत्यु के बाद इन अटकलों ने फिर से जोर पकड़ा कि अब अशोक गहलोत राजनीति में आगे नहीं बढ़ पाएंगे, लेकिन पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उनकी धाक बरकरार रही. राव सरकार में गहलोत मंत्री रहे. साल 1995 में गहलोत को फिर से प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी गई. इस दौरान संगठन के मुखिया के तौर पर गहलोत का नया रूप देखने को मिला.

1998 का विधानसभा चुनाव गहलोत के नेतृत्व में ही हुआ, लेकिन यह तय माना जा रहा था कि मुख्यमंत्री परसराम मदेरणा ही बनेंगे. इस चुनाव में कांग्रेस को बंपर बहुमत मिला. विधायक दल की बैठक हुई, जिसमें कांग्रेस की परंपरा के मुताबिक मुख्यमंत्री चुनने का अधिकार आलाकमान को सौंपा गया. सबके मन में यह सवाल था कि कांग्रेस नेतृत्व मदेरणा को दरकिनार कर गहलोत के नाम पर कैसे मुहर लगाएगा, लेकिन आखिर में उनके नाम की घोषणा हुई. कहा जाता है कि सोनिया गांधी के दखल से अशोक गहलोत मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे.

Ashok Gehlot CM

1999 में सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद गहलोत और मजबूत हो गए. हालांकि साल 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस की करारी हार हुई. इसके बाद गहलोत को एआईसीसी का महासचिव बनाया गया. साल 2008 में विधानसभा चुनाव हुए तो डॉ. सीपी जोशी प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे. उस समय सियासी गलियारों में यह चर्चा थी कि यदि कांग्रेस सत्ता में आई तो मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए उनके और गहलोत के बीच कड़ा संघर्ष होगा.

इस चुनाव के नतीजों में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत तो नहीं मिला, लेकिन सरकार बनाने लायक सीटें मिल गई. कमाल की बात यह रही कि मुख्यमंत्री पद के लिए उनके प्रतिद्वंद्वी रहे डॉ. सीपी जोशी महज एक वोट से चुनाव हार गए और गहलोत फिर से मुख्यमंत्री बने. साल 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में गहलोत के कंधों पर पार्टी को फिर से सत्ता में लाने की जिम्मेदारी थी, लेकिन कांग्रेस सबसे बुरा प्रदर्शन करते हुए महज 21 सीटों पर सिमट गई.

चुनाव के कुछ समय बाद ही जब प्रदेश कांग्रेस की कमान सचिन पायलट को सौंपी गई तो यह कयास लगाए जाने लगे कि अब अशोक गहलोत के दिन लद चुके हैं, युवा और राहुल गांधी के करीबी पायलट ही अब राजस्थान में कांग्रेस का भविष्य है. यह वह दौर था जब राहुल गांधी ने पार्टी का कामकाज संभालना शुरू कर दिया था. कांग्रेस नेताओं के बीच यह सर्वसम्मत राय थी कि गहलोत की राहुल से उतनी अच्छी केमिस्ट्री नहीं थी, जिनती सोनिया गांधी के साथ थी.

विधानसभा चुनाव में हार के बाद अशोक गहलोत फिर से एआईसीसी महासचिव के ओहदे के साथ राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हो गए. साल 2017 में जब उन्हें गुजरात का प्रभारी बनाया गया तो सबको यह लगा कि गहलोत को बर्फ में लगा दिया गया है, लेकिन उन्होंने प्रदेश कांग्रेस की कील-कांटों को दुरूस्त कर पार्टी को बीजेपी के मुकाबले खड़ा कर दिया. आखिर में अपना गढ़ बचाने के लिए मोदी-शाह को चुनावी रण में जमकर पसीना बहाना पड़ा.

गुजरात में कांग्रेस की सरकार तो नहीं बनी, लेकिन अशोक गहलोत की रणनीति की चर्चा पूरे देश में हुई. चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने गहलोत के कामकाज को नजदीक से देखा और वे उनके इतने मुरीद हुए कि उन्हें संगठन महासचिव के अहम ओहदा सौंप दिया. यह जिम्मेदारी मिलते ही गहलोत साये की तरह राहुल गांधी के साथ नजर आने लगे.

बावजूद इसके राजस्थान में यह संशय बरकरार रहा कि साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिलेगा तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बनेंगे या सचिन पायलट. कांग्रेस के पक्ष में चुनाव के नतीजे आने के बाद इस पर जमकर खींचतान हुई. कई दिन तक चले संस्पेंस के बाद आखिकार अशोक गहलोत के सिर पर सहरा सजा. गहलोत तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने और सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री पद से ही संतोष करना पड़ा.

चर्चाओं के मुताबिक सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी के दखल के बाद अशोक गहलोत की ताजपोशी हुई. यानी गहलोत अपने 40 साल के राजनीतिक जीवन में समय के साथ-साथ आगे बढ़ते गए और सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए. इस सफर के दौरान जिनके हाथ में भी कांग्रेस की कमान रही, वे उनके करीबी बन गए.

सियासत में इतनी जादूगरी के बावजूद अशोक गहलोत को यह मलाल है कि वे राजस्थान में पांच साल बाद सत्ता की अदला-बदली के सिलसिले को नहीं तोड़ पाए. आपको बता दें कि गहलोत तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे हैं. उनके मुख्यमंत्री रहते हुए विधानसभा के दो चुनाव हुए हैं, दोनों में कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा.

अशोक गहलोत साल 1998 में जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तो कांग्रेस 153 सीटें जीतकर सत्ता में आई थी, लेकिन पांच साल बाद हुए चुनाव में पार्टी महज 56 सीटों पर ही सिमट गई. गहलोत साल 2008 में जब दूसरी बार सूबे के सीएम बने तब कांग्रेस को 96 सीटें मिलीं, लेकिन पांच साल बाद हुए चुनाव में पार्टी महज 21 सीटों पर ही रह गई.

अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए विधानसभा के दो चुनावों में कांग्रेस को मिली करारी हार को विरोधी खूब हवा देते हैं. वे यह कहते हैं कि गहलोत को संगठन का काम करने में तो महारत हासिल है, लेकिन सरकार चलाते समय वे अफसरशाही के शिकंजे में फंस जाते हैं. इस तोहमत से बचने का अशोक गहलोत को एक मौका अब साल 2023 में मिलेगा. यह देखना रोचक होगा कि गहलोत पुराने ट्रेंड को तोड़ पाते हैं या नहीं.

राजस्थान: जयपुर में कलह में डूबी ज्योति तो मोदी लहर पर सवार बोहरा

जयपुर शहर लोकसभा सीट पर जीत का सूखा समाप्त करने के लिए कांग्रेस ने 48 साल बाद महिला उम्मीदवार को उतारने का मास्टर स्ट्रोक खेला है. कांग्रेस ने जयपुर की पूर्व महापौर ज्योति खंडेलवाल को तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए चौंकाने वाला टिकट थमा दिया लेकिन ज्योति का विवादों से हमेशा से गहरा नाता रहा है. लिहाजा कांग्रेस का कोई भी नेता ज्योति के टिकट मिलने से दिल से खुश नहीं है. ज्योति ने अपने तेवरों से कांग्रेस में दुश्मनों की लंबी फौज खड़ी रखी है जो दिखावे के लिए तो ज्योति के साथ मंच पर खड़े नजर आते हैं लेकिन बंद कमरों में अपनी पुरानी अदावत का हिसाब निपटाने में जुटे हुए हैं. उधर बीजेपी ने पिछले चुनाव में रिकॉर्ड तोड़ जीत दर्ज करने वाले रामचरण बोहरा पर फिर दांव खेला है. बोहरा अपने चेहरे को पीछे रखकर नरेंद्र मोदी को आगे करते हुए वोट मांग रहे हैं. कांग्रेस अभी भी गुटबाजी में उलझी हुई है जबकि बीजेपी मोदी लहर पर सवार होकर मुकाबले में बहुत आगे चल रही है.

जयपुर शहर सीट पर बीजेपी-कांग्रेस में सीधा मुकाबला है. चुनाव के पहले दिन से ही यहां एयर स्ट्राइक और माेदी फैक्टर हावी है. कांग्रेस के पास इससे निपटने के लिए कोई हथियार नहीं है. यहां तक की माहाैल बनाने के लिए न ताे कोई बड़ी रैली की गई और न ही प्रचार तेज हुआ. हालांकि प्रदेश सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट सभाएं जरुर कर रहे हैं. माैजूदा विधायकाें का भी ज्योति को पूरा सहयाेग नहीं मिल पा रहा जिसका पूरा फायदा बीजेपी और रामचरण बोहरा काे हाे रहा है. विधायक अमीन कागजी और महेश जोशी की ज्योति से जंग जगजाहिर है लेकिन पार्टी के आदेश पर दोनों ज्योति के साथ खड़े हैं. हालांकि कागजी पर ज्योति को अब भी भरोसा है लेकिन अर्चना शर्मा के साथ ज्योति के रिश्ते अच्छे नहीं हैं. इन तीनों नेताओं की मेहनत के बिना ज्योति की नैंया पार लगना कतई संभव नहीं होगा.

पांच विधानसभा में बीजेपी भारी, तीन में कांग्रेस
वैसे जयपुर शहर हमेशा से बीजेपी का मजबूत गढ़ रहा है लेकिन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इस गढ़ में सेंध लगाने में कामयाब हो गई. कांग्रेस बगरु, आदर्शनगर, हवामहल, सिविल लाइंस और किशनपोल विधानसभा सीटें जीतने में कामयाब रही. वहीं बीजेपी के खाते में सांगानेर, विद्याधर नगर और मालवीय नगर सीटें आई. इसके बावजूद बगरु और सिविल लाइंस में शहरी वोटर्स होने से बीजेपी मजबूत दिखाई दे रही है. इनके अलावा, सांगानेर, मालवीय नगर और विद्याधर नगर में बढ़त मिलते दिख रही है. वहीं कांग्रेस किशनपोल और हवामहल में मजबूत दिखाई दे रही है. आदर्शनगर से भी बढ़त मिलने के आसार हैं. विधानसभा चुनाव में कम सीटें आने के बावजूद बीजेपी मोदी लहर, राष्ट्रवाद और शहरी वोटर्स के फैक्टर के चलते कांग्रेस से आगे दिख रही है.

जीत का क्या रह सकता है फार्मूला
रामचरण बोहरा के ब्राह्मण होने के चलते बीजेपी के पास ब्राह्मण सबसे बड़ा वाेट बैंक है. दूसरी जातियाें का वाेट भी माेदी के नाम पर बीजेपी के खाते में जाएगा. कांग्रेस वैश्य-मुस्लिम समाज के सहारे मैदान में है. मुस्लिम समाज का कांग्रेस के पक्ष में जाते ही ध्रुवीकरण हाे सकता है. धरातल पर चौंकाने वाली बात यह भी आ रही है कि मोदी लहर के चलते वैश्य समाज का वाेट भी बीजेपी की ओर जा सकता है. ऐसे में कांग्रेस को इससे सीधा नुकसान हाेगा वहीं कुछ वोटर्स खंडेलवाल के महापौर रहने के दौरान उनकी कार्यशैली से खफा भी नजर आ रहे है.

पिछले दो चुनाव के नतीजे
पिछला चुनाव बीजेपी ने मोदी लहर में पांच लाख 39 हजार वोटों से जीता था. पूरे देश में बोहरा की यह टॉप 5 में पांचवीं बड़ी जीत थी. बोहरा ने मौजूदा सांसद कांग्रेस के महेश जोशी को पटकनी दी थी. 2009 में महेश जोशी ने बीजेपी के घनश्याम तिवाड़ी को करीबी मुकाबले में करीब 16 हजार वोटों से शिकस्त दी थी. विधानसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस आठ में से पांच सीटें जीतने में कामयाब रही हो लेकिन उसे बीजेपी से आठ हजार वोट कम मिले थे. कांग्रेस को कुल 6 लाख 34 हजार 24 वोट मिले जबकि बीजेपी को 6 लाख 42 हजार 486 वोट हासिल हुए थे. ऐसे में बीजेपी की यह बढ़त यकीनन मोदी लहर में बरकरार रहेगी.

भितरघात का खतरा
बीजेपी प्रत्याशी रामचरण बोहरा और कांग्रेस की ज्योति खंडेलवाल के लिए सबसे अधिक चुनौती भितरघात से निपटने की है. दोनों ही पार्टियों के मौजूदा विधायकों और हारे हुए प्रत्याशियों के बीच अच्छा तालमेल नहीं है. ऐसे में प्रत्याशियों की व्यक्तिगत छवि का सबसे अधिक असर पड़ सकता है.

कांग्रेस जयपुर में जीती है सिर्फ तीन चुनाव
जयपुर शहर लोकसभा सीट कांग्रेस की जीत के लिए बेहद चुनौतीभरी है. अब तक हुए चुनावों में कांग्रेस ने केवल तीन बार यहां से जीत का स्वाद चखा है. 1952 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के दौलतराम जीते थे. राजीव गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर के चलते पंडित नवलकिशोर शर्मा ने यह सीट कांग्रेस को दिला दी. तीसरी और अंतिम बार महेश जोशी यहां से जीतकर दिल्ली पहुंचे थे. यह आंकड़ा साफ बयां करता है कि यह सीट शुद्ध रुप से बीजेपी की परम्परागत सीट है. बीजेपी के गिरधारीलाल भार्गव लगातार छह बार इस सीट से चुनाव जीत चुके हैं. ऐसे में ज्योति के लिए जीत की ज्वाला जलाना बेहद टफ है.

कांग्रेस के लिए गुटबाजी सबसे बड़ी सिरदर्दी
राजस्थान में कांग्रेस के लिए अगर सबसे ज्यादा गुटबाजी है, तो वह गुलाबी नगरी में मानी जाती है. यहां छोटा सा पदाधिकारी और कार्यकर्ता भी राजधानी होने के चलते खुद को बड़ा मानकर चलता है. ऐसे में किसी एक नेता के निर्देशों को मानना वह अपनी शान के खिलाफ मानता है. ज्योति ने अपनी बेबाकी और कार्यशैली से इतने विरोधी बना लिए थे कि उब उन्हें गर्ज के चलते मनाना पड़ा. दिखावे के लिए तो यह सभी साथ हैं लेकिन वोट दिलवाने में उनका क्या रोल रहेगा, यह देखना दिलचस्प रहेगा.

पूर्व सीएम को मुफ्त बंगला-गाड़ी सुविधाएं अवैध: हाईकोर्ट

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उच्च न्यायालय उत्तराखंड ने रूरल लिटिगेशन एंटाइटलमेंट केंद्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए पूर्व मुख्यमंत्रियों को मिलने वाली सुविधाओं को अवैध बताया है. हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि बाजार मूल्य के हिसाब से पूर्व मुख्यमंत्रियों से वसूली की जाए. आदेश के तहत सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को 6 महीने के भीतर बाजार मूल्य के हिसाब से पूरा बकाया जमा करना है. बकाया राशि जमा नहीं करवाने की सूरत में आवश्यक कानूनी कार्रवाई की जाएगी.

इस मामले में उत्तराखंड उच्च न्यायालय के 56 पन्नों के फैसले में साफ लिखा गया है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को दी गई बिजली, पानी, गाड़ी, पेट्रोल, मोबाइल आदि सुविधाओं का सरकार मुल्यांकन कर रिपोर्ट बनाएं और फिर इनसे बाजार मूल्य के हिसाब से पूरे किराये के पैसे वसूल किए जाएं. सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि उन्होंने मुख्यमंत्री रहते बंगला अपने नाम करवा लिया था जिस पर हाईकोर्ट ने चिंता भी जाहिर की. वहीं पूर्व सीएम एनडी तिवारी के निधन के बाद कोर्ट ने कहा है कि उनके वारिस व उनकी संपत्ति से बकाया पैसे वसूले जाएं.

बता दें कि सरकार द्वारा कोर्ट में पांच पूर्व मुख्यमंत्रियों पर 2 करोड़ 85 लाख रूपये के बकाया होने की रिपोर्ट सौंपी गई है जिसमें पूर्व सीएम निशंक पर 40 लाख 95 हजार, भुवन चंद्र खण्डूड़ी पर 46 लाख 95 हजार, विजय बहुगुणा पर 37 लाख 50 हजार, भगत सिंह कोश्यारी पर 47 लाख 57 हजार, स्व. एनडी तिवारी पर 1 करोड़ 13 लाख का बकाया शामिल है. कोर्ट के आदेश के अनुसार इन सुविधाओं का बाजार मूल्य के हिसाब से आंकलन करें तो इन पूर्व मुख्यमंत्रियों पर करीब 16 करोड़ रुपया बकाया निकलता है.

राहुल गांधी का अमेठी के नाम पत्र, फिर से मजबूत बनाने की अपील

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लोकसभा चुनाव के लिए देशभर में प्रचार में लगे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी से उम्मीदवार हैं. इसके अलावा उन्होंने अबकी बार केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ा है. प्रचार की व्यस्तता को देखते हुए राहुल गांधी अमेठी में कम ही समय दे पाए हैं. यहां पार्टी महा सचिव व पूर्वी यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी उनके लिए प्रचार कर रहीं है. राहुल गांधी ने अमेठी के मतदाताओं के लिए एक पत्र लिखा है. जिसमें उन्होंने अमेठी को अपना परिवार बताते हुए फिर से मजबूत करने की अपील की है.

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बता दें कि बीजेपी ने यहां केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को फिर से चुनाव मैदान में उतारा है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में स्मृति राहुल गांधी से चुनाव हार गईं थी. जिसके बाद से लगातार स्मृति अमेठी में आती रहीं हैं. हांलाकि अमेठी संसदीय सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है. यहां राहुल गांधी के लिए उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा चुनाव प्रचार में जुटी हैं. प्रियंका को पार्टी महा सचिव के साथ-साथ पूर्वी यूपी के प्रभारी की जिम्मेदारी दी गई है.

शत्रुघ्न कांग्रेस में तो आए लेकिन RSS नहीं छोड़ी: आचार्य प्रमोद कृष्णम

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राजनीति में पार्टी का रिश्ता अलग और पारिवारिक रिश्ता अलग तरह से निभाने की कोशिशें की जाती हैं लेकिन दोनों रिश्ते एक साथ निभाने की बात आए तो किसी एक में खटास लाजमी है. कुछ ऐसा ही हाल है यूपी की लखनऊ लोकसभा सीट पर, जहां हाल ही कांग्रेस में शामिल होने वाले शुत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी एसपी टिकट पर चुनाव मैदान में है और आचार्य प्रमोद कृष्णम उनकी पार्टी के उम्मीदवार. नाराज चल रहे आचार्य ने बयान दिया है कि शत्रुघ्न कांग्रेस में शामिल तो हो गए हैं लेकिन अभी तक आरएसएस से इस्तीफा नहीं दिया है.

बता दें कि शत्रुघ्न सिन्हा ने लखनऊ संसदीय सीट से एसपी प्रत्याशी व पत्नी पूनम सिन्हा के लिए रोड़ शो किया था. तभी से कांग्रेस प्रत्याशी आचार्य कृष्णम उनसे नाराज चल रहे हैं. इसी नाराजगी में आचार्य ने एक ट्वीट कर शत्रुघ्न सिन्हा को निशाने पर लेते हुए हमला किया है. ट्वीट में उन्होंने कहा कि शत्रुघ्न सिन्हा कांग्रेस में शामिल तो हो गए हैं, लेकिन इन्होंने अब तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से इस्तीफा नहीं दिया है.

यूपी की लखनऊ सीट हॉट लोकसभा सीटों में शूमार है जहां इस बार बड़ा ही दिलचस्प मुकाबला देखने को मिलने वाला है. यहां से बीजेपी की तरफ से केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह उम्मीदवार हैं. वहीं कांग्रेस ने संभल के कल्कि पीठ आचार्य प्रमोद कृष्णम को चुनावी रण में उतारा है. कांग्रेस की ओर से वे प्रसिद्ध संत चेहरा हैं. साल 2014 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर संभल से चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे. कांग्रेस से प्रमोद कृष्णम का पुराना नाता रहा है. कहा जाता है कि आचार्य कृष्णम, राजीव गांधी के करीबी लोगों में शामिल थे.

दिल्ली में केजरीवाल को झटका, आप विधायक बीजेपी में शामिल

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लोकसभा चुनाव के समर में दल बदलने का सिलसिला जारी है. दिल्ली केे गांधीनगर से आप विधायक अनिल वाजपेयी के बीजेपी में शामिल होने की अटकलें लगातार जोर पकड़े हुए थी. आखिरकार इन सब पर विराम लगाते हुए आप विधायक वाजपेयी शुक्रवार को बीजेपी में शामिल हो गए. बता दें कि आम आदमी पार्टी पिछले काफी दिनों से बीजेपी पर अपने विधायकों को खरीदने की कोशिश करने के आरोप लगाती रही है. शुक्रवार को दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल ने खुद ट्वीट कर सीधा पीएम मोदी पर हमला बोला था. जिसमें उन्होंने विधायकों को मोटी पैसे की रकम देने की बात कही थी. साथ ही पीएम मोदी से सवाल भी पूछा था कि इतना पैसा वे लाते कहां से हैं.

आप प्रमुख एवं दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को पीएम नरेंद्र मोदी पर विधायकों की खरीद फरोख्त का आरोप लगाते हुए अपने ट्वीटर हैंडल पर एक ट्वीट किया. ट्वीट में केजरीवाल ने पीएम मोदी से पूछा है कि क्या वे सभी विपक्षी सरकारों के विधायकों को खरीदकर सरकार गिराने में लगे हैं. इसी बीच दिल्ली के गांधीनगर से आप विधायक अनिल वाजपेयी में शामिल हो गए हैं. पिछले लंबे समय से आम आदमी पार्टी बीजेपी पर उनके विधायकों को खरीदने के आरोप लगाती आ रही है.

12 मई को दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर एक साथ मतदान होने वाला है. इस बीच गांधीनगर विधायक अनिल वाजपेयी ने बीजेपी में शामिल होकर आप को करारा झटका दिया है. बीते कई दिनों से दिल्ली में अन्य पार्टियों से गठबंधन और उम्मीदवारी को लेकर वे पार्टी से खफा बताए जा रहे थे. आखिरकार तमाम अटकलों पर विराम लगाते हुए अनिल वाजपेयी ने बीजेपी का दामन थाम लिया. इससे पहले अरविंद केजरीवाल ने अपने ट्वीट में कटाक्ष करते हुए यह भी पूछा है कि पीएम मोदी इतना पैसा कहां से लाते हैं.

बता दें कि ट्वीट में सीएम अरविंद केजरीवाल ने एक अखबार की कटिंग भी शेयर की थी, जिसमें बीजेपी नेता विजय गोयल द्वारा आप के 14 विधायकों के उनके संपर्क में होने की बात लिखी थी. गोयल का ये बयान हाल ही में खासा चर्चा में बना हुआ था. केजरीवाल ने ट्वीट में लिखा कि मोदी जी, आप हर विपक्षी पार्टी के राज्य में विधायक खरीद कर सरकारें गिराओगे? केजरीवाल ने पूछा है कि क्या यही आपकी जनतंत्र की परिभाषा है? और इतने विधायक ख़रीदने के लिए इतना पैसा कहां से लाते हो? इसके अलावा केजरीवाल ने कहा कि आप लोग पहले भी कई बार हमारे विधायक ख़रीदने की कोशिश कर चुके हैं लेकिन हमारे विधायकों को ख़रीदना आसान नहीं है.

बता दें कि दिल्ली के चुनावी दंगल में इस बार मुकाबला त्रिकोणीय होता दिख रहा है. तमाम कोशिशों के बाद भी आप-कांग्रेस गठबंधन पर बात नहीं बनने पर अब बीजेपी सहित तीनों दल चुनावी मैदान में हैं. 12 मई को होने वाले चुनाव के लिए बीजेपी ने यहां पूर्व सांसदों के अलावा फिल्मी हस्तियों पर दांव खेला है. पिछले काफी समय से दिल्ली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने बीजेपी पर उनके विधायकों को खरीदने के खुलकर आरोप लगा रहे हैं. खुद बीजेपी नेताओं के आ रहे बयानों के बीच अब आप विधायक के पार्टी छोड़ने के बाद बड़ी सियासी बहस छिड़ सकती है.

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