राजस्थान: बीकानेर में हार-जीत से तय होगा तीन दिग्गजों का राजनीतिक भविष्य
बीकानेर संसदीय सीट पर लगातार तीन बार से हार का सामना कर रही कांग्रेस इस बार भाजपा प्रत्याशी अर्जुन मेघवाल के विरोध को देखकर उम्मीद कर रही है कि इस बार वो उन्हें की जीत की हैट्रिक नहीं देगी. कांग्रेस नेताओं को लगता है कि केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल के खिलाफ माहौल है, जिसका उसे फायदा मिलना तय है.
अब जीत हार तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इतना तय है कि ये चुनाव निश्चित रूप से अर्जुन मेघवाल के राजनीतिक भविष्य को भी तय करेंगे. 10 साल पहले प्रशासन से राजनीति में आए अर्जुन केंद्र की भाजपा की सरकार में मोदी के खास मंत्रियों में शामिल हैं. राजस्थान की भाजपा की राजनीति में अर्जुन को मोदी और शाह के प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों में माना जाता है.
अर्जुन मेघवाल चुनाव लड़ रहे हैं इसलिए उनके भविष्य से चुनाव सीधा जुड़ा हुआ है, उनके अलावा दो और नेता ऐसे हैं जिनका राजनीतिक भविष्य भी कहीं ना कहीं इस चुनाव परिणाम से जुड़ा हुआ है. इनमें पहला नाम है देवी सिंह भाटी. दरअसल, अर्जुन मेघवाल को टिकट देने से पहले ही विरोध को लेकर मुखर हुए भाटी ने भाजपा से इस्तीफा दे दिया था. वे लगातार बीकानेर संसदीय क्षेत्र में अर्जुन के विरोध में प्रचार कर उनको हराने के लिए पसीना बहा रहे हैं.
कांग्रेस में जाने से साफ इंकार करने वाले देवी सिंह भाटी अर्जुन को हराने के लिए कांग्रेस को वोट देने की बात कहने से भी नहीं चूक रहे हैं. उनकी खुली बगावत को देखते हुए भाजपा नेतृत्व ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है. भाटी बीकानेर लोकसभा क्षेत्र में लगातार सुबह से लेकर शाम तक अलग-अलग जगहों पर नुक्कड़ सभाएं कर अर्जुन को हराने के लिए लोगों को लामबंद कर सक्रियता दिखा रहे हैं.
जिस तरह से देवी सिंह भाटी विरोध के प्रचार में हैं, उसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि यह चुनाव एक तरह से अर्जुन वर्सेज भाटी हो गया है. ऐसे में बीकानेर का चुनाव परिणाम भाटी के सियासती कद को तय करेगा. वो भी ऐसे समय में जब वे खुद लगातार दो बार कोलायत विधानसभा में वे सफल नहीं हुए हैं.
गौरतलब है कि 1980 से 2013 तक देवी सिंह भाटी कोलायत के विधायक रहे हैं, लेकिन इसके बाद 2013 में हुए चुनावों में भाटी चुनाव हार गए थे और 2018 के चुनाव में खुद भाटी ने चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर अपनी पुत्रवधु पूनम कंवर को मैदान में उतारा मगर वे भी चुनाव हार गईं. जिसके बाद अब भाटी के लिए यह चुनाव खुद की राजनीतिक जमीन को वापिस ऊपजाऊ करने का जरिया है, क्योंकि ये चुनाव का परिणाम जिले में उनके रुतबे को साफ करेगा.
देवी सिंह भाटी के बाद दूसरा नाम रामेश्वर डूडी का है. पिछली विधानसभा में कांग्रेस के 21 विधायकों में पहली बार विधायक बनकर शामिल हुए डूडी को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था और पांच साल तक नेता प्रतिपक्ष रहे डूडी की विधानसभा चुनावों में टिकट वितरण में भी अहम भूमिका रही, लेकिन इन चुनावों में खुद डूडी अपनी परंपरागत सीट नोखा से चुनाव हार गए.
बीकानेर जिले में जाट मतदाताओं की संख्या और उन पर रामेश्वर डूडी के प्रभाव को देखते हुए आलाकमान ने लोकसभा चुनाव में खाजूवाला विधायक और गोविंद मेघवाल की पुत्री सरिता चौहान को टिकट देने की बजाय डूडी की पसंद के रूप में मदन मेघवाल को टिकट दिया है. ऐसे में खुद डूडी पर भी इस बात की जिम्मेदारी है कि मदन मेघवाल चुनाव जीतें.
लोकसभा चुनाव में रामेश्वर डूडी की सक्रियता बीकानेर के इतर प्रदेश के अन्य हिस्सों में देखने को मिली है, लेकिन जिस तरह से डूडी ने मदन मेघवाल को टिकट दिलाने में भूमिका निभाई उसके बाद आने वाला परिणाम निश्चित रूप से प्रदेश की कांग्रेस राजनीति में डूडी के राजनीतिक कद को तय करेगा.
राजस्थान: नागौर सीट पर अपनों की अदावत से परेशान हनुमान और ज्योति
प्रदेश में लोकसभा के चुनाव का दूसरा चरण 6 मई को होगा. दूसरे चरण में नागौर लोकसभा सीट पर सभी की निगाहें टिकी हुई होंगी. इस सीट पर काफी रोचक मुकाबला देखने को मिल रहा है. कांग्रेस ने दिग्गज नेता रहे नाथूराम मिर्धा की पोती ज्योति मिर्धा को एक बार फिर चुनावी समर में उतारा है, वहीं भाजपा ने आरएलपी के साथ चुनावी गठबंधन करते हुए यह सीट आरएलपी उम्मीदवार हनुमान बेनीवाल को दी है.
दोनों ही प्रत्याशी की पार्टी और विचारधारा की लड़ाई तो समझ में आती है, लेकिन वास्तविक जिंदगी में भी दोनों एक दूसरे के कट्टर विरोधी माने जाते हैं. ऐसे में दोनों पार्टियों की प्रतिष्ठा से कहीं ज्यादा स्वयं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. तीन दशक बाद भाजपा ने किसी सहयोगी दल से गठबंधन किया है. इस चुनावी समर में सबसे बड़ी खास बात यह है कि दोनों ही उम्मीदवारों को अपने प्रतिद्वंदी के साथ ही खुद ही पार्टी के दिग्गज नेताओं से भी लड़ना होगा.
कांग्रेस की बात की जाए तो कांग्रेस प्रत्याशी ज्योति मिर्धा के टिकट को लेकर काफी विवाद हुआ था. कांग्रेस के अधिकांश विधायक ज्योति मिर्धा को टिकट देने का विरोध कर रहे थे. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी माने जाने वाले नावां विधायक एवं उप मुख्य सचेतक महेंद्र चौधरी, डेगाना विधायक विजय मिर्धा, डीडवाना विधायक चेतन डूडी, पूर्व जिलाध्यक्ष जगदीश शर्मा, कांग्रेस जिला अध्यक्ष जाकिर हुसैन सहित सभी कई नेताओं ने ज्योति मिर्धा को उम्मीदवार नहीं बनाने के मांग की थी.
पार्टी के दिग्गज नेताओं के विरोध के चलते आलाकमान ने एक बार तो ज्योति मिर्धा का टिकट काटने का मानस बना लिया था, लेकिन ऐन वक्त पर हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा की दखलंदाजी के बाद आखिरकार आलाकमान को उन्हें प्रत्याशी बनाना पड़ा. ऐसे में ज्योति मिर्धा के साथ भितरघात की बात से इनकार नहीं किया जा सकता. नागौर की राजनीति में महेंद्र चौधरी, रिछपाल मिर्धा, हरेंद्र मिर्धा, चेतन डूडी का भी काफी बड़ा प्रभाव है. ऐसे में ज्योति मिर्धा इन दिग्गजो से कैसे निपट पाती है यह देखने वाली बात होगी.
बात करें आरएलपी के उम्मीदवार हनुमान बेनीवाल की तो उनकी राह भी आसान नहीं है. भाजपा के अधिकांश नेता आरएलपी के साथ गठबंधन से खुश नहीं हैं. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नजदीकी रहे पूर्व पीडब्ल्यूडी मंत्री यूनुस खान और गजेंद्र सिंह खींवसर को हनुमान बेनीवाल का कट्टर विरोधी माना जाता है. इन दोनों नेताओं का नागौर में काफी प्रभाव है.
इधर केंद्रीय मंत्री सीआर चौधरी का टिकट काटे जाने से भी एक बड़ा खेमा नाराज नजर आ रहा है. सीआर चौधरी आम मतदाताओं के बीच शालीन ओर विनम्र नेता के रूप में अपनी पहचान रखते हैं. उनका टिकट काटे जाने से उनके समर्थक खुश नहीं हैं. हालांकि कहने को तो सीआर चौधरी हनुमान बेनीवाल के साथ चुनावी प्रचार में जुटे हुए हैं, लेकिन मतदान के दौरान हनुमान बेनीवाल का कितना साथ निभा पाते हैं, यह देखना रोचक होगा.
आनंद पाल प्रकरण के बाद राजपूत वर्ग में भी हनुमान बेनीवाल को लेकर विपरीत माहौल बना हुआ है. नागौर लोकसभा सीट में कुल 8 विधानसभा क्षेत्र हैं जिसमें से पांच कांग्रेस के पास, दो भाजपा के पास और एक आरएलपी के पास है. कुल 8 सीटों में से 1 सीट रिजर्व है शेष 7 सीटों पर सभी विधायक जाट समाज से हैं. ऐसे में जाट मतदाताओं का रूझान किस ओर होता है इस पर सभी की निगाहें टिकी होगी. जहां युवाओं में नरेंद्र मोदी और हनुमान बेनीवाल के प्रति जबरदस्त क्रेज है तो वहीं बुजुर्ग और कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में ज्योति मिर्धा की पहचान बाबा की पोती के नाम से है.
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि नागौर का मुकाबला भी काफी कड़ा होने वाला है. देखना होगा कि क्या अपने दादा नाथूराम मिर्धा की राजनीतिक विरासत पर सवार ज्योति मिर्धा इस बार अपनी जीत सुनिश्चित कर पाती हैं या भाजपा के साथ गठबंधन करने वाले हनुमान बेनीवाल अपनी चुनावी वैतरणी को पार लगाते हैं.
राज्यवर्धन का विवादित बयान, कहा- सारी सेना मोदी जी के साथ खड़ी है
कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला की ओर से यूपीए सरकार के दौरान 6 सर्जिकल स्ट्राइक होने के दावे पर केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने पलटवार करते हुए विवादित बयान दिया है. उन्होंने कहा कि फौज में तो हम थे न, हमें पता है न क्या हुआ, क्या नहीं हुआ. सारी सेना आज भारतीय जनता पार्टी, मोदी जी के साथ खड़ी है, ऐसे ही नहीं खड़ी हुई, हम जानते हैं वहां क्या होता है. राठौड़ के इस बयान पर विवाद हो सकता है.
Union Minister RS Rathore on Congress says 6 surgical strikes were conducted in our tenure: Fauj mein toh hum the na, hume pata hai na kya hua kya nahi hua. Saari sena aaj Bharatiya Janta Party Modi ji ke saath khadi hai, aise hi nahi khadi huyi,hum jaante hain wahan kya hota tha pic.twitter.com/kViwXSnsr6
— ANI (@ANI) May 2, 2019
आपको बता दें कि कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने पीएम नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि यूपीए सरकार और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में भी सर्जिकल स्ट्राइक हुईं थी, लेकिन हमने कभी छाती नहीं पीटी. उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि भारत ने यूपीए शासन में छह और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में दो सर्जिकल स्ट्राइक की थी.
राजीव शुक्ला ने कहा कि न तो पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और न ही अटल बिहारी वाजपेयी ने सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर कभी प्रेस कॉन्फ्रेंस की. लेकिन जिस शख्स ने सिर्फ एक सर्जिकल स्ट्राइक की, वह अपनी पीठ थपथपा रहा है. बता दें, देश में वाजपेयी सरकार ने 1999 से 2004 तक और यूपीए सरकार ने 2004 से 2014 तक शासन की सत्ता संभाली. उन्होंने यह भी बताया कि भारत ने किस तारीख को ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की थी-
- पहली सर्जिकल स्ट्राइक: 21 जनवरी, 2000 को नाडला एन्क्लेव में – वाजपेयी सरकार
- दूसरी सर्जिकल स्ट्राइक: 18 सितंबर, 2003 को पुंछ के बरोह सेक्टर में – वाजपेयी सरकार
- तीसरी सर्जिकल स्ट्राइक: 19 जून, 2008 को जम्मू-कश्मीर के पुंछ स्थित भट्टल सेक्टर में – यूपीए सरकार
- चौथी सर्जिकल स्ट्राइक: 30 अगस्त से एक सितंबर, 2011 तक केल में नीलम रिवर वैली के पास शारदा सेक्टर में – यूपीए सरकार
- पांचवीं सर्जिकल स्ट्राइक: 6 जनवरी, 2013 को सावन पत्रा चेकपोस्ट पर – यूपीए सरकार
- छठी सर्जिकल स्ट्राइक: 27-28 जुलाई, 2013 को नजीरपीर सेक्टर में – यूपीए सरकार
- सातवी सर्जिकल स्ट्राइक: 6 अगस्त, 2013 को नीलम वैली पर – यूपीए सरकार और
- आठवी सर्जिकल स्ट्राइक: 14 जनवरी, 2014 को – यूपीए सरकार
बता दें, 2016 में हुए उरी आतंकी हमले के बाद इंडियन पैरा कमांडोज ने पीओके में घुसकर आतंकियों के लॉन्च पैड्स तबाह किए थे. बाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसकी जानकारी दी गई थी. उसके बाद इसी साल पुलवामा में 14 फरवरी को एक बम धमाके में 40 से ज्यादा सीआरपीएफ जवान शहीद हो गए थे, जिसके बाद हमले की जिम्मेदारी लेने वाले जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों पर वायुसेना ने बमबारी की थी.
सरकार ने इस हमले में 250 आतंकवादियों के मारे जाने का दावा किया था. इसके बाद कई विपक्षी नेताओं ने जैश के ठिकानों पर एयर स्ट्राइक के सबूत मांगे थे.
दलित नहीं मुस्लिम हैं हंसराज हंस, रद्द किया जाए पर्चा – आप
जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव समाप्ति की ओर बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे ही नित नए आरोप लगाकर खुलासे किये जा रहे हैं. हाल ही में चर्चा बने राहुल गांधी की दोहरी नागरिकता के मुद्दे के बाद अब बीजेपी प्रत्याशी हंसराज हंस के नामांकन पर सवाल उठाया गया है. आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और कैबिनेट मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने कहा है कि दिल्ली की उत्तर पश्चिमी लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है. लेकिन बीजेपी ने जो अपना प्रत्याशी उतारा है वह अनुसूचित जाति का है ही नहीं.
Hans Raj Hans is ineligible to fight from a reserved seat. He will finally be declared ineligible. Voters from North West Delhi shud not waste their votes on him. https://t.co/elwnhNuDte
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) May 2, 2019
आप नेता व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इस पर टिप्पणी कर हंसराज हंस को अयोग्य बताया है. आप नेता गौतम ने आरोप लगाया है कि नामांकन पत्र में बीजेपी प्रत्याशी हंसराज हंस द्वारा कुछ जानकारियां छुपाई गई हैं. उन्होंने हंसराज हंस को मुस्लिम बताया है. आप का आरोप है कि उत्तर पश्चिम दिल्ली लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. लेकिन बीजेपी के उम्मीदवार इस समुदाय के नहीं है. पार्टी ने मुद्दे पर कोर्ट जाने की बात कही है.
आम आदमी पार्टी के नेता राजेंद्र पाल गौतम का कहना है कि बीजेपी प्रत्याशी ने पूर्व में ही धर्म परिवर्तन कर लिया है, लिहाजा अब वे एससी समुदाय के नहीं माने जा सकते. क्योंकि उत्तर पश्चिम सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है तो बीजेपी के वर्तमान में जो प्रत्याशी हैं, वह उस सीट से चुनाव नहीं लड़ सकते हैं. आम आदमी पार्टी के मुताबिक बीजेपी प्रत्याशी ने जानकारी छिपाकर चुनाव आयोग के कानूनों का उल्लंघन किया है.
आम आदमी पार्टी की लीगल टीम कोर्ट में याचिका दायर करेगी और कोर्ट से अपील करेगी कि तुरंत प्रभाव से बीजेपी उम्मीदवार हंसराज हंस उर्फ मोहम्मद यूसुफ का नामांकन रद्द किया जाए. आप नेता गौतम ने आगे कहा कि बीजेपी प्रत्याशी हंसराज हंस ने 20 फरवरी 2014 को धर्म परिवर्तन कर इस्लाम कबूल कर लिया था. इस संबंध में देश के कई प्रतिष्ठित अखबारों में खबर छपी थी.
कई मीडिया चैनल पर इस संबंध में स्टोरी भी चलाई गई थीं. धर्म परिवर्तन के बाद हंस राज हंस ने अपना नाम परिवर्तित करके मोहम्मद यूसुफ रखा था. हालांकि हंसराज हंस ने कहा था कि उन्होंने धर्म परिवर्तन कर लिया है, लेकिन वह फ़िल्म इंडस्ट्री में अपने पुराने नाम से ही काम करते रहेंगे.
गौरतलब है कि बीजेपी ने सूफी व पंजाबी गायक हंसराज हंस को लोकसभा की उत्तर पश्चिम दिल्ली सीट से प्रत्याशी बनाया है. इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय माना जा है. सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी ने गुग्गन सिंह को तो कांग्रेस ने राजेश लिलोठिया को यहां से टिकट दिया है. लोक गायक के रूप में मशहूर हंस को हिंदी फिल्म बिच्छू के एक गीत दिल टोटे टोटे हो गया से खासी प्रसिद्धि मिली थी.
पुलवामा हमला और एयर स्ट्राइक बीजेपी का प्लान: शंकर सिंह वाघेला
लोकसभा के चुनावी समर में आरोप-प्रत्यारोप की फेहरिस्त लगातार लंबी होती जा रही है. निर्वाचन आयोग की सख्ती के बाद भी नेता अपने विवादित बयानों को भड़काऊ के साथ-साथ बयान अश्लीलता तक ले जाने से बाज नहीं आ रहे हैं. विवादित बयानों की इस कड़ी में अब गुजरात के पूर्व सीएम व एनसीपी नेता शंकरसिंह वाघेला का नाम भी जुड़ गया है. यूएन द्वारा मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित करने के बीच वाघेला ने पुलवामा आतंकी हमले को बीजेपी की साजिश बताया है. जिसे लेकर देश में सियासी पारा चरम पर है.
मीडिया से बातचीत में एनसीपी नेता शंकर सिंह वाघेला ने बीजेपी पर एक बड़ा आरोप लगाया है. वाघेला ने कहा कि गोधरा कांड के जैसे ही पुलवामा आतंकी हमला भी बीजेपी की एक साजिश थी. वाघेला ने आरोप लगाया कि बीजेपी चुनाव जीतने के लिए आतंकवाद का इस्तेमाल कर रही है. साथ ही वाघेला ने कहा कि पुलवामा आतंकी हमले में इस्तेमाल होने वाली कार का रजिस्ट्रेशन नंबर गुजरात का था. इसी कार में आतंकी आरडीएक्स भरकर ले गए थे. उन्होंने कहा कि पिछले पांच सालों में कई आतंकवादी हमले हुए हैं.
इसके अलावा शंकर सिंह वाघेला ने बालाकोट में इंडियन एयरफोर्स की तरफ से की गई एयर स्ट्राइक का भी जिक्र किया. इसे भी बीजेपी की साजिश करार देते हुए उन्होंने कहा कि, बालाकोट में हुई एयर स्ट्राइक में कोई भी नहीं मारा गया. अभी तक कोई भी इंटरनेशनल एजेंसी ये साबित नहीं कर पाई कि इस हमले में कितने आतंकी मरे थे. उन्होंने कहा कि अगर केंद्र सरकार के पास बालाकोट में आतंकी कैंपों की पहले से ही जानकारी थी, तो पहले ही हमला क्यों नहीं किया गया. क्या इसके लिए पुलवामा जैसे हमले का इंतजार था?
गौरतलब है कि पुलवामा आतंकी हमले और बालाकोट एयर स्ट्राइक को लेकर शंकर सिंह वाघेला से पहले भी कई नेता सवाल उठा चुके है. हालांकि बीजेपी नेता विपक्षी दलों के ऐसे ही बयानों को अपनी चुनावी सभाओं में भुनाती नजर आती है. खुद पीएम मोदी और अमित शाह अपनी चुनावी रैलियों में विपक्षी नेताओं पर सेना से सबूत मांगने के आरोप लगाते आए हैं. अब एक बार फिर एनसीपी नेता की तरफ से जारी इस बयान का भी चुनावी रैलियों में जिक्र हो सकता है.
साथ ही वाघेला ने बीजेपी पर तंज कसते हुए कहा कि, ‘बीजेपी का गुजरात मॉडल झूठा है. राज्य तमाम मुश्किलों से गुजर रहा है. खुद बीजेपी नेता पार्टी से नाराज हैं और उन्हें लग रहा है कि वे बंधुआ मजदूर हैं. बता दें कि गुजरात में 26 लोकसभा सीटें हैं. पिछली बार बीजेपी सभी सीटों पर कब्जा जमाने में कामयाब रही थी, लेकिन इस बार कांग्रेस और अन्य दल कड़ी टक्कर दे रहे हैं.
मालूम हो कि बीती 14 फरवरी को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकियों ने सीआरपीएफ के काफिले को निशाना बनाया था. आतंकियों ने आरडीएक्स से भरी एक कार को काफिले के बीच में घुसा दिया, जिसके बाद बसों के परखच्चे उड़ गए. इस आतंकी हमले में 40 जवान शहीद हुए थे. इसके बाद जवाबी कार्रवाई में भारत ने पाक अधिकृत कश्मीर में एयर स्ट्राइक कर आतंकियों के ठिकानों को नेस्तेनाबूद किया था.
सुब्रमण्यम स्वामी का बयान फिर बना BJP के लिए परेशानी का सबब
सुब्रमण्यम स्वामी अक्सर अपने बयानों के कारण चर्चा में रहते है. उनका अंदाज यही है कि बेबाक किसी के बारे में टिप्पणी कर देते है. कई बार तो उनके बयान खुद बीजेपी के लिए ही गले की फांस बन जाते है. उनका हालिया दिया हुआ बयान भी बीजेपी की मुसीबत बढ़ाने वाला है. स्वामी ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि बीजेपी को इस बार लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा. बीजेपी सिर्फ 220-230 सीटों के बीच सिमट जाएगी और उसे सत्ता मे बने रहने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा. उन्होंने यह भी कहा कि अगर पुलवामा हमले के बाद बालाकोट में एयर स्ट्राइक नहीं होती तो बीजेपी के हालात बहुत खराब होते. तब बीजेपी केवल 160 सीटों तक सिमट जाती.
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नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनने के सवाल पर स्वामी ने कहा कि मान लीजिए बीजेपी को लोकसभा चुनाव में 220 से 230 सीटें मिलती है और उनके सहयोगियों के खाते में 20 से 30 सीटें आती है तो भी उनको बहुमत के लिए 30 से 40 सीटों की जरुरत पड़ेगी. ऐसे में सहयोगियों पर निर्भर करता है कि वो प्रधानमंत्री पद के लिए किस नेता को पसंद करते है. उन्होंने कहा कि बीजेपी के पुराने सहयोगी बीजद सुप्रीमो नवीन पटनायक पहले ही नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए अयोग्य मान चुके है. ऐसे में बीएसपी सुप्रामो मायावती चुनाव के बाद एनडीए को नेतृत्व बदलने की सूरत में समर्थन दे सकती है.