बीकानेर संसदीय सीट पर लगातार तीन बार से हार का सामना कर रही कांग्रेस इस बार भाजपा प्रत्याशी अर्जुन मेघवाल के विरोध को देखकर उम्मीद कर रही है कि इस बार वो उन्हें की जीत की हैट्रिक नहीं देगी. कांग्रेस नेताओं को लगता है कि केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल के खिलाफ माहौल है, जिसका उसे फायदा मिलना तय है.
अब जीत हार तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इतना तय है कि ये चुनाव निश्चित रूप से अर्जुन मेघवाल के राजनीतिक भविष्य को भी तय करेंगे. 10 साल पहले प्रशासन से राजनीति में आए अर्जुन केंद्र की भाजपा की सरकार में मोदी के खास मंत्रियों में शामिल हैं. राजस्थान की भाजपा की राजनीति में अर्जुन को मोदी और शाह के प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों में माना जाता है.
अर्जुन मेघवाल चुनाव लड़ रहे हैं इसलिए उनके भविष्य से चुनाव सीधा जुड़ा हुआ है, उनके अलावा दो और नेता ऐसे हैं जिनका राजनीतिक भविष्य भी कहीं ना कहीं इस चुनाव परिणाम से जुड़ा हुआ है. इनमें पहला नाम है देवी सिंह भाटी. दरअसल, अर्जुन मेघवाल को टिकट देने से पहले ही विरोध को लेकर मुखर हुए भाटी ने भाजपा से इस्तीफा दे दिया था. वे लगातार बीकानेर संसदीय क्षेत्र में अर्जुन के विरोध में प्रचार कर उनको हराने के लिए पसीना बहा रहे हैं.
कांग्रेस में जाने से साफ इंकार करने वाले देवी सिंह भाटी अर्जुन को हराने के लिए कांग्रेस को वोट देने की बात कहने से भी नहीं चूक रहे हैं. उनकी खुली बगावत को देखते हुए भाजपा नेतृत्व ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है. भाटी बीकानेर लोकसभा क्षेत्र में लगातार सुबह से लेकर शाम तक अलग-अलग जगहों पर नुक्कड़ सभाएं कर अर्जुन को हराने के लिए लोगों को लामबंद कर सक्रियता दिखा रहे हैं.
जिस तरह से देवी सिंह भाटी विरोध के प्रचार में हैं, उसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि यह चुनाव एक तरह से अर्जुन वर्सेज भाटी हो गया है. ऐसे में बीकानेर का चुनाव परिणाम भाटी के सियासती कद को तय करेगा. वो भी ऐसे समय में जब वे खुद लगातार दो बार कोलायत विधानसभा में वे सफल नहीं हुए हैं.
गौरतलब है कि 1980 से 2013 तक देवी सिंह भाटी कोलायत के विधायक रहे हैं, लेकिन इसके बाद 2013 में हुए चुनावों में भाटी चुनाव हार गए थे और 2018 के चुनाव में खुद भाटी ने चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर अपनी पुत्रवधु पूनम कंवर को मैदान में उतारा मगर वे भी चुनाव हार गईं. जिसके बाद अब भाटी के लिए यह चुनाव खुद की राजनीतिक जमीन को वापिस ऊपजाऊ करने का जरिया है, क्योंकि ये चुनाव का परिणाम जिले में उनके रुतबे को साफ करेगा.
देवी सिंह भाटी के बाद दूसरा नाम रामेश्वर डूडी का है. पिछली विधानसभा में कांग्रेस के 21 विधायकों में पहली बार विधायक बनकर शामिल हुए डूडी को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था और पांच साल तक नेता प्रतिपक्ष रहे डूडी की विधानसभा चुनावों में टिकट वितरण में भी अहम भूमिका रही, लेकिन इन चुनावों में खुद डूडी अपनी परंपरागत सीट नोखा से चुनाव हार गए.
बीकानेर जिले में जाट मतदाताओं की संख्या और उन पर रामेश्वर डूडी के प्रभाव को देखते हुए आलाकमान ने लोकसभा चुनाव में खाजूवाला विधायक और गोविंद मेघवाल की पुत्री सरिता चौहान को टिकट देने की बजाय डूडी की पसंद के रूप में मदन मेघवाल को टिकट दिया है. ऐसे में खुद डूडी पर भी इस बात की जिम्मेदारी है कि मदन मेघवाल चुनाव जीतें.
लोकसभा चुनाव में रामेश्वर डूडी की सक्रियता बीकानेर के इतर प्रदेश के अन्य हिस्सों में देखने को मिली है, लेकिन जिस तरह से डूडी ने मदन मेघवाल को टिकट दिलाने में भूमिका निभाई उसके बाद आने वाला परिणाम निश्चित रूप से प्रदेश की कांग्रेस राजनीति में डूडी के राजनीतिक कद को तय करेगा.