प्रदेश में लोकसभा के चुनाव का दूसरा चरण 6 मई को होगा. दूसरे चरण में नागौर लोकसभा सीट पर सभी की निगाहें टिकी हुई होंगी. इस सीट पर काफी रोचक मुकाबला देखने को मिल रहा है. कांग्रेस ने दिग्गज नेता रहे नाथूराम मिर्धा की पोती ज्योति मिर्धा को एक बार फिर चुनावी समर में उतारा है, वहीं भाजपा ने आरएलपी के साथ चुनावी गठबंधन करते हुए यह सीट आरएलपी उम्मीदवार हनुमान बेनीवाल को दी है.

दोनों ही प्रत्याशी की पार्टी और विचारधारा की लड़ाई तो समझ में आती है, लेकिन वास्तविक जिंदगी में भी दोनों एक दूसरे के कट्टर विरोधी माने जाते हैं. ऐसे में दोनों पार्टियों की प्रतिष्ठा से कहीं ज्यादा स्वयं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. तीन दशक बाद भाजपा ने किसी सहयोगी दल से गठबंधन किया है. इस चुनावी समर में सबसे बड़ी खास बात यह है कि दोनों ही उम्मीदवारों को अपने प्रतिद्वंदी के साथ ही खुद ही पार्टी के दिग्गज नेताओं से भी लड़ना होगा.

कांग्रेस की बात की जाए तो कांग्रेस प्रत्याशी ज्योति मिर्धा के टिकट को लेकर काफी विवाद हुआ था. कांग्रेस के अधिकांश विधायक ज्योति मिर्धा को टिकट देने का विरोध कर रहे थे. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी माने जाने वाले नावां विधायक एवं उप मुख्य सचेतक महेंद्र चौधरी, डेगाना विधायक विजय मिर्धा, डीडवाना विधायक चेतन डूडी, पूर्व जिलाध्यक्ष जगदीश शर्मा, कांग्रेस जिला अध्यक्ष जाकिर हुसैन सहित सभी कई नेताओं ने ज्योति मिर्धा को उम्मीदवार नहीं बनाने के मांग की थी.

पार्टी के दिग्गज नेताओं के विरोध के चलते आलाकमान ने एक बार तो ज्योति मिर्धा का टिकट काटने का मानस बना लिया था, लेकिन ऐन वक्त पर हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा की दखलंदाजी के बाद आखिरकार आलाकमान को उन्हें प्रत्याशी बनाना पड़ा. ऐसे में ज्योति मिर्धा के साथ भितरघात की बात से इनकार नहीं किया जा सकता. नागौर की राजनीति में महेंद्र चौधरी, रिछपाल मिर्धा, हरेंद्र मिर्धा, चेतन डूडी का भी काफी बड़ा प्रभाव है. ऐसे में ज्योति मिर्धा इन दिग्गजो से कैसे निपट पाती है यह देखने वाली बात होगी.

बात करें आरएलपी के उम्मीदवार हनुमान बेनीवाल की तो उनकी राह भी आसान नहीं है. भाजपा के अधिकांश नेता आरएलपी के साथ गठबंधन से खुश नहीं हैं. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नजदीकी रहे पूर्व पीडब्ल्यूडी मंत्री यूनुस खान और गजेंद्र सिंह खींवसर को हनुमान बेनीवाल का कट्टर विरोधी माना जाता है. इन दोनों नेताओं का नागौर में काफी प्रभाव है.

इधर केंद्रीय मंत्री सीआर चौधरी का टिकट काटे जाने से भी एक बड़ा खेमा नाराज नजर आ रहा है. सीआर चौधरी आम मतदाताओं के बीच शालीन ओर विनम्र नेता के रूप में अपनी पहचान रखते हैं. उनका टिकट काटे जाने से उनके समर्थक खुश नहीं हैं. हालांकि कहने को तो सीआर चौधरी हनुमान बेनीवाल के साथ चुनावी प्रचार में जुटे हुए हैं, लेकिन मतदान के दौरान हनुमान बेनीवाल का कितना साथ निभा पाते हैं, यह देखना रोचक होगा.

आनंद पाल प्रकरण के बाद राजपूत वर्ग में भी हनुमान बेनीवाल को लेकर विपरीत माहौल बना हुआ है. नागौर लोकसभा सीट में कुल 8 विधानसभा क्षेत्र हैं जिसमें से पांच कांग्रेस के पास, दो भाजपा के पास और एक आरएलपी के पास है. कुल 8 सीटों में से 1 सीट रिजर्व है शेष 7 सीटों पर सभी विधायक जाट समाज से हैं. ऐसे में जाट मतदाताओं का रूझान किस ओर होता है इस पर सभी की निगाहें टिकी होगी. जहां युवाओं में नरेंद्र मोदी और हनुमान बेनीवाल के प्रति जबरदस्त क्रेज है तो वहीं बुजुर्ग और कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में ज्योति मिर्धा की पहचान बाबा की पोती के नाम से है.

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि नागौर का मुकाबला भी काफी कड़ा होने वाला है. देखना होगा कि क्या अपने दादा नाथूराम मिर्धा की राजनीतिक विरासत पर सवार ज्योति मिर्धा इस बार अपनी जीत सुनिश्चित कर पाती हैं या भाजपा के साथ गठबंधन करने वाले हनुमान बेनीवाल अपनी चुनावी वैतरणी को पार लगाते हैं.

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