लोकसभा चुनाव: सात राज्यों की 59 सीटों पर थमा प्रचार का शोर, 12 मई को होगी वोटिंग
लोकसभा चुनाव के छठे चरण का प्रचार का शोर पूरी तरह थम गया है. चुनाव प्रचार की समय सीमा समाप्त होने के बाद अब उम्मीदवार घर-घर जाकर ही वोट मांग पाएंगे. इस चरण में बिहार, हरियाणा, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड़ और दिल्ली सहित सात राज्यों की 59 सीटों पर चुनाव होना है. मतदान 12 मई को होगा.
यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा, मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी, हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर, कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया, जजपा नेता दुष्यंत चौटाला, केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी, बसपा नेता रितेश पांडे, क्रिकेटर गौतम गंभीर, बॉक्सर विजेंद्र सिंह और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर जैसे दिग्गजों की किस्मत का फैसला इसी चरण में होगा.
छठे चरण में बिहार के वाल्मीकि नगर, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीहोर, वैशाली, गोपालगंज, सीवान और महाराजगंज में वोट डाले जाएंगे. इसी दिन हरियाणा की सभी 10 सीटों हिसार, रोहतक, सिरसा, अंबाला, कुरुक्षेत्र, सोनीपत, गुडगांव, फरीदाबाद, भिवानी और महेंद्रगढ़ में उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला होगा.
उत्तर प्रदेश की सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, फुलपुर, इलाहाबाद, अम्बेडकर नगर, श्रावस्ती, बस्ती, संतकबीरनगर, डुमिरयागंज, लालगंज, आजमगढ़, मछलीशहर, भदोही सीटों पर वोटिंग इसी चरण में है.
पश्चिम बंगाल की तामलुक, कांठी, घटल, झाड़ग्राम, बांकुरा, पुरुलिया, मिदनापुर, विष्णुपुर और झारखंड़ की गिरहिड़, जमशेदपुर, धनबाद और सिंहभूम पर चुनाव इसी दिन है.
देश की राजधानी दिल्ली की सभी सीटों चांदनी चौक, उत्तर पूर्वी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली, नई दिल्ली, उत्तर पश्चिमी दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली पर वोटिंग इसी चरण में है.
मध्यप्रदेश की मुरैना, भिंड, ग्वालियर, गुना, सागर विदिशा, भोपाल और राजगढ़ संसदीय सीटों पर भी प्रत्याशियों के भविष्य का फैसला होगा.
इन सबसे अलावा, कुछ वीआईपी सीटें भी हैं जहां देश के दिग्गज़ नेता अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
आजमगढ़
यहां से यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चुनाव मैदान में है. उनको कड़ी टक्कर देने के लिए बीजेपी ने भोजपुरी कलाकार दिनेश लाल यादव उर्फ निरुहवा को उतारा है. आजमगढ़ यादव-मुस्लिम बाहुल्य इलाका है. 2014 में यहां से मुलायम सिंह यादव सांसद चुने गए थे. मुलायम इस बार मैनपुरी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.
सोनीपत
सोनीपत में मुकाबला इस बार दिलचस्प है क्योंकि यहां से हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा चुनाव लड़ रहे हैं. बीजेपी ने वर्तमान सांसद रमेश कौशिक पर भरोसा जताते हुए उन्हें दोबारा चुनावी समर में उतारा है. जेजेपी उम्मीदवार दिग्विजय सिंह चौटाला सोनीपत के मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे हैं.
भोपाल
मध्यप्रदेश की अगर किसी सीट के नतीजे पर पूरे देश की निगाह हैं तो वो भोपाल है. यहां से बीजेपी ने मालेगांव बम धमाकों की आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस की तरफ से एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह मैदान में है. भोपाल के चुनावी नतीजे दोनों प्रत्याशियों के भविष्य का फैसला करने वाले होंगे. अगर दिग्विजय जीते तो ये बीजेपी के लिए बड़ा झटका होगा और साध्वी जीती तो बीजेपी हिंदू आतंकवाद के मुद्दे को आने वाले विधानसभा चुनावों में हवा देकर कांग्रेस को घेरेगी.
हिसार
यहां चुनाव लड़ रहे सभी मुख्य प्रत्याशी वंशवाद की बेल पर लगे हुए फूल हैं. यहां मुकाबला उम्मीदवारों के बीच न होकर राजनीतिक परिवारों के मध्य है. बीजेपी ने यहां से केंद्रीय मंत्री बीरेन्द्र सिंह के पुत्र बृजेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है. उनका सामना वर्तमान सांसद दुष्यंत चौटाला से होगा. बता दें कि दुष्यंत चौटाला पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के पोते है लेकिन इस बार वो जजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे है और मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे हैं. कांग्रेस के प्रत्याशी भव्य विश्नोई, जो पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के पोते है.
गुना
यह संसदीय क्षेत्र सिंधिया राजपरिवार का गढ़ है. 1957 से सिर्फ तीन बार ही इस सीट पर सिंधिया परिवार के इत्तर कोई सांसद बन पाया है. ये आंकड़े इस बात की तस्दीक कर देता है कि इस क्षेत्र में सिंधिया परिवार की पकड़ कितनी मजबूत है. कांग्रेस महासचिव ज्योदिरादित्य सिंधिया इस सीट से चार बार लगातार चुनाव जीत चुके हैं. पहला चुनाव उन्होंने अपने पिता माधवराज के निधन के बाद हुए उपचुनाव में लड़ा था. इस बार उनका मुकाबला बीजेपी के केपी यादव से है.
नितिन गडकरी का बड़ा बयान, कहा- बीजेपी कभी नहीं होगी नरेंद्र मोदी-अमित शाह की पार्टी
लोकसभा चुनाव के बीच राजनीतिक पार्टियों के नेताओं की बयानबाजी सुर्खियों में बनी हुई है. इसी बीच बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने ‘बीजेपी ही मोदी और मोदी ही बीजेपी’ पर अपना रूख स्पष्ट करते हुए कहा है कि बीजेपी कभी भी व्यक्ति केंद्रीय पार्टी नहीं रही है और न ही हो सकती है. एक मीडिया इंटरव्यू में गडकरी ने इस बात को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि चाहे इतिहास पर गौर कर लिया जाए तो बीजेपी न तो कभी अटल बिहारी वाजपेयी व लालकृष्ण आडवाणी की पार्टी बनी और न ही आगे भविष्य में नरेंद्र मोदी व अमित शाह की पार्टी बनेगी. उन्होंने तर्क दिया कि यह एक विचारधारा की पार्टी है न कि व्यक्ति केंद्रित.
साल 2014 में बड़ी जीत हासिल कर देश की सत्ता पर काबिज हुई बीजेपी की इस सफलता में मोदी-शाह की जोड़ी का अहम रोल माना जाता है. तभी से ही एक धारणा चल रही है कि बीजेपी यानि नरेंद्र मोदी- अमित शाह व बीजेपी ही मोदी व मोदी ही बीजेपी, लेकिन बीजेपी के वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी ने एक इंटरव्यू में इस धारणा के बारे में खुलकर अपना पक्ष रखा. गडकरी ने इस धारणा को सिरे से नकार दिया. उन्होंने साफ किया कि पार्टी विचारधारा पर आधारित है न कि किसी व्यक्ति केंद्रित. गडकरी के इस बयान का सियासी वैज्ञानिक अलग-अलग मतलब निकाल रहे हैं. लिहाजा देश की सत्ता का फैसला करने वाले इन चुनावों में बीच गडकरी का ये बयान नई बहस लेकर आया है.
इंटरव्यू में केंद्रीय मंत्री गडकरी ने आगे कहा कि बीजेपी में नेता और पार्टी एक-दूसरे के पूरक हैं. गडकरी ने खुलकर कहा कि अगर नेता कमजोर हो और पार्टी मजबूत हो तो चुनाव जीत पाना संभव नहीं होता. वैसे ही अगर नेता मजबूत हो और पार्टी कमजोर हो तो भी बात नहीं बन सकती. जिसका सीधा मतलब था कि आज पार्टी के पास नरेंद्र मोदी जैसा लोकप्रिय नेता है और पार्टी उनके नाम पर मतदाताओं के बीच जा रही है. उन्होंने स्पष्ट किया कि राष्ट्रवाद बीजेपी की आत्मा है. बीजेपी का एजेंडा हमेशा से विकास ही रहा है. जबकि विपक्षी दल इस चुनाव में जातिवाद और सांप्रदायिकता का जहर घोलकर माहौल बिगाड़ने में लगे हैं.
वहीं नितिन गडकरी ने इन लोकसभा चुनावों में एनडीए की सरकार बनने की बात को फिर दोहराया है और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने की संभावनाओं से इनकार किया है. साथ ही यह साफ किया है कि बीजेपी को बहुमत मिलने की स्थिति में भी पार्टी सहयोगी दलों को साथ लेकर ही चलेगी. उन्होंने इस बात को भी फिर से दोहराया है कि वे प्रधानमंत्री पद की दौड़ में नहीं है. बता दें कि लोकसभा चुनाव के छठे चरण का मतदान 12 मई को होने जा रहा है. वहीं 19 मई को अंतिम चरण के मतदान के बाद जनता का फैसला 23 मई को आ जाएगा. इस दौरान गडकरी के इस बयान को पार्टी में कहीं न कहीं नतीजों में कोई आंशका से जोड़कर देखा जा रहा है.
अवमानना मामले पर कोर्ट से मांग, माफी रद्द कर राहुल गांधी पर हो कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट में आज राहुल गांधी के अवमानना मामले में सुनवाई हुई जिसमें मीनाक्षी लेखी के वकील मुकुल रोहतगी ने कोर्ट से मांग की है कि राहुल की माफी को नकारा जाए. साथ ही कहा है कि उन पर कार्रवाई की जाए. इस पर राहुल गांधी के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष ने इस मामले में पहले ही माफी मांग ली है. ऐसे में हम कोर्ट से मांग करते है कि इस मामले को खत्म किया जाए. दोनों पक्ष को सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपने फैसले को सुरक्षित रखा है.
बता दें कि राहुल गांधी ने एक चुनावी सभा के दौरान कहा था, ‘अब तो सुप्रीम कोर्ट भी मान गया है कि चौकीदार चोर है.’ इसपर बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने कोर्ट में राहुल गांधी के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की थी.
आज कोर्ट में राफेल विमान सौदे में कथित घोटाले को लेकर दायर हुई पुनर्विचार याचिका पर भी सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि सरकार ने कोर्ट के सामने गलत दस्तावेज प्रस्तुत किए है. यहां सरकार की तरफ से जिस बैठक का जिक्र किया गया है, वह बैठक तो विमान सौदे से पहले की गई थी. विमान सौदे के लिए सरकार ने किसी भी प्रकार की कोई बैठक नहीं की. इस पर प्रशांत भूषण ने कारवाई की मांग की. मामले में कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका के मुद्दे पर अगले दो हफ्तों में सरकार की दलीलों का जवाब देने का आदेश दिया है.
केजरीवाल को थप्पड़ मारने वाले शख्स को पता ही नहीं कि उसने ऐसा क्यों किया…
दिल्ली मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी को हाल ही में राजधानी में रोड शो के दौरान एक शख्स ने थप्पड़ मार दिया था. उस व्यक्ति का कथित तौर पर नाम सुरेश चौहान बताया जा रहा है. सुरेश ने बिना कुछ सोचे समझे और यह जानते हुए कि उनका यह कृत्य उन्हें सीधे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा देगा, इसके बावजूद उसने यह किया. असल में सुरेश ने किसी राजनीतिक दल के मुखिया का गाल लाल नहीं किया बल्कि एक राज्य के मुख्यमंत्री को थप्पड़ मारा है. अब उसे इस बात का अफसोस है और वह अपने किए पर पछता रहा है.
गौर करने वाली तो यह है कि इतने बड़े कृत्य के बाद उसे पता ही नहीं कि आखिर उसने यह किया तो क्यों किया. एक मीडिया संस्थान के एक रिपोर्ट के मुताबिक उस घटना को याद कर सुरेश कहते हैं, ‘पता नहीं मैंने क्यों उन्हें थप्पड़ मारा. मुझे इसका अफसोस है.’ खैर…अब होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत. केजरीवाल पर हमले के आरोप में सुरेश के खिलाफ आईपीसी की धारा 323 के तहत मामला दर्ज किया गया है.
याद दिला दें कि चार मई को आम आदमी पार्टी द्वारा आयोजित एक चुनावी रोड शो के दौरान सुरेश ने दिल्ली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को थप्पड़ मार दिया था. इसके बाद आप कार्यकर्ताओं ने सुरेश की जमकर धुनाई की और उसे पुलिस को सौंप दिया. सुरेश के इस बर्ताव के बाद सोशल मीडिया पर अफवाहें उड़ी थीं कि वह बीजेपी या कांग्रेस के सदस्य है. बीजेपी ने भी संशय जताया था कि सुरेश आप पार्टी से जुड़े हुए थे लेकिन सुरेश चौहान का कहना है कि वे किसी भी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े हैं. उन्होंने कहा, ‘मैं किसी पार्टी से नहीं जुड़ा हूं. किसी ने मुझे ऐसा करने को नहीं कहा था. पुलिस मेरे साथ गलत तरीके से पेश नहीं आई. उन्होंने बस इतना कहा कि मैंने जो किया वह गलत है.’
दिल्ली: सात सीट पर तीन बड़े राजनीतिक दल, कौन मार रहा चुनावी मैदान
देश की राजधानी और केंद्र शासित प्रदेश के अलावा दिल्ली राजनीति का केंद्र माना जाता है. हर किसी की निगाहें दिल्ली में जीत पर रहती है. राजनीतिक दल भी यहां अपना वर्चस्व बनाए रखने या बनाने के लिए दम-खम लगाते दिखते हैं. यहां की सातों संसदीय सीटों पर हर राजनीतिक दल जीत के सारे समीकरणों को ध्यान में रखकर ही उम्मीदवार उतारता है. इस बार के लोकसभा चुनाव में भी दिल्ली का दंगल हर किसी के लिए जिज्ञासा बना हुआ है. जहां सातों लोकसभा सीटों पर 12 मई को मतदान है और शुक्रवार शाम प्रचार थमने के बाद उम्मीदवार दिल्ली के वोटर्स की नब्ज टटोलने के लिए जनसंपर्क में जुटे हैं.
सियासी दलों ने दिल्ली के दंगल में खेल व मनोरंजन जगत की हस्तियों को उतार कर मुकाबला रोचक बना दिया है. यहां दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष व भोजपुरी स्टार मनोज तिवारी के बीच टक्कर है तो वहीं क्रिकेट के मैदान के बाद सियासी पिच पर भाग्य आजमाने उतरे गौतम गंभीर का भी भविष्य दांव पर है. इसके अलावा ओलंपिक पदक विजेता बॉक्सर विेजेंद्र सिंह भी चुनावी रिंग में भाग्य आजमा रहे हैं. आम आदमी पार्टी यहां दिल्ली को पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग के साथ अपनी प्रदेश सरकार के कार्यों पर वोट बटोरने में जुटी है तो वहीं बीजेपी यहां कांग्रेस के शासन के इतिहास को भाषणों में तरजीह देकर व मोदी के नाम पर मतदाताओं से वोट मांग रही है. साथ ही कांग्रेस न्याय दिलाने के साथ सत्ता परिवर्तन के नाम पर जनता के बीच पहुंच रही है.
प्रदेश की सातों सीटों पर कौन कितना और किस पर भारी है, इसको लेकर चर्चा चल रही है. 12 मई को दिल्ली के वोटर्स अपना सांसद चुनने के लिए निकलने वाले है. दिल्ली के अलावा देशभर के लोगों की निगाहें दिल्ली की राजनीति पर रहती हैं. यहां के तीनों प्रमुख सियासी दलों के प्रत्याशियों की जानकारी के लिए पॉलीटॉक्स लेकर आया है खास रिपोर्ट –
सीट आप कांग्रेस बीजेपी
नई दिल्ली बृजेश गोयल अजय माकन मीनाक्षी लेखी
उत्तर पूर्वी दिल्ली दिलीप पांडेय शीला दीक्षित मनोज तिवारी
पूर्वी दिल्ली आतिशी अरविंदर सिंह लवली गौतम गंभीर
पश्चिमी दिल्ली बलबीर सिंह जाखड़ महाबल मिश्रा प्रवेश वर्मा
दक्षिणी दिल्ली राघव चड्ढा विजेंद्र सिंह रमेश बिधूड़ी
उत्तर-पश्चिम दिल्ली (एससी) गुग्गन सिंह राजेश लिलोठिया हंस राज हंस
चांदनी चौक पंकज गुप्ता जेपी अग्रवाल डॉ. हर्षवर्धन
नई दिल्ली सीट
दिल्ली में सरकार वाली आम आदमी पार्टी ने हाल ही में नई दिल्ली सीट पर बृजेश गोयल को चुनाव प्रभारी नियुक्त किया था और इसके बाद गोयल को यहां आप प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतारा गया है. कांग्रेस ने दिल्ली सरकार में पूर्व मंत्री व दिल्ली से लगातार तीन बार विधायक रहने वाले अजय माकन पर दांव खेला है. राहुल गांधी के बेहद करीबी माने जाने वाले माकन साल 2004 व 2009 में सांसद रहने के अलावा केंद्र सरकार के मंत्रीमंडल में भी रह चुके हैं. दिल्ली के सर्विस क्लास मतदाताओं में माकन की खासी पकड़ मानी जाती है और ये उनका यहां प्लस पॉइंट है.
वहीं बीजेपी ने पिछले चुनाव में अजय माकन को करीब पौने तीन लाख वोटों से हराने वाली मौजुदा सांसद मीनाक्षी लेखी पर फिर से भरोसा जताया है. पेशे से वकील लेखी हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मानहानि का दावा पेश कर सुर्खियों में रही थीं. लेखी की सदन में 95 फीसदी उपस्थिति रही है.
उत्तर-पूर्वी दिल्ली सीट
कभी अन्ना हजारे के एंटी करप्शन मूवमेंट के हिस्सा व बाद में आप में शामिल होने वाले दिलीप पांडेय को आम आदमी पार्टी ने उत्तर-पूर्वी सीट पर उम्मीदवार बनाया. पांडेय आप की दिल्ली यूनिट के संयोजक के अलावा राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं. संपत्ति के ब्यौरे के अनुसार दिलीप पांडेय की पत्नी उनसे ज्यादा अमीर हैं. वहीं कांग्रेस ने तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित को यहां मौका दिया है. शीला दिल्ली में आप के पहले चुनाव में अरविंद केजरीवाल से हार गई थीं. साल 1984 में शीला दीक्षित ने पहला चुनाव कन्नौज सीट से लड़ा और उसके बाद साल 1998 में दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं.
वहीं दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष व पीएम मोदी-अमित के करीबी माने जाने वाले भोजपुरी स्टार मनोज तिवारी यहां दिलीप पांडेय व शीला दीक्षित को चुनौती दे रहे हैं. तिवारी ने साल 2009 में समाजवादी पार्टी से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था. पूर्वांचली बाहुल्य उत्तर-पूर्वी दिल्ली में बीजेपी ने पिछले चुनाव में मनोज तिवारी को उतारा. तिवारी ने पार्टी के भरोसे को बनाए रखा और आप के प्रो. आनंद कुमार को करीब सवा लाख वोटों से शिकस्त दी.
पूर्वी दिल्ली सीट
आप आदमी पार्टी दिल्ली में शिक्षा स्तर को ऊपर उठाने के लगातार दावे करती रही है और इसका पूरा श्रेय आप नेता आतिशी को मिलता रहा है. यही कारण रहा होगा कि पार्टी ने पहले पूर्वी दिल्ली का चुनाव प्रभारी बनाने के बाद यहां से प्रत्याशी बना मैदान में उतार दिया. पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी व राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य होने के साथ आतिशी दिल्ली उपमुख्यमंत्री की एडवाइजर भी रही हैं. कांग्रेस ने यहां छात्र राजनीति से सियासी सफर शुरू कर शीला दीक्षित सरकार में मंत्री रहे अरविंदर सिंह लवली को उम्मीदवार बनाया है.
दिल्ली की राजनीति के अनुभवी माने जाने वाले लवली साल 1998 से 2013 तक विधायक पद पर बने रहे थे. इसके अलावा लवली कांग्रेस प्रदेश इकाई में अध्यक्ष भी रह चुके हैं. एक दौर ऐसा भी आया था जब लवली ने पार्टी से खिलाफत कर बीजेपी का दामन थामा था लेकिन मौके की नजाकत को संभालते हुए राहुल गांधी ने घर वापसी करवाने के बाद उन्हें प्रदेश अध्यक्ष का जिम्मा दिया था. इस घटना से पार्टी में उनके रसूख का अंदाजा सबको लग गया.
बीजेपी ने यहां मजबूत व जिताऊ चेहरे के रूप में खेल जगत का सितारा चुना. पार्टी ने सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर चर्चाओं में बने रहने वाले क्रिकेटर गौतम गंभीर को दिल्ली के दंगल में उतार दिया. क्रिकेट क्रीज के बाद अब सियासी मैदान में ओपनिंग के लिए उतरे गंभीर युवाओं के चहेते माने जा रहे हैं. साल 2008 में भारत सरकार द्वारा उन्हें अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया था. आप उम्मीदवार आतिशी व कांग्रेस के अरविंदर सिंह लवली के सामने स्पोर्ट्स कार्ड खेल बीजेपी ने मुकाबला कांटे की टक्कर का बना दिया है. राजनीतिक पंडित भी इस सीट पर रोमांचक मुकाबले की भविष्यवाणी कर चुके हैं.
पश्चिमी दिल्ली सीट
आम आदमी पार्टी ने पश्चिमी दिल्ली के सभी जिताऊ समीकरणों को ध्यान में रख कर बलवीर सिंह जाखड़ पर दांव खेला है. जाखड़ यहां आप के मजबूत प्रत्याशी के रूप में माने जा रहे हैं. उनकी हर वर्ग में अच्छी पकड़ बताई जा रही है. साथ ही उन्हें जमीन से जुड़े नेता के रूप में जाना जाता है. कांग्रेस ने यहां पार्षद से विधानसभा तक का सियासी सफर तय करने वाले महाबल मिश्रा को मौका दिया है. दिल्ली के लालू यादव कहे जाने वाले महाबल पश्चिमी दिल्ली से साल 2009 में सांसद बने थे लेकिन पिछली बार मोदी लहर में वे टिक नहीं पाए. महाबल ने दिल्ली एमसीडी से पार्षद के रूप में राजनीति की शुरुआत की और बाद में नसीरपुर से विधायक चुने गए. आज महाबल दिल्ली कांग्रेस में पूर्वांचल का मजबूत चेहरा है.
बीजेपी ने यहां दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा को टिकट दे मैदान में उतारा है. प्रवेश को राजनीति विरासत में मिली लेकिन साल 2009 में पार्टी ने कम अनुभव व उम्र के चलते नजर अंदाज कर दिया. पिछले चुनाव में पार्टी को दिल्ली की सातों सीट पर जीत दिलाने में प्रवेश की अहम भूमिका मानी जाती है. आप के दमदार प्रत्याशी जरनैल सिंह को प्रवेश ने ढाई लाख वोटों से शिकस्त दी थी. यहां प्रवेश का मजबूत पक्ष ये है कि दिल्ली से बाहर के जाट बाहुल्य इलाकों में इनका खासा प्रभाव माना जाता है.
दक्षिणी दिल्ली सीट
आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य व पार्टी के सबसे युवा प्रवक्ता राघव चड्ढा यहां चुनाव मैदान में है. पार्टी के कोषाध्यक्ष रहे राघव ने कानूनी मामलों के निपटारे की भी कमान संभाली थी. राघव आप को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई करने वाली पार्टी के रूप में प्रचारित कर जनता के बीच पहुंच रहे हैं. कांग्रेस ने यहां सेलिब्रिटी कार्ड खेला और ओलंपिक पदक विजेता बॉक्सर विजेंद्र सिंह को चुनावी रिंग में उतारा. विजेंद्र ने हाल ही में हरियाणा पुलिस में डीएसपी पद से इस्तीफा देकर कांग्रेस का दामन थामा और पार्टी ने दक्षिण दिल्ली सीट की प्रत्याशी के रूप में कमान दे दी. विजेंद्र का नाम कई विवादों से भी जुड़ा रहा है. हाल ही में बतौर कामयाब बॉक्सर रहने के बावजूद विजेंद्र ने प्रोफेशनल बॉक्सिंग को चुना था.
बीजेपी ने जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए मौजुदा सांसद रमेश विधूड़ी पर फिर दांव खेला है. पिछले चुनाव में विधूड़ी ने आप के कर्नल देवेंद्र सहरावत को एक लाख से भी ज्याद मतों से पटखनी दी थी. तुगलकाबाद विधानसभा क्षेत्र से तीन बार विधायक रहे रमेश विधूड़ी गुर्जर समाज के मजबूत नेता माने जाते हैं. समाज के अलावा अन्य वर्गों में भी विधूड़ी की अच्छी पकड़ इनका प्लस पॉइंट है लेकिन विवादों से इनका भी गहरा रिश्ता रहा है.
उत्तर-पश्चिम दिल्ली (एससी) सीट
दिल्ली की उत्तर-पश्चिम सीट एससी वर्ग के लिए आरक्षित है. यहां आम आदमी पार्टी ने बीजेपी के पूर्व विधायक गुग्गन सिंह को मैदान में उतारा है. सिंह साल 2015 में आप प्रत्याशी वेद प्रकाश से हार गए और बीजेपी का दामन थामा. वहीं साल 2017 में सिंह को हराने वाले वेद प्रकाश ने आप छोड़ी दी और बीजेपी में चले गए. एक मात्र आरक्षित सीट पर कांग्रेस ने जीत के समीकरण देख राजेश लिलोठिया को चुनावी दंगल में उतारा. लिलोठिया प्रदेश कांग्रेस में कार्यकारी अध्यक्ष के अलावा केंद्रीय संगठन में सचिव भी हैं. इसके अलावा प्रदेश यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष रहे लिलोठिया साल 2004 व 2009 में विधायक भी चुने गए थे.
बीजेपी ने भी जिताऊ चेहरे की तलाश में काफी जद्दोजहद के बाद मौजूदा सांसद का टिकट काटा और पंजाबी व सूफी गायक हंसराज हंस को मौका दिया. हंस हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए. उनके टिकट पर सबसे आखिर में फैसला लिया गया था. अपनी लोकप्रियता के चलते हंसराज हंस को यहां मजबूत प्रत्याशी माना जा रहा है. वहीं टिकट कटने से नाराज उदित राज ने कांग्रेस का हाथ थामा है.
चांदनी चौक सीट
दिल्ली का ह्रदय है चांदनी चौक, आम आदमी पार्टी ने इस संसदीय सीट पर पंकज गुप्ता को मौका दिया है. गुप्ता दूसरी बार पार्टी के राष्ट्रीय सचिव बने हैं. साथ ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य गुप्ता 25 साल तक सॉफ्टवेयर कंपनी में नौकरी कर चुके हैं. जन लोकपाल आंदोलन से जुड़े रहने के बाद गुप्ता ने आप की सदस्यता ली थी. कांग्रेस ने इस सीट पर यूथ कांग्रेस से राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले जेपी अग्रवाल पर भरोसा जताया है. जेपी 1973 में यूथ कांग्रेस के सदस्य रहे और 1984 में पहली बार चांदनी चौक से सांसद निर्वाचित हुए. इसके बाद 1989 व 1996 के लोकसभा चुनाव में भी विजयी होकर सदन पहुंचे. चार बार लोकसभा सांसद रहने वाले जेपी अग्रवाल पिछले चुनाव में मोदी लहर की भेंट चढ़ गए और उत्तर-पूर्वी दिल्ली सीट से जीत नहीं पाए. इस बार पार्टी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल की जगह उन्हें चांदनी चौक से मौका दिया है.
बीजेपी ने इस सीट पर दिल्ली प्रदेश से केंद्र की राजनीति में सक्रिए रहे डॉ. हर्षवर्धन को फिर मौका दिया है. बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के तौर पर जाने जाने वाले डॉ. हर्षवर्धन यहां आरएसएस व कॉर्पोरेट जगत के चहेते माने जाते है. साल 1993 में पूर्वी दिल्ली के कृष्णानगर से पहली बार विधायक बने हर्षवर्धन चार बार विधानसभा पहुंचे. पिछले चुनाव में आप उम्मीदवार आशुतोष व कांग्रेस के दिग्गज कपिल सिब्बल को डॉ. हर्षवर्धन ने पटकनी दी थी. इसके बाद उन्हें केंद्रीय मंत्री भी बनाया गया. ईएनटी एक्सपर्ट डॉ. हर्षवर्धन दिल्ली में कभी भी चुनाव नहीं हारे हैं.
बहरहाल, दिल्ली की इन सातों लोकसभा सीटों पर 12 मई को जनता अपना सांसद चुनने वाली है. जहां कई दिग्गज नेताओं के अलावा खेल जगत में नाम कमाने के बाद राजनीति के खेल का रूख करने वालों का भी भविष्य दांव पर है. इसके अलावा गायकी के जरिए लोगों के दिलों पर राज करने वाले एक मशहूर गायक भी अपना भाग्य आजमाने में लगे हैं. दिल्ली सीएम अरविेंद केजरीवाल भी पूर्ण राज्य की मांग के अलावा दिल्ली सरकार के कामों के बल पर वोटर्स के आप के समर्थन में मतदान की आस लगाए बैठे हैं. अब 12 मई को तो जनता अपना फैसला ईवीएम को सौंप देगी लेकिन ईवीएम 23 मई को ही ‘कौन कहां सांसद’ पर अपना फैसला सुनाने वाली है.
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पश्चिम बंगाल से चमत्कार की उम्मीद क्यों है?
लोकसभा चुनाव के रण में पांच चरणों का मतदान होने के बाद कयासों का दौर शुरू हो गया है. अब तक हुए मतदान के ट्रेंड को आधार बनाकर राजनीति के जानकारों का एक वर्ग बीजेपी के बहुमत के आंकड़े से दूर रहने की भविष्यवाणी कर रहा है. बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, पार्टी महासचिव राम माधव और शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत यह स्वीकार कर चुके हैं कि इस बार मोदी बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाएंगे.
इस बारे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक कथित सर्वे की भी चर्चा है जिसमें बीजेपी के बमुश्किल 200 सीटों तक पहुंचने का जिक्र है. कहा यह भी जा रहा है कि संघ के इस सर्वे के उलट बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अकेले बीजेपी को 260 सीटें मिलने और एनडीए का आंकड़ा 300 के आसपास रहने का आकलन किया है. बताया जा रहा है कि संघ के सर्वे और अमित शाह के आकलन में बड़ा फर्क पश्चिम बंगाल और ओडिशा के आंकड़ों को लेकर है.
फिलहाल पश्चिम बंगाल की बात करें तो सूत्रों के अनुसार संघ यहां 2014 के मुकाबले पांच से सात सीटों पर जीत का अनुमान लगा रहा है जबकि अमित शाह का अनुमान 23 सीटें जीतने का है. आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं. 2014 की मोदी लहर के बावजूद बीजेपी ने यहां महज दो सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि तृणमूल कांग्रेस ने 34, कांग्रेस ने चार और वाम दलों ने दो सीटों पर फतह हासिल की थी.
ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या बीजेपी पश्चिम बंगाल में 2014 की मोदी लहर के मुकाबले दस गुना से ज्यादा सीटें जीत सकती है. सरसरी तौर पर बीजेपी का यह दावा दिन में तारे देखने जैसा लगता है, लेकिन असल में इसके पीछे 2016 के विधानसभा चुनाव के बाद से पार्टी की कड़ी मेहनत है. उल्लेखनीय है कि 2016 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने एकतरफा जीत हासिल की थी. प्रदेश की 294 सीटों में से तृणमूल कांग्रेस को 211 सीटों पर जीत मिलीं जबकि बीजेपी को महज तीन सीटों पर संतोष करना पड़ा.
2014 के लोकसभा चुनाव और 2016 में विधानसभा चुनाव में करारी हार झेलने के बाद संघ ने कमान अपने हाथों में ली. बीते तीन साल में पश्चिम बंगाल में बीजेपी के लिए जमीन तैयार करने में संघ ने बड़ी भूमिका निभाई है. इस दौरान प्रदेश में संघ का नेटवर्क तेजी से बढ़ा. शाखाओं की संख्या इसकी मुनादी करती है. गौरतलब है कि संघ की शाखाओं में 2016 में पश्चिम बंगाल में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. 2016 में इनकी संख्या 700 के आसपास थी, जो अब बढ़कर 2000 को पार कर चुकी है.
पश्चिम बंगाल में संघ की शाखाएं बढ़ने का असर यह हुआ कि सूबे में ममता बनर्जी की कार्यशैली का विरोध करने के लिए एक संगठित शक्ति बीजेपी को मिल गई. इसका फायदा पश्चिम बंगाल में पार्टी के प्रभारी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने बखूबी उठाया. 2017 में बशीरहाट में एक फेसबुक पोस्ट से भड़के दंगे ने उनके लिए ध्रुवीकरण की जमीन तैयार की. राजनीति के जानकारों ने उसी समय यह भविष्यवाणी कर दी थी कि बशीरहाट पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव का बैरोमीटर बनेगा.
आपको बता दें कि बशीरहाट में लगभग 10 लाख मुसलमान रहते हैं. यहां कथित रूप से बांग्लादेश से घुसपैठ और सीमापार गाय की तस्करी होने का आरोप बीजेपी लगाती है. पार्टी के नेता खुलेआम यह कहते हैं कि बशीरहाट और आसपास के इलाकों में यह सब ममता बनर्जी के संरक्षण में होता है. बीजेपी के इस आरोप का बंगाल के हिंदुओं में व्यापक असर है. इसके अलावा ‘इमामों को मिल रहे भत्ते’ और स्कूलों में ‘उर्दू थोपने’ का मामला भी बीजेपी एजेंडे में शामिल है. असम की तरह पश्चिम बंगाल में भी एनआरसी लागू करने के बीजेपी के वादे ने हिंदुओं को आकर्षित किया है.
इसकी काट के लिए ममता बनर्जी भी ध्रुवीकरण की रणनीति पर चल रही हैं. यानी बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस, दोनों की रणनीति ध्रुवीकरण पर टिकी है. बीजेपी नेतृत्व को लगता है कि ध्रुवीकरण के खुले खेल में उनकी पार्टी को सबसे बड़ा फायदा होगा, क्योंकि मुस्लिम वोट तृणमूल कांग्रेस, वाम दलों और कांग्रेस के बीच बंटेंगे जबकि हिंदुओं के वोट सिर्फ उसे मिलेंगे. बीजेपी को एक उम्मीद यह भी है कि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के आतंक से त्रस्त वाम दलों और कांग्रेस के समर्थक इस उम्मीद से उनके साथ आएंगे कि बीजेपी ही ममता बनर्जी से मुक्ति दिला सकती है.
लोकसभा चुनाव में हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण का बीजेपी का यह गणित उपर से देखने में दुरुस्त लगता है, लेकिन इसे जमीन पर उतारना आसान नहीं है. ममता बनर्जी के खाते में पश्चिम बंगाल की लगभग 27 फीसदी मुस्लिम आबादी तो है ही, हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग उनके साथ मजबूती से खड़ा है. इसे देखते हुए लगता नहीं है कि बीजेपी पश्चिम बंगाल में 23 सीटों के लक्ष्य के करीब पहुंच पाएगी. हां, यह तय दिख रहा है कि पार्टी 2014 के मुकाबले अधिक सीटों पर जीत दर्ज करेगी.
पश्चिम बंगाल में बीजेपी के नेता भी यह स्वीकार करते हैं कि लोकसभा चुनाव में पार्टी का दहाई की संख्या तक पहुंचना मुश्किल है. हालांकि वे 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को उखाड़ फेंकने का दावा भी करते हैं. बीजेपी नेताओं के इस दावे को ममता बनर्जी भी गंभीरता से ले रही हैं. उन्हें यह लगने लगा है कि अभी तक बंगाल में नंबर दो की लड़ाई लड़ रही बीजेपी ने उनसे टक्कर लेने लायक जमीन तैयार कर ली है.
पंचायत चुनाव के नतीजे इसकी पुष्टि करते हैं. पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने वाम दलों और कांग्रेस को पछाड़ दिया है. आपको बता दें कि राज्य की 9214 पंचायत समितियों में से तृणमूल कांग्रेस को 8062 और दूसरे स्थान पर रही बीजेपी को 769 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं, 133 सीटें लेकर कांग्रेस तीसरे और 110 सीटों के साथ वाम दल चौथे स्थान पर रहे. इसी तरह 49 हजार 636 ग्राम पंचायतों में तृणमूल कांग्रेस को 38 हजार 118, बीजेपी को 1483, कांग्रेस को 1066 और माकपा को 1483 सीटें मिली.
पंचायत चुनाव में सीटों की संख्या से तुलना करें तो तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच बहुत अंतर है, लेकिन बीजेपी ने इसी गति से ध्रुवीकरण जारी रखा तो 2021 के विधानसभा चुनाव में दोनों के बीच मुकाबले की स्थिति बन सकती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रचार के दौरान तृणमूल कांग्रेस के 41 विधायकों के संपर्क में होने की बात कहकर यह जता दिया है कि उनका असली लक्ष्य लोकसभा चुनाव नहीं, बल्कि विधानसभा चुनाव है.
तृणमूल कांग्रेस के कई नेता भी यह मानते हैं कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी इसी गति से आगे बढ़ती रही तो विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी के लिए खतरा बन सकती है. हालांकि वे बीजेपी के इस उभार के लिए ममता बनर्जी को ही जिम्मेदार मानते हैं. अनौपचारिक बातचीत में वे यह खुलकर स्वीकार करते हैं कि प्रदेश में बीजेपी की सबसे बड़ी प्रमोटर उनकी नेता ही हैं. यदि यहां बीजेपी पैर पसार रही है तो इसके लिए खाद—पानी ममता बनर्जी ने ही मुहैया करवाया है.
लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी की अगली रणनीति तृणमूल कांग्रेस में तोड़फोड़ करने की है. कभी ममता बनर्जी के करीबी रहे मुकुल रॉय सहित कई नेता बीजेपी में आ चुके हैं. असल में तृणमूल कांग्रेस के कई नेता यह मानते हैं कि ममता बनर्जी पार्टी को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चला रही हैं. ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी को पार्टी में अपने उत्तराधिकारी के रूप में आगे बढ़ाना कई वरिष्ठ नेताओं को अखर रहा है.
कुल मिलाकर पश्चिम बंगाल में पूरी ताकत झोंकने के बावजूद बीजेपी लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी के किले में सेंध लगाती हुई नहीं दिख रही, लेकिन अगले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के रूप में तृणमूल कांग्रेस को तगड़ी चुनौती दिख सकती है. यदि बीजेपी इसी रणनीति और गति से आगे बढ़ी तो पार्टी पश्चिम बंगाल में परचम फहराने के करीब पहुंच सकती है.
जन्म से पिछड़े नहीं मोदी, स्वार्थ के लिए कर रहे हैं नाटक : मायावती
लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां लगातार जोर पकड़ती जा रही है. इसी बीच राजनीतिक दलों के नेताओं के भाषण भी खासे चर्चा बने हुए हैं. कोई किसी पर निजी हमलों तक से नहीं चूक रहा तो कोई मर्यादाएं लांघ कर अश्लील टिप्पणियां तक कर चुके हैं. वहीं किसी की जाति तक इस चुनाव प्रचार में भाषणों का केंद्र रह चुकी है. हाल ही में पीएम द्वारा यूपी में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन को जातिवादी गठबंधन कहने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने पीएम मोदी पर पलटवार किया है. मायावती ने कहा है कि अगर पीएम मोदी जन्म से ही पिछड़े होते तो जातिवाद के दंश को समझ पाते लेकिन वे सिर्फ स्वार्थ के लिए खुद को पिछड़े बता रहे हैं. पीएम मोदी का पिछड़ी जाति से होना हाल ही में भी सुर्खियों में रहा था जब पीएम ने राहुल गांधी पर ओबीसी समुदाय के अपमान का आरोप लगाया था.
बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने ट्वीटर हैंडल से दो ट्वीट कर पीएम मोदी पर सीधा हमला बोला है. पीएम ने यूपी गठबंधन को जातिवादी होने का आरोप लगाया था. इसपर मायावती ने ट्वीट किया कि पीएम मोदी ने अब और कुछ नहीं तो गठबंधन पर जातिवादी होने का जो आरोप लगाया है वह हास्यास्पद व अपरिपक्व है. जातिवाद के अभिशाप से पीड़ित लोग जातिवादी कैसे हो सकते हैं? उन्होंने आगे लिखा कि मोदी जी जन्म से ओबीसी नहीं हैं इसीलिए उन्होंने जातिवाद का दंश नहीं झेला है और ऐसी मिथ्या बातें करते हैं.
पीएम श्री मोदी ने अब और कुछ नहीं तो गठबंधन पर जातिवादी होने का जो आरोप लगाया है वह हास्यास्पद व अपरिपक्व है। जातिवाद के अभिशाप से पीड़ित लोग जातिवादी कैसे हो सकते हैं? श्री मोदी जन्म से ओबीसी नहीं हैं इसीलिए उन्होंने जातिवाद का दंश नहीं झेला है और ऐसी मिथ्या बातें करते हैं।
— Mayawati (@Mayawati) May 10, 2019
इसके अलावा बसपा प्रमुख ने एक और ट्वीट भी किया जिसमें पीएम मोदी पर राजनीतिक स्वार्थ के लिए जबरदस्ती पिछड़े बनने का आरोप लगाया. वहीं मायावती ने कल्याण सिंह के साथ आरएसएस के व्यवहार का भी जिक्र कर कटाक्ष किया. उन्होंने ट्वीट में लिखा कि पीएम मोदी खुद को जबर्दस्ती पिछड़ा बनाकर जातिवाद का खुलकर राजनीतिक स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करते हैं. वे अगर जन्म से पिछड़े होते तो क्या आरएसएस उन्हें कभी भी पीएम बनने देती? वैसे भी श्री कल्याण सिंह जैसों का आरएसएस ने क्या बुरा हाल किया है यह देश क्या नही देख रहा है
इसके विपरीत, श्री मोदी अपने को जबर्दस्ती पिछड़ा बनाकर जातिवाद का खुलकर राजनीतिक स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करते हैं। वे अगर जन्म से पिछड़े होते तो क्या आरएसएस उन्हें कभी भी पीएम बनने देती? वैसे भी श्री कल्याण सिंह जैसों का आरएसएस ने क्या बुरा हाल किया है यह देश क्या नही देख रहा है।
— Mayawati (@Mayawati) May 10, 2019
गौरतलब है कि पीएम मोदी की जाति को लेकर बयानबाजी का सिलसिला खुद पीएम के एक बयान के बाद शुरू हुई थी. दरअसल, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक चुनावी सभा में भाषण के दौरान कहा था कि सभी मोदी चोर है. जिसपर पीएम ने राहुल गांधी पर पूरे मोदी समुदाय के अलावा पिछड़ी जाति के अपमान का आरोप लगाया. उसके बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने सपा की चुनावी सभा में सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव को असली पिछड़ा और पीएम मोदी को नकली पिछड़ा करार दिया था. अब एक बार फिर पीएम मोदी की जाति को लेकर बयानबाजी शुरू हुई है. जिस पर अब सियासी बयानबाजी एक नई बहस लेकर आ सकती है.