लोकसभा चुनाव के रण में पांच चरणों का मतदान होने के बाद कयासों का दौर शुरू हो गया है. अब तक हुए मतदान के ट्रेंड को आधार बनाकर राजनीति के जानकारों का एक वर्ग बीजेपी के बहुमत के आंकड़े से दूर रहने की भविष्यवाणी कर रहा है. बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, पार्टी महासचिव राम माधव और शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत यह स्वीकार कर चुके हैं कि इस बार मोदी बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाएंगे.
इस बारे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक कथित सर्वे की भी चर्चा है जिसमें बीजेपी के बमुश्किल 200 सीटों तक पहुंचने का जिक्र है. कहा यह भी जा रहा है कि संघ के इस सर्वे के उलट बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अकेले बीजेपी को 260 सीटें मिलने और एनडीए का आंकड़ा 300 के आसपास रहने का आकलन किया है. बताया जा रहा है कि संघ के सर्वे और अमित शाह के आकलन में बड़ा फर्क पश्चिम बंगाल और ओडिशा के आंकड़ों को लेकर है.
फिलहाल पश्चिम बंगाल की बात करें तो सूत्रों के अनुसार संघ यहां 2014 के मुकाबले पांच से सात सीटों पर जीत का अनुमान लगा रहा है जबकि अमित शाह का अनुमान 23 सीटें जीतने का है. आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं. 2014 की मोदी लहर के बावजूद बीजेपी ने यहां महज दो सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि तृणमूल कांग्रेस ने 34, कांग्रेस ने चार और वाम दलों ने दो सीटों पर फतह हासिल की थी.
ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या बीजेपी पश्चिम बंगाल में 2014 की मोदी लहर के मुकाबले दस गुना से ज्यादा सीटें जीत सकती है. सरसरी तौर पर बीजेपी का यह दावा दिन में तारे देखने जैसा लगता है, लेकिन असल में इसके पीछे 2016 के विधानसभा चुनाव के बाद से पार्टी की कड़ी मेहनत है. उल्लेखनीय है कि 2016 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने एकतरफा जीत हासिल की थी. प्रदेश की 294 सीटों में से तृणमूल कांग्रेस को 211 सीटों पर जीत मिलीं जबकि बीजेपी को महज तीन सीटों पर संतोष करना पड़ा.
2014 के लोकसभा चुनाव और 2016 में विधानसभा चुनाव में करारी हार झेलने के बाद संघ ने कमान अपने हाथों में ली. बीते तीन साल में पश्चिम बंगाल में बीजेपी के लिए जमीन तैयार करने में संघ ने बड़ी भूमिका निभाई है. इस दौरान प्रदेश में संघ का नेटवर्क तेजी से बढ़ा. शाखाओं की संख्या इसकी मुनादी करती है. गौरतलब है कि संघ की शाखाओं में 2016 में पश्चिम बंगाल में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. 2016 में इनकी संख्या 700 के आसपास थी, जो अब बढ़कर 2000 को पार कर चुकी है.
पश्चिम बंगाल में संघ की शाखाएं बढ़ने का असर यह हुआ कि सूबे में ममता बनर्जी की कार्यशैली का विरोध करने के लिए एक संगठित शक्ति बीजेपी को मिल गई. इसका फायदा पश्चिम बंगाल में पार्टी के प्रभारी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने बखूबी उठाया. 2017 में बशीरहाट में एक फेसबुक पोस्ट से भड़के दंगे ने उनके लिए ध्रुवीकरण की जमीन तैयार की. राजनीति के जानकारों ने उसी समय यह भविष्यवाणी कर दी थी कि बशीरहाट पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव का बैरोमीटर बनेगा.
आपको बता दें कि बशीरहाट में लगभग 10 लाख मुसलमान रहते हैं. यहां कथित रूप से बांग्लादेश से घुसपैठ और सीमापार गाय की तस्करी होने का आरोप बीजेपी लगाती है. पार्टी के नेता खुलेआम यह कहते हैं कि बशीरहाट और आसपास के इलाकों में यह सब ममता बनर्जी के संरक्षण में होता है. बीजेपी के इस आरोप का बंगाल के हिंदुओं में व्यापक असर है. इसके अलावा ‘इमामों को मिल रहे भत्ते’ और स्कूलों में ‘उर्दू थोपने’ का मामला भी बीजेपी एजेंडे में शामिल है. असम की तरह पश्चिम बंगाल में भी एनआरसी लागू करने के बीजेपी के वादे ने हिंदुओं को आकर्षित किया है.
इसकी काट के लिए ममता बनर्जी भी ध्रुवीकरण की रणनीति पर चल रही हैं. यानी बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस, दोनों की रणनीति ध्रुवीकरण पर टिकी है. बीजेपी नेतृत्व को लगता है कि ध्रुवीकरण के खुले खेल में उनकी पार्टी को सबसे बड़ा फायदा होगा, क्योंकि मुस्लिम वोट तृणमूल कांग्रेस, वाम दलों और कांग्रेस के बीच बंटेंगे जबकि हिंदुओं के वोट सिर्फ उसे मिलेंगे. बीजेपी को एक उम्मीद यह भी है कि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के आतंक से त्रस्त वाम दलों और कांग्रेस के समर्थक इस उम्मीद से उनके साथ आएंगे कि बीजेपी ही ममता बनर्जी से मुक्ति दिला सकती है.
लोकसभा चुनाव में हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण का बीजेपी का यह गणित उपर से देखने में दुरुस्त लगता है, लेकिन इसे जमीन पर उतारना आसान नहीं है. ममता बनर्जी के खाते में पश्चिम बंगाल की लगभग 27 फीसदी मुस्लिम आबादी तो है ही, हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग उनके साथ मजबूती से खड़ा है. इसे देखते हुए लगता नहीं है कि बीजेपी पश्चिम बंगाल में 23 सीटों के लक्ष्य के करीब पहुंच पाएगी. हां, यह तय दिख रहा है कि पार्टी 2014 के मुकाबले अधिक सीटों पर जीत दर्ज करेगी.
पश्चिम बंगाल में बीजेपी के नेता भी यह स्वीकार करते हैं कि लोकसभा चुनाव में पार्टी का दहाई की संख्या तक पहुंचना मुश्किल है. हालांकि वे 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को उखाड़ फेंकने का दावा भी करते हैं. बीजेपी नेताओं के इस दावे को ममता बनर्जी भी गंभीरता से ले रही हैं. उन्हें यह लगने लगा है कि अभी तक बंगाल में नंबर दो की लड़ाई लड़ रही बीजेपी ने उनसे टक्कर लेने लायक जमीन तैयार कर ली है.
पंचायत चुनाव के नतीजे इसकी पुष्टि करते हैं. पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने वाम दलों और कांग्रेस को पछाड़ दिया है. आपको बता दें कि राज्य की 9214 पंचायत समितियों में से तृणमूल कांग्रेस को 8062 और दूसरे स्थान पर रही बीजेपी को 769 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं, 133 सीटें लेकर कांग्रेस तीसरे और 110 सीटों के साथ वाम दल चौथे स्थान पर रहे. इसी तरह 49 हजार 636 ग्राम पंचायतों में तृणमूल कांग्रेस को 38 हजार 118, बीजेपी को 1483, कांग्रेस को 1066 और माकपा को 1483 सीटें मिली.
पंचायत चुनाव में सीटों की संख्या से तुलना करें तो तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के बीच बहुत अंतर है, लेकिन बीजेपी ने इसी गति से ध्रुवीकरण जारी रखा तो 2021 के विधानसभा चुनाव में दोनों के बीच मुकाबले की स्थिति बन सकती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रचार के दौरान तृणमूल कांग्रेस के 41 विधायकों के संपर्क में होने की बात कहकर यह जता दिया है कि उनका असली लक्ष्य लोकसभा चुनाव नहीं, बल्कि विधानसभा चुनाव है.
तृणमूल कांग्रेस के कई नेता भी यह मानते हैं कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी इसी गति से आगे बढ़ती रही तो विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी के लिए खतरा बन सकती है. हालांकि वे बीजेपी के इस उभार के लिए ममता बनर्जी को ही जिम्मेदार मानते हैं. अनौपचारिक बातचीत में वे यह खुलकर स्वीकार करते हैं कि प्रदेश में बीजेपी की सबसे बड़ी प्रमोटर उनकी नेता ही हैं. यदि यहां बीजेपी पैर पसार रही है तो इसके लिए खाद—पानी ममता बनर्जी ने ही मुहैया करवाया है.
लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी की अगली रणनीति तृणमूल कांग्रेस में तोड़फोड़ करने की है. कभी ममता बनर्जी के करीबी रहे मुकुल रॉय सहित कई नेता बीजेपी में आ चुके हैं. असल में तृणमूल कांग्रेस के कई नेता यह मानते हैं कि ममता बनर्जी पार्टी को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चला रही हैं. ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी को पार्टी में अपने उत्तराधिकारी के रूप में आगे बढ़ाना कई वरिष्ठ नेताओं को अखर रहा है.
कुल मिलाकर पश्चिम बंगाल में पूरी ताकत झोंकने के बावजूद बीजेपी लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी के किले में सेंध लगाती हुई नहीं दिख रही, लेकिन अगले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के रूप में तृणमूल कांग्रेस को तगड़ी चुनौती दिख सकती है. यदि बीजेपी इसी रणनीति और गति से आगे बढ़ी तो पार्टी पश्चिम बंगाल में परचम फहराने के करीब पहुंच सकती है.