होम ब्लॉग पेज 3223

छात्र राजनीति से निकले गजेंद्र सिंह शेखावत ने कैसे दी जादूगर को शिकस्त

अशोक गहलोत. राजस्थान की राजनीति का वो चेहरा, जिसके आगे कोई नहीं टिका. उन्होंने राजस्थान में सत्ता के शीर्ष पर काबिज होने के बाद कई नेताओं को ठिकाने लगाया. लेकिन राजनीति के जादूगर अशोक गहलोत को इस बार लोकसभा चुनाव में एक ऐसे प्रत्याशी ने मात दी जो पांच साल पहले ही सक्रिय राजनीति में आया है. वो नाम है गजेंद्र सिंह शेखावत. हम यहां अशोक गहलोत की हार इसलिए बता रहे हैं क्योंकि जोधपुर संसदीय सीट पर उनके पुत्र वैभव गहलोत सिर्फ शारीरिक रुप से चुनाव लड़ रहे थे. यहां साख पूरी तरह से अशोक गहलोत की दांव पर थी.

अशोक गहलोत पांच बार जोधपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद रह चुके हैं. वहां उनका जनाधार काफी मजबूत माना जाता है. यही वजह है कि अशोक गहलोत ने अपने वैभव के राजनीतिक पर्दापण के लिए जोधपुर को चुना. हालांकि पहले ये चर्चा थी कि वैभव गहलोत टोंक-सवाई माधोपुर से चुनाव लड़ेंगे. उन्होंने पिछले काफी समय से यहां तैयारी भी की लेकिन अंत में अशोक गहलोत की तरफ से वैभव को जोधपुर से ही चुनाव लड़ाने का फैसला हुआ. लेकिन जिसने गहलोत के चूलें हिलाई, वैभव को उनके गढ़ में मात दी, वो गजेंद्र शेखावत कौन है. हम उनके जीवन परिचय के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं…

साल था 1967. जैसलमेर के शंकर सिंह शेखावत और मोहन कंवर के घर पुत्र का जन्म हुआ. नाम रखा गया गजेंद्र सिंह. गजेंद्र सिंह की शुरुआती शिक्षा जैसलमेर में हुई. स्कूली शिक्षा पूर्ण करने के बाद गजेंद्र सिंह कॉलेज शिक्षा के लिए जोधपुर आए. जोधपुर आना उनके जीवन का टर्निंग पांइट साबित हुआ. यहां आने के बाद वो बीजेपी के छात्र संघटन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े. छात्रों की समस्याओं को लेकर वो लगातार जोधपुर में संघर्षरत रहे.

1992 के जोधपुर विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव में गजेंद्र की लोकप्रियता को देखते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने उन्हें अध्यक्ष पद का उम्मीदवार घोषित किया. नतीजे सामने आए तो गजेंद्र सिंह शेखावत ने इतिहास रच दिया था. वो सबसे ज्यादा मतों से जीतने का रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके थे. उनकी जीत इसलिए भी खास थी क्योंकि जब वे छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गए, जोधपुर संसदीय सीट पर कांग्रेस का कब्जा था. अशोक गहलोत खुद सांसद थे. वो खुद छात्र राजनीति के दम पर मुख्य सियासत में आए थे. लेकिन तब किसी को यह इल्हाम नहीं था कि आने वाले समय में यह छात्र नेता जोधपुर की सियासत में एक नई इबारत लिखेगा.

गजेंद्र सिंह की जीत बड़ी थी तो जश्न भी बड़ा होने वाला था. उनके शपथ ग्रहण में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत पहुंचे थे. उस दौर में छात्रसंघ के कार्यालय उद्घाटन में मुख्यमंत्री का पहुंचना बहुत बड़ी बात थी. गजेंद्र ने अपने छात्रसंघ कार्यकाल में छात्रों के कल्याण के अनेक कार्य किए जिनमें अखिल भारतीय छात्र नेता सम्‍मेलन आयोजित किया जाना, विभिन्‍न सांस्‍कृतिक और खेलकूद के कार्यक्रम आयोजन किया जाना शामिल रहा.

इसके बाद वो 2001 में चोपासनी शिक्षा समिति की शिक्षा परिषद के सदस्‍य के रुप में सर्वाधिक मतों से निर्वाचित हुए. स्‍वदेशी जागरण मंच के तत्‍वाधान में 2000 से 2006 तक जोधपुर में स्‍वदेशी मेले का आयोजन किया गया. इन कार्यक्रमों की जिम्मेदारी गजेंद्र सिंह ने भी संभाली. इन कार्यक्रमों में लगभग 10 लाख लोग आए जिसके परिणामस्‍वरूप स्‍वदेशी उद्योग की चीजों की भारी बिक्री हुई. स्‍वदेशी मेले को काफी पसंद किया गया. इन कार्यक्रमों में गजेंद्र सिंह की पहचान जोधपुर के बाहर भी बनाई.

2012 में उन्हें बीजेपी प्रदेश कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया. 2014 में बीजेपी जोधपुर लोकसभा क्षेत्र से मजबूत उम्मीदवार की तलाश में थी जो चंद्रेश कुमारी को मात दे सके. बीजेपी की खोज गजेंद्र सिंह पर आकर रुकी. गजेंद्र मोदी लहर पर सवार होकर संसद पहुंचे. उन्होंने कांग्रेस की चंद्रेश कुमारी कटोच को भारी अन्तर से हराया.

उन्हें शुरुआत में लोकसभा की प्रमुख कमेटियों का सदस्य बनाया गया. लेकिन 2017 का साल उनके लिए बड़ी खुशी लेकर आया. उन्हें नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में जगह मिली. गजेंद्र सिंह को कृषि और किसान कल्याण विभाग का राज्य मंत्री बनाया गया. इसके बाद वो अपने काम के दम पर पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के चहेते हो गए.

2018 में राजस्थान बीजेपी के अध्यक्ष अशोक परनामी के इस्तीफा देने के बाद अमित शाह ने गजेंद्र सिंह शेखावत को पार्टी का अध्यक्ष पद बनाने का मन बनाया. लेकिन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने उनके नाम का विरोध किया. अमित शाह जानते थे कि वो वसुंधरा राजे के खिलाफ जाकर गजेंद्र को अध्यक्ष तो बना देंगे लेकिन इससे पार्टी के बीच आंतरिक कलह हो सकती है. इसलिए फिर बाद में राज्यसभा सांसद मदनलाल सैनी को प्रदेश अध्यक्ष के लिए चुना गया.

2019 के चुनाव में गजेंद्र सिंह शेखावत ‘ज्वॉइंट किलर’ बनकर उभरे. उन्होंने अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत को भारी अंतर से हराया. यह हार वैभव गहलोत की नहीं अपितु अशोक गहलोत की है क्योंकि गहलोत इस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं. इसके बावजूद उनके पुत्र को करारी हार का सामना करना पड़ा. गजेंद्र सिंह शेखावत की इस बार की जीत उनका कद पार्टी के बीच बढ़ाएगी, इसमें कोई दोराय नहीं है. इस बार के मोदी मंत्रिमंडल में या तो गजेंद्र कैबिनेट मंत्री बनेंगे या फिर राजस्थान बीजेपी की कमान उनके हाथ में होगी, यह निश्चित है.

लोकसभा चुनाव की हार ने कांग्रेस के इन नेताओं की राजनीति पर लगाया ब्रेक

देश में आए लोकसभा चुनाव के नतीजों में पीएम मोदी की सुनामी एक बार फिर देखने को मिली. बीजेपी ने कीर्तिमान स्थापित करते हुए 542 में से 303 सीटों पर फतह हासिल की. बीजेपी ने राजस्थान में 2014 की तरह क्लीन स्वीप करते हुए सभी 25 सीटें हासिल करने में सफलता प्राप्त की. प्रदेश में केवल छह महीने पहले ही सत्ता पर काबिज होने के बावजूद लोकसभा चुनाव में उसका सूपड़ा साफ हो गया. इस करारी हार ने राजस्थान के कई नेताओं की राजनीति को समाप्ति के मुहाने पर पहुंचा दिया है. आइए जानते हैं इन नेताओं के बारे में-

रतन देवासी:
रतन देवासी ने जालोर-सिरोही लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था. उनका सामना बीजेपी के दो बार के सांसद देवजी पटेल से था. चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी देवजी पटेल ने उनको भारी वोट अंतर से मात दी. हालांकि देवासी की यह लोकसभा चुनाव में पहली हार है लेकिन वो इससे पहले दो विधानसभा चुनाव हार चुके है. लगातार हार के बाद अब अगले विधानसभा चुनाव में उनकी टिकट की दावेदारी पर संकट मंडरा रहा है.

सुभाष महरिया:
सीकर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े सुभाष महरिया की हार के बाद उनके राजनीतिक जीवन पर प्रश्नचिन्ह उठने लगे हैं. वो लगातार चार चुनाव हार चुके है. इनमें तीन लोकसभा और एक चुनाव विधानसभा चुनाव शामिल है. वो अपना आखिरी चुनाव 2004 में बीजेपी के टिकट पर जीते थे. उसके बाद बीजेपी के टिकट पर 2009 का लोकसभा चुनाव, 2013 में विधानसभा चुनाव और 2014 में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लोकसभा चुनाव हार चुके हैं. इस बार महरिया कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में थे लेकिन उन्हें बीजेपी के सुमेधानंद सरस्वती से हार का सामना करना पड़ा. इतनी पराजय के बाद उनका राजनीतिक भविष्य खत्म होता नजर आ रहा है.

रफीक मंडेलियाः
चुरू लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े रफीक मंडेलिया का भी चुनावी करियर अब गर्त में जाता दिख रहा है. मंडेलिया 2009 और 2019 सहित दो लोकसभा चुनाव हार चुके है. इसके अलावा, हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में चुरू सीट से भी उन्हें हार मिली थी. इतनी हार के बाद आने वाले चुनाव में उन्हें टिकट मिलेगा, इस पर संशय है.

बद्री जाखड़ः
पाली लोकसभा सीट पर कांग्रेस के बद्री जाखड़ को करारी हार का सामना करना पड़ा. उन्हें बीजेपी उम्मीदवार पीपी चौधरी ने मात दी. बद्री जाखड़ ने विधानसभा चुनाव में भी टिकट की मांग की थी लेकिन पार्टी ने उनकी मांग को अनसुना किया. इस चुनाव में मिली हार के बाद बद्री जाखड़ का चुनावी करियर समाप्ति की ओर अग्रसर है. इस बार उनके टिकट कटने की संभावना थी लेकिन अशोक गहलोत की पैरवी के बाद उनको टिकट मिला था. 2014 में उनका टिकट काटकर उनकी बेटी मुन्नी देवी को पाली लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया गया था.

गोपाल सिंह ईडवाः
राजसमंद के पूर्व सांसद गोपाल सिंह ईडवा को पार्टी ने इस बार चितौड़गढ़ लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया. यहां उनको बीजेपी उम्मीदवार सीपी जोशी ने भारी अंतर से मात दी. गोपाल लगातार दो चुनाव हार चुके है. दो चुनाव हारने के बाद उनकी राजनीतिक स्थिति कमजोर हुई है. लगातार हार के बाद अगले चुनाव में उनका टिकट कटना लगभग तय है.

रघुवीर मीणाः
कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य रघुवीर मीणा लगातार तीन चुनाव हार चुके हैं. इसमें पिछले छह महीने में दो चुनाव शामिल हैं. हाल में हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें उदयपुर ग्रामीण विधानसभा सीट से बीजेपी के प्रत्याशी अमृतलाल मीणा के हाथों हार मिली थी. लगातार तीन हार के बाद उनकी राजनीतिक हैसियत में गिरावट आना तय है.

देवकी नंदन गुर्जरः
सीपी जोशी के करीबी माने जाने वाले देवकी नंदन गुर्जर को लोकसभा चुनाव में बीजेपी की दीया कुमारी से बड़ी हार झेलनी पड़ी. पार्टी ने उन्हें राजसमंद लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया था. देवकी 2013 में राजसमंद की नाथद्वारा सीट से विधानसभा का चुनाव हार चुके हैं. दो चुनावों में मिली हार के बाद देवकी गुर्जर का सियासी करियर अपने अंत की ओर है.

भरतराम मेघवालः
श्रीगंगानगर संसदीय सीट से कांग्रेस प्रत्याशी भरतराम मेघवाल को बीजेपी के निहालचंद मेघवाल से बड़ी हार का सामना करना पड़ा है. यह हार उनकी लोकसभा चुनाव में लगातार दूसरी हार है. इससे पहले मेघवाल 2009 में यहीं से सांसद चुने गए थे. भरतराम मेघवाल को मिली लगातार दो हार के बाद पार्टी अगले चुनाव में किसी नए चेहरे पर दांव खेल सकती है.

नमोनारायण मीणाः
लगातार दो चुनाव हार चुके नमोनारायण मीणा का चुनावी करियर ढलान की ओर है. उनकी उम्र भी अब आने वाले चुनाव में टिकट की दावेदारी के खिलाफ जाएगी. उन्हें इस बार टोंक-सवाई माधोपुर लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के सुखबीर सिंह जौनपुरिया के हाथों हार का सामना करना पड़ा. 2014 में मीणा ने दौसा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था, जहां वे तीसरे स्थान पर रहे थे. उन्हें अपने भाई हरीश मीणा के हाथों हार का सामना करना पड़ा था.

वर्किंग कमेटी की बैठक में नेताओं के पुत्र प्रेम पर बरसे राहुल गांधी

लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार की वजह तलाशने के लिए शनिवार को हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की बैठक में पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी पुत्र प्रेम में फंसे नेताओं पर जमकर बरसे. सूत्रों के मुताबिक राहुल ने कहा कि अपने बेटे की टिकट के लिए कुछ नेताओ ने उन पर ये कह कर दबाव बनाया कि बेटे को टिकट ना मिलने पर वो इस्तीफा दे देंगे. राहुल ने यह बात राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मंत्री पी. चिदम्बरम की ओर मुखातिब होते हुए कही.

आपको बता दें कि कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को जोधपुर, कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ को छिंदवाड़ा और पी. चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम को शिवगंगा सीट से उम्मीदवार बनाया था. इनमें से नकुलनाथ और कार्ति चिदंबरम ने तो जीत दर्ज की, लेकिन वैभव गहलोत चुनाव हार गए. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने वर्किंग कमेटी की बैठक में कहा कि अशोक गहलोत, कमलनाथ और पी. चिदंबरम पूरे राज्य में प्रचार करने की बजाय अपने बेटों को जिताने में लगे रहे.

दरअसल, वर्किंग कमेटी की बैठक में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने यह सुझाव दिया कि हमें राज्यों में पार्टी के नेतृत्व को मजबूत करना चाहिए. राहुल गांधी ने ज्योतिरादित्य के सुझाव पर कटाक्ष करते हुए कहा कि क्या हमें इसलिए राज्यों में नेतृत्व को मजबूत करना चाहिए कि मुख्यमंत्री अपने बेटे की टिकट के लिए दबाव बनाएं? बैठक में राहुल ने चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं पर पार्टी के लिए अहम राफेल के मुद्दे पर आक्रामता की कमी के लिए भी फटकारा.

बैठक के अंत में राहुल ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए खुद अध्यक्ष पद छोड़ने की पेशकश की जिसे सभी सदस्यों ने सर्वसम्मति से नामंजूर कर दिया. जानकारी के मुताबिक वर्किंग कमेटी के सहमत नहीं होने के बावजूद राहुल गांधी इस्तीफा देने के फैसले पर अड़े हुए हैं. उन्होंने यह भी कहा है कि पार्टी नए अध्यक्ष की तलाश करे. राहुल ने बैठक में मौजूद नेताओं को यह नसीहत भी दी कि कोई भी अध्यक्ष पद के लिए प्रियंका गांधी का नाम आगे नहीं करे.

संसदीय दल ने मोदी को चुना नेता, राष्ट्रपति को पेश करेंगे सरकार बनाने का दावा

politalks.news

लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल करने का इतिहास रचने वाली बीजेपी फिर से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार का गठन करने जा रही है. 17वीं लोकसभा के गठन के लिए बीजेपी सहित एनडीए के दलों के नेताओं व सांसदों की मौजुदगी में नरेंद्र मोदी को संसदीय दल ने अपना नेता चुना. इस अवसर पर बीजेपी मार्गदर्शक मंडल के सदस्य व दिग्गज बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी व मुरली मनोहर जोशी भी उपस्थित रहे. साथ ही बीजेपी शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के साथ-साथ एनडीए घटक दलों के वरिष्ठ नेता भी उपस्थित रहे.

बीजेपी व एनडीए अध्यक्ष अमित शाह की मौजुदगी में नरेंद्र मोदी को संसदीय दल का नेता चुनने का प्रस्ताव रखा गया. जिसका एक के बाद एक एनडीए घटक दलों के नेताओं ने समर्थन कर नरेंद्र मोदी को बधाई दी और उन्हें गुलदस्ते भेंट कर आगामी कार्यकाल के लिए शुभकामनाएं दी. वहीं नरेंद्र मोदी ने भी सबका आभार प्रकट किया और सबका साथ, सबका विकास व सबका विश्वास ध्येय पर काम करने की बात कही. मोदी ने भारतीय संविधान को भी नमन किया और इसे किसी तरह के खतरे नहीं होने की बात कही. इसके अलावा नरेंद्र मोदी ने वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी व मुरली मनोहर जोशी के पैर छुकर आशीर्वाद भी लिया. पीएम मोदी इसके बाद राष्ट्रपति से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे.

इससे पहले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि जनता ने प्रधानमंत्री मोदी में अपना विश्वास दिखाया है. जनता ने उनके समर्थन में वोट दिया. शाह ने कहा कि पीएम मोदी की छवि पर एक भी दाग नहीं है. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी दिन में 18 घंटे काम करते हैं.  20 साल में उन्होंने एक भी छुट्टी नहीं ली. इसके अलावा शाह ने सभी दलों के नेताओं का आभार जताया. उन्होंने लोकसभा चुनाव में जीत को भाजपा को जनता का प्रचंड जनसमर्थन बताया.

इस दौरान नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कई अहम बातें कही. उन्होंने एनडीए की बैठक को संबोधित करने से पहले संविधान को नमन किया. अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में घटी यह घटना सामान्य नहीं है.  उन्होंने कहा कि जनादेश जिम्मेदारियों को बढ़ाता है और हमें नए भारत की संकल्प यात्रा पर नई ऊर्जा के साथ चलना है.

साथ ही उन्होंने जनता जनार्दन को ईश्वर का रूप बताते हुए कहा कि इस बार का चुनाव उनके लिए तीर्थयात्रा थी. उन्होंने कहा कि पहली भारत भारत की संसद में इतनी बड़ी संख्या में महिला सांसद बैठेंगी. उन्होंने कहा कि अगली बार महिला मतदाता पुरुषों से आगे निकल जाएंगी. वहीं उन्होंने पहली बार चुनकर आए सांसदों को सीख देते हुए कहा कि अहंकार से जितना दूर रहें उतना बेहतर होगा. उन्होंने कहा कि अखबार के पन्नों से मंत्री नहीं बनते, भीतर का कार्यकर्ता जीवित रहना चाहिए. उन्होंने कहा कि सांसद ध्यान दें कि देश वीआईपी कल्चर से नफरत करता है, इससे बचें.

नरेंद्र मोदी ने इस दौरान अपने संबोधन में कहा कि जनता ने हमें बहुत बड़ी जिम्मेदारी दी है, जो हमें निभानी है वरना अब देश माफ नहीं करेगा. उन्होंने कहा कि कुछ लोगों का बड़बोलापन हमारी पूरी मेहनत बर्बाद कर देता है. दुनिया में कुछ भी ‘ऑफ दि रिकॉर्ड’ नहीं होता है. अपने लंबे संबोधन के दौरान नरेंद्र मोदी ने अपनी आगामी सरकार की नीतियों और सोच को भी साझा किया.

 

पश्चिम बंगाल: ममता बनर्जी ने की इस्तीफे की पेशकश, कहा- नहीं रहना चाहती CM

politalks.news

लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद उत्साहित बीजेपी जहां सरकार गठन की कवायद में जुटी है वहीं विपक्षी खेमे में करारी हार के बाद खलबली देखी जा रही है. आज दिल्ली में कांग्रेस वर्किग कमेटी की बैठक में पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के इस्तीफे की अटकलों पर विराम लग गया लेकिन पश्चिम बंगाल से मुख्ममंत्री ममता बनर्जी के बयान के बाद सियासत गर्मा गई है.

चुनाव में टीएमसी की खिसकी सियासी जमीन के बाद ममता दीदी ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की इच्छा जताई है और कहा है कि वे अब सीएम नहीं रहना चाहती हैं. ममता ने यह बात कोलकाता में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कही.

चुनाव में पश्चिमी बंगाल की जनता द्वारा नापसंद किए जाने पर प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आहत दिख रही है. शनिवार को कोलकाता में एक प्रेस कॉफ्रेंस में उन्होंने अपने मन का गुबार बाहर निकाला और कहा कि वे अब सूबे की सीएम नहीं रहना चाहती हैं. ममता दीदी ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि केंद्रीय बलों ने हमारे खिलाफ काम किया और प्रदेश में आपातकाल जैसी स्थिति बना कर रख दी.

अमन-चैन से रहने वाली प्रदेश की जनता को हिंदू-मुस्लिम में विभाजित कर वोटों को बांटा गया. बार-बार शिकायत के बाद भी चुनाव आयोग द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए. इसलिए मैं प्रदेश की मुख्यमंत्री नहीं बने रहना चाहती हूं. बता दें कि इस बार के लोकसभा चुनाव में पश्चिमी बंगाल में बीजेपी कमल खिलाने में सफल रही है.

इस दौरान यहां सभी सात चरणों के मतदान में जबरदस्त संग्राम देखने को मिला जिसमें टीएमसी-बीजेपी के बीच संघर्ष की स्थिति बनी. कई जगहों पर दोनों ही पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं में हिंसक झड़पों के अलावा एक-दूसरे पर हमले करने की घटनाएं भी सामने आई थी. इसके बाद आए चुुनाव परिणाम पश्चिम बंगाल में बीजेपी की 18 सीटों पर जीत की खबर लाए और ममता दीदी को जोरदार झटका दिया.

हालांकि ममता की टीएमसी को 22 सीटें मिली. लेकिन पिछले चुनाव में पार्टी 34 सीटों पर काबिज थी. बीजेपी ने बड़ी बढ़त बनाते हुए पिछली बार के दो सीटों के आंकड़े को 18 पर पहुंचा दिया.

CWC बैठक के बाद रणदीप सुरजेवाला की PC, राहुल बने रहेंगे पार्टी अध्यक्ष

politalks.news

लोकसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार ऐतिहासिक जीत कर सत्ता में लौटी बीजेपी जश्न मनाने में मशगूल है. इस बार भी मोदी लहर ने कांग्रेस सहित विपक्षी दलों को समेट कर रख दिया और बीजेपी एक बार फिर जनता की पसंद बन कर बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर आई है. करारी हार के बाद से ही कांग्रेस संगठन में बड़े बदलाव के क्यास लगाए जा रहे थे. देश की जनता द्वारा नकारने के बाद दिल्ली में आज हार की समीक्षा के लिए कांग्रेस कार्य समिति की बैठक आयोजित की गई.

आज कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में यह बात तो क्लीयर हो गई कि राहुल गांधी फिलहाल पार्टी अध्यक्ष बने रहेंगे लेकिन समिति सदस्यों ने राहुल गांधी के नेतृत्व में ही संगठन में बड़े बदलाव करने की बात कही है. हालांकि बताया जा रहा है कि राहुल गांधी अपने इस्तीफे की बात पर ही अड़े रहे. इस दौरान बैठक में कांग्रेस व यूपीए के वरिष्ठ नेताओं के साथ-साथ सोनिया गांधी व प्रियंका गांधी भी मौजूद रहीं.

बैठक के बाद कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसकी जानकारी दी. सुरजेवाला ने बताया कि बैठक में लोकसभा चुनाव की हार के मंथन के बाद राहुल गांधी ने अपने इस्तीफे की पेशकश की. इस पर समिति सदस्यों ने राहुल को समझाया और इस्तीफा मंजूर करने से इनकार कर दिया. इसके बाद भी राहुल गांधी अपनी बात पर अड़े रहे.

समिति सदस्य भी नहीं माने और अब राहुल गांधी ही पार्टी अध्यक्ष बने रहेंगे. इससे पहले अटकलें लगाई जा रही थी कि हार की पूरी जिम्मेदारी लेने वाले राहुल गांधी समिति में अपना इस्तीफा देंगे.

कांग्रेस कार्य समिति द्वारा राहुल की इस्तीफा देने की इच्छा को तो नकार दिया गया लेकिन उनसे इस बात का भी आग्रह किया गया कि जरूरी है कि वे संगठन में किसी भी तरह का बदलाव करे. इस पर राहुल गांधी ने अपने मन की बात बताई और कहा कि वे पार्टी अध्यक्ष पद पर कतई नहीं रहना चाहते और न ही समिति सदस्य इस पद के लिए प्रियंका गांधी का नाम सुझाए.

इस पर कार्य समिति के वरिष्ठ सदस्यों ने राहुल गांधी से कहा कि वे ही पार्टी को इस विकट परिस्थितियों की घड़ी में आगे लेकर जाएंगे. इस पर राहुल नहीं माने लेकिन संगठन में बदलाव की बात जरूर कही. इस प्रक्रिया के लिए एक निश्चित व्यवस्था बनाई जाएगी.

बता दें कि कांग्रेस वर्किग कमेटी की बैठक में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के साथ-साथ यूपीए के सहयोगी दलों के नेता भी शरीक हुए. बैठक में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, वरिष्ठ कांग्रेसी मल्लिकार्जुन खड़गे, पी चिदंबरम, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत, पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के अलावा कांग्रेस नेता अंबिका सोनी, कुमारी शैलजा, एके एंटनी, मीरा कुमार, आरपीएन सिंह, पीएल पुनिया और मोतीलाल वोरा , गुलाम नबी आजाद, सिद्धारमैया भी मौजूद रहे.

कांग्रेस के सूपड़ा साफ से पायलट और गहलोत के नाम दर्ज हुआ अनचाहा रिकॉर्ड

Politalks News

इस बार के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली प्रचंड ​जीत ने कई मिथक तोड़े हैं और कई नए रिकॉर्ड बनाए हैं. इस फेहरिस्त में राजस्थान में कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट के खाते में भी एक अनचाहा रिकॉर्ड दर्ज हो गया है. पायलट के नेतृत्व में राजस्थान में कांग्रेस ने दो लोकसभा चुनाव लड़े और दोनों में ही कांग्रेस का खाता नहीं खुला.

आपको बता दें कि दिसंबर, 2013 में राजस्थान में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद आलाकमान ने जनवरी, 2014 में प्रदेश में पार्टी की कमान सचिन पायलट को सौंपी थी. अध्यक्ष बनने के चार महीने बाद हुए लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई. खुद पायलट अजमेर सीट से चुनाव हार गए.

हालांकि दिसंबर, 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी ने पायलट के नेतृत्व ने जीत दर्ज की, लेकिन पांच महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा एक बार फिर साफ हो गया है. कांग्रेस का एक भी उम्मीदवार जीतने में कामयाब नहीं हुआ. आंकड़ों पर गौर करें तो कांग्रेस को राजस्थान में 2014 से भी बुरी हार का सामना करना पड़ा है. केवल दो उम्मीदवार एक लाख से कम वोटों से चुनाव हारे हैं.

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की कितनी दुर्गति हुई, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि 200 विधानसभा क्षेत्रों में से महज 15 सीटों पर कांग्रेस को बढ़त मिली जबकि 185 सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवार आगे रहे. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के विधानसभा क्षेत्रों से भी कांग्रेस उम्मीदवारों को बढ़त नहीं मिली.

हालांकि कांग्रेस में यह परंपरा रही है कि सरकार में होने पर चुनाव में जीत—हार की जिम्मेदारी प्रदेशाध्यक्ष की बजाय मुख्यमंत्री की होती है. बावजूद इसके संगठन का मुखिया होने के नाते सचिन पायलट की ​जिम्मेदारी भी बनती है. इतिहास में यह दर्ज हो गया है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का लगातार दो बार सूपड़ा साफ सचिन पायलट के अध्यक्ष रहते हुए हुआ. रिकॉर्ड भले ही अनचाहा हो, लेकिन है.

एक अचनाहा रिकॉर्ड मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नाम भी दर्ज हो गया है. गहलोत राजस्थान में कांग्रेस के दूसरे मुख्यमंत्री बन गए हैं, जिनके कार्यकाल में हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी ने एक भी सीट नहीं ​जीती. उनसे पहले यह रिकॉर्ड शिवचरण माथुर के नाम दर्ज था. 1989 में हुए लोकसभा में माथुर के मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस को एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई थी.

आपको बता दें कि 1989 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 13, जनता दल ने 11 और सीपीआईएम ने एक सीट पर जीत हासिल की थी जबकि कांग्रेस के सभी उम्मीदवार चुनाव हार गए थे. इस करारी हार के बाद प्रदेश कांग्रेस में जबरदस्त खींचतान शुरू हुई, जिस पर मुख्यमंंत्री शिवचरण मा​थुर के इस्तीफे के बाद ही लगाम लगी. ​माथुर की जगह हरिदेव जोशी ने मुख्यमंत्री बने.

इस बार के चुनाव में राजस्थान में कांग्रेस का सूपड़ा साफ होने के बाद सियासी गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि क्या ​शिवचरण माथुर की तरह अशोक गहलोत को भी इस्तीफा देंगे. सूत्रों के अनुसार इसकी संभावना न के बराबर है, क्योंकि कांग्रेस का प्रदर्शन राजस्थान में ही खराब नहीं रहा है, बाकी राज्यों में भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति रही है. राजस्थान के अलावा 17 और राज्यों में पार्टी का खाता नहीं खुला है.

पूरे देश में कांग्रेस के ​निराशाजनक प्रदर्शन के बीच अशोक गहलोत के खिलाफ यह बात जरूर जा रही है कि वे अपने बेटे वैभव तक को चुनाव नहीं ​जितवा पाए. सबसे ज्यादा हैरत की बात यह रही कि अशोक गहलोत के निर्वाचन क्षेत्र से भी वैभव पिछड़ गए.

आंध्र प्रदेश: जगन रेड्डी चुने गए विधायक दल के नेता, 30 मई को लेंगे सीएम की शपथ

politalks.news

देश में मोदी लहर के इतर आंध्रप्रदेश में चमके जगन मोहन रेड्डी का नाम आज हर किसी की जुबान पर है. राजनीति में आते ही अपने पिता को एक हादसे में खो चुके जगन ने प्रदेश की जनता से सीधा जुड़ाव किया. यहां के 13 जिलों की 125 विधानसभा इलाकों में जगन ने 430 दिनों की ‘प्रजा संकल्प यात्रा’ यात्रा की, जिसमें उन्होंने प्रदेश की जनता का मन जीत लिया और उन्हें लोकसभा व विधानसभा चुनाव में भारी विजय हासिल हुई. आज विधायक दल की बैठक में जगन मोहन रेड्डी को नेता चुना गया है. वे 30 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे.

politalks.news

विधानसभा व लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने के बाद जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी अब आंध्रप्रदेश में सरकार बनाने में जुटी है. पार्टी ने यहां टीडीपी को धराशायी करते हुए 151 विधानसभा सीटों पर कब्जा किया है. वहीं लोकसभा की 25 सीटों में से 22 पर विजय होकर इतिहास रच दिया है. यहां एन चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी सिर्फ 3 सीटों पर ही सिमट कर रह गई. शनिवार को वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के विधायक दल की बैठक आयोजित हुई. जिसमें वाईएस जगन मोहन रेड्डी को विधायक दल का नेता चुना गया. वे 30 मई को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे.

विधायक दल की बैठक के बाद जगन मोहन रेड्डी हैदराबाद के लिए रवाना हो गए. जगन रेड्डी का शाम 4.30 बजे राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन से मिलने का कार्यक्रम है. इस दौरान वे विधायक दल के प्रस्ताव को राज्यपाल को सौंपेंगे. रेड्डी 30 मई को प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले हैं. यह पहला मौका है जब किसी पूर्व मुख्यमंत्री का बेटा आंध्रप्रदेश का मुख्यमंत्री बनने जा रहा है. दूसरी ओर जगन मोहन रेड्डी के निवास के पास सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है. गौरतलब है कि गुरुवार को हुई मतगणना में आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर सामने आई है.

बता दें कि साल 2009 में जगन मोहन रेड्डी के पिता आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी की एक हेलिकॉप्टर हादमें में मौत हो गई थी. इसके बाद पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी जगन रेड्डी ने ली. जगन के पिता मौत के समय आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, लेकिन हादसे के बाद सीएम की कुर्सी खाली हो गई. इसके बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चा थी की जगन मोहन रेड्डी सीएम बनना चाहते थे लेकिन कांग्रेस इससे असहमत थी.

बस इसी बात से नाराज जगन रेड्डी की कांग्रेस पार्टी से दूरियां बढ़ती गई और 29 नवंबर 2010 को उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद उन्होंने मार्च 2011 में अपनी खुद की नई पार्टी का गठन किया और नाम दिया वाईआरएस कांग्रेस. तब किसी ने सोचा होगा कि एक दिन ये पार्टी आंध्रप्रदेश की सत्ता में काबिज होने के साथ-साथ दिल्ली में अपने 22 सांसद पहुंचाएगी. लेकिन पार्टी अध्यक्ष वाई एस जगन मोहन रेड्डी की अथक मेहनत ने लोगों के दिलों में अपनी जगह बनी ही ली.

Evden eve nakliyat şehirler arası nakliyat