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निकाय चुनाव से पहले गहलोत सरकार ने बढ़ाई वार्डों की संख्या, जयपुर चुनेगा 150 पार्षद

राजस्थान सरकार ने नगर निगम, नगर परिषद और नगरपालिकाओं के वार्डों का पुनगर्ठन किया है. स्वायत्त शासन विभाग के निदेशक व संयुक्त सचिव पवन अरोड़ा के अनुसार प्रदेश के सभी नगरीय निकायों के वार्डों का पुनर्गठन 2011 की जनगणना के अनुसार करने की अधिसूचना जारी की गई है. सरकार ने यह बदलाव नगर पालिका अधिनियम 2009 की धारा 6 (1) और धारा 9 के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों को प्रयोग करते हुए किया है.

अब 15000 तक की जनसंख्या के शहरों में 20 वार्ड, 15001 से 25000 तक की जनसंख्या के शहरों में 25 वार्ड, 25001 से 40000 तक की जनसंख्या के शहरों में 35 वार्ड, 40001 से 60000 तक की जनसंख्या के शहरों में 40 वार्ड, 60001 से 80000 तक की जनसंख्या के शहरों में 45 वार्ड, 80001 से 100000 तक की जनसंख्या के शहरों में 55 वार्ड और 100001 से 200000 तक की जनसंख्या के शहरों में 60 वार्ड होंगे.

200001 से 350000 तक की जनसंख्या के शहरों में 65 वार्ड, 350001 से 500000 तक की जनसंख्या के शहरों में 70 वार्ड, 500001 से 800000 तक की जनसंख्या के शहरों में 80 वार्ड, 800001 से 1000000 तक की जनसंख्या के शहरों में 85 वार्ड, 1000001 से 1500000 तक की जनसंख्या के शहरों में 100 वार्ड और 1500001 से ऊपर जनसंख्या वाले शहरों में 150 वार्ड गठित होंगे.

सभी नगरीय निकायों में निर्धारित सीटों की जनसंख्या के अनुसार वार्डों का गठन एवं पुर्नसीमांकन का कार्य मुख्य नगरपालिका अधिकारी को नगर नियोजक के सहयोग से नियत अवधि में पूर्ण करना है. इसके लिए राजस्थान नगरपालिका निर्वाचन नियम 1994 के तहत मुख्य नगरपालिका अधिकारी को प्राधिकृत अधिकारी नियुक्त किया गया है. मुख्य नगरपालिका अधिकारी अपनी-अपनी पालिका क्षेत्र में वार्डों के गठन के संबंध में वार्डों की सीमा निर्धारित करेंगे और सीमा निर्धारण के प्रारूप एवं नक्शें पर आपत्ति आमंत्रित करेंगे तथा प्राप्त आपत्तियों का निराकरण करेंगे.

मोदी सरकार का भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार, 12 भ्रष्ट अफसरों को भेजा घर

मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा कदम उठाते हुए आयकर विभाग के 12 वरिष्ठ अधिकारियों को समय से पहले ही रिटायर कर दिया है. वित्त मंत्रालय ने नियम 56 के तहत ऐसा किया है. जिन लोगों को मंत्रालय ने रिटायर किया है उनमें मुख्य आयुक्त, प्रमुख आयुक्त और आयुक्त शामिल हैं. यह सभी आयकर विभाग में कार्यरत थे. जानकारी के मुताबिक इनमें से कुछ अधिकारियों पर भ्रष्टाचार, आय से अधिक संपत्ति और यौन उत्पीड़न का आरोप लगा था. इन पर वित्त मंत्रालय ने अपनी तरफ से जांच की थी, जिसके बाद यह कदम उठाया गया है.

क्या आंध्र प्रदेश की राज्यपाल होंगी सुषमा? हर्षवर्धन के ट्वीट से हलचल

बीजेपी की बुजुर्ग नेता सुषमा स्वराज को लेकर केंद्रीय मंत्री स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन के एक ट्वीट ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है. डॉ. हर्षवर्धन ने एक ट्वीट किया जिसमें उन्होंने सुषमा स्वराज को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किए जाने पर बधाई दी. हालांकि कुछ मिनट बाद ही इस ट्वीट को डिलीट कर दिया गया.

केंद्रीय मंत्री स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन के इस ट्वीट में लिखा था, ‘भाजपा की वरिष्ठ नेता और मेरी दीदी, पूर्व विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनने पर बहुत बधाई व शुभकामनाएं. सभी क्षेत्रों में आपके अनुभव से राज्य की जनता लाभान्वित होगी.’

डॉ. हर्षवर्धन के इस ट्वीट से यह चर्चा छिड़ गई कि क्या सुषमा स्वराज को आंध्र का राज्यपाल बनाया जा रहा है. सुषमा स्वराज ने इन चर्चाओं पर ट्वीट किया है-

आपको बता दें कि स्वास्थ्य कारणों के चलते सुषमा स्वराज ने इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था. जानकारी के अनुसार उन्होंने बीजेपी नेतृत्व से अनुरोध किया था कि इस बार उन्हें कोई मंत्री पद न दिया जाए. मोदी सरकार में इस बार एस. जयशंकर विदेश मंत्री का जिम्मा संभाल रहे हैं.

क्या BJP का साथ छोड़ने का बहाना ढूंढ रहे हैं नीतीश कुमार

ममता बनर्जी के तल्ख तेवर पश्चिम बंगाल की राजनीति को किस दिशा में ले जाएंगे?

लोकसभा चुनाव-2019 कई मायनों में खास रहा. चाहे वो बीजेपी की प्रचंड जीत हो या फिर विपक्ष का पूरी तरह से बैकफुट पर होना. जातिगत राजनीति से ऊपर उठ कर जनता का वोट करना हो या फिर कैबिनेट में बदले चेहरे को बड़ी जिम्मेदारी सौंपना. लेकिन इन सबके बीच चुनाव से पहले और बाद में भी जो सबसे ज्यादा चर्चा में बना हुआ है, वो है ममता बनर्जी का गढ़ और उनकी सियासत.

थोड़ा इतिहास में जाए तो ममता बनर्जी एक ऐसी सियासी हस्ती हैं जिन्होंने अकेले बंगाल के गढ़ को जीतने के लिए सालों से बंगाल पर एकछत्र सरकार चला रहे सियासी दल को उखाड़ फैंका था. उन्होंने ही वाममोर्चा सरकार को अर्श से फर्श तक पहुंचा दिया था. जिस पार्टी से उनका उदय हुआ, उसकी नीतियों के खिलाफ जाकर इस मुकाम पर पहुंचना अपने आप में एक बड़ी चुनौती रही.

सादा व्यक्तित्व, भरपूर उर्जा और ईमानदार छवि वाली नेता मानी जाती है ममता बनर्जी. उनकी हिम्मत और दंबगई का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि एक तरफ जहां विपक्ष पूरी तरह से टूट चुका है, ममता लगातार केन्द्र सरकार के सामने बिल्कुल अडिग खड़ी हैं.

मोदी सरकार इस बात को लेकर पहले से ही आश्वस्त थी कि बंगाल के गढ़ को जीतना इतना आसान नहीं है. यही वजह है कि बीजेपी ने अपनी तैयारी में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और पहले से ही बंगाल के किले को फतह करने के लिये सिपेहसालार लगा दिए. इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो यही था कि पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह खुद निकाय चुनाव के समर में कूद गए जो इससे पहले कभी नहीं देखने को मिला. हालांकि परिणाम भी लाभदायक रहा. यहीं से ममता दीदी को भी संकेत मिल गए कि बीजेपी अब उनके किले में सेंध लगाने वाली है.

एक लंबा बयानबाजी का दौर चला जो आज दोनों पार्टियों के प्रमुखों के बीच जुबानी लड़ाई बन चुका है. आए दिन सोशल मीडिया पर दोनों की ओर से तीखी टिप्पणियां देखने को मिल रही है. पूरे चुनावों के दौरान बीजेपी लगातार टीएमसी पर अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को पीटने और धमकाने का आरोप लगाती रही. हिंसा के अलावा बंगाल में इन चुनावों के दौरान दीदी के तेवरों की भी खूब चर्चा हुई. माना जा रहा है कि जितनी पीएम नरेंद्र मोदी और ममता बनर्जी के बीच सियासी बयानबाजी हुई है, उतनी शायद ही किसी ओर से हुई हो.

इन सबके बीच दीदी की आकांक्षाएं भी किसी से छुपी नहीं है. मेन स्ट्रीम राजनीति में आने और देश की बागड़ोर संभालने का ख्वाब अक्सर उनके जेहन में आता रहता है. तभी तो चुनाव से ऐन पहले जिस तरह से उन्होंने विपक्ष और क्षत्रपों को एक जुट कर मोदी के खिलाफ लड़ने का अभियान छेड़ा. इससे तो ये साफ है कि दीदी अपने आप को ऐसे चेहरे के रूप में स्थापित करना चाह रही हैं कि दिल्ली उनसे दूर नहीं. खैर ये तो विपक्ष के हतोत्साहित होने का ही नतीजा रहा कि वह उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाया और दीदी अकेली रह गईं.

जिस तरह से बंगाल के परिणाम आए, दीदी की घबराहट लाजमी है. कुल 42 सीटों पर हुए मतदान में टीएमसी को 22, बीजेपी को 18 और कांग्रेस को दो सीटें मिली हैं. 18 सीटों पर विजयी होना मतलब बीजेपी का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन. अब पार्टी की नजरें पूरी तरह से बंगाल विधानसभा चुनाव पर हैं. 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को मात देने के लिए बीजेपी पूरी तरह से तैयार है.

हालांकि इसके कारण बहुत ही साफ हैं कि बीजेपी पहले से ही यहां कमर कस चुकी थी. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही बीजेपी वहां सक्रिय थी और सोशल मीडिया के माध्यम से लगातार अपनी पैठ बना रही थी. बीजेपी आईटी सेल यहां बेहद सतर्क रही और इसका नतीजा ये हुआ कि बीजेपी बंगाल में सेंध लगाने में कामयाब रही. शायद यही दीदी के बौखलाहट का कारण भी माना जा रहा है.

ये तो साफ है कि इस चुनाव में हिंदुत्व का रंग जमकर चढ़ाया गया है और विकास की बात पीछे छूट गई. जिस तरह से जय श्री राम को लेकर राजनीति हुई, जाहिर रूप से इसका फायदा बीजेपी को मिला. हिन्दू वोट पूरी तरह से बीजेपी के खाते में गए.

यहां सीपीएम का पूरी तरह से पतन हो चुका है जिसका सीधा फायदा बीजेपी को हुआ. टीएमसी विरोधी सारे वोट बीजेपी की झोली में आ गिरे. माना जा रहा है कि कम्युनिस्ट वोट कम होने का कारण ये भी है कि बंगाल के कई हिस्सों में टीएमसी के कार्यकर्ताओं का दबाव इस कदर है कि कुछ सीपीआईम के कार्यकर्ताओं ने तो टीएमसी को हराने के लिए ही बीजेपी का दामन थाम लिया.

इसके अलावा, जातिवाद ने भी चुनावों में अहम रोल अदा किया. हालांकि परिणामों से तो लगता है कि अल्पसंख्यकों ने जरूर ममता बनर्जी का साथ दिया लेकिन पश्चिमी और उत्तर बंगाल में आदिवासियों ने बीजेपी के समर्थन में जमकर वोट किया जो आने वाले समय में दीदी के लिए चिंता की खबर है.

इतना होने के बाद भी ममता बनर्जी के तीखे तेवरों की चर्चा आम है. कहा जाता है कि जोश में होश नहीं खोना चाहिए. शायद यही दीदी को अब सोचना होगा कि विधानसभा चुनाव में वो बीजेपी को आगे बढ़ने से कैसे रोकें. लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखते हुए ये साफ है कि बंगाल के विधानसभा चुनावों में बीजेपी और टीएमसी की सीधी टक्कर होगी.

‘हमारी न्यायिक व्यवस्था में खामियों का फायदा नहीं उठाया जा सकता’

PoliTalks news

10 जनवरी, 2018 को एक ऐसी घटना हुई जिसने देश को हिलाकर रख दिया. 8 वर्षीय बच्ची जिसका नाम आसिफा था, उसे कुछ लोगों ने एक मंदिर में बंधक बनाकर न सिर्फ बलात्कार किया, बल्कि हर तरह की दरिंदगी की बरबरता को पार कर दिया. जंगलों में इस बच्ची की लाश मिली और उसके बाद शुरू हुआ हाई वोल्टेज ड्रामा. आज करीब डेढ़ साल बाद कठुआ कांड केस का फैसला आया है और सात में से 6 आरोपियों को सजा मिली है. सोशल मीडिया पर यह मामला पूरे दिनभर से ट्रेंडिंग में है. लोगों ने अलग-अलग पोस्ट कर अपने विचारों को प्रकट किया है. कुछ यूजर्स ने राहुल-प्रियंका गांधी को भी इस मामले में निशाने पर लिया है.

@MehboobaMufti

@DeepikaSRajawat

@Mayawati

@imMAK02

@KharviGautham

This sums up everything about hypocritical Bollywood bimbos!!#Kathua pic.twitter.com/KuDS9GcNkD

@khushi2318

गुलाबी गैंग के खात्मे के लिए हरियाणा में कांग्रेस को खत्म कर देंगे राहुल गांधी!

राहुल गांधी कांग्रेस के भीतर कई वरिष्ठ नेताओं को पसंद नहीं करते हैं. उन्होंने इन नेताओं को लंबे समय से राज्यों की राजनीति से साइड लाइन कर रखा है. ऐसे ही श्रेणी के नेता हैं हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा. हुड्डा ने लगातार दो बार प्रदेश की कमान संभाली है. अब राहुल गांधी प्रदेश के भीतर हुड्डा के इतर कांग्रेसी नेतृत्व खड़ा करना चाहते हैं. यही कारण है कि पांच साल के लंबे अंतराल के बाद भी हुड्डा हरियाणा में पार्टी अध्यक्ष बनने की बांट जोह रहे हैं.

2014 लोकसभा-विधानसभा चुनावः
2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर सिर्फ भूपेन्द्र हुड्डा के पुत्र दीपेन्द्र ही चुनाव जीत पाए. इन नतीजों के बाद हरियाणा की राजनीति में हुड्डा के बुरे दिन शुरु हुए. लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी को विधानसभा चुनाव में बड़ी हार का सामना करना पड़ा. हार भी इतनी बुरी कि पार्टी प्रदेश में तीसरे दर्जे की पार्टी बन गई.

लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मिली बड़ी हार के बाद राहुल गांधी ने भूपेन्द्र हुड्डा को झटका देते हुए युवा नेता अशोक तंवर को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. तंवर इससे पूर्व कांग्रेस के छात्र संघटन एनएसयूआई की कमान संभाल चुके थे. तंवर को राहुल की नजदिकियों का लाभ मिला. उन्हें पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली. तंवर का अध्यक्ष बनाना हुड्डा के लिए साफ संदेश था कि अब राहुल उनकी प्रदेश से रवानगी का मन बना चुके हैं.

विधानसभा में पार्टी की हैसियत नेता विपक्ष का पद हासिल करने की तो बची नहीं थी. लेकिन विधानसभा में पार्टी का नेता चुनने के दौरान भी राहुल ने तंवर के जरिए हुड्डा को झटका दे दिया. हुड्डा विरोधी माने जाने वाली किरण चौधरी को विधायक दल को नेता चुना गया. किरण का विधायक दल का नेता चुना जाना हुड्डा के लिए एक और बड़ा झटका था.

लेकिन हुड्डा हरियाणा की राजनीति की इतनी बड़ी शख्सियत है कि वो इतनी आसानी से हार मान जाए, यह मुमकिन नहीं है. हुड्डा ने राहुल के करीब जाने के प्रयास शुरु किए. माध्यम अपने सांसद पुत्र दीपेन्द्र हुड्डा को बनाया जो राहुल के साथ सदन में अक्सर देखे जाते रहे हैं. हालांकि हुड्डा के इस प्लान से उन्हें कोई खास फायदा नहीं हुआ. राहुल ने प्रदेश की कमान दोबारा हुड्डा को सौंपने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.

2016 में हुड्डा के लिए कुलदीप विश्नोई के रुप में बड़ी मुसीबत सामने आई. कुलदीप विश्नोई ने अपनी पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस का विलय कांग्रेस में कर लिया. विलय के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष पद पर अपनी दावेदारी ठोंक दी. अब प्रदेश कांग्रेस के भीतर अध्यक्ष पद के दो दावेदार हो गये थे. दावेदारों की सूची का बढ़ना तंवर के लिए भी बहुत सुखद था.

लेकिन राहुल गांधी का वरदहस्त होने के बावजूद भी अशोक तंवर प्रदेश कांग्रेस में हुड्डा के जाल को नहीं तोड़ पाए. हुड्डा के एक इशारे पर पार्टी के करीब 14 विधायक एक-साथ कदमताल करते नजर आते जबकि तंवर की बैठकों में हुड्डा गुट का एक भी विधायक शामिल नहीं होता था.

इन विधायकों ने कईं बार राहुल गांधी के समक्ष अशोक तंवर को हटाकर भूपेन्द्र हुड्डा के हाथ में प्रदेश की कमान सौपने की मांग की. प्रदेश में पार्टी की खराब होती दशा को देखते हुए राहुल ने तंवर को हटाकर किसी अन्य को अध्यक्ष बनाने का मन बनाया लेकिन उसी समय प्रदेश में एक बड़ी सियासी घटना हो गई.

इनेलो-बसपा गठबंधनः
लंबे समय से सत्ता में आने की बांट जो रही इनेलो ने 2018 में बहुजन समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया. यह गठबंधन प्रदेश की सियासत में दलित-जाट समीकरण पैदा करने के लिए किया गया था. लेकिन यह गठबंधन इन दोनों पार्टियों के अलावा अशोक तंवर के लिए भी फायदेमंद होने वाला था. जिस समय यह गठबंधन हुआ, राहुल गांधी उसी समय तंवर की जगह किसी और को प्रदेश की कमान सौंपने का मन बना चुके थे. लेकिन दलित चेहरा होने के कारण राहुल उन्हें हटाने की हिम्मत नहीं कर पाए. हालांकि यह गठबंधन जींद उपचुनाव के बाद टूट गया.

लोकसभा चुनाव कांग्रेस और हुड्डा परिवार दोनों के लिए झटके जैसा रहा. भूपेन्द्र हुड्डा स्वयं सोनीपत लोकसभा क्षेत्र से बड़े अंतर से चुनाव हार गए. उन्हें बीजेपी के अपेक्षाकृत छोटे नेता रमेश कौशिक ने मात दी. वहीं कांग्रेस के मजबूत गढ़ रोहतक में भी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. यहां बीजेपी के अरविंद शर्मा ने दीपेन्द्र हुड्डा को शिकस्त दी

सुरजेवाला की राहुल गांधी से बढ़ती नजदीकियां:
हुड्डा गुट लंबे समय से कांग्रेस की कमान किसी जाट चेहरे को सौंपने की मांग कर रहा है. राहुल ने विधायकों की इस मांग का भी तोड़ निकाल लिया है. अब वो प्रदेश में जाट चेहरे के तौर पर कैथल विधायक रणदीप सिंह सुरजेवाला को प्रोजेक्ट कर दिया है. सुरजेवाला की राहुल से बढ़ती नजदिकियां भी हुड्डा की राजनीति के लिए खतरा है.

वजह है- हुड्डा प्रदेश के जिस जाट वोटबैंक के भरोसे आलाकमान के सामने दम भरते है, पार्टी ने उसी समाज में से अब हुड्डा के इतर रणदीप के रुप में विकल्प तलाश लिया है. आगामी विधानसभा चुनाव में संभावना जताई जा रही है कि पार्टी रणदीप सिंह सुरजेवाला को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाएगी. हालांकि रणदीप सुरजेवाला को हाल में हुए जींद उपचुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था. यहां सुरजेवाला तीसरे नंबर पर रहे थे. हालांकि उन्होंने इस हार के लिए कांग्रेस गुटबाजी को जिम्मेदार ठहराया था. इस दौरान उनका सीधा निशाना भूपेन्द्र सिंह हुड्डा पर था.

हालांकि सुरजेवाला की उम्मीदवारी की कांग्रेस के किसी बड़े नेता की तरफ से पुष्टि नहीं की है. लेकिन इन दिनों हुड्डा की छटपटाहट तो इसी की ओर इशारा कर रही है कि पार्टी सुरजेवाला को सीएम फेस बनाने का मन बना चुकी है. हुड्डा इसीलिए भी आलाकमान पर दबाव बनाने के लिए अलग से विधायकों की बैठक लेकर पार्टी के सामने अपनी ताकत दिखा रहे हैं ताकि पार्टी को अपने विचार बदलने पर मजबूर किया जा सके.

आलाकमान ने गुटबाजी को बढ़ावा देने वाले बयानवीरों की मांगी रिपोर्ट

धमाकों के आरोपी को चुनाव में टिकट देना लोकतंत्र पर हमला: शरद पवार

PoliTalks news

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के प्रमुख शरद पवार ने भोपाल संसदीय सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंची साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पर निशाना साधते हुए बीजेपी पर हमला बोला है. पवार ने कहा, ‘साध्वी मालेगांव बम धमाकों की आरोपी है. उस पर निर्दोष लोगों की हत्या का आरोप है. इसके बावजूद भी बीजेपी ने उसे लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाया. यह लोकतंत्र के लिए हानिकारक है.’ बता दें कि बीजेपी ने भोपाल लोकसभा क्षेत्र से मालेगांव बम धमाकों की आरोपी साध्वी प्रज्ञा को उम्मीदवार बनाया था. यहां उन्होंने कांग्रेस के दिग्विजय सिंह को बड़े अंतर से हराया है.

पत्रकारों के साथ बातचीत के दौरान पवार ने कहा कि मालेगांव की मस्जिद में वह बम धमाका शुक्रवार के दिन हुआ था. मैं किसी हाल में यह नहीं मान सकता कि कोई मुसलमान शुक्रवार के दिन किसी धमाके को अंजाम दे सकता है. मुस्लिम समुदाय में शुक्रवार का दिन जुम्मे का होता है. जुम्मा इस्लाम में पवित्र माना जाता है. यही वजह थी कि धमाके के उस मामले में जब मुंबई के आतंक निरोधी दस्ते ने मुसलमानों को गिरफ्तार किया था तो मैंने उसका विरोध किया था. तब एटीएस अधिकारी हेमंत करकरे ने साध्वी प्रज्ञा को गिरफ्तार किया था. अब भारतीय लोकतंत्र के लिए इससे बुरा क्या होगा कि धमाकों की आरोपी देश के सबसे पवित्र मंदिर संसद में बैठेगी.

कठुआ मामले में अदालत का फैसला बीजेपी के लिए भी एक सबक है

जम्मू-कश्मीर के कठुआ में हुए बलात्कार और हत्या के मामले में पठानकोट की विशेष अदालत ने फैसला सुना दिया है. सात में से छह आरोपियों को दोषी ठहराया है जबकि एक को बरी कर दिया गया है. आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में खानाबदोश बकरवाल समुदाय की एक आठ वर्षीय बच्ची का बीते साल 10 जनवरी को अपहरण हो गया था. एक हफ्ते बाद जंगल से उसका शव बरामद हुआ था.

क्राइम ब्रांच की चार्जशीट के मुताबिक अपहरण के बाद पीड़ित बच्ची को एक मंदिर में बंधक बनाकर रखा गया. इस दौरान नशीली दवाएं देकर उसके साथ बार-बार बलात्कार किया गया. पुलिस ने इस मामले में मंदिर के पुजारी सहित सात लोगों को आरोपी बनाया था, जिनमें चार पुलिसकर्मी भी शामिल हैं. इन पुलिसकर्मियों को भी कोर्ट ने बलात्कार और हत्या का दोषी माना है.

यह बहुचर्चित मामला तत्कालीन पीडीपी-बीजेपी सरकार के लिए विवाद का विषय बन गया था. मामले में क्राइम ब्रांच द्वारा गिरफ्तार लोगों के समर्थन में हिंदू एकता मंच की रैली में भाग लेने के लिए भाजपा को अपने दो मंत्रियों चौधरी लाल सिंह और चंदर प्रकाश गंगा को बर्खास्त करना पड़ा था. मामले में जब पुलिस चार्जशीट दायर करने जा रही थी तो कुछ लोगों ने उसका रास्ता रोक लिया था. अभियुक्तों के पक्ष में तिरंगा यात्रा निकाली गई. इसे देखते हुए मामले में सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा. उसने आदेश दिया कि मामले की सुनवाई जम्मू से बाहर पठानकोट में हो.

अब जब इस मामले में फैसला आ गया है तो बलात्कार और हत्या के आरोपियों का समर्थन करने वाले बीजेपी नेताओं की भी पोल खुल गई है, जिन्होंने इस जघन्य घटना को राजनीतिक रंग दिया. इन नेताओं ने इस घटना को अल्पसंख्यक डोगरा समुदाय के खिलाफ एक बड़ी साजिश बताया. पोल जम्मू और कठुआ की स्थानीय बार एसोसिएशन की भी खुली है, जिसने आश्चर्यजनक रूप से आरोपियों को बचाने के लिए प्रदर्शन किया. उसने पीड़िता का केस नहीं लड़ने का फैसला सुनाया है.

अदालत ने क्राइम ब्रांच की चार्जशीट की सही मानते हुए सात में से छह आरोपियों को दोषी माना है. क्राइम ब्रांच के अनुसार 10 जनवरी की शाम सांझीराम ने अपने नाबालिग भतीजे को जंगल में अक्सर आने वाली आठ साल की बच्ची का अपहरण करने का निर्देश दिया. भजीते ने अपने दोस्त मन्नू के साथ पीड़िता अपहरण किया और सिर पर वार कर बेहोश किया. इसके बाद दोनों ने पीड़िता के साथ बलात्कार किया.

सांझीराम का भतीजा और उसका दोस्त मन्नू यहां से लड़की को मंदिर के परिसर में ले गए, जहां उसे एक स्टोर रूम में बंद कर दिया. यहां आरोपियों से लड़की के साथ कई बार बलात्कार किया. इस बीच सांझीराम ने पुलिस कॉन्सटेबल खजूरिया के साथ मिलकर लड़की की हत्या और लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. सांझीराम ने उसे डेढ़ लाख रुपए घूस भी दी. गौरतलब है कि खजूरिया पुलिस द्वारा गठित उस स्पेशल टीम में शामिल था जिसे पीड़िता की खोजबीन के लिए बनाया गया था.

इस बीच एक बार पीड़िता के पिता उसे खोजते हुए 11 तारीख को मंदिर परिसर में भी पहुंचे जहां पीड़िता को नशे की गोलिया देकर छुपाया गया था, लेकिन सांझीराम ने इस बारे में कोई जानकारी न होने की बात कह कर उसे लौटा दिया. एक हफ्ते बाद सभी अभियुक्तों ने लड़की की हत्या की योजना बनाई. उसके साथ बलात्कार के बाद सभी आरोपी उसे जंगल में ले गए. यहां नाबालिग आरोपी ने उसका गला घोंट दिया.

चार्जशीट के मुताबिक जब ये सब हो रहा था तभी आरोपियों के साथ मौजूद पुलिस कॉन्सटेबल दीपक खजूरिया ने कहा कि इसे अभी मत मारो, मुझे भी अपनी हवस मिटानी है. इसके बाद खजूरिया ने भी लड़की से बलात्कार किया. फिर सबने यह सुनिश्चित करने के लिए कि, वो जिंदा न बचे उसके लिए सिर को पत्थरों से कुचला और शव को जंगल में फेंक दिया.

अदालत ने यह माना है कि बकरवाल समुदाय को सबक सिखाने के लिए इस अपराध को अंजाम दिया गया. आपको बता दें कि स्थानीय डोगरा हिंदुओं और बकरवाल समुदाय के बीच काफी समय से टकराव की स्थिति रही है. दोनों ही समुदाय एक दूसरे को फूटी आंख नहीं भाते हैं. आरोपियों के बचाव में सामने आए लोगों का आरोप है कि बकरवाल समुदाय ने उनकी जमीनों पर कब्जा कर रखा है और इनके जानवर उनकी फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं.

इस मामले में अदालत ने क्राइम ब्रांच की जांच को सही बताकर बीजेपी और महज धर्म के आधार पर बलात्कार और हत्या के आरोपियों के पक्ष में अभियान चलाने वालों को कठघरे में खड़ा कर दिया है. अदालत ने उस राजनीति को पूरी तरह से पर्दाफाश कर दिया है जो धर्म में नाम पर जघन्य अपराध को राजनीतिक रंग देकर अपराधियों को बचाने की कोशिश करती है.

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