राहुल गांधी कांग्रेस के भीतर कई वरिष्ठ नेताओं को पसंद नहीं करते हैं. उन्होंने इन नेताओं को लंबे समय से राज्यों की राजनीति से साइड लाइन कर रखा है. ऐसे ही श्रेणी के नेता हैं हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा. हुड्डा ने लगातार दो बार प्रदेश की कमान संभाली है. अब राहुल गांधी प्रदेश के भीतर हुड्डा के इतर कांग्रेसी नेतृत्व खड़ा करना चाहते हैं. यही कारण है कि पांच साल के लंबे अंतराल के बाद भी हुड्डा हरियाणा में पार्टी अध्यक्ष बनने की बांट जोह रहे हैं.
2014 लोकसभा-विधानसभा चुनावः
2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर सिर्फ भूपेन्द्र हुड्डा के पुत्र दीपेन्द्र ही चुनाव जीत पाए. इन नतीजों के बाद हरियाणा की राजनीति में हुड्डा के बुरे दिन शुरु हुए. लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी को विधानसभा चुनाव में बड़ी हार का सामना करना पड़ा. हार भी इतनी बुरी कि पार्टी प्रदेश में तीसरे दर्जे की पार्टी बन गई.
लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मिली बड़ी हार के बाद राहुल गांधी ने भूपेन्द्र हुड्डा को झटका देते हुए युवा नेता अशोक तंवर को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. तंवर इससे पूर्व कांग्रेस के छात्र संघटन एनएसयूआई की कमान संभाल चुके थे. तंवर को राहुल की नजदिकियों का लाभ मिला. उन्हें पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली. तंवर का अध्यक्ष बनाना हुड्डा के लिए साफ संदेश था कि अब राहुल उनकी प्रदेश से रवानगी का मन बना चुके हैं.
विधानसभा में पार्टी की हैसियत नेता विपक्ष का पद हासिल करने की तो बची नहीं थी. लेकिन विधानसभा में पार्टी का नेता चुनने के दौरान भी राहुल ने तंवर के जरिए हुड्डा को झटका दे दिया. हुड्डा विरोधी माने जाने वाली किरण चौधरी को विधायक दल को नेता चुना गया. किरण का विधायक दल का नेता चुना जाना हुड्डा के लिए एक और बड़ा झटका था.
लेकिन हुड्डा हरियाणा की राजनीति की इतनी बड़ी शख्सियत है कि वो इतनी आसानी से हार मान जाए, यह मुमकिन नहीं है. हुड्डा ने राहुल के करीब जाने के प्रयास शुरु किए. माध्यम अपने सांसद पुत्र दीपेन्द्र हुड्डा को बनाया जो राहुल के साथ सदन में अक्सर देखे जाते रहे हैं. हालांकि हुड्डा के इस प्लान से उन्हें कोई खास फायदा नहीं हुआ. राहुल ने प्रदेश की कमान दोबारा हुड्डा को सौंपने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.
2016 में हुड्डा के लिए कुलदीप विश्नोई के रुप में बड़ी मुसीबत सामने आई. कुलदीप विश्नोई ने अपनी पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस का विलय कांग्रेस में कर लिया. विलय के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष पद पर अपनी दावेदारी ठोंक दी. अब प्रदेश कांग्रेस के भीतर अध्यक्ष पद के दो दावेदार हो गये थे. दावेदारों की सूची का बढ़ना तंवर के लिए भी बहुत सुखद था.
लेकिन राहुल गांधी का वरदहस्त होने के बावजूद भी अशोक तंवर प्रदेश कांग्रेस में हुड्डा के जाल को नहीं तोड़ पाए. हुड्डा के एक इशारे पर पार्टी के करीब 14 विधायक एक-साथ कदमताल करते नजर आते जबकि तंवर की बैठकों में हुड्डा गुट का एक भी विधायक शामिल नहीं होता था.
इन विधायकों ने कईं बार राहुल गांधी के समक्ष अशोक तंवर को हटाकर भूपेन्द्र हुड्डा के हाथ में प्रदेश की कमान सौपने की मांग की. प्रदेश में पार्टी की खराब होती दशा को देखते हुए राहुल ने तंवर को हटाकर किसी अन्य को अध्यक्ष बनाने का मन बनाया लेकिन उसी समय प्रदेश में एक बड़ी सियासी घटना हो गई.
इनेलो-बसपा गठबंधनः
लंबे समय से सत्ता में आने की बांट जो रही इनेलो ने 2018 में बहुजन समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया. यह गठबंधन प्रदेश की सियासत में दलित-जाट समीकरण पैदा करने के लिए किया गया था. लेकिन यह गठबंधन इन दोनों पार्टियों के अलावा अशोक तंवर के लिए भी फायदेमंद होने वाला था. जिस समय यह गठबंधन हुआ, राहुल गांधी उसी समय तंवर की जगह किसी और को प्रदेश की कमान सौंपने का मन बना चुके थे. लेकिन दलित चेहरा होने के कारण राहुल उन्हें हटाने की हिम्मत नहीं कर पाए. हालांकि यह गठबंधन जींद उपचुनाव के बाद टूट गया.
लोकसभा चुनाव कांग्रेस और हुड्डा परिवार दोनों के लिए झटके जैसा रहा. भूपेन्द्र हुड्डा स्वयं सोनीपत लोकसभा क्षेत्र से बड़े अंतर से चुनाव हार गए. उन्हें बीजेपी के अपेक्षाकृत छोटे नेता रमेश कौशिक ने मात दी. वहीं कांग्रेस के मजबूत गढ़ रोहतक में भी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. यहां बीजेपी के अरविंद शर्मा ने दीपेन्द्र हुड्डा को शिकस्त दी
सुरजेवाला की राहुल गांधी से बढ़ती नजदीकियां:
हुड्डा गुट लंबे समय से कांग्रेस की कमान किसी जाट चेहरे को सौंपने की मांग कर रहा है. राहुल ने विधायकों की इस मांग का भी तोड़ निकाल लिया है. अब वो प्रदेश में जाट चेहरे के तौर पर कैथल विधायक रणदीप सिंह सुरजेवाला को प्रोजेक्ट कर दिया है. सुरजेवाला की राहुल से बढ़ती नजदिकियां भी हुड्डा की राजनीति के लिए खतरा है.
वजह है- हुड्डा प्रदेश के जिस जाट वोटबैंक के भरोसे आलाकमान के सामने दम भरते है, पार्टी ने उसी समाज में से अब हुड्डा के इतर रणदीप के रुप में विकल्प तलाश लिया है. आगामी विधानसभा चुनाव में संभावना जताई जा रही है कि पार्टी रणदीप सिंह सुरजेवाला को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाएगी. हालांकि रणदीप सुरजेवाला को हाल में हुए जींद उपचुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था. यहां सुरजेवाला तीसरे नंबर पर रहे थे. हालांकि उन्होंने इस हार के लिए कांग्रेस गुटबाजी को जिम्मेदार ठहराया था. इस दौरान उनका सीधा निशाना भूपेन्द्र सिंह हुड्डा पर था.
हालांकि सुरजेवाला की उम्मीदवारी की कांग्रेस के किसी बड़े नेता की तरफ से पुष्टि नहीं की है. लेकिन इन दिनों हुड्डा की छटपटाहट तो इसी की ओर इशारा कर रही है कि पार्टी सुरजेवाला को सीएम फेस बनाने का मन बना चुकी है. हुड्डा इसीलिए भी आलाकमान पर दबाव बनाने के लिए अलग से विधायकों की बैठक लेकर पार्टी के सामने अपनी ताकत दिखा रहे हैं ताकि पार्टी को अपने विचार बदलने पर मजबूर किया जा सके.