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टीकमगढ़ के सांसद वीरेंद्र कुमार होंगे 17वीं लोकसभा के प्रोटेम स्पीकर

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17वीं लोकसभा के प्रोटेम स्पीकर के लिए टीकमगढ़ सांसद वीरेंद्र कुमार खटिक का चुनाव किया गया है. प्रोटेम स्पीकर नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलाने का कार्य करते है. प्रोटेम स्पीकर के चुनाव में संसद सद्स्य की वरिष्ठता को तव्वजों दी जाती है. वीरेंद्र कुमार मध्य प्रदेश के सागर लोकसभा क्षेत्र से 11वीं, 12वीं, 13वीं और 14वीं लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की.

उसके बाद वीरेंद्र कुमार ने 15वीं, 16वीं, 17वीं लोकसभा में मध्य प्रदेश की टीकमगढ़ लोकसभा क्षेत्र से जीत दर्ज की है. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वीरेंद्र कुमार को महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री बनाया गया था. लेकिन किन्हीं कारणों से इस बार मोदी मंत्रिमंडल में जगह नहीं बना पाए.

17वीं लोकसभा का पहला सत्र 17 जून को प्रारम्भ होगा जो 26 जुलाई तक चलेगा. सत्र के शुरुआत में नवनिर्वाचित सांसदो को प्रोटेम स्पीकर के द्वारा शपथ दिलाई जाएगी. संसद का यह सत्र लगभग 40 दिनों तक चलेगा. सत्र के दौरान 30 बैठकें होंगी. लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव 19 जून को संपन्न होगा. बीजेपी का पास लोकसभा में पूर्ण बहुमत है इसलिए लोकसभा अध्यक्ष का निर्वाचन निर्विरोध ही होगा.

प्रोटोकॉल याद रखने वाले नेता अपने पद की गरिमा का ख्याल कब करेंगे?

अलवर से बीजेपी के विधायक संजय शर्मा का एक वीडिया वायरल हो रहा है, जिसमें वे इलाके के एडिशनल एसपी सुरेश खींची को जमकर खरी-खोटी सुना रहे हैं. विधायकजी के गुस्से का कारण सुनेंगे तो आप चौंक जाएंगे, चकित हो जाएंगे. दरअसल, अलवर शहर में बिगड़ी हुई जल व्यवस्था को लेकर सोमवार को बीजेपी विधायक संजय शर्मा की अगुवाई में पार्टी के नेता और कार्यकर्ता कलेक्टर को राज्यपाल के नाम ज्ञापन देने पहुंचे, लेकिन उस समय कलेक्टर इंद्रजीत सिंह ऑफिस में मौजूद नहीं थे तो बीजेपी के नेता व कार्यकर्ता जमीन पर बैठकर कलेक्टर का इंतजार करने लगे. ये लोग वहीं ‘रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम’ भजन गाते रहे. जिला कलेक्टर के नहीं मिलने पर विधायक संजय शर्मा जमीन पर ही उनके कार्यालय में लेट गए.

इस बीच कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए एडिशनल एसपी सुरेश खींची कलेक्टर ऑफिस पहुंच गए. वे कुर्सी पर बैठकर ‘सियासी नौटंकी’ को देख ही रहे थे कि विधायक संजय शर्मा का पारा चढ़ गया. थोड़ी देर पहले तक पानी के लिए तरस रही जनता के लिए चिंतित हो रहे विधायकजी को प्रोटोकॉल याद आ गया. उन्होंने कहा कि आपको प्रोटोकोल पता नहीं क्या. बिल्कुल तानाशाही कर रहे हो. पानी-बिजली आप दे नहीं रहे हो, जनता परेशान है. पानी को तरस रही है और आप आराम से कुर्सी पर बैठे हो, जबकि यहां जनप्रतिनिधि नीचे बैठा है. आपने सांसद की गरिमा का भी ध्यान नहीं रखा. विधायक जी का गुस्सा देखकर एडिशनल एसपी सुरेश खींची कुर्सी से उठ गए और विधायक को कुर्सी पर बैठने के लिए कहने लगे.

एडिशनल एसपी सुरेश खींची की समझदारी से विधायक जी का गुस्सा शांत हो गया, लेकिन यह कड़वी हकीकत फिर बेपरदा हो गयी कि राजनीति में पद का घमंड कुछ नेताओं के सिर चढ़कर बोलता है. इसमें कोई दोराय नहीं है कि प्रोटोकॉल में विधायक का रुतबा बड़ा हेाता है लेकिन हर जगह लागू नहीं किया जा सकता. जिस विधायक को अपने पद की गरिमा का ख्याल नहीं हो, वह सरकारी मुलाजिमों से प्रोटोकॉल की पालना की अपेक्षा कैसे कर सकता है. क्या बिना कलेक्टर की मौजूदगी में उनके ऑफिस में भीड़ के साथ प्रवेश करना विधायक पद की गरिमा के अनुकूल था? क्या ऑफिस में धरना देना विधायक पद की गरिमा के अनुकूल था? क्या कानून व्यवस्था देखने आए एडिशनल एसपी को सार्वजनिक रूप से जलील करना विधायक पद की गरिमा के अनुकूल था?

तैश में आए विधायक संजय शर्मा को प्रोटोकॉल तो याद रहा, लेकिन अपने पद की गरिमा भूल गए. पद की गरिमा याद होती तो कलेक्टर की गैर मौजूदगी में उनके ऑफिस में नहीं घुसते. पद की गरिमा याद होती तो ऑफिस के फर्श पर नहीं बैठते. विधायकजी को खुद को प्रोटोकॉल तो याद रहा, लेकिन यह भूल गए कि एडिशनल एसपी ने जो खाकी वर्दी पहन रखी है, उसका भी एक प्रोटोकॉल है. आपकी आंखों को ड्यूटी करता एक अफसर क्यों कांटों की तरह चुभा? विधायक जी आप भले ही चुनाव जीतकर आए हैं, लेकिन एडिशनल एसपी सुरेश खींची परीक्षा पास कर यहां तक आए हैं. उन्हें सरकारी खजाने से तनख्वाह जनता की सेवा करने के लिए मिलती है न कि आपका प्रोटोकॉल पूरा करने की.

नेताओं की यह स्थिति तब है जब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी पार्टी के नेताओं को भाषा में संयम बरतने और लक्ष्मण रेखा न लांघने की कई बार हिदायत दे चुके हैं. दुख की बात यह है कि नेताओं की ऐसी दबंगई किसी एक दल तक सीमित नहीं है. राज्यों में सत्ता पर काबिज पार्टियों के रंग एवं चिन्ह भले ही अलग हों, दबंगों की मौजूदगी कमोबेश हर जगह है. इन नेताओं को अफसरों को प्रोटोकॉल याद दिलाने से पहले इस तथ्य पर गौर करना चाहिए कि संसद और विधानसभाओं में आपराधिक प्रवृत्ति के सांसद और विधायकों की संख्या दिनों दिन क्यों बढ़ती जा रही है.

लोकसभा चुनाव 2019 में देश की जनता ने 542 सांसदों को चुनकर दिल्ली भेज दिया है. इनमें से सबसे अधिक 353 सांसद एनडीए के हैं. बीजेपी ने अकेले ही 303 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की है, लेकिन अफसोसजनक बात ये है कि इस बार बड़े पैमाने पर दागी नेता संसद पहुंचे हैं. साफ सुथरी राजनीति की बात करने वाली देश की राजनीतिक पार्टियों ने जमकर दागी नेताओं को टिकट बांटे थे, लेकिन इस बार भी संसद भवन में खूब दागी नेता जीतकर पहुंचे हैं. चुनकर आए सांसदों में से 233 पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. इनमें से सबसे अधिक सांसद बीजेपी के टिकट पर चुनकर संसद पहुंचे हैं. बीजेपी के चुनकर आए कुल 116 सांसदों पर क्रिमिनल केस दर्ज हैं जबकि कांग्रेस के 29 सांसदों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं.

बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने 22 लोकसभा की सीटें जीती हैं, इनमें से 9 सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. बसपा के 10 में से 5 सांसदों पर भी आपराधिक मामले चल रहे हैं. सपा के भी पांच सांसदों में से दो पर केस दर्ज हैं. जेडीयू ने इस बार बिहार में 16 सीटें जीती हैं और उसके 13 सांसदों पर केस दर्ज है. बाकी पार्टियों में भी दागी नेताओं की कमी नहीं है. साल दर साल इनकी संख्या बढ़ती ही गई है. अगर राजनीतिक पार्टियों के विधायकों के खिलाफ भी अगर आपराधिक मामलों की पड़ताल करते हैं तो पाएंगे कि बीजेपी इस मामले में कांग्रेस से अव्वल है.

आंकड़ों के अनुसार बीजेपी के 1451 विधायकों में 31 फीसदी विधायकों के ऊपर आपराधिक मामले दर्ज हैं. वहीं, 20 फीसदी विधायकों के खिलाफ संगीन आपराधिक मामले दर्ज हैं. वहीं, कांग्रेस की बात करें तो 773 विधायकों में 26 फीसदी विधायक के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं, वहीं 17 फीसदी कांग्रेस विधायकों के खिलाफ संगीन आपराधिक मामले दर्ज हैं. महिलाओं के खिलाफ अपराध में राज्यवार सासंदों और विधायकों की बात करें तो इसमें महाराष्ट्र का नाम सबसे ऊपर आता है. महाराष्ट्र के 12 सासंदों और विधायकों के ऊपर महिलाओं से संबंधित अपराध के मामले दर्ज हैं.

हेट स्पीच यानी भड़काऊ भाषण के आंकडों पर भी गौर करें तो इसमें बीजेपी शीर्ष पर काबिज है. बीजेपी के 27 सांसदों और विधायकों के खिलाफ भड़काऊ भाषण को लेकर मामले दर्ज हैं. वहीं, कांग्रेस के 2 सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामले दर्ज है. भड़काऊ भाषण अधिकतर मामले उत्‍तर प्रदेश से हैं. यूपी के 15 सांसद और विधायकों के खिलाफ भड़काऊ भाषण का केस चल रहा है. इस मामले में तेलंगाना दूसरे स्‍थान पर है. यहां 13 नेताओं के खिलाफ भड़काऊ भाषण का मामला दर्ज है. अपहरण के मामले में बीजेपी के सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज मामले ही आगे हैं. सबसे ज्यादा बीजेपी के सांसद-विधायकों पर अपहरण से संबंधित मामले दर्ज हैं.

बीजेपी के 19 सासंदों और विधायकों के खिलाफ मर्डर के मामले दर्ज हैं. वहीं, कांग्रेस के 6 सांसदों और विधायकों के खिलाफ मर्डर के मामले दर्ज हैं. मर्डर के मामलों में उत्तर प्रदेश टॉप पर है. उत्तर प्रदेश में 15 मामले दर्ज हैं. अब सवाल उठता है कि आखिर जब संसद और विधानसभाओं में इतने दागी सांसद और विधायक हैं, तो देश का लोकतंत्र कैसे सही होगा. देश की शीर्ष अदालत इस पर कई बार चिंता जता चुकी है. कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि इस बारे में संसद में कानून बनना चाहिए ताकि अपराधी राजनीति से दूर रहें. राष्ट्र तत्परता से संसद द्वारा कानून का इंतजार कर रहा है.

पश्चिम बंगाल में जारी राजनीतिक हिंसा का तांडव कहां जाकर थमेगा?

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पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनावों से पहले ही मौत का तांडव शुरू हो गया था जो अब तक यानी चुनाव ​परिणामों के बाद भी थमने का नाम नहीं ले रहा है. हाल ही में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के कार्यकर्ताओं की बीच हुई झड़प में 4 भाजपा कार्यकर्ताओं की मौत हो गई. बाद में यही कार्यकर्ता पुलिस से भी भिड़ गए. सोमवार को बीजेपी ने बंगाल बंद का ऐलान किया. उस समय लगा कि अब शायद मामला शांत हो जाएगा लेकिन यह शायद तूफान से पहले की शांति थी. पिछले 12 घंटों में फिर तीन हत्या हो गई और कई कार्यकर्ताओं के लापता होने की भी खबर है.

यहां बीजेपी ने दावा किया है कि हावड़ा जिले में पार्टी के एक समर्थक समतुल डोलोई (43) को ‘जय श्री राम’ बोलने मात्र से टीएमसी समर्थकों ने मार डाला. उसका शव अमता थाना क्षेत्र के सरपोता गांव के एक खेत में मिला. पुलिस ने मौत की पुष्टि की है. उनका शव एक पेड़ से फंदे से लटकता मिला है. वह रविवार को एक समारोह में गया था लेकिन घर नहीं लौटा. डोलोई बीजेपी समर्थक था. डोलोई ने पिछले दिनों जय श्री राम रैलियों का आयोजन किया था. तब से उन्हें जान से मारने की धमकियां मिल रही थी. इस घटना से एक दिन पहले रविवार को एक आरएसएस कार्यकर्ता स्वदेश मन्ना का शव भी पेड़ से लटकता मिला था.

वहीं बंगाल के नार्थ 24 परगना जिले के कांकीनारा इलाके में देसी बम से किए गए एक हमले में एक टीएमसी कार्यकर्ता की मौत हो गई. मृतक का नाम मो.मुख्तार है. हमले में मुख्तार की पत्नी सहित कई घायल हुए हैं. इस इलाके में पहले भी हमला हो चुका है. हिंसा के आरोप में तीन बीजेपी कार्यकर्ताओं को बंगाल पुलिस ने हिरासत में लिया है.

इनके अलावा, रविवार शाम को बशीरहाट के हथगछिया इलाके में हुई हिंसा में बीजेपी के दो कार्यकर्ताओं मारे गए. इसी दौरान एक टीएमसी कार्यकर्ता और एक अन्य व्यक्ति की भी मौत हुई थी. अगर सीधे तौर पर कहा जाए तो चुनाव के बाद भी पं.बंगाल में तनाव शांत नहीं हुआ है. एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह कह चुके हैं कि बीते कुछ सालों में 300 से अधिक बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या टीएमसी करा चुकी है. मौजूदा हालातों को देखते हुए तो मौत का यह तांड़व फिलहाल शांत होते नहीं दिख रहा है.

इस मामले में राज्य सरकार की ओर से ममता बनर्जी ने कहा है कि हालात नियंत्रण में हैं. साथ ही कहा है कि केंद्र सरकार और बीजेपी केवल सरकार गिराने के लिए यह सब करा रही है. दीदी ने यह भी कहा है कि बीजेपी उनकी आवाज दबाने की कोशिश कर रही है लेकिन घायल शेर ज्यादा खतरनाक होता है. उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि अगर किसी राज्य में कोई दंगा या हिंसा होती है तो राज्य सरकार के बराबर केंद्र सरकार भी जिम्मेदार होती है. ऐसे में केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हट सकती है.

जानिए राजेश पायलट का दिलचस्प सियासी सफर

लालू यादव का जन्मदिन आज, तेजप्रताप काटेंगे 72 पाउंड का केक

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राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव आज 72 साल हो गए हैं. उनके 72वें जन्मदिन के अवसर पर पार्टी कार्यकर्ताओं की तरफ से 72 पाउंड का केक तैयार किया गया है जिसे उनके बड़े बेटे तेजप्रताप यादव पार्टी मुख्यालय पर काटेंगे.
राजद सुप्रीमो लालू यादव के जन्मदिन के मौके पर बिहार में अनेक कार्यक्रम राजद कार्यकर्ताओं की तरफ से आयोजित किए जा रहे हैं. इस दौरान पार्टी मुख्यालय पर राबड़ी देवी और लालू के बेटी मीसा भारती भी मौजूद होंगी. इस बात की जानकारी आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे दी है.

पिछले साल लालू के 71वें जन्मदिन पर पार्टी कार्यकर्ताओं की तरफ से 71 पाउंड का केक तैयार कराया गया था, जिसे उनके बेटे तेजस्वी प्रसाद यादव और तेजप्रताप यादव ने काटा था. लेकिन इस बार तेजस्वी यादव मौजूद नहीं रहेंगे. लालू यादव को अब तक भ्रष्टाचार से जुड़े विभिन्न मामलों में 25 साल से ज्यादा की सजा सुनाई जा चुकी है. वो झारखंड की रांची जेल में सजा काट रहे हैं. हालांकि सेहत बिगड़ने के कारण उन्हें इन दिनों रांची के सरकारी अस्पताल रिम्स में रखा गया है.

बता दें, लालू यादव बिहार के दो बार मुख्यमंत्री रहे हैं. लालू केन्द्र सरकार में भी कई अहम विभागों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. रेल मंत्री रहने के दौरान उनके द्वारा देश में रेल सुधार के लिए किए गए कार्यों की तारीफ विदेशों में भी होती है.

यूपी सीएम पर पोस्ट लिखने वाले पत्रकार को रिहा करने के आदेश

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखने वाले पत्रकार प्रशांत कनौजिया को सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत रिहा करने के निर्देश दिए हैं. आज हुई एक सुनवाई में कोर्ट ने पत्रकार की गिरफ्तारी को लेकर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि एक नागरिक के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता है, उसे बचाए रखना जरूरी है. ऐसे में उन्हें तुरंत प्रभाव से रिहा किया जाना चाहिए.

कोर्ट ने एक तरह से फटकार लगाते हुए कहा कि आपत्तिजनक पोस्ट पर विचार अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन गिरफ्तारी क्यों? सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत कनौजिया की पत्नी से इस मामले को हाईकोर्ट में ले जाने को भी कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान IPC की धारा 505 के तहत इस मामले में एफआईआर दर्ज करने पर भी सवाल खड़े किए. अदालत ने यूपी सरकार से पूछा है कि किन धाराओं के तहत ये गिरफ्तारी की गई है. ऐसा शेयर करना सही नहीं था लेकिन गिरफ्तारी क्यों हुई है.

कोर्ट ने याचिका में कहा, ‘प्रशांत की गिरफ्तारी गैरकानूनी है. यूपी पुलिस ने इस संबंध में ना तो किसी एफआईआर के बारे में जानकारी दी है ना ही गिरफ्तारी के लिए कोई गाइडलाइन का पालन किया गया है. इसके अलावा ना ही उन्हें दिल्ली में ट्रांजिट रिमांड के लिए किसी मजिस्ट्रेट के पास पेश किया गया.’

सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 505 के तहत इस मामले में एफआईआर दर्ज करने पर भी सवाल खड़े किए. अदालत ने यूपी सरकार से पूछा है कि किन धाराओं के तहत ये गिरफ्तारी की गई है. ऐसा शेयर करना सही नहीं था लेकिन फिर गिरफ्तारी क्यों हुई है.

बता दें, पत्रकार और एक्टिविस्ट प्रशांत कनौजिया पर यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप है. उन्हें आपत्तिजनक ट्वीट और रीट्वीट करने के आरोप में शनिवार सुबह दिल्ली में उत्तर प्रदेश पुलिस ने मंडावली स्थित उनके घर से हिरासत में लिया था. इसके खिलाफ प्रशांत की पत्नी जिगीषा अरोड़ा ने सुप्रीम कोर्ट में हैबियस कॉरपस यानी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की थी.

प्रशांत की गिरफ्तारी का यूपी की पूर्व सीएम और बसपा सुप्रीमों मायावती सहित कई राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन विरोध कर रहे हैं. मायावती ने एक ट्वीट पोस्ट कर बीजेपी सरकार पर निशाना भी साधा है.

मुलायम सिंह यादव की हालत स्थिर, मेदांता अस्पताल में भर्ती

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उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के बिगड़ते स्वास्थ्य के के चलते उन्हें कल शाम 7.30 बजे मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया है. कल शाम स्वास्थ्य बिगड़ने पर उन्हें प्राइवेट चार्टेड विमान से दिल्ली लाया गया. जहां से मुलायम सिंह यादव को गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया है. बता दें कि मुलायम सिंह हाई शुगर और कार्डियो की समस्या से ग्रसित हैं.

अस्पताल से प्राप्त जानकारी के अनुसार, मुलायम सिंह यादव को सोमवार शाम 7.50 बजे मेदांता अस्पताल के सेकेंड फ्लोर पर स्थित आईसीयू के वॉर्ड में भर्ती कराया गया है. विशेष डॉक्टर की टीम उनकी देखरेख कर रही है. वरिष्ठ डॉक्टर त्रेहन ने मुलायम सिंह को सलाह दी है कि वह पूर्णरुप से स्वस्थ होने तक अस्पताल में ही भर्ती रहें.

बता दें कि मुलायम सिंह की रविवार को अचानक तबीयत खराब हो गई थी. तबीयत खराब होने के बाद लखनऊ के लोहिया इंस्टीट्यूट में भर्ती कराया गया था. उनका इलाज कर रहे डॉ भुवन चन्द्र तिवारी ने बताया था कि मुलायम सिंह को हाई शुगर की समस्या से चलते भर्ती किया गया था. हालांकि स्वास्थय लाभ होने पर उन्हें देर रात डिस्चार्ज कर दिया था.

कल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुलायम से उनके आवास पर मुलाकत कर उनका हाल-चाल जाना था. मुलाकात के दौरान उन्होंने मुलायम सिंह को कुंभ की पुस्तक भेंट की थी. इस मुलाकात के दौरान अखिलेश और शिवपाल भी मौजूद थे.

करप्शन पर मोदी सरकार का सर्जिकल स्ट्राइक, उठाया ये बड़ा कदम

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चुनावी प्रचार में नरेंद्र मोदी ने बार-बार देश की जनता से वायदा किया था, ‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा.’ इसी वायदे पर काम करते हुए मोदी सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए करप्शन पर धावा बोला है. मोदी सरकार 2 बनने के कार्यकाल को अभी कुछ ही दिन हुए हैं और केंद्र सरकार ने अपने 12 वरिष्ठ अफसरों को जबरन रिटायरमेंट दे दिया.

एक मीडिया संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, ‘डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स के नियम 56 के तहत इन अफसरों को समय से पहले ही रिटायरमेंट दे दी गई है.’ इस बड़े फैसले के बाद माना जा रहा है कि आने वाले कुछ समय में मोदी सरकार नियम-56 का इस्तेमाल करके भ्रष्टाचार, अवैध और बेहिसाब संपत्ति के आरोप लग चुके कुछ अन्य अधिकारियों पर भी अनिवार्य रिटायरमेंट की गाज गिरा सकती है.

रिटायरमेंट दिए गए उपरोक्त सभी अधिकारी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में चीफ कमिश्नर, प्रिंसिपल कमिश्नर्स और कमिश्नर जैसे पदों पर तैनात थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इनमें से कई अफसरों पर कथित तौर पर भ्रष्टाचार, अवैध और बेहिसाब संपत्ति के अलावा यौन शोषण जैसे गंभीर आरोप थे. अब कई लोग इसे मोदी सरकार 2.0 के तहत सफाई अभियान के रूप में देख रहे हैं.

जिन अफसरों को जबरन रिटायरमेंट दिया गया है, उनमें शीर्ष पर हैं संयुक्त आयुक्त रैंक के अधिकारी अशोक अग्रवाल, जिनपर स्वयंभू धर्मगुरु चंद्रास्वामी की मदद करने और व्यापारियों से जबरन वसूली एवं रिश्वत लेने की गंभीर शिकायतें हैं. इस लिस्ट में आईआरएस अधिकारी एसके श्रीवास्तव भी शामिल हैं, जिन पर दो महिला अफसरों के यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था.

होमी राजवंश (आईआरएस, 1985) पर एक मामले में एक अनुकूल आदेश पारित करने के एवज में अवैध रूप से बड़े पैमाने पर चल-अचल संपत्ति अर्जित की है. जबकि बीबी राजेंद्र प्रसाद पर भी अनुकूल आदेश पारित करने के एवज में रिश्वत लेने का आरोप है.

इन अधिकारियों को दिया गया रिटायरमेंट

  • अशोक अग्रवाल (आईआरएस 1985)
  • एसके श्रीवास्तव (आईआरएस 1989)
  • होमी राजवंश (आईआरएस 1985)
  • बीबी राजेंद्र प्रसाद
  • अजॉय कुमार सिंह
  • बी.अरुलप्पा
  • आलोक कुमार मित्रा
  • चांदर सेन भारती
  • अंडासु रवींद्र
  • विवेक बत्रा
  • स्वेताभ सुमन और
  • राम कुमार भार्गव

हरियाणा में रणदीप सुरजेवाला हो सकते हैं सीएम चेहरा

राजेश्वर प्रसाद बिधूड़ी कैसे बने राजनीति के पायलट?

राजेश्वर प्रसाद बिधूड़ी. जिन्हें पहचान मिली राजेश पायलट के नाम से. वो शख्स जिस पर खेलने-कूदने के दिनों में ही अपने सपनों को मंजिल तक पहुंचाने का जुनून सवार हो गया. उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद के छोटे से गांव बैदपुरा में 10 फरवरी 1945 को एक बेहद साधारण किसान परिवार में राजेश पायलट का जन्म हुआ. गांव में यह बालक खूब खेलता-कूदता था, आम बच्चों की तरह गांव में दोस्तों के संग खूब मस्ती करता था. लेकिन पिता का साया उठने के बाद वो सब कुछ भूल गया और चला आया चचेरे भाई नत्थी सिंह के साथ दिल्ली में. दिल्ली ने पायलट की जिंदगी को एक प्रकार से पंख लगा दिए और उसकी तकदीर व किस्मत बदल दी.

दिल्ली के पॉश इलाके 112, गुरुद्वारा रकाबगंज रोड की कोठी राजेश्वर प्रसाद बिधूड़ी का ठिकाना बनी. यह कोठी उनके संघर्ष की गवाह थी. यहां पर उन्होंने चाचा की डेयरी में मवेशियों की सार-संभाल का काम शुरु किया. सुबह जल्दी उठकर मवेशियों को चारा खिलाना, नहलाना और फिर उनके दूध को दिल्ली के बंगलों में देकर आता. दूध बेचने के साथ-साथ राजेश्वर प्रसाद मंदिर मार्ग के सरकारी स्कूल में पढ़ाई भी कर रहे थे. इस दौरान वे एनसीसी में शामिल हो गए, क्योंकि वहां पहनने के लिए यूनिफॉर्म जो मिल जाती थी.

परिवार की जिम्मेदारी संभालते और दूध सप्लाई का काम करते करते ही राजेश्वर प्रसाद बिधूड़ी ने अपनी ग्रेजुएशन पूरी की और एयरफोर्स में भर्ती हो गए. वायु सेना में प्रशिक्षण के बाद वे लड़ाकू विमान के पायलट बने और फिर 15 वर्षों की अथक मेहनत के बाद प्रमोशन पाकर स्क्वाड्रन लीडर बने. उन्होंने 1971 के भारत पाक युद्ध में भी भाग लिया और बहादुरी के लिए पदक भी मिला. लेकिन लुटियन जोंस के बंगलों में बचपन में दूध बेचने वाले राजेश्वर प्रसाद बिधूड़ी को किस्मत वापस उन्हीं बंगलों तक ले जाना चाहती थी, जहां वे कभी दूध बेचा करते थे.

हालांकि इंदिरा गांधी ने राजनीति में नहीं आने की सलाह दी थी. राजेश पायलट की पत्नी रमा पायलट बताती हैं, ‘इंदिरा जी ने कहा कि इस्तीफा देने की सलाह नहीं दूंगी. फोर्स में क्या फ्यूचर है. राजनीति में क्यों आना चाहते हो?’ इस पर राजेश पायलट ने कहा कि वे चौधरी चरण सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ना चाहते हैं तब ‘इंदिरा जी बोलीं कि तुम बागपत से टिकट मांग रहे हो, वह तो सारा जाटों का इलाका है. पता है न कि वहां तो चुनावों में लाठियां चल जाती हैं.’ राजेश जी बोले,‘मैडम मैं बम चला चुका हूं, तो क्या लाठियों का सामना नहीं कर पाऊंगा?’

राजनीति में आने के लिए 1979 में नौकरी छोड़ दी, लेकिन चुनाव का समय आया तो कांग्रेस से टिकट मिलने की आस धुंधली पड़ती जा रही थी. मगर संजय गांधी के फोन ने उनकी किस्मत बदल दी. पार्टी ने उन्हें भरतपुर से चुनावी मैदान में उतारा. वे जब भरतपुर में कांग्रेस का पर्चा दाखिल कर रहे थे, तो वहां के कार्यकर्ताओं ने उनसे निवेदन किया कि वे अपने नाम के साथ पायलट लिखें. उन्होंने उनका आग्रह स्वीकार करके राजेश पायलट के नाम से परचा भरा और जब वो बाहर निकले तो ‘पायलट जिंदाबाद’ के नारे लग रहे थे. उन्होंने भरतपुर की सीट से वहां के पूर्व राजपरिवार की महारानी को हराकर पहला चुनाव जीता.

भरतपुर में चुनाव प्रचार के दौरान राजेश पायलट के पास उतने पैसे नहीं थे कि वह जगह-जगह जाकर अपनी बात कर सकें. तब के पार्टी कोषाध्यक्ष सीताराम केसरी के कार्यालय के बार-बार चक्कर लगाने पर कुछ रकम प्राप्त हुई और वह भी स्टांप पेपर पर दस्तख्त करवाने के बाद. लेकिन राजेश पायलट को उनके समर्थकों ने पूरा सहयोग दिया. उनका चुनावी खर्च चलता रहा और जीत भी हासिल की. इस चुनाव के बाद राजेश पायलट ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने कई चुनाव जीते और 1991 से 1993 तक जनसंचार मंत्री रहे और 1993 से 1995 तक आंतरिक सुरक्षा मंत्री रहे.

आंतरिक सुरक्षा मंत्री रहते हुए राजेश पायलट ने विवादस्पद तांत्रिक चंद्रास्वामी को गिरफ्तार करवाया. उस समय राजनीति में चंद्रास्वामी की तूती बोलती थी. उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव का करीबी माना जाता था. बड़े-बड़े मंत्री और अधिकारी उनके सामने दंडवत होते थे. ऐसे में उनके खिलाफ जांच करे तो करे कौन. कार्रवाई करे तो करे कौन. राजेश पायलट ने उस वक्त कहा था कि ‘चाहे मुझे जेल जाना पड़े, लेकिन ये खेल खत्म होगा.’ पायलट ने चंद्रास्वामी के खिलाफ न सिर्फ जांच बैठाई, बल्कि गिरफ्तारी भी हुई. पायलट के इस एक्शन पर खूब बवाल मचा, लेकिन आखिरकार इससे उनकी छवि मजबूत हुई.

राजेश पायलट को देश की सियासत में अभी बहुत कुछ कर गुजरने की ललक थी, लेकिन महज 55 साल की आयु में एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई. उनके बेटे सचिन पायलट वर्तमान में राजस्थान में कांग्रेस के कप्तान होने के साथ-साथ प्रदेश सरकार में उपमुख्यमंत्री भी हैं. इससे पहले वे केंद्र में मंत्री भी रहे हैं. सचिन अपने पिता की तरह लाल रंग की चूनड़ी का साफ पहनते हैं और ‘राम-राम सा’ संबोधन से लोगों से जुड़ते हैं. पिता की तर्ज पर सचिन भी अपने नाम के आगे पायलट लगाते हैं.

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