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राहुल कल से लेंगे तीन राज्यों की बैठक, इस्तीफे पर संशय बरकरार

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लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद राहुल गांधी CWC बैठक में अपने इस्तीफे की पेशकश कर चुके हैं. उसके बाद राहुल ने संसद के बाहर मीडिया से बातचीत करते हुए अध्यक्ष नहीं बनने की बात दोहराई. राहुल ने पार्टी को एक माह में नया अध्यक्ष चुनने के निर्देश दिए थे. इस्तीफे की पेशकश के बाद राहुल गांधी कल से फिर सक्रिय हो रहे हैं.

राहुल अगले तीन दिन लगातार महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली के कांग्रेस नेताओं की बैठक लेंगे. इस सक्रियता के मायने तो यही निकल रहे हैं कि कहीं राहुल गांधी अपना मूड फिर तो नहीं बदल रहे. हालांकि अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा. लेकिन एक बार फिर राहुल गांधी तीन राज्यों के नेताओं की बुलाई बैठकों से कईं तरह की अटकलें लगना शुरु हो गई है.

26, 27 और 28 जून को लेंगे राज्यों की बैठक
कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे के एक महीने बाद राहुल गांधी फिर से सक्रिय हाे रहे हैं. लोकसभा चुनाव में हार के बाद उन्होंने 25 मई को इस्तीफे की पेशकश की थी. इसके बाद संगठन से जुड़ा काेई भी फैसला लेने से साफ मना कर दिया. सारी निुयक्तियां एआईसीसी के अनुमोदन से हो रही थी.

यहां तक की राहुल ने नेताओं से मिलने से मना कर दिया था लेकिन राहुल अब बुधवार से तीन चुनावी राज्याें के नेताओं की बैठक लेंगे. उन्होंने 26 जून को महाराष्ट्र, 27 को हरियाणा और 28 को दिल्ली इकाई के बड़े नेताओं को अपने आवास पर बुलाया है.

चुनावी रणनीति को लेकर करेंगे चर्चा
राहुल गांधी गुटबाजी में फंसे तीनों प्रदेशों के नेताओं के साथ विधानसभा चुनाव की रणनीति पर चर्चा करेंगे. फिर तय होगा कि इन प्रदेशों में नेतृत्व परिवर्तन होगा या नहीं. संबंधित राज्यों के प्रभारी महासचिव भी बैठकाें में माैजूद रहेंगे. प्रभारी महासचिव पहले भी चुनाव बाद समीक्षा के लिए कोर कमेटी की बैठक ले चुके हैं लेकिन बैठकें आरोप-प्रत्यारोप से आगे नहीं बढ़ पाई. ऐसे में राहुल ने ही बैठक बुलाने का फैसला लिया.

यूथ कांग्रेस का कल राहुल के आवास पर प्रदर्शन
राहुल गांधी अध्यक्ष बरकरार रहे, इसके लिए कल दिल्ली में राहुल के तुगलक लेन आवास पर यूथ कांग्रेस शक्ति प्रदर्शन करेगी. ‘आप हो तो हम हैं’ की थीम पर यूथ कांग्रेस राहुल गांधी से इस्तीफा वापस लेने की मनुहार करेंगे. इसके लिए यूथ कांग्रेस देशभर से पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं को दिल्ली बुलाया गया है.

इस्तीफे पर संशय अब भी बरकरार
राहुल गांधी के इस्तीफे पर संशय अब भी बरकरार है. उन्होंने इस्तीफा वापस लेने के लिए कांग्रेस कार्य समिति का आग्रह न तो मंजूर किया है और न ही नामंजूर. पिछले सप्ताह उन्होंने नया अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया में अपनी भूमिका से साफ इनकार किया था. सोमवार को यूपी के संगठनात्मक फेरबदल संबंधी आदेश पर भी राहुल के बजाय अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अनुमोदन की बात से साफ है कि राहुल अभी इस्तीफे पर अड़े हैं.

कर्ज के चलते किसान ने की आत्महत्या, गहलोत-पायलट को बताया जिम्मेदार

राजस्थान में कर्जमाफी नहीं होने से परेशान श्रीगंगानगर के एक किसान ने जहर खाकर खुदखुशी कर ली. मरने से पहले किसान सोहनलाल ने बाकायदा एक वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट करके मौत के लिए सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट को जिम्मेदार ठहराया है. मरने से पहले छोड़े गए सुसाइड नोट में भी किसान ने सीएम और डिप्टी सीएम को मौत की वजह बताया. सीएम औऱ डिप्टी सीएम का नाम आने के चलते मामला हाईप्रोफाइल बन गया है.

मामले में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के भी दो अलग-अलग बयान अब सामने आए हैं. गहलोत ने मामले की तथ्यात्मक रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ कहने का बयान दिया. वहीं सचिन पायलट ने कर्ज के चलते आत्महत्या नहीं करने का दावा किया है. फिलहाल पुलिस मामले की तफ्तीश में जुटी हुई है.

कर्जमाफी की घोषणा कांग्रेस के लिए बनी मुसीबत
विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने सरकार बनते ही 15 दिन में कर्ज माफ करने का वादा किया था. सूबे में कांग्रेस की सरकार भी बन गई लेकिन कर्जमाफी घोषणा धरातल पर नहीं उतरी. इसके चलते लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता नहीं खुला. अब कर्जमाफी नहीं होने पर एक किसान के आत्महत्या करने से कांग्रेस सरकार निशाने पर आ गई है.

श्रीगंगानगर के ठाकरी गांव के किसान सोहनलाल ने आत्महत्या करने से पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो भी डाला था. जिसमें वो कर्जमाफी नहीं होने के लिए सीधे सीएम और डिप्टी सीएम को जिम्मेदार ठहरा रहा है. मृतक ने सुसाइड नोट में भी दोनों के नाम लिखे हैं. अब यह मामला मीडिया में सुर्खियां बटोर रहा है.

सिंडीकेट बैंक से लिया था सवा लाख का लोन
सामने आ रहा है कि किसान पर सिंडीकेट बैंक का करीब एक लाख 23 हजार रुपये का लाेन बकाया था. सोहनलाल द्वारा मरने से पहले बनाई गई वीडियो में बताया गया है कि उसे लाेन चुकाने के लिए बैंक वालाें ने परेशान कर रखा था. हालांकि बैंक का दावा है कि उन्होंने किसान को कभी परेशान नहीं किया.

अचंभे की बात है किसान सोहनलाल ने वीडियो और सुसाइड नाेट में आत्महत्या का कारण कर्जमाफी नहीं हाेना बताया है. साथ ही सीएम और डिप्टी सीएम काे कर्जमाफी का वादा पूरा नहीं करने का आरोप लगाया गया है. मृतक के पास खुद की 6 बीघा कृषि भूमि बताई गई है. उसके दाे बच्चे हैं और बड़ी बेटी बीएड कर रही है. छाेटा बेटा 10वीं कक्षा में अध्ययनरत है.

बता दें, किसान सोहनलाल की आत्महत्या का मामला साेमवार काे लोकसभा में भी गूंजा. सांसद निहालचंद ने इस संबंध में पत्र में पूरे प्रकरण से लोकसभा अध्यक्ष काे मिलकर अवगत कराया है.

गहलोत और पायलट के अलग-अलग बयान
किसान के आत्हमत्या प्रकरण में सीएम और डिप्टी सीएम के भी अलग-अलग दो बयान आए है. डूंगरपुर में मीडिया से बाचतीत करते हुए गहलोत ने कहा कि अभी हमने घटना की तथ्यात्मक रिपोर्ट मंगाई है. रिपोर्ट मिलने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है. वहीं डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने कहा कि हमें रिपोर्ट मिली है. उसके मुताबिक किसान ने कर्ज के बोझ के चलते सुसाइड नहीं की है.

मदन लाल सैनी के निधन के बाद कौन संभालेगा राजस्थान में बीजेपी की कमान?

राजस्थान में बीजेपी के अध्यक्ष मदन लाल सैनी का सोमवार शाम निधन हो गया. 76 साल के सैनी कई दिनों से बीमार थे. पिछले शुक्रवार को उन्हें इलाज के लिए दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स ले जाया गया था. उससे पहले जयपुर के एक निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था. जानकारी के मुताबिक उन्हें फेफड़ों में इंफेक्शन की शिकायत थी. सैनी के निधन के बाद बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष का पद खाली हो गया है. पार्टी नेतृत्व जल्द ही किसी नेता को राजस्थान में पार्टी का कप्तान बनाएगा.

वैसे तो मदन लाल सैनी के निधन से पहले ही सियासी गलियारों में यह चर्चा चल रही थी कि उनकी जगह किसी दूसरे नेता को राजस्थान में बीजेपी की कमान सौंपी जाएगी, लेकिन अब पार्टी के सामने इस बारे में फैसला लेने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है. सूत्रों के अनुसार 5 जुलाई को संसद में बजट पेश होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह राजस्थान में प्रदेशाध्यक्ष का नाम फाइनल करेंगे. यह जरूर तय माना जा रहा है कि नया प्रदेशाध्यक्ष संघ पृष्ठभूमि से होगा.

बीजेपी के जिन नेताओं का नाम प्रदेशाध्यक्ष के लिए चर्चा में है, उनमें सतीश पूनिया का नाम सबसे ऊपर माना जा रहा है. कहा जा रहा है कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने राजस्थान में बीजेपी की कमान सतीश पूनिया के हाथों में सौंपने के बारे में मन बना लिया है. पूनिया वर्तमान में आमेर से विधायक हैं और संगठन में उनके पास प्रदेश प्रवक्ता का जिम्मा है. पूनिया संघ पृष्ठभूमि से हैं और उन्हें संगठन में काम करने का लंबा अनुभव है. वे लगातार चार बार बीजेपी के प्रदेश महामंत्री रहे हैं.

पूनिया को लेकर बीजेपी के भीतर यहां तक चर्चा चल रही है कि मोदी-शाह ने उन्हें प्रदेशाध्यक्ष बनाने का फैसला मदन लाल सैनी के निधन से पहले ही ले लिया था. प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए सतीश पूनिया का नाम सोशल इंजीनियरिंग के तहत सामने आया है. पहले इस पद के लिए जयपुर ग्रामीण सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ और उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ के नाम पर मंथन हो रहा था, लेकिन जोधपुर सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत के कैबिनेट मंत्री बनने के बाद ये दोनों रेस में पिछड़ गए. पार्टी नेतृत्व का मानना है कि शेखावत को कैबिनेट मंत्री बनाने के बाद किसी राजपूत नेता को प्रदेशाध्यक्ष बनाना सोशल इंजीनियरिंग के हिसाब से ठीक नहीं रहेगा.

कोटा सांसद ओम बिड़ला के लोकसभा अध्यक्ष और बीकानेर सांसद अर्जुन मेघवाल के राज्यमंत्री बनने के बाद सतीश पूनिया का नाम तेजी से उभरकर सामने आया. हालांकि पूनिया जिस जाट बिरादरी से आते हैं उसे भी मोदी के मंत्रिमंडल में जगह मिली है. बाड़मेर सांसद कैलाश चौधरी को राज्यमंत्री बनाया गया है, लेकिन प्रदेश में जाटों का बाहुल्य देखते हुए इसे पर्याप्त नहीं माना जा रहा है. आपको बता दें कि जाट संख्या के हिसाब से राजस्थान की सबसे बड़ी जाति है. इसका प्रदेश की 70 से 80 विधानसभा सीटों पर दबदबा है. यदि पूनिया को प्रदेशाध्यक्ष बनाया जाता है तो यह पहला मौका होगा जब कोई जाट नेता राजस्थान में बीजेपी की कमान संभालेगा.

हालांकि एक चर्चा यह भी है कि बीजेपी किसी जाट को प्रदेशाध्यक्ष बनाकर राजपूतों की नाराज नहीं करना चाहेगी. इस स्थिति में किसी ब्राह्मण नेता को मौका दिया जा सकता है. यदि इस दिशा में विचार होता है तो अरुण चतुर्वेदी का नाम सबसे ऊपर है. संघ पृष्ठभूमि से जुड़े चतुर्वेदी पहले भी प्रदेशाध्यक्ष रहे हैं. वे पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार में मंत्री भी रहे हैं. किसी ब्राह्मण नेता के प्रदेशाध्यक्ष बनने की संभावना इसलिए भी है, क्योंकि परंपरागत रूप से बीजेपी की समर्थक मानी जानी वाली इस जाति को मोदी के मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली है.

एक कयास यह भी लगाया जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व किसी बड़ी जाति के नेता को प्रदेशाध्यक्ष बनाने की बजाय ​किसी अल्पसंख्यक जाति के नेता पर दांव खेल सकती है. इस स्थिति में वासुदेव देवनानी को मौका मिल सकता है. दलित चेहरे के रूप में मदन दिलावर का नाम भी चर्चा में है. देवनानी और दिलावर संघ पृष्ठभूमि के नेता हैं. दोनों वर्तमान में विधायक हैं और पूर्व में मंत्री रहे हैं. संभावना यह है कि मोदी और शाह इन नामों में से ही किसी एक नाम पर मुहर लगाएंगे, लेकिन आखिरी समय में कोई चौंकाने वाला नाम भी सामने आ सकता है. वैसे भी मोदी-शाह को लीक से हटकर फैसले लेने का शगल है.

यह जरूर तय है कि प्रदेशाध्यक्ष का फैसला मोदी-शाह ही करेंगे. आपको बता दें कि पिछले साल दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेशाध्यक्ष पद पर तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और पार्टी नेतृत्व के बीच जबरदस्त खींचतान देखने को मिली थी. पिछले साल अप्रेल में यह घटनाक्रम उस समय सामने आया जब दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट पर हुए उप चुनाव में बीजेपी की करारी हार हुई थी. इस हार की गाज वसुंधरा राजे के ‘यस मैन’ माने जाने वाले अशोक परनामी पर गिरी. उन्होंने अमित शाह के कहने पर 16 अप्रेल को प्रदेशाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया.

अशोक परनामी के इस्तीफा देने के बाद यह माना जा रहा था कि एकाध दिन में राजस्थान में भाजपा को नया कप्तान मिल जाएगा. इसी बीच खबर सामने आई कि पार्टी नेतृत्व ने गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम तय कर दिया है. शेखावत का नाम सामने आते ही वसुंधरा खेमा सक्रिय हो गया. उन्होंने यह कहकर इस नाम का विरोध किया कि इससे जातिगत समीकरण गड़बड़ा जाएंगे. पार्टी के वरिष्ठ नेता देवी सिंह भाटी ने तो सार्वजनिक रूप से ही कह दिया कि गजेंद्र सिंह शेखावत की छवि शुरू से ही जाट विरोधी रही है. यदि उन्हें प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया तो जाट भाजपा को वोट नहीं देंगे.

पार्टी नेतृत्व को इस जातीय गणित को समझाने के लिए वसुंधरा सरकार के कई मंत्रियों ने दिल्ली तक परेड की. शुरूआत में तो अमित शाह ने वसुंधरा राजे के इस अप्रत्याशित रुख पर सख्त ऐतराज जताया. उन्होंने वसुंधरा के दूत बनकर दिल्ली आए कई मंत्रियों से मिलने तक से इनकार कर दिया. उन्होंने प्रदेश प्रभारी अविनाश राय खन्ना, सह प्रभारी वी. सतीश व संगठन महामंत्री चंद्रशेखर के जरिये यह संदेश भिजवाया कि जब भैरों सिंह शेखावत से जाट नाराज नहीं हुए तो गजेंद्र सिंह शेखावत से क्यों होंगे, लेकिन वसुंधरा ने इस तर्क को तवज्जो नहीं दी.

मामले को सुलझाने के लिए अमित शाह ने वसुंधरा राजे को दिल्ली तलब किया. जब पहले दौर की बातचीत में कोई रास्ता नहीं निकला तो ओम माथुर ने मध्यस्ता की. चर्चा के मुताबिक वसुंधरा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने का समय मांगा था, लेकिन उन्होंने ओम माथुर से मिलने का संदेश भेज दिया. बैठकों के कई दौर चले मगर राजे के हठ की वजह से गजेंद्र सिंह शेखावत के नाम पर सहमति नहीं बन पाई जबकि दूसरे किसी नाम पर पार्टी नेतृत्व तैयार नहीं हुआ. चूंकि विधानसभा चुनाव में छह महीने से भी कम का समय बचा था इसलिए मोदी-शाह ने वसुंधरा के जिद के आगे समर्पण करते हुए गजेंद्र सिंह शेखावत के नाम को ‘कोल्ड स्टोरेज’ में डाल दिया और मदन लाल सैनी अध्यक्ष बने.

वसुंधरा की इस हठ से मोदी-शाह से खासे नाराज हुए थे. ये दोनों उस समय राजे के सामने इसलिए झुके, क्योंकि वे मुख्यमंत्री थीं और ज्यादातर विधायक उनके समर्थक थे. लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है. विधानसभा चुनाव में सत्ता से बेदखल होने के बाद वसुंधरा राजे बीजेपी में हाशिए पर है. उनके पास संगठन में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का ओहदा जरूर है मगर पार्टी में उनका रसूख कितना कम हो गया है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव के समय उनकी नाराजगी की बावजूद बीजेपी ने हनुमान बेनीवाल की पार्टी से गठबंधन कर लिया और दीया कुमारी को राजसमंद से टिकट दे दिया.

लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद भी राजे को किनारे करने का सिलसिला जारी है. उनसे अदावत रखने वाले नेताओं को चुन-चुनकर ताकतवर बनाया जा रहा है. जिन गजेंद्र सिंह शेखावत को वसुंधरा ने प्रदेशाध्यक्ष नहीं बनने दिया वे मोदी के मंत्रिमंडल में राजस्थान के इकलौते कैबिनेट मंत्री हैं. जिन ओम बिरला को कोटा से टिकट देने का राजे ने विरोध किया, वे लोकसभा के अध्यक्ष बन चुके हैं. इस स्थिति में यह लगता नहीं है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह प्रदेशाध्यक्ष के मामले में वसुंधरा राजे से कोई राय-मशविरा भी करेंगे. अब तो वही मुमकिन होगा जो मोदी-शाह चाहेंगे.

मोदी कैबिनेट का बड़ा फैसला, संदिग्ध को भी कर सकते हैं आतंकी घोषित

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हाल में हुए कैबिनेट की बैठक में देश की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने के लिए बड़ा फैसला लिया गया. कैबिनेट में लिए फैसले के अनुसार, अब आतंकी गतिविधियों में शामिल संदिग्ध व्यक्तियों को भी आतंकी घोषित किया जा सकेगा. उन्हें प्रतिबंधित भी किया जा सकेगा.

बता दें कि मोदी कैबिनेट की इस महत्वपूर्ण बैठक में एनआइए और गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून से जुड़े दो संशोधनों को हरी झंडी दी गई है. इन दोनों संविधान संशोधन विधेयकों को संसद के इसी सत्र में पेश किया जा सकता है. बात करें मौजूदा कानून की तो इसके अनुसार, केवल आतंकी गतिविधियों में शामिल संगठनों पर ही प्रतिबंध लगाया जा सकता है. लेकिन अब इन गतिविधियों में शामिल संदिग्ध व्यक्तियों को भी आतंकी की श्रेणी में लाया जाएगा.

इस बैठक में केंद्रीय कैबिनेट ने एनआइए एक्ट और गैर कानूनी गतिविधियों अधिनियम में संशोधन को पेश किया, जिसे मंजूर कर लिया गया. अब इन संशोधनों को सदन में पेश किया जाएगा. अगर संशोधन विधेयक को संसद से भी मंजूरी मिल जाती है तो एनआइए को साइबर अपराधों और मानव तस्करी से जुड़े मामलों की जांच करने की भी अनुमति मिल जाएगी.

हनुमान बेनीवाल ने राजस्थान के लिए मांगा विशेष राज्य का दर्जा

कल जम्मु-कश्मीर जाएंगे अमित शाह, अमरनाथ यात्रा की तैयारियों का लेंगे जायजा

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कल से जम्मू-कश्मीर के दो दिवसीय दौरे पर रहेंगे. अपने जम्मु-कश्मीर दौरे के दौरान अमित शाह अमरनाथ यात्रा की तैयारियों का जायजा लेंगे. वहीं अमित शाह सुरक्षा के मसले पर उच्च अधिकारियों के साथ बैठक करेंगे. इस बैठक में राज्यपाल सत्यपाल मलिक के अलावा सुरक्षाबलों के अधिकारी और पुलिस विभाग के बड़े अधिकारी शामिल होंगे.

प्राप्त जानकारी के अनुसार गृह मंत्री अमित शाह के दो दिवसीय दौरे के लिए प्रशासनिक स्तर पर तैयारियां शुरू हो गई हैं. अमित शाह के तय कार्यक्रम के अनुसार जम्मु-कश्मीर बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष रवीन्द्र रैना के नेतृत्व में पार्टी के नेता विभिन्न मसलों को लेकर अमित शाह के मुलाकात करेंगे.

निर्वाचित सरपंचों व पंचों का प्रतिनिधिमंडल भी अमित शाह से मुलाकात करेगा. सरपंच प्रतिनिधिमंडल अमित शाह के समक्ष अपनी मांग रखेगा और अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग करेगा. अमित शाह का अमरनाथ की पवित्र गुफा में दर्शन करने का भी कार्यक्रम तय है. शाह 27 जून को अमरनाथ गुफा के दर्शन करेंगे.

मदनलाल सैनी का पूरा सियासी सफर

गुजरात राज्यसभा चुनाव मामले में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की कांग्रेस की याचिका

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सुप्रीम कोर्ट ने राज्यसभा चुनाव को लेकर गुजरात कांग्रेस की याचिका को खारिज कर दिया है. 5 जुलाई को गुजरात की दो सीटों सहित कुल 6 सीटों पर मतदान होने हैं. अमित शाह और स्मृति ईरानी के लोकसभा में जाने के बाद गुजरात से दो राज्यसभा सीट रिक्त हुई हैं. निर्वाचन आयोग इन दोनों सीटों पर एक साथ चुनाव करा रहा है. जबकि कांग्रेस ने दोनों सीटों पर अलग-अलग चुनाव कराने की मांग की है.

याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता गुजरात प्रदेश कांग्रेस के वकील विवेक तंखा से कहा, ‘निर्वाचन आयोग के सामने याचिका लगाएं. चुनाव प्रक्रिया खत्म होने के बाद ही हम चुनाव याचिका के रूप में सुनवाई करेंगे, लेकिन अभी नहीं.’

अधिक पढ़ें: क्यों गुजरात राज्यसभा चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची है कांग्रेस

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रेगुलर वैकेंसी भरने के लिए एकसाथ चुनाव होते हैं लेकिन आकस्मिक यानी कैजुअल वैकेंसी के लिए एक साथ चुनाव कराने की कोई बाध्यता नहीं है. अब अदालतों के कई आदेशों और फैसलों से एक तीसरी श्रेणी स्टेट्यूटरी की सामने आ गई है. आप इसकी याचिका आयोग के सामने दाखिल करें.

गुरमीत राम रहीम ने खेती के लिए मांगी पेरोल, जेलर ने की बर्ताव की तारीफ

साध्वी यौन शोषण और छत्रपति हत्याकांड में सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम ने कृषि कार्य के लिए पैरोल मांगी है. उनकी तरफ से दायर याचिका में 42 दिन की पैरोल की मांग की गई है. जेल में उनके बर्ताव की तारीफ करते हुए रोहतक जेल अधीक्षक ने कहा है कि गुरमीत राम रहीम कोई खूंखार अपराधी नहीं है. जेल के भीतर उनका आचरण अच्छा रहा है. जेल अधीक्षक ने यह बातें उस समय कही है जब उनसे सिरसा जिला प्रशासन ने पैरोल देने या नहीं देने के मामले पर राय मांगी थी.

हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने भी राम रहीम की पैरोल की तरफदारी की है. अनिल विज ने कहा, ‘पैरोल कैदी का अधिकार है. पैरोल कानून के अनुसार दी जाती है. यदि गुरमीत राम रहीम को पैरोल मिलती है तो इसमें कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए.’

हरियाणा के जेल मंत्री कृष्णलाल पंवार ने भी राम रहीम की पेरौल की पैरवी करते हुए कहा, ‘हर दोषी दो साल की सजा पूरी करने के बाद पैरोल का हकदार होता है. अगर दोषी का व्यवहार जेल में अच्छा होता है तो जेल अधीक्षक इसकी रिपोर्ट स्थानीय पुलिस को देता है. वेरिफिकेशन के बाद यह रिपोर्ट कमिश्नर के पास जाती है और वहीं अंतिम निर्णय लेते हैं. राम रहीम के मामले में भी इसी प्रकिया के आधार पर कार्यवाही की रही है.’

PM Modi ने आपातकाल को बताया लोकतंत्र पर जुर्म

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