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10 जुलाई को पेश होगा राजस्थान का बजट, सीएम गहलोत दे सकते हैं कई सौगातें

राजस्थान विधानसभा का बजट सत्र शुरु हो चुका है. 10 जुलाई को राजस्थान का बजट पेश किया जाएगा. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आगामी विधानसभा में प्रदेश का बजट पेश करेंगे. बजट सत्र के पहले दिन विधानसभा में बीएसी की बैठक में गुरुवार को सदन का कामकाज तय किया गया. इससे पहले गुरुवार को 15वीं विधानसभा के पहले बजट सत्र की शुरुआत हुई.

इस मौके पर माकपा विधायक बलवान पूनिया किसान सोहनलाल की आत्महत्या के प्रति सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए एक बैनर पहनकर सदन में पहुंचे. इससे पहले, सत्र की कार्यवाही शुरु होती ही शोकाभिव्यक्ति रखी गई. उसके बाद सत्र की कार्यवाही शुक्रवार 11 बजे तक स्थगित कर दी गई.

सत्र के लिए 3 हजार प्रश्न हुए सूचीबद्ध
सत्र के लिए बुधवार तक करीब 3 हजार प्रश्न सूचीबद्ध हुए हैं. इनमें सबसे ज्यादा सवाल कानून व्यवस्था, पानी-बिजली, मेडिकल, खेती-किसान के मुद्दे पर पूछे गए हैं. इनमें कानून व्यवस्था से जुड़े गृह विभाग से 160 सवाल, मेडिकल से जुड़े 217, पानी और बिजली से जुड़े 300 से ज्यादा सवाल, किसानों से जुड़े 200 से ज्यादा सवाल पूछे गए हैं.

BJP ने अपने पूर्व मंत्रियों व वरिष्ठ विधायकों को खास तौर पर यह जिम्मेदारी दी है कि जिन महकमों के बारे में उन्हें अच्छी जानकारी है उन्हें लेकर विधानसभा में सवाल लगाएं, ताकि वाद-विवाद की स्थिति में पार्टी कमजोर न पड़े और सरकार मंत्रियों को घेरा जा सके.

माकपा विधायक अपनी पोशाक से चर्चा में
राजस्थान की 15वीं विधानसभा के दूसरे सत्र के पहले दिन गुरुवार को माकपा विधायक बलवान पूनिया अपनी पोशाक (ड्रेस) को लेकर सबकी नजरों में रहे. विधायक पूनिया यहां किसान आत्महत्याओं पर सत्ता पक्ष को घेरने के लिए एक बैनर पहनकर विधानसभा पहुंचे. इस बैनर पर किसान आत्महत्याओं पर नारे लिखे हैं. श्रीगंगानगर के रायसिंहनगर के एक किसान ने इस सप्ताह आत्महत्या कर ली थी. विधायक इसी मामले की ओर से सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं.

राहुल गांधी ने यूथ कांग्रेस के नेताओं के सामने बयां किया अपना दर्द

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लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा पार्टी को सौंप दिया हैं. हालांकि इस्तीफा वापस लेने के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल से लगातार मान-मनुहार कर रहे है लेकिन राहुल अपने फैसले पर अड़े हुए है. इसी मांग को बुधवार को यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ता राहुल गांधी के आवास के बाहर एकत्रित हुए थे.

मकसद था- राहुल गांधी इस्तीफा न दें और अध्यक्ष पद पर बने रहें. राहुल गांधी के समर्थन में उनके घर के बाहर जब राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बैठे तो राहुल ने यूथ कांग्रेस के कुछ नेताओं अपने घर पर बुलाया और उनसे अपने मन की बात की.

राहुल गांधी से बातचीत के दौरान यूथ कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि हार की जिम्मेदारी सामुहिक है. आप इस्तीफा क्यों दे रहे हो?  इस पर राहुल गांधी ने कहा कि मुझे इस दुख इस बात का है कि मेरे इस्तीफे के बाद किसी मुख्यमंत्री,  महासचिव या प्रदेश अध्यक्ष ने हार की जिम्मेदारी लेकर अपना इस्तीफा नहीं दिया.

उन्होंने कहा कि एक बात बिलकुल साफ है कि अब मैं पार्टी का अध्यक्ष नहीं रहूंगा. आप लोग बिल्कुल भी चिंता मत करिए. मैं कही जाने वाला नहीं, यहीं रहूंगा और मजबूती से आप सब की लड़ाई लड़ूंगा. राहुल ने कार्यकर्ताओं से कहा कि जिसको तुरंत सत्ता चाहिए, वो बीजेपी में जाए. जो संघर्ष में मेरे और पार्टी के साथ रहेगा, वही पार्टी का सच्चा सिपाही है.

 

महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में मुख्यमंत्री पद पर अड़ सकती है शिवसेना

तीन तलाक के मुद्दे पर जेडीयू नेता ने नीतीश कुमार पर साधा निशाना

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तीन तलाक विधेयक को लेकर जेडीयू ने पहले ही बिल के वर्तमान स्वरुप के विरोध करने का ऐलान कर दिया था. अब आज जेडीयू नेता अजय आलोक ने इसी मसले को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर तंज कसा है. दरअसल जेडीयू के पूर्व प्रवक्ता अजय आलोक से ट्रिपल तलाक के मसले पर नीतीश कुमार के फॉलोअर्स ने पूछा है कि नीतीश कुमार इसका विरोध क्यों कर रहे हैं? क्या मुस्लिम महिलाएं दूसरे ग्रह से आई हैं?

इस सवाल के जवाब में अजय आलोक ने कहा, ‘आप सब ये सवाल मुझसे क्यों कर रहे हो की नीतीश जी जो महिला सशक्तिकरण के लिए क्या नहीं करते जैसे नौकरी में आरक्षण , शराबबंदी ,कन्या योजना इत्यादि वो नीतीशजी तीन तलाक़ का विरोध क्यों कर रहे हैं ? क्या मुस्लिम महिलायें दूसरे ग्रह से आयी हैं ? ये जवाब सिर्फ़ जेडीयू देगा।’

बता दें कि अजय आलोक पहले जेडीयू के मुख्य़ प्रवक्ता थे. लेकिन कुछ दिनों पूर्व अजय आलोक ने प्रवक्ता पद से इस्तीफा दे दिया था. इस्तीफे का कारण उनके द्वारा ममता बनर्जी पर की गई बयानबाजी थी. दरअसल अजय आलोक ने अपने ट्वीट में लिखा था कि ममता बनर्जी बंगाल को मिनी पाकिस्तान रहीं हैं. बंगाल से बिहारियों को मार-मारकर भगाया जा रहा है. इस बयान के बाद अजय आलोक ने प्रवक्ता पद से इस्तीफा दे दिया था.

बांबे हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण पर लगाई मुहर, महाराष्ट्र सरकार को बड़ी राहत

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विधानसभा चुनाव से ठीक पहले महाराष्ट्र सरकार को बड़ी राहत मिली है. बांबे हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण की वैधता पर मुहर लगा दी है. समुदाय को ये आरक्षण सरकारी नौकरियों और शिक्षा में मिलना है. हालांकि कोर्ट ने आरक्षण को 16 फीसदी से घटाकर 12-13 फीसदी करने को कहा है. जस्टिस रंजीत मोरे और भारती डांगरे की पीठ ने कहा कि राज्य के पिछड़ा वर्ग आयोग ने जितने आरक्षण का सुझाव दिया है, समुदाय को उतना आरक्षण ही मिलना चाहिए.

कोर्ट ने कहा, ‘हमारा मानना है कि राज्य सरकार के पास सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए अलग श्रेणी बनाने और आरक्षण देने का पूरा हक है. हालांकि हमारा मानना है कि सरकार को 16 फीसदी की जगह आयोग की सिफारिश मानते हुए 12-13 फीसदी आरक्षण देना चाहिए.’ गौरतलब है कि कोर्ट इस कानून को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.

आपको बता दें कि पिछले साल 30 नवंबर को महाराष्ट्र विधान मंडल ने मराठा समुदाय को आरक्षण के लिए विधेयक पारित किया था. इसमें मराठा समुदाय को आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा माना गया था. ये आरक्षण राज्य में 52 फीसदी की उच्चतम सीमा से अलग होगा. इस 16 फीसदी के साथ अब राज्य में आरक्षण बढ़कर 68 फीसदी हो जाएगा. आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय की है. मराठा समुदाय को आरक्षण देने 50 फीसदी की सीमा टूट जाएगी. वहीं राज्य सरकार दी दलील थी कि मराठा समुदाय पिछड़ा हुआ है और समुदाय की उन्नति के लिए आरक्षण जरूरी है.

यूपी में योगी सरकार का फरमान, समय पर नहीं पहुंचे ऑफिस तो कटेगी सैलेरी

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इन दिनों अधिकारियों के प्रति सख्त नजर आ रहे है. सीएम योगी ने सभी अधिकारियों को सुबह 9 बजे तक दफ्तर पहुंचने का आदेश दिया है. उन्होंने सख्त निर्देश देते हुए कहा कि प्रदेश के सभी अधिकारी तुरंत प्रभाव से इस आदेश का पालन करे. अगर कोई अधिकारी इन आदेशों का पालन नहीं करता है तो उसका वेतन काटा जायेगा.

मुख्यमंत्री के इन आदेशों की जानकारी सीएम कार्यालय के ट्विटर एकाउंट पर ट्वीट करके दी गई है। सीएम कार्यालय के ट्वीट में कहा गया है कि सीएम योगी आदित्यनाथ ने सूबे के अधिकारियों-जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षकों को हर हाल में सुबह 9 बजे तक दफ्तर पहुंचने के निर्देश दिए हैं.

मुख्यमंत्री ने सख्त यह फैसला तब लिया है जब प्रदेश के अनेक हिस्सों से अधिकारियों के दफ्तर में देर से आने की सूचना आ रही है. वहीं, जनता से मिल रहे फीडबैक के बाद मुख्यमंत्री अधिकारियों से नाराज नजर आ रहे हैं.

लालू यादव के पुत्र तेज प्रताप ने किया ‘तेज सेना’ बनाने का ऐलान

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बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और चारा घोटाले के आरोप में रांची जेल में बंद लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव के बगावती सुर लोकसभा चुनाव के बाद भी जारी हैं. तेज प्रताप यादव ने तेज सेना बनाने का ऐलान किया है. इसकी जानकारी उन्होंने अपने ट्वीटर अकाउंट से दी.

तेजप्रताप ने अपने ट्वीट में लिखा कि बदलाव के इच्छुक लोग तेज सेना में शामिल हों. बदलाव में भाग लेने वालों के लिए यह ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है. इसकी लॉन्चिग 28 जून को की जाएगी. तेजप्रताप ने सेना से जुड़ने के इच्छुक लोगों के लिए एक मोबाइल नंबर भी जारी किया है.

बता दें कि लोकसभा चुनाव के दौरान तेजप्रताप ने राजद से अलग लालू-राबड़ी मोर्चा बनाया था. कई जगह उन्होंने राजद के प्रत्याशियों के खिलाफ उतरे उम्मीदवारों का समर्थन किया था. तेजप्रताप ने अपने ससूर चंद्रिका राय के टिकट का भी खुलकर विरोध किया था. टिकट मिलने के बाद भी वो चंद्रिका राय की उम्मीदवारी का विरोध करते नजर आए.

उन्होंने सारण में एक सभा के दौरान कहा था कि यह सीट हमारी पुश्तैनी सीट है. यहां से मेरे पिता चुनाव जीतते आए हैं. इस बार टिकट परिवार के सदस्य को नहीं मिला है तो आप चंद्रिका राय को हराइए.

जसकौर मीणा ने दौसा को अमृत सिटी परियोजना में लाने की उठाई मांग

दीया कुमारी ने लोकसभा में उठाया मावली से मारवाड़ रेल लाइन का मुद्दा

अ​मित शाह का कश्मीर दौरा उनके गृहमंत्री होने की अहमियत को सिद्ध करता है

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केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के कश्मीर दौरे का आज दूसरा और आखिरी दिन है. वे राजनीतिक दलों के नेताओं, नागरिक समाज के प्रतिनिधियों और पंचायत के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर रहे हैं. गृहमंत्री की घाटी यात्रा के दौरान इस तरह की मुलाकातें हर बार होती हैं, लेकिन एक बात है जो पहली बार हो रही है. गृहमंत्री कश्मीर के दौरे पर हैं और यहां का जनजीवन पूरी तरह से सामान्य है. न तो सैयद अली शाह गिलानी और मिरवाइज अमर फारूक के नेतृत्व वाली हुर्रियत कांफ्रेस की ओर से बंद का आह्वान किया गया है और न ही किसी दूसरे अलगाववादी संगठन की ओर से.

तीन दशक में पहली बार ऐसा हुआ है जब अलगाववादियों ने घाटी में गृहमंत्री की यात्रा के दौरान बंद नहीं बुलाया. बंद तो दूर किसी अलगाववादी नेता ने अमित शाह के दौरे के खिलाफ कोई बयान तक नहीं दिया. अलगाववादियों के रुख में आए इस बदलाव को राजनीति के जानकार अमित शाह के गृहमंत्री बनने का असर मान रहे हैं. कहा जा रहा है कि शाह की जिस तरह की सख्त छवि है, उसे देखते हुए अलगाववादी उनसे कोई अदावत मोल लेना नहीं चाहते. यदि वाकई में ऐसा है तो घाटी के हालात पर इसका दूरगामी असर देखने को मिल सकता है.

जिस समय मोदी के मंत्रिमंडल में अमित शाह को गृह मंत्रालय का जिम्मा दिया गया, उस समय ही यह कयास लगाया गया था कि कुछ महत्वपूर्ण ‘लक्ष्यों’ को भेदने के लिए उन्हें यह जिम्मेदारी दी गई है. इन लक्ष्यों में धारा-370 और 35-ए शीर्ष पर हैं. अमित शाह चुनाव प्रचार के दौरान स्वयं भी कहते रहे हैं कि बीजेपी सरकार दोबारा आई तो कश्मीर में धारा-370 और 35-ए को खत्म करेगी. हालांकि गृहमंत्री बनने के बाद अभी तक शाह ने इन दोनों मुद्दों पर चुप्पी साध रखी है, लेकिन सूत्रों के अनुसार इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए एक्शन प्लान तैयार किया जा रहा है.

सूत्रों के मुताबिक अमित शाह का पहला टारगेट 35-ए है. आपको बता दें कि 35-ए की वैधता के बारे में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. 35-ए जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को यह अधिकार देता है कि वह ‘स्थायी नागरिक’ की परिभाषा तय कर सके. दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 35-ए को 14 मई, 1954 में राष्ट्रपति के आदेश से संविधान में जगह मिली थी. संविधान सभा से लेकर संसद की किसी भी कार्यवाही में, कभी अनुच्छेद 35-ए को संविधान का हिस्सा बनाने के संदर्भ में किसी संविधान संशोधन या बिल लाने का जिक्र नहीं मिलता है. इसे लागू करने के लिए तत्कालीन सरकार ने धारा-370 के अंतर्गत प्राप्त शक्ति का इस्तेमाल किया था.

1956 में जम्मू-कश्मीर का संविधान बनाया गया, जिसमें स्थायी नागरिकता को परिभाषित किया गया है. इसके अनुसार स्थायी नागरिक वो व्यक्ति है जो 14 मई, 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले के 10 वर्षों से राज्य में रह रहा हो. साथ ही उसने वहां संपत्ति हासिल की हो. 35-ए को हटाने के लिए बीजेपी पहली दलील यह देती है कि इसे संसद के जरिए लागू नहीं किया गया. पार्टी की दूसरी दलील यह है कि देश के विभाजन के वक्त बड़ी तादाद में पाकिस्तान से शरणार्थी भारत आए. इनमें लाखों की तादाद में शरणार्थी जम्मू-कश्मीर में रह रहे हैं. 35-ए की वजह से ये लोग स्थायी निवासी के लाभ से वंचित हैं.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वालों ने यह तर्क दिया है कि 35-ए की वजह से संविधान प्रदत्त उनके मूल अधिकार जम्मू-कश्मीर राज्य में छीन लिए गए हैं. लिहाजा राष्ट्रपति के आदेश से लागू इस धारा को केंद्र सरकार फौरन रद्द करे. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के अब तक के रुख को देखकर यह लग रहा है ​कि वह 35-ए के प्रावधानों से सहमत नहीं है. यदि कोर्ट इसे खारिज कर देता है तो अमित शाह की राह आसान हो जाएगी. फिर चाहे घाटी के राजनीतिक दल और अलगाववादी संगठन कितना भी विरोध करें, गृह मंत्रालय इसे किसी भी सूरत में लागू करने से पीछे नहीं हटेगा. वहीं, सुप्रीम कोर्ट 35-ए को जायज ठहरा देता है तो केंद्र सरकार इसे अध्यादेश के जरिए निरस्त कर सकती है.

वैसे यह इतना आसान नहीं है क्योंकि स्थानीय राजनीतिक दलों और अलगाववादियों की पूरी राजनीति इसी पर टिकी हुई है. नेशनल कांफ्रेंस अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला यहां तक कह चुके हैं कि 35-ए को रद्द किए जाने पर ‘जनविद्रोह’ की स्थिति पैदा हो जाएगी, वहीं पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ऐसा होने पर कश्मीर के भारत से अलग होने की बात कह चुकी हैं. यह देखना रोचक होगा कि इस स्थिति से अमित शाह कैसे निपटते हैं. यदि उन्होंने 35-ए को शांति से दफन कर दिया तो उनके लिए धारा-370 की ओर कदम बढ़ाना आसान हो जाएगा.

अमित शाह के एजेंडे में सिर्फ जम्मू-कश्मीर ही नहीं है, नक्सलवाद, आंतरिक सुरक्षा, समान नागरिक संहिता, एनआरसी, कुछ राज्यों की अस्थिरता जैसे मुद्दे भी उनके निशाने पर हैं. ये सभी वे मुद्दे हैं जो शुरू से बीजेपी की हिट​ लिस्ट में रहे हैं, लेकिन मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में इन्हें खास तवज्जो नहीं मिली. अगर वाकई में अमित शाह इन विवादास्पद मुद्दों पर आगे बढ़कर इन्हें अंजाम तक पहुंचाने में कामयाब हुए तो बीजेपी के लिए 2024 का चुनाव भी आसान हो जाएगा.

हालांकि अमित शाह के लिए यह सब करना आसान नहीं है. कश्मीर में सरकार की तमाम सख्ती के बावजूद युवाओं में आतंकवादी संगठनों का असर कम नहीं हो रहा है. पाकिस्तान की ओर से होने वाली घुसपैठ में भी कमी नहीं आई है. पूर्वोतर में भी आतंकवाद व्याप्त है. एनआरसी का मसला गहराने के बाद इसे लेकर और गंभीरता जताई जा रही है. हाल में एनएससीएन-आईएम कैडर और सुरक्षा बलों के बीच कई टकराव हुए हैं. पिछले दिनों आतंकियों ने नेशनल पीपुल्स पार्टी के एक विधायक की हत्या भी कर दी थी. एनआरसी के मसले पर विवाद की वजह से असम में तनाव बढ़ा है.

माओवाद की चुनौती तो है ही, नक्सलियों द्वारा सुरक्षा बलों पर हाल में हमलों की संख्या बढ़ी है. अमित शाह इस चुनौतियों से कैसे निपटेंगे, यह तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन उनकी यह नई भूमिका बीजेपी के लिए संभावनाओं के नए द्वार खोलते हुए दिख रही है. कश्मीर यात्रा से शाह के कार्यकाल की बोहनी तो जबरदस्त हुई है. हालांकि सिर्फ इसके आधार पर शाह के कार्यकाल के बारे में भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी.

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