राहुल गांधी के इस्तीफे के सार्वजनिक होने के बाद कांग्रेस में इस्तीफों का दौर जारी है. कल मुम्बई कांग्रेसाध्यक्ष मिलिंद देवड़ा के अपने पद से इस्तीफा देने की कुछ समय बाद ही कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के प्रभारी रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कल शाम अपने पद इस्तीफा दे दिया. दोनों ही कांग्रेस के युवा नेता हैं.
हाल ही में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए बयान दिया कि ‘अब कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में एक गतिशील युवा नेता की उम्मीद है. CWC से आग्रह है कि युवा भारत की युवा आबादी के लिए युवा नेता की जरूरत पर ध्यान दें.’ कैप्टन के इस ताजा बयान के बाद से कांग्रेस के नए अध्यक्ष के तौर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम की अटकलें शुरू हो गई हैं. हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया को हाल में हुए लोकसभा चुनाव में गुना सीट से हार का सामना करना पड़ा है.
स्व. माधवराव सिंधिया के पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया को राजनीति की सौगात विरासत में मिली है. उनके पिता 9 बार लगातार सांसद रहे और कभी चुनाव नहीं हारे. फिर चाहे उन्होंने चुनाव निर्दलीय लड़ा हो या फिर कांग्रेस के झंडे के नीचे. अपने पिता के निधन के बाद हावर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 2002 में पहली बार राजनीति में कदम रखा और मध्यप्रदेश की गुना लोकसभा सीट से जीत हासिल की. उन्होंने अपने प्रतिद्धंदी बीजेपी के देशराज सिंह यादव को करीब साढ़े 4 लाख वोटों से मात दी. 2014 में मोदी लहर के बावजूद उन्होंने गुना संसदीय सीट से एक लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज की थी.
उनके राजनीतिक सोच और रणनीति का ही नतीजा था कि 2018 के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में उनके नेतृत्व में बीजेपी के शिवराजसिंह चौहान की प्रभुता समाप्त हुई और सत्ता की बागड़ौर कांग्रेस के हाथ में आई. उस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी मुख्यमंत्री पद की दावेदारी जताई थी. हालांकि गांधी परिवार का नजदीकी होने का फायदा उठा कमलनाथ सीएम की कुर्सी पर काबिज हो गए, लेकिन इस घटना से ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक कद का अहसास लोगों को भलीभांति हो गया.
राहुल गांधी के इस्तीफा देने के बाद सियासी गलियारों में उनका नाम कहीं शामिल नहीं था लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री कै. अमरिन्दर सिंह के किसी युवा हाथों में पार्टी की कमान सौंपने संबंधित हालिया बयान के बाद अचानक से कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ में ज्योतिरादित्य सिंधिया शामिल भी हुए और सबसे आगे वाले पायदान पर आकर खड़े हो गए. मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के दफ्तर के बाहर पोस्टर लगाकर राहुल गांधी से की जा रही अध्यक्ष बनाने की मांग ज्योतिरादित्य सिंधिया के बढ़ते राजनीतिक कद और लोकप्रियता को बयां करती है.
सिंधिया के समर्थन में जो पोस्टर लगा है, उस पर लिखा है, ‘आदरणीय राहुल गांधी जी से अपील, हमारे देश के गौरव एवं मध्य प्रदेश के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनकी कार्यशैली के अनुरूप राष्ट्रीय नेतृत्व देने की अपील.’ हालांकि इस पोस्टर पर किसी नेता का नाम नहीं है. पोस्टर पर समस्त कार्यकर्ता मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी लिखा है. ये काम किसी ने भी किया हो लेकिन केंद्रीय संगठन में चल रही उठापटक के बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया का इस तरह लोकमत हासिल करना उन्हें मध्यप्रदेश के सीएम कमलनाथ के बराबर लाकर खड़ा कर रहा है.
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश विधानसभा से ही प्रदेश में सिंधिया और कमलनाथ के दो धड़े बन गए थे. चुनाव परिणाम के बाद दोनों धड़ों ने अपने-अपने नेता को सीएम कुर्सी संभलवाने की बात आलाकमान तक पहुंचाई थी. मामला उलझते देख राहुल गांधी ने ज्योतिरादित्य को बहला-फुसला कर बड़ी चालाकी से कमलनाथ को सत्ता की बागड़ौर संभला दी. लेकिन टकराव यहां खत्म नहीं हुआ और लोकसभा में फिर से ये धड़ा अलग-अलग राजनीति करते नजर आया.
हालांकि खामियाजा ज्योतिरादित्य सिंधिया को हुआ और गुना लोकसभा सीट से उन्हें अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा. दूसरी ओर, कमलनाथ के पुत्र नकुलनाथ को छिंदवाड़ा से एकमात्र जीत हासिल हुई. हालांकि इस जीत का नकुलनाथ और कमलनाथ को कितना फायदा हुआ, इसका तो पता नहीं लेकिन यह हार भी ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए फायदे का सौदा लेकर आती दिख रही है.
यह तो तय है कि राहुल गांधी अब अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा वापिस नहीं लेंगे. अब कै.अमरिन्दर सिंह के बयान और सीनियर नेताओं को खुद ही रास्ता साफ कर देने की नसीयत के बाद आलाकमान भी इस बारे में विचार कर रहा है. राहुल भी युवा चेहरे को बागड़ौर संभलाने में इच्छुक हैं. ऐसे में युवा चेहरे के तौर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया और राजस्थान के डिप्टी सीएम सचिन पायलट का नाम सबसे पहले आता है. लेकिन इस रैस में सिंधिया आगे माने जा रहे हैं. अगर आलाकमान युवा चेहरे को मौका देता है तो ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस का नया कप्तान बनना तय है. साथ ही मिलिंद देवड़ा को केंद्र में नई जिम्मेदारी मिल जाए तो इसमें ताज्जुब की कोई बात नहीं होगी.