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कर्नाटक में सरकार बनाना अब एच. नागेश के हाथ!

कर्नाटक संकट से हमारा कोई लेना-देना नहीं: राजनाथ सिंह

कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन सरकार पर मंडराते संकट के बादल के बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में अपनी सफाई में कहा कि कर्नाटक सरकार के गिरने में उनकी पार्टी की कोई भूमिका नहीं है. लोकसभा में उन्होंने कहा, ‘कर्नाटक की सरकार गिराने में हम कोई कोशिश नहीं कर रहे हैं. त्याग पत्र देने का सिलसिला तो राहुल गांधी ने शुरू किया है, हमारा क्या लेना देना? हर दिन कांग्रेस के बड़े बड़े नेता इस्तीफ़ा दे रहे हैं. हमारी पार्टी कभी भी खरीद फरोख्त में शामिल नहीं होती. हम संसदीय लोकतंत्र की गरिमा को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं.’

बता दें, कर्नाटक सरकार के 13 विधायकों ने एक साथ इस्तीफा देकर कुमार स्वामी की गठबंधन सरकार को अल्पमत पर लाकर खड़ा कर दिया है. मंगलवार को दिए गए इस्तीफों पर फैसला लिया जाएगा. दूसरी ओर, कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम सिद्धारमैया ने विश्वास दिलाया है कि सरकार स्थिर है और विधायक कहीं नहीं जा रहे हैं. सभी इस्तीफे वापिस ले लिए जाएंगे.

इस्तीफों के बाद अब गठबंधन सरकार के पास केवल 105 विधायक बचे हैं. बीजेपी के पास भी इतने ही विधायक हैं. अब अगर सदन में बहुमत साबित करने की नौबत आती है तो दोनों पार्टियों को निर्दलीय विधायकों का ही सहारा है. दूसरी ओर, बीजेपी को विश्वास है कि अभी और भी इस्तीफे आ सकते हैं.

कर्नाटक: JDS-कांग्रेस गठबंधन और बीजेपी के बीच खड़े हैं विधायक एच. नागेश, जिसकी तरफ गए सरकार उसकी

कर्नाटक में सियासी ड्रामा खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. धीरे-धीरे जेडीएस-कांग्रेस के गठबंधन वाली सरकार के सभी सैनिक रण छोड़ भाग खड़े हुए हैं या फिर सुरक्षित ठिकाना तलाश रहे हैं. मई, 2018 में सत्ता की कमान मिलने से अब तक इस मिलीजुली सरकार की राह कभी भी आसान नहीं रही. एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप तो चलते ही रहे लेकिन अब हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि एक झटका और सरकार ढेर. अब सभी की नजरें मंगलवार पर टिकी हुई हैं. कल जैसे ही विधानसभा सदन खुलेगा, सरकार के भविष्य का फैसला हो जाएगा.

दरअसल शनिवार को सरकार के 13 विधायकों ने एक साथ विधानसभा सचिव को अपना त्यागपत्र सौंप दिया. इनमें 10 विधायक कांग्रेस और 3 जेडीएस के हैं. विधानसभा स्पीकर के.आर. रमेश कुमार की अनुपस्थिति में अभी तक ये त्यागपत्र स्वीकार नहीं हुए हैं. आज स्पीकर कार्यालय बंद होने से मंगलवार तक परिणाम नहीं आएंगे लेकिन जब आएंगे, सारी स्थिति पल भर में साफ हो जाएगी.

अगर ये सभी इस्तीफे स्वीकार होते हैं जिसकी संभावना काफी ज्यादा है तो ऐसे में निर्दलीय विधायक नागेश जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन और बीजेपी के बीच की मुकाबले की अहम कड़ी साबित होंगे. 9 जुलाई को कर्नाटक की सियासी गणित कुछ इस प्रकार बैठेगी कि कर्नाटक विधानसभा में कुल 225 सदस्य होते हैं, इनमें एक सदस्य मनोनीत होता है. मई, 2018 में कुल 224 सीटों पर विधानसभा चुनाव हुए थे. बीजेपी को 105, कांग्रेस को 79, जेडीएस को 37 सीटें मिली थी. 2 निर्दलीय और एक सीट बसपा के खाते में गई थी. बाद में एक निर्दलीय विधायक ने कांग्रेस का दामन थाम लिया. बाकी एक निर्दलीय विधायक और बसपा विधायक ने गठबंधन को समर्थन दिया जिससे गठबंधन सरकार के विधायकों की संख्या 119 हो गई. इसमें एक विधायक विधानसभा अध्यक्ष पद पर नियुक्त है. इस तरह कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार 118 विधायकों (कांग्रेस-79, जेडीएस-37, निर्दलीय-1, बीएसपी-1) के समर्थन से चल रही थी.

इन 13 विधायकों के इस्तीफों के बाद विधानसभा सदस्यों की संख्या 224 से घटकर 211 रह जाएगी. इनमें एक सीट स्पीकर की है. यानी अगर इन सभी विधायकों के इस्तीफे स्वीकार होते हैं तो बहुमत का हिसाब 210 सीटों पर लगाया जाएगा और किसी भी पार्टी को सरकार में रहने के लिए 106 विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी.

अब 13 विधायकों के इस्तीफे देने के बाद अब जेडीएस और कांग्रेस दोनों पार्टियों के पास कुल 104 विधायक शेष हैं. बसपा का समर्थन अभी भी पार्टी को प्राप्त है. ऐसे में गठबंधन विधायकों की संख्या 105 हो जाती है जो समर्थन से एक विधायक दूर है. बीजेपी के पास भी इतने ही विधायक हैं. ऐसे में जब कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष के.आर. रमेश कुमार दोनों पार्टियों को बहुमत पेश करने को कहेंगे तो उस समय निर्दलीय विधायक नागेश की भूमिका अहम हो जाएगी.

बीजेपी और गठबंधन दोनों को ही बहुमत के लिए केवल एक विधायक की जरूरत होगी. ऐसे में नागेश जिस भी पार्टी को समर्थन देंगे, सरकार उसी की बनना निश्चित है. मौजूदा हालातों को देखते हुए तो कहा जा सकता है कि प्रदेश में सरकार बीजेपी की बनती ​दिख रही है क्योंकि नागेश ने राज्यपाल को एक ​खत लिखकर कांग्रेस समर्थन को वापिस लेने की बात कही है. अगर ऐसा होता है तो गठबंधन सरकार का गिरना तय है.

हालांकि यह तो निश्चित है कि नागेश जिस भी तरफ जाएंगे, उनका मंत्री बनना पक्का है. अब सबसे पहले देखना तो यह होगा कि विधानसभा अध्यक्ष इन सभी विधायकों के इस्तीफे मंजूर करेंगे या नहीं. उसके बाद अगर बहुमत साबित करने की नौबत आती है तो यह दिलचस्प होगा विधायक नागेश ‘हाथ’ पकड़ते हैं या फिर ‘कमल’ की ओट में जाते हैं.

कर्नाटक में सरकार जाने का खतरा बढ़ा, मंत्रिमंडल के सभी 32 मंत्रियों ने ​दिया इस्तीफा

कर्नाटक में सियासी उथल-पुथल अब अपने चरम पर आ पहुंची है. शनिवार को जेडीएस-कांग्रेस के 13 विधायकों के इस्तीफे के बाद अब कांग्रेस कोटे के मंत्रिमंडल में शामिल सभी 22 मंत्रियों ने अपने इस्तीफे प्रदेश अध्यक्ष दिनेश गुंडू राव को सौंप दिए हैं. अन्य 10 मंत्रियों के भी अपने इस्तीफे दिए जाने की खबर है. कर्नाटक के डिप्टी सीएम जी. परमेश्वर ने भी अपना इस्तीफा सौंप दिया है. ऐसे में मंत्रिमंडल के भंग होने की समस्या आन खड़ी हुई है. मंगलवार को कर्नाटक सीएम एचडी कुमार स्वामी के भी इस्तीफा देने के कयास लगाए जा रहे हैं.

वहीं विधायक पदों से भी इस्तीफा देने का सिलसिला रूकने का नाम नहीं ले रहा है. कांग्रेस विधायक अंजली निम्बालकर ने भी इस्तीफे का फैसला लिया है. वह कल अपना त्यागपत्र देंगी. वहीं निर्दलीय विधायक नागेश ने कांग्रेस से समर्थन वापिस लेकर बीजेपी को समर्थन देने का ऐलान किया है. इस संबंध में उन्होंने राज्यपाल को चिट्ठी लिखी है. नागेश को जून में मंत्री पद दिया गया था. वहीं इस्तीफों के बीच बीएसपी विधायक महेश ने कहा है कि इस बारे में हाईकमान फैसला लेगा.

बीजेपी सूत्रों की मानें, तो पार्टी अभी किसी तरह की साफ स्थिति पेश होने का इंतजार कर रही है. अगर प्रदेश विधानसभा स्पीकर मंगलवार को विधायकों का इस्तीफा स्वीकार कर लेते हैं तो बीजेपी सरकार बनाने का दावा कर सकती है. सूत्रों की मानें तो अभी और भी इस्तीफे आ सकते हैं. वहीं लोकसभा में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने इस मामले में बीजेपी की किसी भी प्रकार की भूमिका से इनकार किया है.

कर्नाटक में गठबंधन सरकार का अस्तित्व संकट में

कर्नाटक की राजनीति में बीजेपी का शिवसेना से ‘सामना’

कर्नाटक की राजनीति में हो रही उथल-पुथल में अब शिवसेना भी आ खड़ी हुई है. शिवसेना ने केंद्र और राज्य में अपनी सहयोगी पार्टी बीजेपी पर सवाल उठाते हुए तोड़फोड़ की राजनीति पर राष्ट्रीय नीति होने की बात कही है. यह बात शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के माध्यम से कही है.

शिवसेना ने ‘सामना’ में लिखा है, ‘मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने शनिवार को ही ये बात कही है कि कांग्रेस के कुछ विधायक हमारे संपर्क में हैं लेकिन तोड़फोड़ करके सरकार नहीं बनाएंगे. शिवराज सिंह की भूमिका अवसरवाद की है पर कर्नाटक में अलग भूमिका व मध्य प्रदेश में दूसरी ये ऐसा क्यों? तोड़फोड़ करके सरकार बनानी है कि नहीं इस पर राष्ट्रीय नीति होनी चाहिए.’

सामना के लेख में छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्यप्रदेश और गोवा राज्यों की राजनीति का भी जिक्र किया हुआ है. सामना में लिखा है, ‘छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत है पर राजस्थान, मध्य प्रदेश में फूंक मारी तो उनकी सरकार गिर जाएगी ऐसी परिस्थिति है. विधायक दल-बदलने को तैयार हैं. सियासी घोड़ा बाजार में लोग बिकने और खरीदने के लिए खड़े हैं. गोवा की बीजेपी सरकार अल्पमत में थी वो अब स्थिर हो गई है. कांग्रेस-मगो के विधायकों ने सीधे इस्तीफा दिया और वे बीजेपी में आकर मंत्री बन गए लेकिन पणजी का विधानसभा उपचुनाव बीजेपी हार गई. यहां से मनोहर पर्रीकर जीतकर आते थे.’

शिवसेना ने बीजेपी को सीख देते हुए लिखा, ‘लोकसभा चुनाव खत्म हो गए उसमें जबरदस्त जीत मिली पर लोगों को अपनी जागीर मत समझो. देश में विपक्ष की सरकारें अब ज्यादा नहीं टिकेंगी व बीजेपी का एक छत्र राज्य पूरे देश में हो ऐसे कदम उठाए जा रहे हैं. कर्नाटक की घटना यही कह रही है.’

‘कर्नाटक सीएम को आराम से छुट्ट‍ियां भी मनाने नहीं दे रहे मोदी और शाह’

कर्नाटक में इन दिनों जो राजनीतिक ड्रामा चल रहा है, अब वह सियासी गलियारों से निकल सोशल मीडिया तक जा पहुंचा है. शनिवार को कर्नाटक की सत्तासीन सरकार के 13 व‍िधायकों के इस्तीफा देते ही राजनीत‍ि में जो भूचाल आया है, उसकी संभावना तो पहले ही लोकसभा चुनाव-2019 में झलक आई थी. खैर जो भी हो, सोशल मीडिया पर इस घटना पर जमकर मीम्स बन रहे हैं. एक यूजर ने तो यहां तक कहा है कि पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कर्नाटक सीएम कुमार स्वामी को अमेरिका में छुट्टी भी मनाने नहीं दे रहे हैं. दरअसल, कुमार स्वामी अपने परिवार संघ छुट्टियां मनाने अमेरिका गए थे. वह आज ही बैंगलोर पहुंचे हैं.

@Karthik_V_J

@satishacharya

@atulsinghji

@satishachar

मिलिंद देवड़ा के बाद अब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दिया कांग्रेस महासचिव पद से इस्तीफा

लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस में इस्तीफों का दौर जारी है. मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा ने रविवार को अपने पद से इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया है. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्वीट कर अपने इस्तीफे की जानकारी दी. गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी भी राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके हैं.

मिलिंद देवड़ा के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने इस्तीफे का ऐलान करते हुए ट्वीट किया, जनादेश स्वीकार करते हुए और हार की जिम्मेदारी लेते हुए मैंने राहुल गांधी को कांग्रेस महासचिव पद से अपना इस्तीफा सौंप दिया है. मैं उन्हें (राहुल गांधी) इस जिम्मेदारी को सौंपने के लिए और मुझे पार्टी की सेवा करने का अवसर देने के लिए धन्यवाद देता हूं.

इस्तीफा देने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने न्यूज एजेंसी ANI को बताया, मैं वो नेता नहीं हूं जो अन्य लोगों को ऑर्डर देता है. मुझे लगता है कि जब कोई जिम्मेदारी होती है, तो जवाबदेही भी होती है. अगर चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं है तो इसके लिए मैं भी जिम्मेदार हूं, इसलिए मैंने कांग्रेस महासचिव पद से इस्तीफा देने का फैसला लिया.

गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को उम्मीदों से उलट जबरदस्त हार मिली थी. इन चुनावों में सबसे खास बात थी कि कांग्रेस के दिग्गज नेता भी अपनी सीट हार गए थे. ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी मध्य प्रदेश की गुना सीट से हार का सामना करना पड़ा था. कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को बीजेपी के केपी यादव ने 1,25,549 वोटों से मात दी थी. इस सीट पर छठे चरण में 12 मई को वोटिंग हुई थी, जिसमें क्षेत्र के कुल 16,74,676 वोटरों में से 70.02 फीसदी ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था.

उत्तर भारत के अन्य राज्यों की तरह भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश में भी कुल 29 सीटों में से 28 सीटें झटककर कांग्रेस को हैरान कर दिया था. गुना सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया पिछले चार बार से जीतते आ रहे थे. इस सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है.

इससे पहले आज मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने आगामी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए एक तीन सदस्यीय समिति बनाने का सुझाव दिया है जो राज्य कांग्रेस का नेतृत्व करेगी.

लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने भी कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है. 21 साल बाद कांग्रेस की कमान एक बार फिर नेहरू-गांधी परिवार से बाहर किसी और नेता के हाथ में होगी. इंदिरा और राजीव के बाद ‘गांधी परिवार’ से सोनिया गांधी 1998 में अध्यक्ष बनीं और 2017 तक इस पद पर रहीं. इस दौरान कांग्रेस 10 साल तक केंद्र की सत्ता पर काबिज रही.

कर्नाटक में सरकार पर आए संकट के पीछे ऑपरेशन लोटस है या खुद सिद्धारमैया

कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस की गठबंधन सरकार बिखरती नजर आ रही है. कर्नाटक में सियासी रंग जिस तरह से बदल रहा है, उससे लगता तो यही है कि संकट के बादल कभी भी सरकार को घेर सकते हैं. यहां गठबंधन सरकार को एक साल भी पूरा नहीं हुआ है और इसके गिरने की नौबत आ खड़ी हुई है. हालांकि 2018 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणामों के बाद से ही यहां सियासी ड्रामा शुरू हो गया था.

कर्नाटक में कुल 224 विधानसभा सीटें हैं. बहुमत के लिए चाहिए 113 विधायक. विधानसभा चुनावों में बीजेपी को 104 सीटों पर जीत मिली थी और समर्थन के लिए केवल 9 विधायकों की दरकार थी. वहीं कांग्रेस के पास 80 और जेडीएस के पास 38 विधायक थे, 2 सीटें अन्य पार्टियों के हिस्से आई थी. कर्नाटक के राज्यपाल ने विरोध के बावजूद बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था. विरोध और बढ़ते हाई प्रेशर सियासी ड्रामे के बीच राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद कांग्रेसी नेताओं के साथ धरने पर बैठ गए थे. हालांकि बीजेपी समर्थन के अभाव में सरकार बनाने से चूक गई और कुमार स्वामी के नेतृत्व में जेडीएस-कांग्रेस की मिली जुली सरकार बनी.

इस गठबंधन सरकार के पिछले एक साल में जेडीएस के नेताओं और पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बीच सियासी ड्रामा चलता रहा है. महीना खत्म न होता और कुछ न कुछ ऐसा हो जाता कि जेडीएस और कांग्रेसी नेताओं में रार पड़ जाती. इस पर न तो कुमार स्वामी कुछ बोल पाये न ही सिद्धारमैया और न ही कांग्रेस आलाकमान ने इसको गम्भीरता से लिया, ऐसा चलता रहा रार बढ़ती गई और अब आने वाला परिणाम सबके सामने है.

वर्तमान में जेडीएस और कांग्रेस के सामने वही स्थिति आ खड़ी हुई है जैसी दोनों पार्टियों ने मिलकर बीजेपी के सामने खड़ी की थी. विधानसभा चुनावों के परिणाम के बाद बीजेपी ने 9 विधायकों को अपनी ओर मिलाने की अथाह कोशिश की लेकिन दोनों पार्टियों ने अपने विधायकों की ऐसी घेराबंदी की कि बीजेपी लाख हाथ-पैर मारने के बाद भी इस गठबंधन के 9 विधायक नहीं निकाल पाई. तब बीजेपी ने यह मान लिया कि अभी समय उपयुक्त नहीं है.

समय बीतता गया और जेडीएस-कांग्रेस के बीच रार बढ़ती गई. कांग्रेस नेता सिद्धारमैया खुद इस तपती आग में घी डालने का काम कर रहे थे. अंदरूनी सूत्रों से खबर लगातार जोर पकड़ी रही कि सिद्धारमैया कई कांग्रेसी नेताओं को पद का लालच देकर इस बात के लिए उकसा रहे हैं कि वह आलाकमान से उन्हें सीएम पद नियुक्त कराने पर जोर डालें. हाल ही में इस्तीफा दिए कुछ विधायकों के फिर यही मांग करने पर यह बात पूरी तरह से साबित भी हो जाती है लेकिन आलाकमान के दखल न देने से यह बात बिगड़ती गई और विचारों के बीच खाई और गहरी होती गई. ताज्जुब की बात तो यह रही कि गठबंधन सरकार में पड़ रही इस गहरी खाई को पाटने की कोशिश न तो सीएम और जेडीएस प्रमुख कुमार स्वामी ने की और न ही कांग्रेस आलाकमान ने.

गठबंधन सरकार में बढ़ती इस रार का भरपूर फायदा बीजेपी के चाणक्य अमित शाह के शातिर दिमाग ने उठाया. उन्होंने कांग्रेसी विधायकों को यह भरोसा दिला ही दिया कि इस गठबंधन सरकार में उनका कोई भला नहीं हो सकता. यही वजह रही कि पहले दो और बाद में 14 विधायकों ने एक साथ इस्तीफा देकर सरकार का साथ छोड़ दिया. इनमें 13 विधायक कांग्रेस और 3 जेडीएस के हैं. एक विधायक को पार्टी ने निष्कासित कर दिया था.

अब यह गठबंधन सरकार पूरी तरह डूबती हुई नजर आ रही है. अगर मौजूदा इस्तीफाधारक विधायकों ने अपना त्यागपत्र वापिस नहीं लिया तो सरकार गिरेगी, यह पक्का है. उसके बाद शुरू होगा बीजेपी का ऑपरेशन लोटस जो प्रदेश में पहले भी एक बार चल चुका है.

ऑपरेशन लोटस के जरिए बीजेपी 2008 में भी कर्नाटक में सरकार बनाने में सफल रही थी. उस समय बीजेपी 224 में से 110 सीटें जीतकर आई थी. बहुमत के आंकड़े को छूने के लिए बीजेपी ने ऑपरेशन लोटस का इस्तेमाल किया था. इसके तहत कांग्रेस और जेडीएस के 8 विधायकों ने व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. इन सभी नेताओं को बीजेपी ने अपने चुनाव चिन्ह पर विधानसभा उपचुनाव लड़ाया, जिसमें से 5 बीजेपी से जीतकर आए. बीजेपी का बहुमत साबित हो गया था और राज्य में बीजेपी की 5 साल की सरकार आसानी से बन गई. वैसा ही कुछ होता हुआ इस बार भी नजर आ रहा है.

बहुमत के लिए बीजेपी को केवल 9 विधायकों की दरकार है. उनके पास 16 ऐसे विधायक हैं जो जेडीएस या कांग्रेस से इस्तीफा दे चुके हैं. बीजेपी इन सभी पर दांव खेलेगी और इनमें से आधे भी जीतकर आते हैं तो बीजेपी सरकार बनाने के साथ ही सदन की मुख्य पार्टी बनकर बैठेगी.

मशहूर डांसर सपना चौधरी बीजेपी में शामिल, सदस्यता अभियान में ग्रहण की सदस्यता

आम चुनाव से पहले मार्च में कांग्रेस में शामिल होने और प्रियंका गांधी के साथ फोटो सामने आने पर खबरों की सुर्खियां बटोर चुकी मशहूर डांसर सपना चौधरी ने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली है.

भाजपा के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती के दिन 6 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अपने संसदीय क्षेत्र काशी से शुरू किये गये भाजपा के सदस्यता अभियान के तहत आज रविवार को दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में आयोजित हुए कार्यक्रम में कई कार्यकर्ताओं के साथ साथ डांसर सपना चौधरी भी बीजेपी में शामिल हो गई है.

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) दिल्ली के सदस्यता अभियान में सपना चौधरी ने पहली सदस्यता हासिल की. जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में दिल्ली बीजेपी के सदस्यता अभियान कार्यक्रम में मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान, बीजेपी महासचिव रामलाल और सांसद मनोज तिवारी की मौजूदगी में सपना चौधरी बीजेपी में शामिल हुईं. भारतीय जनता पार्टी अभी पूरे देश में सदस्यता अभियान चला रही है और लोगों को पार्टी से जोड़ रही है.

लोकसभा चुनाव से ही लगातार बीजेपी विशेषकर दिल्ली सांसद मनोज तिवारी के सम्पर्क में रही सपना चौधरी का बीजेपी में शामिल होना तय माना जा रहा था. सपना चौधरी ने लोकसभा चुनाव में प्रचार के आखिरी दिन भाजपा प्रत्याशी मनोज तिवारी के साथ एक विशाल रोड़ शो किया था जिसमें सपना के प्रसंशक अपने घरों की छतों और बालकनियों में खड़े दिखाई दिए. तिवारी का मुकाबला दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता शीला दीक्षित और आम आदमी पार्टी (आप) के दिलीप पांडे से था. 12 मई को हुए चुनाव में मनोज तिवारी ने जीत दर्ज की थी.

लोकसभा चुनाव के दौरान सपना चौधरी की कुछ तस्वीरें प्रियंका गांधी के साथ वायरल हुई थीं. इसके बाद सपना चौधरी के कांग्रेस में जाने की अटकलें तेज हो गई थीं. हालांकि उन्होंने इससे इनकार कर दिया था. सपना चौधरी ने कहा था कि वे कलाकार हैं इसलिए चुनाव लड़ने की कोई मंशा नहीं है. प्रियंका गांधी के साथ फोटो पर सपना ने कहा, ‘मैं प्रियंका से मिली थी लेकिन वो तस्वीर पुरानी हैं.’ सपना चौधरी ने यह भी कहा था कि वे मनोज तिवारी के संपर्क में हैं.

गौरतलब है कि 6 जुलाई को शुरू हुआ बीजेपी का सदस्यता अभियान 10 अगस्त तक जारी रहेगा. इसकी शुरुआत 6 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र काशी से की थी. उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन के तहत वृक्षारोपण कर देश के लोगों से इस अभियान में जुड़ने का आह्वान किया था.

भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान में लगभग 11 करोड़ सदस्य हैं. शुक्रवार को दिल्ली पार्टी मुख्यालय में मीडिया से बातचीत करते हुए मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी उपाध्यक्ष शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि लोकसभा चुनावों में भारी जीत के बाद बीजेपी उन क्षेत्रों में अपना आधार फैलाने की तैयारी कर रही है, जहां पार्टी अब तक कमजोर है.

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