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एक ही पार्टी को 90 फीसदी चंदे पर मनमोहन सिंह को एतराज

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भाजपा का नाम लिए बगैर कहा कि जब चुनाव में एक ही पार्टी को 90 फीसदी फंड मिल रहा है तो सरकार को चुनाव की फंडिंग पर विचार करना चाहिए. उन्होंने सरकार से इन्द्रजीत गुप्ता कमेटी की सिफारिशों पर विचार करने के लिए कहा. यह कमेटी चुनाव सुधार के मुद्दे पर गठित की गई थी.

डॉ. मनमोहन सिंह रविवार को दिवंगत वामपंथी नेता और पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री इन्द्रजीत गुप्ता के जन्मशती समारोह में संबोधित कर रहे थे. उन्होंने लोकतंत्र के विकास में इन्द्रजीत गुप्ता के योगदान की सराहना की. उन्होंने चुनाव सुधारों पर इन्द्रजीत गुप्ता की अध्यक्षता में गठित कमेटी का जिक्र किया. डॉ. मनमोहन सिंह भी उस समिति के सदस्य थे. उन्होंने बताया कि गुप्ता दुर्लभ व्यक्तित्व वाले नेता थे और अपने विरोधियों की बात सुनते थे. उनकी समिति ने चुनाव में सरकारी फंडिंग की सिफारिश की थी. अब एक ही पार्टी को 90 फीसदी फंड मिल रहा है, इसलिए उस कमेटी की सिफारिशों पर विचार होना चाहिए.

समारोह के मुख्य अतिथि गोपालकृष्ण गांधी थे, जो महात्मा गांधी के पोते हैं और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रह चुके हैं. माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा के महासचिव डी राजा, निवर्तमान महासचिव सुधाकर रेड्डी ने समारोह को संबोधित किया. इस समारोह में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी भी आना चाहती थीं, लेकिन अपरिहार्य कारणों से कार्यक्रम टल गया.

बजट सत्र के बाद ईवीएम का मुद्दा जोरदार तरीके से उठाने की तैयारी

संसद के बजट सत्र का समापन होने के बाद कांग्रेस इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के मुद्दे पर विपक्षी पार्टियों की बैठक बुला सकती है. पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियों की करारी हार के कारणों की तलाश में ईवीएम की भूमिका पर भी उंगली उठ रही है. कई लोग मानते हैं कि ईवीएम में गड़बड़ी की जा सकती है. 2019 के लोकसभा चुनाव में ईवीएम के जरिए मतदान हुआ और भाजपा ने 303 सीटों पर जीत हासिल की.

लोकसभा चुनाव में बीजेपी इस अपार सफलता पर कई लोगों को आश्चर्य है. विपक्षी पार्टियां कई तरह की शंकाएं कर रही है. इसके मद्देनजर अगले चुनावों में कांग्रेस मतपत्रों के जरिए मतदान की व्यवस्था बहाल करने की मांग कर सकती है. इस संबंध में कुछ कांग्रेस नेता यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मिले, उन्होंने ईवीएम में गड़बड़ी का मुद्दा जोरदार तरीके से उठाने की मांग की है.

कांग्रेस के एक पदाधिकारी ने कहा कि उनकी पार्टी को जमीनी स्तर पर फीडबैक मिले हैं और पार्टी को भी लग रहा है कि ईवीएम के जरिए धांधली की जा सकती है. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 543 सदस्यों की लोकसभा में सिर्फ 52 सीटें मिली हैं. चुनाव से पहले भी विपक्षी पार्टियों ने ईवीएम को लेकर एतराज किया था, लेकिन चुनाव आयोग ने उसे बेबुनियाद बताया. विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट भी गई थी, तब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया था कि एक की बजाय पांच क्षेत्रों में ईवीएम के वोटों का वीवीपीएटी से मिलान किया जाए. बाद में विपक्षी पार्टियों ने कम से कम 50 फीसदी मतदान केंद्रों में ईवीएम के वोटों का वीवीपीएटी से मिलान करने की मांग की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने नामंजूर कर दिया था.

कांग्रेस के एक अन्य पदाधिकारी ने अपना नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर कहा कि इस बार पार्टी पर महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड विधानसभा चुनावों का बायकाट करने का भारी दबाव है. कई लोग मांग कर रहे हैं कि अगर चुनाव आयोग मतपत्रों से मतदान कराने की व्यवस्था बहाल नहीं करता है तो चुनाव का बहिष्कार कर दिया जाए. इस मुद्दे पर कांग्रेस अन्य सहयोगी विपक्षी पार्टियों के साथ विचार विमर्श करना चाहती है. कांग्रेस पदाधिकारी का कहना है कि इस मुद्दे पर अन्य विपक्षी पार्टियों का समर्थन भी जरूरी है. इसके बाद ही चुनाव आयोग पर दबाव डाला जा सकता है. कांग्रेस अकेले इस मुद्दे पर फैसला नहीं कर सकती है.

महाराष्ट्र में विपक्षी पार्टियां पहले ही ईवीएम के खिलाफ लामबंद हो रही हैं. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे पिछले 14 साल में पहली बार दिल्ली जाकर मुख्य चुनाव आयोग सुनील अरोड़ा से मिले थे. उन्होंने चुनाव आयुक्त से मांग की कि अक्टूबर-नवंबर में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में ईवीएम की बजाय मतपत्रों के जरिए मतदान कराया जाए. उन्होंने कहा कि कई मतदाताओं को ईवीएम पर शंका है. उन्हें लगता है कि ईवीएम के जरिए उनका वोट सही उम्मीदवार को नहीं मिल रहा है. राज ठाकरे का कहना है कि ईवीएम के जरिए चुनाव में धांधली की जा सकती है.

राज ठाकरे ने मीडिया में आई खबरों का उल्लेख करते हुए कहा कि करीब 220 लोकसभा सीटों पर जितने वोट डाले गए और जितने वोटों की गिनती हुई, उसमें अंतर बताया गया है. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार भी ईवीएम पर सवाल उठा चुके हैं. उन्होंने दावा किया कि एक बार उन्होंने एक प्रजेंटेशन के दौरान देखा था कि उनकी पार्टी को दिया गया वोट भाजपा के खाते में दर्ज हो गया. पवार ने 9 मई को सतारा में कहा था कि गुजरात और हैदराबाद में कुछ लोग उनके सामने ईवीएम लेकर आए थे. उन्होंने बटन दबाने को कहा. घड़ी के निशान पर बटन दबाया तो वह वोट कमल के निशान पर चला गया. इसके बाद 10 जून को पवार ने मुंबई में कहा था कि ईवीएम से कोई समस्या नहीं है बल्कि चुनाव अधिकारियों से है, जो ईवीएम संभाल रहे हैं. कितने वोट डाले गए और कितने वोटों की गिनती हुई, यह जांच का विषय है. इस मुद्दे पर विशेषज्ञों और अन्य विपक्षी पार्टियों के साथ विचार विमर्श की जरूरत है.

एक तरफ जहां विपक्षी पार्टियां ईवीएम पर सवाल उठा रही हैं, वहीं चुनाव आयोग का कहना है कि ईवीएम ले चुनाव कराने में गड़बड़ी की कोई संभावना नहीं है. चुनाव आयोग ने ईवीएम पर आपत्ति करने वाली पार्टियों को अपना दावा साबित करने की चुनौती दी है. चुनाव आयोग ने मतपत्रों के जरिए चुनाव कराने की व्यवस्था बहाल करने की संभावना से साफ इनकार कर दिया है. उसका कहना है कि ईवीएम के जरिए मतदान सुरक्षित है और इससे चुनाव प्रक्रिया में समय भी कम समय लगता है.

इसी महीने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका खारिज हो चुकी है, जिसमें ईवीएम के जरिए चुनाव प्रक्रिया पर संदेह व्यक्त करते हुए लोकसभा चुनाव रद्द करने की मांग की गई थी. विश्वेषकों को संदेह है कि मतपत्रों के जरिए चुनाव की व्यवस्था फिर से बहाल होगी. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के जगदीप छोकर का कहना है कि मतपत्रों के जरिए चुनाव की व्यवस्था बहाल करना संभव नहीं है और यह व्यावहारिक भी नहीं है. लेकिन ईवीएम पर उठ रही शंकाएं दूर करने की जरूरत है. ईवीएम-वीवीपीएटी के मिलान की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए. चुनाव प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने के लिए यह जरूरी भी है.

मैं टायलेट और गटर साफ करने के लिए सांसद नहीं बनीः साध्वी प्रज्ञा

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भोपाल की भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा ने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि वह टायलेट और गटर साफ करने के लिए सांसद नहीं बनी हैं. प्रज्ञा के बयान को प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छ भारत अभियान के खिलाफ माना जा रहा है. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री ने लोगों को साफ-सफाई के प्रति जागरूक बनाने के लिए स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया था. प्रज्ञा के बयान को कांग्रेस ने लोकतंत्र का मजाक उड़ाने जैसा बताया है.

प्रज्ञा ठाकुर सीहोर में भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रही थी. उन्होंने कहा, मैं गटर साफ करने के लिए सांसद नहीं बनी हूं, आपके घरों के टायलेट साफ करना मेरी जिम्मेदारी नहीं है. मैं वह काम पूरी ईमानदारी से करूंगी, जिसके लिए मुझे चुना गया है. आज मैं आप लोगों से यह कह रही हूं और भविष्य में भी यही कहूंगी. प्रज्ञा के बयान का वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. भाजपा नेता इस बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने से बच रहे हैं.

बता दें, लोकसभा चुनाव के दौरान साध्वी प्रज्ञा महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त बता विवादों में फंस चुकी है. बाद में उन्हें इस बयान पर माफी मांगनी पड़ी. मध्य प्रदेश में कांग्रेस की मीडिया प्रभारी शोभा ओझा ने कहा कि प्रज्ञा जैसे लोगों को संसद में भेजना लोकतंत्र का मजाक है.

अब पार्टी के वरिष्ठ नेता और सांसद दिलीप घोष साध्वी के समर्थन में आ गए. दिलीप घोष ने कहा है कि प्रज्ञा ठाकुर ने कुछ भी गलत नहीं कहा. उन्होंने कहा, ‘संसद में तो कानून बनाने के लिए आते हैं. शौचालय नाली बनाने का काम तो बाकी विभागों का है. प्रधानमंत्री ने स्वच्छता का संदेश दिया है. वो एक बड़ा संदेश है और हम सब उसका सम्मान करते हैं लेकिन प्रज्ञा ठाकुर की बात भी गलत नहीं है.’

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लोकसभा चुनाव में ईवीएम-वीवीपीएटी मिसमैच के आठ मामले

पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान ईवीएम में डाले गए वोटों का उससे निकलने वाली कागज की पर्ची से मिलान करने पर अलग नतीजे सामने आने के आठ मामले सामने आए हैं. ईवीएम-वीवीपीएटी का मिलान करने की सुविधा देशभर में 20,687 मतदान केंद्रों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उपलब्ध कराई गई थी. चुनाव आयोग के मुताबिक जो आठ मामले सामने आए हैं, वह कुल मतदान का 0.0004 फीसदी है, इसलिए इसका कुल चुनाव नतीजों पर प्रभाव नहीं माना जा सकता. यह मानवीय भूल हो सकती है.

ईवीएम-वीवीपीएटी मिसमैच होने के जो आठ मामले सामने आए हैं, वे राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय और आंध्र प्रदेश के हैं. ज्यादातर मामलों एक-दो वोटों का अंतर का आया है. सिर्फ एक मामले में 34 वोट ईवीएम और वीवीपीएटी में अलग पाए गए हैं. यह चुनाव प्रक्रिया में लगे कर्मचारियों की गलती हो सकती है. सभी आठ मामलों में कुल 50 वोटों में अंतर देखा गया है. इसे अंतिम परिणाम में प्रभावी नहीं माना जा सकता.

बहरहाल ईवीएम-वीवीपीएटी मिसमैच होने का यह पहला मामला है. 2019 से पहले के चुनावों में ईवीएम-वीवीपीएटी का मिलान करीब 1500 मामलों में किया गया था, जिनमें से एक भी मामले में गड़बड़ी नहीं देखी गई थी. मौजूदा आठ मामलों का विश्लेषण जिला चुनाव अधिकारी और मुख्य चुनाव अधिकारी के स्तर पर किया जाएगा. चुनाव आयोग की तकनीकी विशेषज्ञ समिति भी इन मामलों की जांच करेगी.

तकनीकी विशेषज्ञ समिति के सदस्य रजत मूना ने कहा कि ईवीएम-वीवीपीएटी का मिलान करने की प्रक्रिया संतोषजनक रही है. मतगणना के परिणामों को यह मिसमैच प्रभावित नहीं करता है. जो गड़बड़ी सामने आई है, उसका स्पष्टीकरण दिया जा सकता है. हम कह सकते हैं लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया पूरी तरह संतोषजनक रही है.

कर्नाटक तमाशे पर शिवसेना का केंद्र पर प्रहार, राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग

कर्नाटक के सियासे तमाशे पर शिवसेना ने केंद्र सरकार पर प्रहार किया है. साथ ही प्रदेश विधानसभा को भंग कर राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है. असल में शिवसेना ने कर्नाटक की राजनीति में केंद्र सरकार की भूमिका पर सवाल उठाए हैं. शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में लिखा है, ‘कर्नाटक में सभी लोग लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा रहे हैं. दोनों दलों की ओर से किया जा रहा यह तमाशा केंद्र सरकार आराम से बैठकर देख रही है आखिर क्यों? या तो वहां राष्ट्रपति शासन लागू करो या कर्नाटक विधानसभा को बर्खास्त करो.’ शिवसेना ने यह भी कहा कि कर्नाटक की जनता को ही निर्णय लेने दिया जाए. कुछ भी करो लेकिन कर्नाटक का यह नाटक एक बार खत्म करो.

दरअसल, कर्नाटक विधानसभा में फ्लोर टेस्ट किया जाना है लेकिन गर्वनर वजुभाई वाला पटेल के दो बार डेडलाइन के बाद भी फ्लोर टेस्ट नहीं हो सका. सदन और स्पीकर रमेश कुमार वोटिंग टालने के आरोपों से घिरे हुए हैं. आज भी सदन में फ्लोर होना है लेकिन पक्का नहीं है. जैसाकि सामना में भी लिखा है, ‘कर्नाटक में फिलहाल जो राजनीतिक तमाशा शुरू है वो आज भी समाप्त होगा, ये कहना कठिन है. बहुमत का निर्णय संसद या विधानसभा के सभागृह में होना चाहिए. लेकिन बहुमत गंवाकर बैठे कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी विधानसभा में चर्चा कर समय गंवा रहे हैं. उन्हें सीधे मतदान करके लोकतंत्र का पक्ष रखना चाहिए था लेकिन उनकी सांस मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर ऐसी अटकी है कि वो छूटते नहीं छूट रही.’

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शिवसेना ने राज्यपाल, स्पीकर और सीएम पर निशाना साधते हुए कहा, ‘राज्यपाल, विधानसभा अध्यक्ष और कुमारस्वामी ये तीन मुख्य पात्र इस खेल में अपने-अपने पत्ते फेंक रहे हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने भी उसमें हस्तक्षेप किया है और 15 बागी विधायकों की पांचों उंगलियां घी में हैं. 15 बागी विधायकों का विधानसभा में उपस्थित रहना अनिवार्य नहीं है और व्हिप का उल्लंघन कर दलबदल कानून के अंतर्गत उन पर कार्रवाई नहीं की जा सकती, सर्वोच्च न्यायालय ने 17 जुलाई को ऐसा आदेश दिया था.’

सरकार बचाने के लिए जेडीएस का आखिरी दांव, कांग्रेस से सिद्धारमैया बन सकते मुख्यमंत्री

कर्नाटक विधानसभा में कुछ घण्टों बाद होने वाले फ्लोर टेस्ट से पहले सियासी घटनाक्रम ने एक नया मोड़ ले लिया है. कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार का कहना है कि जेडीएस सरकार बचाने के लिए किसी भी तरह का त्याग करने के लिए तैयार हो गई है. एचडी कुमारस्वामी की पार्टी जेडीएस अब कांग्रेस के किसी भी नेता को मुख्यमंत्री बनाने के लिए भी तैयार है.

कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार के मुताबिक, कुमारस्वामी ने इस बारे में कांग्रेस हाईकमान को भी बता दिया है. विश्वास मत पर वोटिंग से ठीक पहले डीके शिवकुमार का ये बयान क्या सरकार को बचा पाएगा, इस पर हर किसी की नज़र है. इससे पहले कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार के आज होने वाले शक्तिपरिक्षण को सफल/विफल बनाने के लिए कांग्रेस-जेडीएस खेमे में रात भर बैठकें चलीं.

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कर्नाटक विधानसभा में आज फ्लोर टेस्ट होना है ऐसे में अगर बागी विधायक सरकार के पक्ष में वोट नहीं करते हैं तो एचडी कुमारस्वामी की सरकार का ये आखिरी दिन होगा. यही कारण है कि कांग्रेस और जेडीएस की तरफ से सरकार बचाने को लेकर कोशिशें हो रही हैं. ऐसे में कुमारस्वामी के लिए मुख्यमंत्री पद त्याग कर सरकार बचाने का यह आखिरी रास्ता हो सकता है.

कुमारस्वामी के सरकार बचाने के लिए इस आख़िरी दांव से अब कांग्रेस के सिद्धारमैया के मुख्यमंत्री बनने की संभावना तेज हो गई है. गौरतलब है कि जुलाई की शुरुआत में जब कांग्रेस से विधायकों ने इस्तीफा देना शुरू किया तो सरकार पर संकट आ गया. लेकिन कुछ ही दिन बाद जब मान-मनौव्वल का दौर चला तो एक आवाज़ सामने आई थी. जिसमें बागी विधायकों में से चार विधायकों का कहना था कि अगर सिद्धारमैया राज्य की कमान संभालते हैं तो वह अपना इस्तीफा देने का फैसला वापस ले सकते हैं और सरकार को समर्थन कर सकते हैं.

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पता रहे, बागी विधायकों को हटाकर कांग्रेस-जेडीएस की सरकार के पास सिर्फ 100 विधायकों का आंकड़ा है, जो बहुमत से दूर है. लेकिन अगर कांग्रेस का मुख्यमंत्री बनाकर बागी विधायक मान जाते हैं तो कर्नाटक में गठबंधन सरकार का बचना लगभग तय है.

येदियुरप्पा के टी-20 को कुमारस्वामी ने टेस्ट मैच में बदला

(Karnataka Politics)
(Karnataka Politics)

कर्नाटक का मामला अभी भी अधरझूल में है. उम्मीद थी कि गुरुवार को एचडी कुमारस्वामी सरकार का फैसला हो जाएगा, लेकिन नहीं हुआ. राज्यपाल के निर्देश भी धरे रह गए. राज्यपाल वजूभाई वाला ने पहले दोपहर 1.30 बजे तक, फिर शाम 6 बजे बहुमत साबित करने के लिए कहा था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और विधानसभा अध्यक्ष केआर रमेश कुमार ने सदन की कार्यवाही सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी. कर्नाटक का विश्वासमत प्रस्ताव टी-20 की बजाय टेस्ट मैच में बदल गया.

गौरतलब है कि कर्नाटक में कुछ बागी विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था, जो विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार ने मंजूर नहीं किया. इस पर 10 बागी विधायक सुप्रीम कोर्ट चले गए थे. बाद में पांच और विधायक उनके साथ शामिल हो गए. मंगलवार को इस मामले की सुनवाई हुई, जिसके अगले दिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया कि बागी विधायकों को सदन की कार्यवाही में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस अपने बागी विधायकों के लिए व्हिप जारी नहीं कर सकती.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 18 जुलाई को भाजपा विधायक राज्यवाल वजू भाई वाला से मिले. राज्यपाल ने विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार को पत्र लिखकर गुरुवार को ही विधानसभा विश्वासमत हासिल करने की प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दिए. विश्वासमत प्रस्ताव पर दिन भर बहस होती रही. मत विभाजन नहीं हो सका. कार्यवाही अगले दिन के लिए टली तो भाजपा के विधायक सदन में ही रुके रहे. उन्होंने वहीं रात गुजारी. गुरुवार देर शाम राज्यपाल ने मुख्यमंत्री कुमारस्वामी को पत्र लिखकर शुक्रवार दोपहर 1.30 बजे तक बहुमत साबित करने के लिए कहा. राज्यपाल के निर्देश का पालन नहीं हुआ. सदन की बैठक दिनभर चलती रही. शाम को राज्यपाल ने एक बार फिर कुमारस्वामी को पत्र लिखकर शुक्रवार शाम छह बजे तक बहुमत साबित करने के निर्देश दिए.

राज्यपाल के पत्र के विपरीत शाम को छह बजे बाद भी विधानसभा की कार्यवाही चलती रही और बहुमत हासिल करने की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी. रात 8.25 बजे रमेश कुमार ने सदन की कार्यवाही सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी. इससे पहले ही विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता सिद्धारमैया ने कह दिया था कि विश्वासमत प्रस्ताव पर बहस सोमवार को जारी रहेगी और यह मंगलवार तक भी चल सकती है. मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने कहा कि वह राज्यपाल का सम्मान करते हैं, लेकिन उनके दूसरे प्रेम पत्र ने उन्हें आहत किया है. उन्होंने कहा कि पहले राज्य में जारी राजनीतिक संकट पर चर्चा होगी, उसके बाद मत विभाजन होगा.

इस बीच सुप्रीम कोर्ट में दो अर्जियां पेश की जा चुकी हैं. एक अर्जी मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने पेश की है, जिसमें बहुमत साबित करने के लिए समय सीमा तय करने के राज्यपाल के आदेश को चुनौती दी गई है. दूसरी अर्जी कांग्रेस ने पहले से दायर कर रखी है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के 17 जुलाई के फैसले के खिलाफ अपील की गई है. सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को इन दोनों अर्जियों पर सुनवाई हो सकती है. इसके बाद ही विश्वास मत पर कोई फैसला हो सकेगा.

मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने कहा, जब से राज्य में कांग्रेस-जदएस की सरकार बनी है, इसे गिराने के लिए माहौल बनाया जा रहा है. मुझे पहले दिन से पता था कि यह सरकार ज्यादा दिन नहीं चलेगी, देखता हूं भाजपा कितने दिन सरकार चला पाएगी? शुक्रवार को विधानसभा में बहस ज्यादातर राज्यपाल के अधिकारों पर केंद्रित रही. इसमें सवाल उठा कि जब मुख्यमंत्री सदन में विश्वास मत प्रस्ताव पेश कर चुके हैं तो इसमें मत विभाजन के लिए समय सीमा तय करने का राज्यपाल को कहां तक अधिकार है? राज्यपाल के दूसरे पत्र पर कुमारस्वामी की प्रतिक्रिया थी कि राज्यपाल विधायिका के जांच अधिकारी के रूप में काम नहीं कर सकते हैं.

राज्य के ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज मंत्री कृष्णा बायरे गौडा ने कहा कि सदन में विश्वास मत पेश करने के बाद उस पर मत विभाजन के लिए राज्यपाल समय सीमा तय नहीं कर सकते हैं. इस तरह भाजपा की तरफ से राज्यपाल के संवैधानिक पद का दुरुपयोग किया जा रहा है. इस दौरान सत्तारूढ़ दल के विधायकों ने राज्यपाल वापस जाओ के नारे भी लगाए. बहरहाल, विश्वासमत प्रस्ताव पर विधानसभा में दो दिन में 17 घंटे बहस हो चुकी है. सिद्धारमैया का कहना है कि अभी कम से कम 20 विधायक और बहस में भाग लेंगे.

मामला सदन से गैरहाजिर रहने वाले करीब 20 विधायकों का है. अगर वे विश्वासमत प्रस्ताव के दौरान गैरहाजिर रहते हैं तो उन पर पार्टी व्हिप लागू होगा या नहीं, इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट करेगा. विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार ने स्पष्ट किया है कि उन पर विधानसभा की कार्यवाही टालने का आरोप नहीं लगाया जा सकता. वह सुप्रीम कोर्ट, जनता और सदन के सामने स्पष्ट करना चाहते हैं कि किसी भी विधायक ने उन्हें पत्र लिखकर सदन में सुरक्षा की मांग नहीं की है. अगर वे किसी अन्य सदस्य से यह कहते हैं कि वे सुरक्षा नहीं मिलने के कारण सदन से गैरहाजिर हैं, तो वे जनता को गुमराह कर रहे हैं.

‘कांग्रेस की प्यारी बेटी के निधन के बारे में सुनकर बहुत बुरा लगा’

दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का आज निधन हो गया. 3 बार दिल्ली की सीएम रही शीला दीक्षित अपने हंसमुख स्वभाव और समाजसेवा के लिए जानी जाती थीं. उनका कार्यकाल दिल्ली की जनता में ‘गुड गवर्नेस’ के तौर पर हमेशा याद रहेगा. उन्होंने अपने अंतिम समय तक कांग्रेस पार्टी को दिल्ली में मजबूत बनाने पर ध्यान दिया. उनका निधन दिल्ली राजनीति में कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है. लगातार तीन बार और 15 साल तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज होना उनके शानदार व्यक्तित्व का एक उदाहरण है.

उनके निधन पर राजनीति के सभी दिग्गजों ने सोशल मीडिया पर शोक व्यक्त किया है. इस लिस्ट में देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से लेकर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी शामिल हैं. राहुल गांधी ने एक ट्वीट पोस्ट करते हुए कहा कि मुझे कांग्रेस की एक प्यारी सी बेटी के निधन की खबर सुनकर बहुत दुख हो रहा है.

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महाराष्ट्र: आदित्य ठाकरे ने शिवसेना के लिए शुरू की ‘जन आशीर्वाद यात्रा’

महाराष्ट्र में शिवसेना की चुनावी तैयारी के तहत शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे ने जन आशीर्वाद यात्रा शुरू कर दी है. आदित्य ठाकरे शिवसेना की युवा शाखा के प्रमुख हैं. महाराष्ट्र में सितंबर-अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इससे पहले तक आदित्य ठाकरे मुंबई में ही सक्रिय थे. पहली बार वह शिवसेना के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से राज्य व्यापी यात्रा कर रहे हैं. यह यात्रा लोकसभा चुनाव में शिवसेना की सफलता के लिए धन्यवाद यात्रा भी है.

यात्रा में आदित्य के साथ संजय राउत हैं, जो राज्यसभा सांसद हैं. उनका कहना है कि अगर शिवसेना को बहुमत मिला तो आदित्य ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री होंगे. महाराष्ट्र में फिलहाल भाजपा-शिवसेना गठबंधन की सरकार है और भाजपा के देवेन्द्र फड़नवीस मुख्यमंत्री हैं. केंद्र में शिवसेना भाजपा के साथ एनडीए में शामिल है. लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में शिवसेना के 23 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था, जिनमें से 18 जीत गए.

आदित्य ठाकरे का कहना है कि जनता से संपर्क बनाए रखना उनका पहला लक्ष्य है. इसके तहत वह आम सभाओं के साथ ही विद्यार्थियों के साथ चर्चा सत्र भी आयोजित कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि आज के लोकतंत्र में वही नेता राजनीति में सफल रहता है, जो जनता से संपर्क बनाकर रखता है. फिलहाल जनता की समस्याओं को जानना और उन्हें हल करने का प्रयास करना उनका लक्ष्य है. मैं मुख्यमंत्री बनूंगा या नहीं, यह जनता तय करेगी. विद्यार्थियों के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि मौका मिला तो वह गृह विभाग में काम करना पसंद करेंगे.

आदित्य ठाकरे ने उत्तर महाराष्ट्र के चार जिलों में जन आशीर्वाद यात्रा गुरुवार को जलगांव से शुरू की थी. शुक्रवार को वह धुले में थे. इसके बाद उनका नासिक और अहमदनगर जाने का कार्यक्रम है.

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