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14 महीने में गिरी कुमारस्वामी सरकार, बीजेपी कर सकती है दावा पेश

आखिरकार कर’नाटक’ का मंचन आज पूरा हो गया और जेडीएस-कांग्रेस के गठबंधन वाली कुमारस्वामी सरकार गिर गई. विश्वासमत के दौरान मंगलवार की शाम को वोटिंग में कुमारस्वामी सरकार के पक्ष में सिर्फ 99 वोट ही पड़े, जबकि विपक्ष में 105 वोट पड़े. इस तरह 6 वोट के अंतर से कुमारस्वामी सरकार गिर गई.

कर्नाटक विधानसभा में सदस्यों की कुल संख्या 224 है. इनमें से सिर्फ 204 विधानसभा सदस्यों ने वोट किया. उनमें से 99 ने विश्वासमत के पक्ष में वोट किया जबकि 105 ने विपक्ष में वोट किया. जबकि 20 सदस्य वोटिंग के दौरान गैर-हाजिर रहे. इनमें 16 बागी, एक कांग्रेस, दो निर्दलीय और एक बसपा विधायक की अनुपस्थिति के चलते बहुमत 103 मतों पर था लेकिन इसे प्राप्त करने में कुमारस्वामी 4 वोट से पीछे रह गए.

कांग्रेस और जेडीएस के गठबंधन से बनी कुमारस्वामी सरकार 14 महीने ही चल पाई. कुमारस्वामी की सरकार 23 मई, 2018 को बनी थी लेकिन यह 23 जुलाई 2019 को गिर गई.

इससे पहले कर्नाटक विधानसभा में आज विश्वासमत पर चर्चा के दौरान एचडी के ने कहा कि कहा कि उनके बारे में नकारात्मक रिपोर्ट्स से वे काफी आहत हुए. इस बारे में आगे बोलते हुए मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने कहा कि उन्होंने एक ऐसी सरकार चलाई जिस पर लगातार गिरने का संकट मंडरा रहा था. उन्होंने सरकार बचाने के लिए काफी जद्दोजहद की क्योंकि सदन के सदस्यों ने उनसे इसकी अपील की थी.

कर्नाटक विधानसभा में बहुमत को लेकर चल रही बहस के दौरान मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने खुद को राज्य का एक्सीडेंटल सीएम बताते हुए कहा- ऐसा लगा जैसे एक्सीडेंटल सीएम हूं. उन्होंने आगे कहा- मैं अथॉरिटीज को धन्यवाद करना चाहता हूं जिन्होंने निश्चित समय-सीमा के साथ काम किया.

कर्नाटक में कांग्रेस और जनता दल (सेक्यूलर) की गठबंधन सरकार गिरने के बाद बीजेपी के दफ्तर में जश्न का माहौल है. अब बीजेपी कर्नाटक में सरकार बनाने की तैयारी में है. माना जा रहा है कि बीजेपी अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री बन सकते हैं. इसके लिए बीजेपी अगले 2 दिनों में राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती है.

बता दें, वर्तमान में देश के 16 राज्यों में बीजेपी की सरकार मौजूद है. कर्नाटक में सरकार बनने पर यह 17वां राज्य होगा जहां बीजेपी की सरकार बनेगी.

कुछ ऐसा था भारत माता के वीर सपूत चंद्रशेखर के ‘आजाद’ बनने का सफर

देश के महानतम क्रां​तिकारी चंद्रशेखर आजाद की आज 113वीं जयंती है. देश की आजादी चंद्रशेखर आजाद जैसे हजारों क्रांतिकारियों का सपना था जिसे आज हम जीवंत देख रहे हैं. चंद्रशेखर आजाद देश के उन महान क्रांतिकारियों में से एक हैं जिनके नाम से अंग्रेज भी थरराया करते थे. वह एक निर्भीक क्रांतिकारी थे जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया. न सिर्फ बलिदान दिया बल्कि सैंकड़ों युवाओं के बीच आजादी की अलख जगा गए. भारत माता के वीर सपूत चंद्रशेखर आजाद को उनकी जयंती पर नमन.

चंद्रशेखर आजाद का पूरा नाम चंद्रशेखर सीताराम तिवारी है जिनका जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के भाबरा गांव में हुआ. जहां आजाद का जन्म हुआ उस जगह को अब आजादनगर नाम से जाना जाता है. बचपन में आजाद चंद्रशेखर ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाये और इस प्रकार उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली. 1919 में हुए अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार ने देश के नवयुवकों को उद्वेलित कर दिया. चन्द्रशेखर उस समय पढाई कर रहे थे. बचपन से ही बेखौफ अंदाज के लिए जाने जाने वाले चंद्रशेखर सिर्फ 14 साल की आयु में 1921 में गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए और सडकों पर उतर आये.

अपने विद्यालय के छात्रों के जत्थे के साथ इस आंदोलन में भाग लेने पर वे पहली बार गिरफ़्तार हुए और अपनी पहली सजा में आजाद को 15 कोड़े पड़े. उन्होंने हर कोड़े पर वंदे मातरम के साथ महात्मा गांधी की जय के नारे लगाए. इसके बाद से ही उन्हें सार्वजनिक रूप से ‘आजाद’ पुकारा जाने लगा. इस घटना का उल्लेख देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने कायदा तोड़ने वाले एक छोटे से लड़के की कहानी के रूप में किया है —

ऐसे ही कायदे (कानून) तोड़ने के लिये एक छोटे से लड़के को, जिसकी उम्र 15 या 16 साल की थी और जो अपने को आज़ाद कहता था. बेंत की सजा दी गयी. वह नंगा किया गया और बेंत की टिकटी से बाँध दिया गया. जैसे-जैसे बेंत उस पर पड़ते थे और उसकी चमड़ी उधेड़ डालते थे, वह ‘भारत माता की जय’ चिल्लाता. हर बेंत के साथ वह लड़का तब तक यही नारा लगाता रहा, जब तक वह बेहोश न हो गया. बाद में वही लड़का उत्तर भारत के क्रान्तिकारी कार्यों के दल का एक बड़ा नेता बना. – पं.जवाहरलाल नेहरू

गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन को अचानक बंद कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गए.

चंद्रशेखर आजाद ने एक निर्धारित समय के लिए झांसी को अपना गढ़ बना लिया. झांसी से पंद्रह किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों में वह अपने साथियों के साथ निशानेबाजी किया करते थे. अचूक निशानेबाज होने के कारण चंद्रशेखर आजाद दूसरे क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के छ्द्म नाम से बच्चों के अध्यापन का कार्य भी करते थे. वह धिमारपुर गांव में अपने इसी छद्म नाम से स्थानीय लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए.

चंद्रशेखर आजाद ने रामप्रसाद बिस्मिल और अन्य साथियों के साथ जब हथियार खरीदने के लिए ऐतिहासिक काकोरी ट्रेन डकैती को अंजाम दिया तो इस घटना ने ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया. लाला लाजपत राय की मौत का बदला आजाद ने ही लिया. उन्होंने लाहौर में अंग्रेजी पुलिस अधिकारी सॉन्डर्स को गोली से उड़ा दिया था. इस कांड से अंग्रेजी सरकार सकते में आ गई. आजाद यही नहीं रुके. उन्होंने लाहौर की दिवारों पर खुलेआम परचे भी चिपका जिनपर लिखा था ‘लालाजी की मौत का बदला ले लिया गया है.’

27 फरवरी, 1931 को अंग्रेजी पुलिस ने इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में ‘आजाद’ को चारों तरफ से घेर लिया. अंग्रेजों की कई टीमें पार्क में आ गई. आजाद ने 20 मिनट तक पुलिस वालों से अकेले ही लौहा लिया. जब उनके पास बस एक गोली बची तो उन्होंने उसे खुद को मार ली. उनके चेहरे का तेज इतना तेज था कि मरने के बाद भी अंग्रेजों की उनके पास जाने तक की हिम्मत नहीं हुई. जिस पार्क में चंद्रशेखर आजाद हमेशा के लिए आजाद हुए, आज उस पार्क को चंद्रशेखर आजाद पार्क के नाम से जाना जाता है.

आजाद ने कहा था कि वह आजाद हैं और आजाद ही रहेंगे. उन्हें अंग्रेजी सरकार जिंदा रहते कभी पकड़ नहीं सकती और न ही गोली मार सकती है. अपनी जिंदगी के आखिरी क्षणों में भी वे अपनी बात पर कायम रहे. भारत माता के वीर सपूत को उनकी जयंती पर क्षत क्षत नमन.

लालू यादव, पासवान और सतीश मिश्रा सहित कई नेताओं की सुरक्षा घटी

गृह मंत्रालय ने देश के कुछ बड़े नेताओं की सुरक्षा में कटौती की है. इनमें राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के साथ कुछ बीजेपी नेता और अन्य लोग भी शामिल हैं. इससे पहले मंत्रालय ने उक्त सभी नेताओं की सुरक्षा कवर की समीक्षा की और उसके बाद यह फैसला लिया.

गृह मंत्रालय द्वारा जारी आदेश के अनुसार, आरजेडी के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, बीएसपी सांसद सतीश चंद्र मिश्रा, बीजेपी सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी, यूपी सरकार के मंत्री सुरेश राणा, यूपी बीजेपी विधायक संगीत सिंह सोम की सुरक्षा हटा ली गई है. इनमें मिश्रा के पास जेड प्लस और अन्य सभी के पास जेड कैटेगिरी की सुरक्षा थी. यूपी के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा को दी जा रही ‘वाई प्लस’ सुरक्षा को भी वापिस लिया गया है.


इनके अलावा, एलजेपी सांसद चिराग पासवान, पूर्व सांसद पप्पू यादव और स्वामी सच्चीदानंद की सीआरपीएफ सुरक्षा वापस ले ली गई है. इन सभी को अब Y कैटेगरी की सुरक्षा मिलेगी.

कोलकाता के एडिटर अवीक सरकार, बिहार के पूर्व सांसद उदय सिंह, सांसद वीना देवी की एक्स कैटेगिरी सुरक्षा को भी हटाया गया है. पूर्व डीजी प्रकाश मिश्रा से सीआरपीएफ कैटेगिरी की सुरक्षा हटाकर एक्स कैटेगिरी की सुरक्षा दी गई है.

परसराम मदेरणा की जयंती पर दिव्या मदेरणा ने बताई ये बातें

कांग्रेस सरकार पर भारी भाजपा की रणनीति

राजस्थान विधानसभा में अद्भुत नाटकीय घटनाक्रम चल रहा है. यह सिर्फ राजनीति है या इसका जनहित से कोई लेना-देना भी है, इसका निर्णय कोई नहीं कर सकता. विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी कायदे-कानून को लेकर सख्त हैं और कांग्रेस-भाजपा के विधायक एक दूसरे पर तीर चलाने में कोई कंजूसी नहीं करते. नतीजा यह कि विधानसभा में हंगामा होता रहता है और लोग उसे नाटक की तरह देखते रहते हैं.

विधानसभा में प्रश्नकाल होता है. विधायक प्रश्न पूछते हैं. संबंधित विभाग के मंत्री जवाब देते हैं. पिछली सरकार भाजपा की थी. यह सरकार कांग्रेस की है. सवाल-जवाब के दौर में पिछली सरकार के कार्यों का जिक्र होता रहता है. इसमें विधायकों की रोचक निशानेबाजी देखने को मिलती है.

विधानसभा अध्यक्ष जोशी प्रश्न पूछने वाले विधायकों के अलावा अन्य सदस्य के पूरक प्रश्न पूछने पर टोकते हैं और विषय से अलग हटकर पूछे गए प्रश्नों को रोक देते हैं. इस पर भाजपा के सदस्य हंगामा करते हैं. जब से विधानसभा शुरू हुई, एक दिन भी ऐसा नहीं निकला, जब प्रश्नकाल में रुकावट पैदा नहीं हुई है. कई प्रश्न अटक गए. विधायक अपने-अपने क्षेत्रों के जन प्रतिनिधि हैं. क्षेत्र की समस्याओं को लेकर विधानसभा में उपस्थित होते हैं. सरकार से सवाल पूछते हैं. सरकार की जिम्मेदारी है कि सभी सवालों के जवाब दे. यही शासन की लोकतांत्रिक प्रक्रिया है.

अगर प्रश्नकाल में सूचीबद्ध सभी प्रश्नों के जवाब मंत्री की तरफ से मिलने का सिलसिला जारी रहता है तो लगता है कि सरकार चल रही है. विधायक भी अपना काम कर रहे हैं. लेकिन यहां तो प्रश्नकाल को ही रोकने का प्रयास हो रहा है. भाजपा विधायक कर रहे हैं. यह कांग्रेस सरकार को काम नहीं करने देने की राजनीति है. सोमवार को तो भाजपा विधायकों ने गजब कर दिया. बांह पर काली पट्टी बांधकर और मुंह पर सफेद पट्टी बांधकर सदन में आ गए.

विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी का कहना है कि पहले से जो प्रावधान हैं, उन्हें ही लागू किया है. सवाल करने से कौन रोक रहा है?  मैं चाहता हूं कि हर विधायक सवाल लगाए और सरकार जवाब दे. लेकिन किसी दूसरे के सवाल पर कोई तीसरे व्यक्ति को पूरक प्रश्न की इजाजत नहीं है. विधानसभा में उप नेता, प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि प्रश्नकाल में नई व्यवस्था लागू करके सरकार ने विपक्षी विधायकों की आवाज को दबाने का काम किया है. अध्यक्ष नहीं चाहते कि हम सवाल-जवाब करें. सवाल करना हमारा संवैधानिक अधिकार है.

भाजपा का विरोध अपनी जगह ठीक है, लेकिन इस मुद्दे पर सदन में नाटकीय तरीके से चुप्पी साधने का अभिनय और कोई प्रश्न नहीं पूछना कहां तक उचित है? भाजपा प्रमुख विपक्षी पार्टी है. उसके विधायक सरकार से सीधे सवाल पूछ सकते हैं. मुंह पर पट्टी बांधकर सदन में बैठने से क्या साबित होगा? गौरतलब है कि भाजपा की यह रणनीति प्रश्नकाल को ही बाधित करने के लिए है. प्रश्नकाल के अलावा विधानसभा ठीक से चल रही है. प्रश्नकाल खत्म होने के बाद शून्यकाल से भाजपा विधायक सक्रिय हो जाते हैं.

सोमवार को विधानसभा में गृह, न्याय, आबकारी एवं कारागार विभागों की अनुदान मांगों पर बहस हुई. नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया, उप नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़, दानिश अबरार, साफिया जुबेर सहित कई विधायकों ने बहस में भाग लिया. राज्यमंत्री भजनलाल जाटव और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तरफ से प्रभारी मंत्री शांति धारीवाल ने बहस का जवाब दिया. विधानसभा में भाजपा के विधायक दिन भर बांह पर काली पट्टी बांधकर बैठे रहे.

डेमोक्रेसी को खत्म करने का गेम खेल रही है बीजेपी: गहलोत

मोदी सरकार की जल्दबाजी से परेशान विपक्ष की रणनीति

PoliTalks news

संसद में विधेयकों को पारित कराने के लिए मोदी सरकार जो तरीके अपना रही है, उससे विपक्षी पार्टियां असंतुष्ट हैं. विधेयकों को स्थायी समिति या प्रवर समिति के पास भेजे बगैर पारित कराने का सिलसिला शुरू हो चुका है. अब तक 11 विधेयक पारित किए जा चुके हैं. सोमवार को भी राज्यसभा में कार्य संचालन परिषद की बैठक में संसदीय कार्यमंत्री प्रहलाद जोशी ने मौजूदा सत्र में पारित कराने के लिए तीन तलाक प्रतिबंध सहित 16 विधेयक सूचीबद्ध किए. इन सभी विधेयकों को पारित करने के लिए समय सीमा तय की गई है.

विपक्षी पार्टियों के सांसद इस बात को लेकर असंतुष्ट हैं कि दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारी उनकी बात नहीं सुनते हैं. इस समस्या को लेकर राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद के साथ विपक्षी पार्टियों के नेताओं की बैठक के बाद दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों को पत्र भेजा जाएगा कि संसद में संसदीय प्रणाली के अनुरूप कार्य नहीं हो रहा है. गौरतलब है कि सरकार संसद का मौजूदा सत्र एक हफ्ता और बढ़ाने की तैयारी कर रही है.

तृणमूल कांग्रेस सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि सरकार अगर सत्र का समय बढ़ाना चाहती है तो उसे यह तय करना चाहिए कि वह सदन में महिला आरक्षण विधेयक पेश करेगी. एक अन्य सांसद सुखेन्दु शेखर रॉय के मुताबिक लोकसभा ने मानवाधिकार संशोधन विधेयक शुक्रवार शाम राज्यसभा को भेजा था, जो सोमवार को सुबह राज्यसभा में सूचीबद्ध था और संशोधनों के लिए उन्हें पर्याप्त समय ही नहीं मिला.

राज्यसभा में माकपा के एक सदस्य ने कहा कि मौजूदा सरकार इस संसद को गुजरात विधानसभा में तब्दील करना चाहती है, जहां विपक्ष की आवाज सुने जाने की अनुमति नहीं है. रॉय ने कहा कि नियम 95 (1) के तहत सदस्यों को यह अधिकार है कि वे बहस के 24 घंटे के भीतर संशोधन प्रस्तुत कर सकते हैं. सभापति ने अनुमति नहीं दी तो तृणमूल सांसदों ने दिन भर के लिए सदन का बायकाट कर दिया.

राज्यसभा की कार्य संचालन परिषद की बैठक में संसदीय कार्यमंत्री ने सदस्यों को बताया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे पर संक्षिप्त बहस के लिए 16 राजनीतिक पार्टियों ने जो नोटिस दिया है, उसके लिए प्रयाप्त समय नहीं है. राज्यसभा में तृणमूल सांसदों ने सोमवार को एक वीडियो पेश किया, जो में सोनभद्र नरसंहार में घायल पीड़ितों से अस्पताल में की गई बातचीत के आधार पर तैयार किया गया था. सभापति ने आश्वस्त किया कि वह इस मुद्दे पर गौर करेंगे. गौरतलब है कि सोनभद्र नरसंहार के मामले में कांग्रेस ने लोकसभा या राज्यसभा में बहस के लिए कोई नोटिस नहीं दिया है, जबकि प्रियंका गांधी वाड्रा सोनभद्र पहुंचकर धरने पर बैठी थीं. उन्हें उत्तर प्रदेश प्रशासन ने हिरासत में भी लिया था.

बहरहाल सरकार 16 विधेयकों को पारित कराने के लिए संसद का सत्र एक हफ्ता और बढ़ाने की तैयारी कर रही है. विपक्ष यही रणनीति बना रहा है कि सरकार की मनमानी कैसे रुके. सरकार की मंशा विपक्ष की बात सुने बगैर विधेयक पारित कराने की है. लोकसभा में सरकार के पास स्पष्ट बहुमत है, इसलिए वहां दिक्कत नहीं है, लेकिन राज्यसभा में फिलहाल भाजपा सरकार का पूर्ण बहुमत नहीं है. इसी लिए खींचतान चल रही है.

सत्रहवीं लोकसभा गठित होने के बाद इसका पहला सत्र 27 जून से शुरू हुआ था, जिसका समापन 26 जुलाई को होगा. संसद सत्र की अवधि बढ़ाने की चर्चाओं के बीच मंगलवार सुबह भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक हुई. उसके बाद विपक्षी नेताओं की बैठक हो रही है. लोकसभा में सोमवार को आरटीआई संशोधन विधेयक पारित हो चुका है, अब इसे राज्यसभा में लाया जाएगा. विपक्ष की मांग है कि यह सूचना का अधिकार कानून को कमजोर करने वाला विधेयक है, इसे पहले प्रवर समिति के पास भेजा जाए. विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने समितियों का गठन नहीं किया है और वह अपने बहुमत के कारण लोकसभा में विधेयकों को पारित करवा रही है.

सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सड़क पर आरटीआई संशोधन विधयक का विरोध शुरू कर दिया है. तृणमूल कांग्रेस सहित 10 विपक्षी पार्टियों ने राज्यसभा के सभापति को पत्र लिखकर विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजने की मांग की है. तीन तलाक विधेयक को लेकर भी राजनीतिक पार्टियों की अलग-अलग राय है.

आंध्रप्रदेश की प्राइवेट नौ​करियों में 75 फीसदी स्थानीय युवाओं को मिली तरजीह

आंध्र प्रदेश के नए सीएम जगनमोहन रेड्डी अपने नये नये नियमों से सभी को चौंकाते रहते हैं. अब उन्होंने एक नया नियम निकालकर प्रदेश के युवाओं का भला करने की ठानी है. रेड्डी सरकार ने विधानसभा में एक बिल पारित कर कहा है कि किसी भी प्राइवेट कंपनी में 75 फीसदी पद स्थानीय युवाओं से भरे जाने का ऐलान किया है.

सरकार की ओर से उद्योग/कारखाना एक्ट-2019 बिल में कहा गया है कि कोई भी कंपनी चाहे उसे राज्य सरकार की ओर से मदद मिल रही है या नहीं, हर स्थिति में 75 प्रतिशत पद स्थानीय युवाओं से भरे जाएं. इससे प्रदेश के युवाओं में रोजगार की स्थिति में सुधार होगा और बेरोजगारी कम होगी.

नए बिल के अनुसार, चाहे औद्योगिक इकाइयां, कारखाने, ज्वाइंट वेंचर कंपनी या पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप कंपनियां हो, उन्हें हर हाल में 75 फीसदी नौकरी स्थानीय युवाओं को देनी होगी.

इस बिल में एक नई और खास बात भी ध्यान देने योग्य है. इस बिल में एक नियम यह भी जोड़ा गया है कि अगर कोई युवा स्किल्ड नहीं है तो कंपनी उसे रखने से पहले सिखाए और फिर रखे. ऐसा नहीं कि केवल स्किल्ड युवाओं को ही कंपनी में रखे. नियम के मुताबिक पहले कंपनियों में स्थानीय युवाओं को ही प्राथमिकता दी जाये.

हालांकि इस नियम पर प्रदेश की निजी और सार्वजनिक कंपनी/उद्योगों के मालिकों की अलग-अलग प्रतिक्रिया आ रही हैं. इस इस नियम को ​प्रदेश के हित में सही बता रहे हैं तो कुछ थोड़ा भी बोलने से कतरा रहे हैं. लेकिन एक बात तो साफ तौर पर तय है कि इससे प्रदेश के युवाओं का भला जरूर होगा और बेरोजगारी पर लगाम लगेगी.

इससे पहले मध्य प्रदेश में कमलनाथ की सरकार आने के बाद भी ऐसा ही नियम लागू किया जा चुका है. राज्य में प्राइवेट नौकरियों में 70 फीसदी स्थानीय युवाओं को तरजीह दी जा रही है.

कर’नाटक’ का आखिरी मंचन, विश्वासमत पर वोटिंग आज ही होगी

कर्नाटक में विधानसभा स्पीकर के.आर. रमेश ने सभी कयासों पर विराम लगाते हुए कहा – विश्वासमत पर वोटिंग आज ही होगी. स्पीकर ने यह भी कहा है कि सत्ताधारी कांग्रेस जेडीएस गठबंधन से बगावत कर इस्तीफा दे चुके विधायकों पर भी पार्टी व्हिप लागू होगा

विधानसभा अध्यक्ष रमेश कुमार ने एचडी कुमारस्वामी सरकार के विश्वासमत परीक्षण को लेकर लग रहे कयासों पर विराम लगा दिया है. उनका कहना है कि इस पर वोटिंग आज ही होगी. विधानसभा अध्यक्ष ने यह भी कहा है कि सत्ताधारी कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन से बगावत कर इस्तीफा दे चुके विधायकों पर भी पार्टी व्हिप लागू होगा. यानी इन विधायकों को सत्ताधारी गठबंधन के पक्ष में वोट देना होगा नहीं तो अयोग्य घोषित किए जाने का खतरा उठाना होगा. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इन विधायकों के लिए सदन की कार्रवाई में भाग लेना जरूरी नहीं है.

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि एचडी कुमारस्वामी आज अपनी कुर्सी बचा पाते हैं या नहीं. 15 विधायकों की बगावत के चलते सरकार के पास 102 विधायक रह गए हैं जबकि विपक्षी भाजपा के पास 105 विधायक हैं और दो निर्दलीय विधायकों ने भी उसे समर्थन का ऐलान किया है. भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येद्दियुरप्पा कह चुके हैं कि आज कुमारस्वामी सरकार का आखिरी दिन है.

बिहार में ये कैसी आहट, पर्दे के आगे मिठास तो पीछे कड़वाहट

बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं ऐसे में यहां की आबोहवा में अभी से अलग ही सियासी महक घुलने लगी है. वर्तमान में बीजेपी और जदयू की मिली जुली सरकार की बागड़ौर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथों में है लेकिन गठबंधन के इस घोड़े पर नीतीश कितने दिन सवारी कर पाएंगे और आने वाले विधानसभा चुनाव तक यह गठबंधन चलेगा भी या नहीं, इस पर संशय के बादल मंडराने लगे हैं.

बीजेपी और जदयू नेताओं में तनातनी तो लंबे समय से चली ही आ रही है लेकिन ये सुर्खियों में तब आई जब केंद्रीय मंत्रीमंडल में एक भी केबिनेट मंत्री का पद जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को नहीं मिला. इस पर जदयू चीफ नीतीश कुमार ने सीधे तौर पर अपनी नाराजगी भी जाहिर की और सांकेतिक भागीदारी लेने से इनकार करते हुए राज्य मंत्री का पद ठुकरा दिया. इसके तुरंत बाद नीतीश कुमार ने प्रदेश मन्त्रिमण्डल का विस्तार करते हुए बीजेपी के किसी विधायक को उसमें शामिल नहीं करके हिसाब बराबर कर दिया. इसके बाद से दोनों पार्टियों के बीच रिश्तों में कड़वाहट की खाई और गहरी होती चली गई.

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू ने लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद के साथ मिलकर महागठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़ा था. जदयू और राजद की यह जोड़ी बीजेपी और कांग्रेस दोनों पर ही भारी पड़ी और नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार बनीं. लेकिन इस दोस्ती की डोर में जल्द ही गांठ पड़ गई और नीतीश कुमार ने महागठबंधन से जदयू को अलग कर लिया. नीतीश ने सियासी हल्कों में हलचल बढ़ाते हुए केवल 12 घंटों के अंदर बीजेपी से हाथ मिला फिर से अपनी सरकार बना ली. बीजेपी के सुशील कुमार को डिप्टी सीएम का पद मिल गया.

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हालांकि इस गठबंधन को तीन साल से अधिक हो गए हैं लेकिन तकरार की खाई दिन-ब-दिन बढ़ती गयी. दोनों पार्टियों के नेताओं ने इस खाई को पाटने की बजाय और गहरा करने का काम किया है. जदयू के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा के पूर्व सदस्य पवन वर्मा के ताजा बयान से गठबंधन में रिश्तों की कड़वाहट का पता चलता है. उन्होंने साफ तौर पर कहा, ‘अगर बीजेपी को लगता है कि वे अकेले चुनाव लड़कर सफल हो जाएगी तो वह निर्णय ले सकती है. उसे निर्णय करना हो तो कर ले.’ दरअसल उन्होंने यह बयान एक बीजेपी नेता पर पलटवार करते हुए दिया था लेकिन वर्मा के इस बयान से बीजेपी के लिए जदयू की नाराजगी और कड़वाहट का सीधे-सीधे पता चलता है.

इससे पहले बिहार के बीजेपी एमएलसी सच्चिदानंद राय ने बयान देते हुए कहा कि पार्टी नेतृत्व नीतीश सरकार को दिए समर्थन पर विचार करे. उनके इस बयान ने प्रदेश की दोनों पार्टियों को हिलाकर रख दिया. उनके बयान से बीजेपी नेतृत्व भी चिंतित हुआ और राय को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा गया. इससे पहले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह भी रोज इफ्तार की एक दावत के मौके की तस्वीरों के जरिए नीतीश कुमार पर निशाना साध चुके हैं.

अब आने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी और जदयू दोनों कंधे से कंधा मिलाकर चुनाव लड़ेंगे या फिर अलग-अलग, ये अभी तक भविष्य के गर्भ में छिपा है. लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले दोनों पार्टियों के बीच कड़वाहट और ज्यादा बढ़ने लगी है. दोनों के बीच आई इस खटास का फायदा राजद पूरी तरह से उठाने के फिराक में है.

सूत्रों के मुताबिक राजद के कुछ नेताओं ने नीतीश कुमार से इस बारे में बात करना शुरू कर दिया है लेकिन नीतीश कुमार पिछले वाकिये को अब तक भूल नहीं पाए हैं. इसलिए हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं. हालांकि बीजेपी का साथ छोड़ना उन्हें भारी पड़ सकता है, इस बात को नीतीश कुमार भलीभांति जानते हैं. ऐसे में नीतीश फिलहाल अपने तरकश के सभी तीर संभालकर रखे हुए हैं ताकि सही समय पर एकदम सटीक निशाना लगा सकें. वह निशाना बीजेपी पर होगा या फिर राजद पर, इसके लिए थोड़ा इंतजार करना होगा.

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