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राहुल गांधी को किसने बताया ‘इमरान का चीयर लीडर’

राजनीति में बयानबाजी चलती रहती है. लेकिन कई बार यह इतनी आगे तक चली जाती है कि सारी सीमाएं एक पल में लांग दी जाती है. जैसा ही कुछ हुआ राहुल गांधी के साथ जब सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए गिरिराज सिंह ने राहुल गांधी को ‘इमरान खान का चीयर लीडर’ तक कह दिया.

गिरिराज सिंह ने यह बयान राहुल गांधी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर की गई एक टिप्पणी के खिलाफ दिया है. दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कश्मीर मामले में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा मध्यस्थता के आग्रह वाले बयान पर राहुल गांधी ने पीएम से जवाब मांगा था.

राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में लिखा, ‘अगर ट्रंप का दावा सही है तो प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के हितों के साथ धोखा किया है. ट्रंप के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे कश्मीर के मसले पर भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने को कहा था. अगर यह सच है तो मोदी ने भारत के हितों और 1972 के शिमला समझौते के साथ विश्‍वासघात किया है. इस पर एक कमजोर विदेश मंत्रालय का खंडन नाकाफी है. प्रधानमंत्री को बताना चाहिए कि ट्रंप और उनके बीच की बैठक में आखिर क्या बात हुई थी.’

इस पर पलटवार करते हुए गिरिराज सिंह ने लिखा, ‘राहुल गांधी तो इमरान खान के चीयरलीडर की तरह बर्ताव करते हैं. इमरान खान अपनी औकात नहीं जानते. वे रेफरेंडम और कश्मीर का राग छोड़कर पाक अधिकृत कश्‍मीर को हिंदुस्तान को सौंपने की तैयारी करें क्योंकि ये मोदी की सरकार है, नेहरु की नहीं.’

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बता दें, डोनाल्ड ट्रंप ने सार्वजनिक तौर पर कहा, ‘मैं दो हफ्ते पहले प्रधानमंत्री मोदी के साथ था और हमने इस कश्मीर मसले पर बात की थी. मोदी ने कहा — क्या आप मध्यस्थता या मध्यस्थ बनना चाहेंगे? मैंने कहा कहां… तो मोदी ने कहा कि कश्मीर….’ ट्रंप ने आगे यह भी कहा, ‘मुझे हैरानी है कि यह मसला काफी लंबे समय से चल रहा है. यदि मैं कोई मदद कर सकता हूं तो मैं मध्यस्थ होना पसंद करूंगा. अगर मैं मदद करने के लिए कुछ कर सकता हूं तो मुझे बताएं.’ हालांकि इस बयान के बाद

ट्रंप का बयान मीडिया में आने के बाद विदेश मंत्रालय ने सफाई दी थी. मोदी सरकार ने ट्रंप के बयान को सिरे से खारिज कर दिया है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी सदन में इस बात को गलत ठहराया लेकिन खबर लिखे जाने तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से कोई बयान नहीं आया.

कांग्रेस के लोगों ने आतंकवादियों को पनपाया हैं: बेनीवाल

संक्षिप्त बहस, हंगामे, वाकआउट के बीच संसद में बजट पारित

राज्यसभा ने मंगलवार को वित्त विधेयक (क्रमांक 2) और विनियोग विधेयक (क्रमांक 2) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार को लौटा दिया है. मंगलवार को राज्यसभा में दिनभर हंगामा होता रहा. कश्मीर मुद्दे पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मोदी के बारे में दिए गए बयान पर विपक्षी सदस्यों ने खूब हंगामा किया और कई सदस्यों ने सदन से वाकआउट भी किया. वित्त विधेयक और विनियोग विधेयक धन विधेयक होने के कारण इस पर मत विभाजन का प्रावधान नहीं है. राज्यसभा इसे बहस के बाद लौटा सकती है. दोनों ही विधेयक सिर्फ लोकसभा में पारित किए जाते हैं.

राज्यसभा में वित्त विधेयक पर बहस में सिर्फ एनडीए से जुड़े लोगों ने भाग लिया. तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस), वाईएस राजशेखर रेड्डी कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी), अन्नाद्रमुक और बीजू जनता दल (बीजद) को छोड़कर सभी विपक्षी पार्टियों के सदस्य सदन से बाहर चले गए थे. संक्षिप्त बहस के बाद हंगामे के बीच राज्यसभा ने वित्त विधेयक सरकार को लौटा दिया और इसी के साथ संसद में बजट पारित करने की प्रक्रिया पूरी हो गई. लोकसभा में वित्त विधेयक पहले ही पारित हो चुका है.

राज्यसभा में वित्त विधेयक पर बहस का जवाब देते हुये वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पेट्रोल एवं डीजल पर लगाये गये उपकर को जायज ठहराते हुए कहा कि देश में महंगाई दर अपने न्यूनतम स्तर पर है. सरकार चाहती है कि जनता पर कर का बोझ कम से कम किया जा सके. वित्त मंत्री के जवाब के बाद सदन ने दोनों विधेयक ध्वनिमत से लौटा दिए. इसी के साथ पांच जुलाई को संसद में शुरु हुई बजट पारित होने की प्रक्रिया पूरी हो गई. पांच जुलाई को सीतारमण ने लोकसभा में आम बजट 2019-20 पेश किया था.

राज्यसभा में सुबह से ही विपक्षी सांसदों ने ट्रंप के बयान पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्पष्टीकरण की मांग शुरू कर दी थी. दोपहर दो बजे उप सभापति हरिवंश ने वित्त एवं विनियोग विधेयक पर बहस शुरू करने की अनुमति दी, तब भी कांग्रेस के सदस्य मोदी के स्पष्टीकरण की मांग पर अड़े रहे. हरिवंश ने यह मुद्दे सदन में उठाने की अनुमति नहीं दी. उन्होंने कहा कि सभापति एम वेंकैया नायडू आज सुबह ही स्पष्ट कर चुके हैं कि यह मुद्दा सदन में नहीं उठेगा. इस पर कांग्रेस के सदस्य आसन के सामने पहुंच गए. पी चिदंबरम ने कहा कि जब इतने विपक्षी सदस्य मुद्दा उठा रहे हैं तो आपको सदन स्थगित करते हुए उन्हें स्पष्टीकरण के लिए तलब कर मुद्दे का समाधान निकालना चाहिए. सदन इसी तरह चल सकता है. सदन क्यों है? विपक्षी सदस्यों को सदन से बाहर क्यों जाना चाहिए? क्या सिर्फ सत्ता पक्ष के सदस्य और आप ही सदन में बैठे रहेंगे?

सदन के नेता थावरचंद गहलोत ने इस पर कहा कि सरकार की तरफ से कोई भी मंत्री जवाब दे सकता है. सरकार सामूहिक जिम्मेदारी से चलती है. गहलोत की बात से विपक्षी सदस्य संतुष्ट नहीं हुए, क्योंकि सुबह विदेश मंत्री एस जयशंकर का बयान उनके गले नहीं उतरा था. इसके बाद सदन की बैठक तीन बजे तक स्थगित हुई. उसके बाद दुबारा बैठक शुरू होने पर भी वही स्थिति बनी रही. विपक्षी सदस्यों के हंगामे के बीच हरिवंश ने वित्त एवं विनियोग विधेयक पर बहस शुरू कराने का प्रयास किया.

भाजपा नेता भूपेन्द्र यादव ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि लोकसभा की कार्यवाही सुचारु रूप से चल रही है. उच्च सदन राज्यसभा की कार्यवाही भी ठीक से चलनी चाहिए. इस पर नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा कि बयान को मामूली मत समझिए. अगर लोकसभा और राज्यसभा एक ही है तो एक ही सदन होना चाहिए. दो सदनों की व्यवस्था संविधान के अनुसार की गई है. लोकसभा भंग होती है. राज्यसभा कभी भंग नहीं होती. यह संसद का स्थायी सदन है.

आजाद ने कहा कि लोकसभा में क्षेत्रीय और भाषायी आधार पर विधेयक पारित होते हैं और पिछले पांच साल से धार्मिक भावना भी इससे जुड़ गई है. राज्यसभा में ऐसा नहीं होता. राज्यसभा में सरकार को मनमानी करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए. आजाद के इतना कहने के बाद कांग्रेस के सदस्य सदन से बाहर चले गए.

गोवा-कर्नाटक के अनुभव से लबरेज बीजेपी की निगाह अब एमपी पर

बिहार में जदयू-बीजेपी गठबंधन कितना मजबूत?

कर्नाटक के बाद अब बीजेपी की निगाह मध्यप्रदेश पर टिकी

कर्नाटक में मंगलवार शाम कुमारस्वामी सरकार के गिरने के कुछ घण्टों बाद से ही राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया कि अब अगला नम्बर मध्यप्रदेश का है. मंगलवार शाम से शुरु हुए बीजेपी नेताओं के बयान और कांग्रेस नेताओं के पलटवार ने मध्यप्रदेश की राजनीति में माहौल को गरमा दिया है. चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया कि अब बीजेपी की नजर मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार पर है.

कर्नाटक में मंगलवार शाम को एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली कांग्रेस-जेडीएस सरकार 14 महीने के अल्प कार्यकाल के बाद गिर गई. पिछले कई दिनों से चली आ रही सियासी उठापटक के बाद मंगलवार को हुए बहुमत परीक्षण में कुमारस्वामी सरकार फ्लोर टेस्ट में पास नहीं कर पाई. कुमारस्वामी सरकार के पक्ष में 99 वोट और बीजेपी के पक्ष में 105 वोट पड़े. इस तरह कुमारस्वामी को सत्ता गवांनी पड़ी.

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14 महीने की कुमारस्वामी सरकार के गिरने के बाद एक बार फिर से बीजेपी के सत्ता में आने का रास्ता साफ हो गया है. कर्नाटक में बीजेपी की सत्ता में वापसी के बाद अब नजर मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार पर है. इस बात की चर्चा बडे जोरों पर है कि बीजेपी ने मध्यप्रदेश में ‘ऑपरेशन लोटस’ के जरिए कुछ बड़ा उलटफेर करने की कवायद शुरू कर दी है.

मध्यप्रदेश के बीजेपी नेताओं ने इस बात का पूरा माहौल बना दिया है कि बीजेपी की नजर मध्य प्रदेश में सत्ता वापसी पर है. मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने अपने आज दिए ताजा बयान में कहा है कि “हमारे ऊपर वाले नम्बर-1 या नम्बर-2 का आदेश हुआ तो 24 घण्टे भी कमलनाथ सरकार नहीं चलेगी” गौरतलब है, बता दें कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद भी गोपाल भार्गव ने राज्यपाल से विधानसभा का सत्र जल्द से जल्द बुलाने की मांग की थी, ताकि मोदी लहर में फ्लोर टेस्ट करवाया जा सके.

मंगलवार को भी नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने कहा कि मध्य प्रदेश में जल्द ही कांग्रेस सरकार अपना पिंडदान करवाएगी. कर्नाटक में कुमारस्वामी की सरकार गिरने के बाद गोपाल भार्गव ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि लंगड़ी सरकारों का यही हाल होता है. साथ ही भार्गव ने कर्नाटक की तुलना मध्य प्रदेश से करते हुए कहा कि मध्य प्रदेश की भी लगभग यही स्थिति है, क्योंकि यहां जो ट्रांसफर उद्योग चल रहा है, किसानों के साथ छल कपट कर उनसे वोट ले लिए गए. मुझे विश्वास है मध्य प्रदेश की सरकार भी अपना पिंडदान करवाएगी.

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कर्नाटक के बाद अब मध्यप्रदेश में बीजेपी की सत्ता वापसी को लेकर सियासी चर्चाओं के बीच पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, ‘हम यहां की सरकार के पतन का कारण नहीं बनेंगे. कांग्रेस के नेता स्वयं अपनी सरकारों के पतन के लिए जिम्मेदार हैं. कांग्रेस में एक आंतरिक संघर्ष है, और बीएसपी-एसपी का समर्थन है, अगर ऐसा कुछ होता है तो हम कुछ नहीं कर सकते.’

बीजेपी नेताओं द्वारा दिये गए बयानों पर कांग्रेसी नेताओं ने पलटवार करते हुए साफ तौर पर कहा कि मध्य प्रदेश में इस सरकार के साथ हॉर्स ट्रेडिंग करने में बीजेपी को सात जन्म लेने पड़ेंगे. मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री और कांग्रेस नेता जीतू पटवारी ने पलटवार करते हुए कहा कि ‘कर्नाटक में जो हुआ वैसा मध्य प्रदेश में नहीं होगा. बीजेपी ने हमारे लिए समस्याएं पैदा करने के लिए सब कुछ किया, मगर यह कमलनाथ की सरकार है, कुमारस्वामी की नहीं. उन्हें मध्य प्रदेश सरकार में हॉर्स ट्रेडिंग करने के लिए सात जन्म लेने होंगे.’

बता दें, कि मध्यप्रदेश की 230 विधानसभा सीटों पर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. सूबे की 230 सीटों में से कांग्रेस के पास 114 सीटें हैं जबकि बीजेपी की 109 सीटें हैं, इनके अलावा बीएसपी और एसपी के एक-एक जबकि 4 निदर्लीय विधायक हैं. हालांकि 114 सीटें जीतकर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत के लिए 116 विधायकों की अवश्यकता होती है. कमलनाथ ने बसपा, सपा और निर्दलीय से सरकार बनाई हुई है. विधानसभा में 4 निर्दलीय विधायक हैं. 2 विधायक बसपा से हैं और एक विधायक समाजवादी पार्टी से है. जाहिर है कि कमलनाथ सरकार के पास बहुमत से दो सीट कम है और वो निर्दलीय और एसपी-बीएसपी विधायकों के सहारे सत्ता में टिकी हुई है. अगर बीजेपी, कांग्रेस के विधायकों को या फिर निर्दलीय और एसपी-बीएसपी विधायकों को तोड़ने में सफल होती है तो फिर कमलनाथ सरकार संकट में आ सकती है.

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पहले गोवा और उसके बाद कर्नाटक में विधायकों को तोड़कर सरकार गिराने या विपक्ष को अल्पमत में लाकर पंगू बनाने के अनुभव से लबरेज बीजेपी के लिए मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार को गिराना मुश्किल भी नहीं है. मध्य प्रदेश के आंकड़ों पर नजर डालें तो बीजेपी विधायकों की संख्या कांग्रेस से बहुत ज्यादा पीछे नहीं है. विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी के पास 109 विधायक थे, लेकिन हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में रतलाम-झाबुआ सीट से सांसद बनने के बाद स्थानीय बीजेपी विधायक ने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया जिसके बाद अब बीजेपी के पास 108 विधायक बचे हैं. ऐसे में अगर कर्नाटक की तर्ज पर मध्य प्रदेश में भी ऑपरेशन लोटस चलता तो कमलनाथ सरकार का गिरना लगभग तय है.

ट्रंप के बयान से सियासत गर्म, दिन भर सफाई देती रही सरकार

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बयान मोदी सरकार के लिए बहुत भारी पड़ रहा है. सोमवार को डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से मिले थे. उन्होंने खान से कहा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दो हफ्ते पहले उनसे कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता की पेशकश की थी. उनके इस बयान के बाद हंगामा मचा हुआ है. प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से बुधवार दोपहर तक कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है. लोकसभा और राज्यसभा में सरकार के मंत्री बयान को गलत ठहरा चुके हैं. उनका दावा है कि कश्मीर के मामले में भारत अपनी नीति पर कायम है.

ट्रंप के बयान के बाद में देश में सवाल उठने लगे हैं कि क्या मोदी ने ट्रंप से बात की थी? अगर अमेरिका के राष्ट्रपति से कोई बात हुई है तो वह क्या थी और ट्रंप ने इमरान खान से ऐसा क्यों कहा? क्या मोदी ने भारत के स्थापित सिद्धांत के विपरीत कोई बात की? इन सवालों को लेकर संसद के दोनों सदनों में हंगामा है. राज्यसभा में कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि हम यह नहीं कह रहे हैं कि हमें डोनाल्ड ट्रंप पर यकीन है, लेकिन प्रधानमंत्री को सदन में आकर अपना पक्ष रखना चाहिए. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दोनों सदनों में कहा कि कश्मीर मुद्दे पर हम अपनी नीति पर कायम हैं. कश्मीर का मुद्दा द्विपक्षीय मुद्दा है और इससे जुड़ी सभी समस्याओं का समाधान भारत और पाकिस्तान मिलकर करेंगे. हम शिमला, लाहौर समझौते के आधार पर आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कभी भी कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से नहीं कहा है.

डोनाल्ड ट्रंप ने इमरान खान से बातचीत की, अखबारों में उसका हिंदी अनुवाद इस प्रकार है- ‘मैं दो हफ्ते पहले प्रधानमंत्री मोदी के साथ था और हमने इस कश्मीर मसले पर बात की थी. मोदी ने कहा, क्या आप मध्यस्थता या मध्यस्थ बनना चाहेंगे? मैंने कहा कहां… तो मोदी ने कहा कि कश्मीर….‘ ट्रंप ने आगे यह भी कहा कि ‘मुझे हैरानी है कि यह मसला काफी लंबे समय से चल रहा है. यदि मैं कोई मदद कर सकता हूं तो मैं मध्यस्थ होना पसंद करूंगा. अगर मैं मदद करने के लिए कुछ कर सकता हूं तो मुझे बताएं.‘

अमेरिकी राष्ट्रपति ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से सार्वजनिक रूप से ऐसा क्यों कहा? अगर नहीं कहा तो अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप झूठ बोल रहे हैं. इस तरह की खबरें बहुत आ रही हैं कि डोनाल्ड ट्रंप बहुत झूठ बोलते हैं. कई बार झूठ बोल चुके हैं. हो सकता है कि यह भी उनका एक झूठ ही हो, लेकिन भारत-पाकिस्तान मामले में ट्रंप को झूठ बोलने की क्या जरूरत है?क्या इमरान खान के साथ कोई मिलीभगत हो रही है? और सबसे बड़ी बात यह है कि मोदी ट्रंप की बात पर तत्काल जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं?

डोनाल्ड ट्रंप का बयान मीडिया में आने के बाद सोमवार आधी रात से ही विदेश मंत्रालय ने सफाई देनी शुरू कर दी थी. मंगलवार का पूरा दिन सरकार ने सफाई देते हुए गुजारा. सरकार ने ट्रंप के बयान को सिरे से खारिज कर दिया है, लेकिन बुधवार दोपहर तक प्रधानमंत्री की तरफ से कोई बयान नहीं आया था. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्विटर पर पोस्ट किया है कि प्रधानमंत्री और ट्रंप के बीच क्या बातचीत हुई, यह देश को बताया जाना चाहिए. अगर ट्रंप की बात सही है तो प्रधानमंत्री ने देश के हितों के साथ विश्वासघात किया है. उन्होंने कहा कि एक कमजोर विदेश मंत्रालय के इनकार करने से काम नहीं चलेगा.

संसद का मौजूदा सत्र 15 दिन बढ़ने के आसार, कांग्रेस का विरोध

केंद्र सरकार ने संसद का मौजूदा सत्र बढ़ाने की तैयारी कर ली है. इस सत्रहवीं लोकसभा का पहला सत्र कुछ दिन और बढ़ने के पूरे आसार बन गए हैं. मंगलवार को हुई भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक में अमित शाह ने संकेत दिया है कि संसद का सत्र कम से कम 15 दिन बढ़ाया जा सकता है. भाजपा सांसदों से इसके लिए तैयार रहने के लिए कहा गया है. कांग्रेस सत्र की अवधि बढ़ाने का विरोध कर रही है और अन्य विपक्षी पार्टियां भी कांग्रेस से सहमत हैं.

संसद का मौजूदा बजट और मानसून सत्र 17 जून से शुरू हुआ था. इसका समापन शुक्रवार 26 जुलाई को होना था. नई लोकसभा का गठन होने के बाद अब तक संसद की स्थायी समितियों का गठन नहीं हो पाया है. सरकार इस परिस्थिति का लाभ उठाते हुए कम से कम 35 विधेयक पारित करा लेना चाहती है. सरकार को आशंका है कि स्थायी समितियों का गठन होने के बाद विधेयकों को पारित कराने में देर लगेगी और विवादास्पद विधेयक पारित होना मुश्किल हो सकता है.

भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी ने कहा कि संसद में 10 कार्यदिवस और बढ़ाने का फैसला किया गया है. सरकार का लक्ष्य इस सत्र में 35 विधेयक पारित कराने का है. इनमें तीन तलाक विधेयक भी शामिल है. सूचना है कि संसद का सत्र 9 अगस्त तक चलेगा. इस तरह संसद का सत्र 15 दिन और बढ़ने की पूरी संभावना है.

सरकार ने सत्र की अवधि कम से कम एक हफ्ता बढ़ाने के संकेत दिए थे, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे दो हफ्ते और बढ़ाने का फैसला कर लिया, जिससे कि सरकार के लंबित विधायी कामकाज निबटाए जा सकें. चालू सत्र में 10 और बैठकें किए जाने का पहला संकेत भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक में मिल गया था, जिसमें अन्य सांसदों के अलावा प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी मौजूद थे.

बैठक के बाद दिल्ली भाजपा अध्यक्ष सांसद मनोज तिवारी ने कहा था कि संसद सत्र में सात से 10 दिन तक की वृद्धि के संकेत हैं. लंबित विधायी कार्य निबटाने के लिए सत्र इससे आगे भी बढ़ाया जा सकता है. प्रहलाद जोशी का कहना है कि सत्र आगे बढ़ना तय है, लेकिन फिलहाल इसकी औपचारिक घोषणा नहीं की गई है. विपक्षी पार्टियों का कहना है कि सत्र को आगे बढ़ाने के लिए सरकार ने उनके साथ कोई विचार विमर्श नहीं किया है.

लोकसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक के सुरेश ने कहा कि उनकी पार्टी संसद सत्र की अवधि बढ़ाने के सख्त खिलाफ है. संसद का सत्र बढ़ाने का कार्य सरकार का विशेषाधिकार नहीं माना जा सकता. नई लोकसभा के पहले सत्र में बजट ओर वित्त विधेयक पारित होने का कार्य संपन्न हो चुका है.

भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक में जल संसाधन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने जल संरक्षण के मुद्दे पर विस्तार से प्रजेंटेशन दिया. इसमें उन्होंने करीब 15 मिनट का समय लिया. इसमें उन्होंने जल संरक्षण, पानी के दुबारा उपयोग, किफायत से उपयोग और पानी बचाने की आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने अलग से जल संसाधन मंत्रालय इसलिए बनाया है, जिससे 2024 तक देश में जल संकट दूर किया जा सके.

बैठक में मोदी ने संबोधित नहीं किया. अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री की भावना के अनुरूप भाजपा सांसदों को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के मौके पर 150 किलोमीटर की पदयात्रा करनी चाहिए और जनता को जल संरक्षण के लिए प्रेरित करना चाहिए. इस मौके पर उन्हें अपने संसदीय क्षेत्र में समारोह का आयोजन करना चाहिए. उन्होंने इस दिशा में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की सूचना पार्टी के कार्यवाहक अध्यक्ष जेपी नड्डा को भेजने के लिए कहा है.

सोनभद्र नरसंहार: अब तक 34 गिरफ्तार, भदोही स्टेशन अधीक्षक निलंबित

सोनभद्र के उम्भा गांव में हुए नरसंहार में अब तक 34 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. साथ ही गिरफ्तार आरोपी भदोही स्टेशन अधीक्षक कोमल सिंह को निलंबित कर दिया है. आरोपी स्टेशन अधीक्षक ग्राम प्रधान का रिश्तेदार है जिसे 18 जुलाई को वाराणसी से गिरफ्तार किया गया था. यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा अपर मुख्य सचिव के नेतृत्व में गठित जांच कमेटी उम्भा गांव पहुंच गई है. इस कमेटी में मुख्य सचिव समेत अन्य अधिकारी भी शामिल हैं.  यह कमेटी जल्द ही अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को सौंपेगी. बता दें, सोनभद्र में 17 जुलाई को दो पक्षों में हुए जमीनी विवाद में एक पक्ष ने ताबड़तोड़ गोलियां चलाई जिसमें 10 लोगों की मौत हुई और कई घायल हुए.

सोनभद्र में राजनीति साधने के लिए कई राजनीतिक दलों का यहां पहुंचना बदस्तूर जारी है. बसपा सुप्रीमो पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के निर्देश पर लालजी वर्मा व प्रदेश अध्यक्ष आरएस कुशवाहा के नेतृत्व में एक डेलीगेट यहां पहुंचा और मृतक परिवार को 50 लाख रुपये और 10 बीघा जमीन व घायलों को 5 बीघा जमीन की सहायता देने का वायदा किया. साथ ही गांव में एक इंटर कॉलेज और एक पुलिस चौकी खोलने की मांग भी की.

वहीं समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल और कुछ अन्य नेताओं ने हत्याकांड के पीड़ितों से मुलाकात की. पार्टी की मांग है कि वारदात में मारे गये लोगों के परिजन को 20-20 लाख रुपए की सहयोग राशि प्रदान की जाए. साथ ही मिर्ज़ापुर और सोनभद्र जिले में सरकारी जमीन पर लम्बे अर्से से काबिज सभी आदिवासियों का उस भूमि पर कब्जा नियमित किया जाए.

इस मामले पर सीएम योगी ने कहा सभी भू-माफियाओं साथ ही इस मामले के आरोपियों पर एनएसए के तहत कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए कहा कि उनकी सरकार इस वारदात की तह तक जाएगी और ‘घड़ियाली आंसू’ बहाने वालों का पर्दाफाश करेगी. याद दिला दें ​कि प्रियंका गांधी पीड़ितों और उनके परिजनों से मिलने के लिए सोनभद्र पहुंच थी लेकिन बीच रास्ते में उन्हें जिला प्रशासन ने रोक हिरासत में लेकर एक गेस्ट हाउस में भेज दिया. बाद में वहीं पर पीड़ित परिवारों से उनकी भेंट करायी गई.

बाबा रामदेव पर क्यों मेहरबान हो रही है फडणवीस सरकार?

हाल में खबर आयी कि महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार योग गुरू रामदेव बाबा को प्रदेश में 400 एकड़ जमीन की पेशकश कर रही है और वो भी आधे दाम पर. करोड़ों रुपये की जमीन बाबा को कोड़ीयों के दाम पर मिलेगी. सिर्फ इतना ही नहीं, स्टांप ड्यूटी की माफी के साथ जीएसटी लाभ और बिजली बिल में एक रुपये प्रति यूनिट की छूट भी उन्हें दी जा रही है.

अब सवाल यह उठता है कि आखिर महाराष्ट्र सरकार को ऐसा कौनसा लाभ बाबा से मिल रहा है या मिलने वाला है जो उनपर इतनी मेहर बरसायी जा रही है. कहीं इसकी वजह आगामी विधानसभा चुनाव तो नहीं …?

महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बाबा रामदेव को लातूर जिले के औसा तालुके में सोयाबीन की एक प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए जमीन देने की बात कही है. यह पूरी जमीन 400 एकड़ में फैली है. पता चला है कि बाबा रामदेव भी सरकार की ओर से पेश की गई इस पेशकश में इच्छुक हैं. लेकिन पर्दे के पीछे की बात ये है कि बाबा को जमीन देने के लिए सरकार न केवल वादाखिलाफी कर रही है, बल्कि सैंकड़ों लोगों से भविष्य में मिलने वाले रोजगार को भी छीन रही है.

दरअसल इस जमीन को 2013 में भारत हैवी इलेक्टिकल्स लिमिटेड (बीएचईएल) की एक फैक्ट्री लगाने के लिए अधिग्रहीत किया गया था. तब सरकार ने यहां के जमीन मालिकों से काफी कम दाम में इस जमीन को खरीदकर उनसे फैक्ट्री में नौकरी दिए जाने का वादा भी किया गया था. अब जबकि इस जमीन को बाबा रामदेव को दिये जाने की पेशकश हो रही है, ऐसे में स्थानीय लोगों ने उनकी यूनिट में नौकरियां पाने को लेकर संदेह जाहिर किया है.

एक खास बात और भी है. पता चला है कि जमीन अधिग्रहण के बदले जमीन मालिकों को 3.5 लाख रुपये प्रति एकड़ की दर से भुगतान हुआ था. अब इस जमीन के पास से गुजरता एक हाईवे प्रस्तावित किया गया है, उसके बाद से इन जमीनों का भाव 45 लाख रुपये प्रति एकड़ पर पहुंच गया है.

महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना की पर्दे के पीछे की छुपी अदावत तो किसी से छुपी नहीं है. लंबे समय से यह अफवाह भी उड़ रही है कि आगामी विधानसभा चुनाव में अगर शिवसेना-बीजेपी गठबंधन जीतता है तो ढाई-ढाई साल की सत्ता दोनों पार्टियों के पास रहेगी.

खबरें ये भी आ रही हैं कि शिवसेना चीफ उद्दव ठाकरे अपने बेटे आदित्य ठाकरे के लिए सीएम की जमीन तैयार करने में जुटे हुए हैं. अगर यह खबर सच है तो शिवसेना और बीजेपी एक साथ नहीं बल्कि पिछले विधानसभा चुनाव की तरह अलग-अलग मैदान में उतरेंगे.

हालांकि देश में मोदी लहर है जिसकी प्रचंड आंधी लोकसभा चुनाव में देखी जा चुकी है. लेकिन यह प्रदेश स्तरीय चुनाव है, ऐसे में हो सकता है कि देवेन्द्र फडनवीस सेफ गेम खेलना चाह रहे हों. वैसे बाबा रामदेव को सस्ती जमीन देकर उनके अनुयायियों को बीजेपी के पक्ष में बुलाने का यह नया तरीका फडणवीस के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है.

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