Wednesday, January 22, 2025
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कुछ ऐसा था भारत माता के वीर सपूत चंद्रशेखर के ‘आजाद’ बनने का सफर

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देश के महानतम क्रां​तिकारी चंद्रशेखर आजाद की आज 113वीं जयंती है. देश की आजादी चंद्रशेखर आजाद जैसे हजारों क्रांतिकारियों का सपना था जिसे आज हम जीवंत देख रहे हैं. चंद्रशेखर आजाद देश के उन महान क्रांतिकारियों में से एक हैं जिनके नाम से अंग्रेज भी थरराया करते थे. वह एक निर्भीक क्रांतिकारी थे जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया. न सिर्फ बलिदान दिया बल्कि सैंकड़ों युवाओं के बीच आजादी की अलख जगा गए. भारत माता के वीर सपूत चंद्रशेखर आजाद को उनकी जयंती पर नमन.

चंद्रशेखर आजाद का पूरा नाम चंद्रशेखर सीताराम तिवारी है जिनका जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के भाबरा गांव में हुआ. जहां आजाद का जन्म हुआ उस जगह को अब आजादनगर नाम से जाना जाता है. बचपन में आजाद चंद्रशेखर ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाये और इस प्रकार उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली. 1919 में हुए अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार ने देश के नवयुवकों को उद्वेलित कर दिया. चन्द्रशेखर उस समय पढाई कर रहे थे. बचपन से ही बेखौफ अंदाज के लिए जाने जाने वाले चंद्रशेखर सिर्फ 14 साल की आयु में 1921 में गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए और सडकों पर उतर आये.

अपने विद्यालय के छात्रों के जत्थे के साथ इस आंदोलन में भाग लेने पर वे पहली बार गिरफ़्तार हुए और अपनी पहली सजा में आजाद को 15 कोड़े पड़े. उन्होंने हर कोड़े पर वंदे मातरम के साथ महात्मा गांधी की जय के नारे लगाए. इसके बाद से ही उन्हें सार्वजनिक रूप से ‘आजाद’ पुकारा जाने लगा. इस घटना का उल्लेख देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने कायदा तोड़ने वाले एक छोटे से लड़के की कहानी के रूप में किया है —

ऐसे ही कायदे (कानून) तोड़ने के लिये एक छोटे से लड़के को, जिसकी उम्र 15 या 16 साल की थी और जो अपने को आज़ाद कहता था. बेंत की सजा दी गयी. वह नंगा किया गया और बेंत की टिकटी से बाँध दिया गया. जैसे-जैसे बेंत उस पर पड़ते थे और उसकी चमड़ी उधेड़ डालते थे, वह ‘भारत माता की जय’ चिल्लाता. हर बेंत के साथ वह लड़का तब तक यही नारा लगाता रहा, जब तक वह बेहोश न हो गया. बाद में वही लड़का उत्तर भारत के क्रान्तिकारी कार्यों के दल का एक बड़ा नेता बना. – पं.जवाहरलाल नेहरू

गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन को अचानक बंद कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गए.

चंद्रशेखर आजाद ने एक निर्धारित समय के लिए झांसी को अपना गढ़ बना लिया. झांसी से पंद्रह किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों में वह अपने साथियों के साथ निशानेबाजी किया करते थे. अचूक निशानेबाज होने के कारण चंद्रशेखर आजाद दूसरे क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के छ्द्म नाम से बच्चों के अध्यापन का कार्य भी करते थे. वह धिमारपुर गांव में अपने इसी छद्म नाम से स्थानीय लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए.

चंद्रशेखर आजाद ने रामप्रसाद बिस्मिल और अन्य साथियों के साथ जब हथियार खरीदने के लिए ऐतिहासिक काकोरी ट्रेन डकैती को अंजाम दिया तो इस घटना ने ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया. लाला लाजपत राय की मौत का बदला आजाद ने ही लिया. उन्होंने लाहौर में अंग्रेजी पुलिस अधिकारी सॉन्डर्स को गोली से उड़ा दिया था. इस कांड से अंग्रेजी सरकार सकते में आ गई. आजाद यही नहीं रुके. उन्होंने लाहौर की दिवारों पर खुलेआम परचे भी चिपका जिनपर लिखा था ‘लालाजी की मौत का बदला ले लिया गया है.’

27 फरवरी, 1931 को अंग्रेजी पुलिस ने इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में ‘आजाद’ को चारों तरफ से घेर लिया. अंग्रेजों की कई टीमें पार्क में आ गई. आजाद ने 20 मिनट तक पुलिस वालों से अकेले ही लौहा लिया. जब उनके पास बस एक गोली बची तो उन्होंने उसे खुद को मार ली. उनके चेहरे का तेज इतना तेज था कि मरने के बाद भी अंग्रेजों की उनके पास जाने तक की हिम्मत नहीं हुई. जिस पार्क में चंद्रशेखर आजाद हमेशा के लिए आजाद हुए, आज उस पार्क को चंद्रशेखर आजाद पार्क के नाम से जाना जाता है.

आजाद ने कहा था कि वह आजाद हैं और आजाद ही रहेंगे. उन्हें अंग्रेजी सरकार जिंदा रहते कभी पकड़ नहीं सकती और न ही गोली मार सकती है. अपनी जिंदगी के आखिरी क्षणों में भी वे अपनी बात पर कायम रहे. भारत माता के वीर सपूत को उनकी जयंती पर क्षत क्षत नमन.

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