पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान ईवीएम में डाले गए वोटों का उससे निकलने वाली कागज की पर्ची से मिलान करने पर अलग नतीजे सामने आने के आठ मामले सामने आए हैं. ईवीएम-वीवीपीएटी का मिलान करने की सुविधा देशभर में 20,687 मतदान केंद्रों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उपलब्ध कराई गई थी. चुनाव आयोग के मुताबिक जो आठ मामले सामने आए हैं, वह कुल मतदान का 0.0004 फीसदी है, इसलिए इसका कुल चुनाव नतीजों पर प्रभाव नहीं माना जा सकता. यह मानवीय भूल हो सकती है.
ईवीएम-वीवीपीएटी मिसमैच होने के जो आठ मामले सामने आए हैं, वे राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय और आंध्र प्रदेश के हैं. ज्यादातर मामलों एक-दो वोटों का अंतर का आया है. सिर्फ एक मामले में 34 वोट ईवीएम और वीवीपीएटी में अलग पाए गए हैं. यह चुनाव प्रक्रिया में लगे कर्मचारियों की गलती हो सकती है. सभी आठ मामलों में कुल 50 वोटों में अंतर देखा गया है. इसे अंतिम परिणाम में प्रभावी नहीं माना जा सकता.
बहरहाल ईवीएम-वीवीपीएटी मिसमैच होने का यह पहला मामला है. 2019 से पहले के चुनावों में ईवीएम-वीवीपीएटी का मिलान करीब 1500 मामलों में किया गया था, जिनमें से एक भी मामले में गड़बड़ी नहीं देखी गई थी. मौजूदा आठ मामलों का विश्लेषण जिला चुनाव अधिकारी और मुख्य चुनाव अधिकारी के स्तर पर किया जाएगा. चुनाव आयोग की तकनीकी विशेषज्ञ समिति भी इन मामलों की जांच करेगी.
तकनीकी विशेषज्ञ समिति के सदस्य रजत मूना ने कहा कि ईवीएम-वीवीपीएटी का मिलान करने की प्रक्रिया संतोषजनक रही है. मतगणना के परिणामों को यह मिसमैच प्रभावित नहीं करता है. जो गड़बड़ी सामने आई है, उसका स्पष्टीकरण दिया जा सकता है. हम कह सकते हैं लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया पूरी तरह संतोषजनक रही है.