ये कैसा बदला? चुनाव में हुई हार तो पूर्व प्रधान ने गांव की सड़क को JCB से उखड़वाकर किया तहश-नहश

चुनाव हारने के बाद पूर्व प्रधान ने ग्रामीणों के लिए बनवाई गई सड़क को जेसीबी से खुदवा डाला, इसी प्रधान ने अपने कार्यकाल में गांव वालों के लिए यह सड़क बनवाई थी, सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि ऐसे हमारे नेताओं की सोच क्यों हो जाती है कि उन लोगों ने हमें वोट नहीं दिया हम उनके काम नहीं करेंगे

चुनाव में हुई हार तो पूर्व प्रधान ने इस तरह लिया बदला
चुनाव में हुई हार तो पूर्व प्रधान ने इस तरह लिया बदला

Politalks.News/UttarPradesh. चुनाव में हार-जीत लगी रहती है. लेकिन कुछ प्रत्याशी ऐसे भी होते हैं जो अपनी हार ‘बर्दाश्त‘ नहीं कर पाते हैं. उसके बाद ऐसी हरकत कर डालते हैं जिसे सुनने में भी शर्म आती है. चुनाव लड़ने से पहले इन प्रत्याशियों को एक ‘आदर्श राजनीति‘ का पाठ पढ़ाया जाए तो अच्छा रहेगा. उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव में जीत दर्ज करने वाले लोग तो जश्न मनाने में लगे हैं जबकि हारे प्रत्याशी अपनी ‘खीझ‘ मिटा रहे हैं, जिसके चलते कई जगहों पर हिंसा की भी घटनाएं हुई हैं. इसके साथ पराजित प्रत्याशी जनता पर अपनी हार का गुस्सा निकालने के लिए तरह-तरह के ‘हथकंडे‘ अपना रहे हैं. उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में खड़े हुए एक उम्मीदवार ऐसे भी हैं जो हारने के बाद किए गए अपने ‘अनैतिक कार्य‘ से पूरे प्रदेश में चर्चा में आ गए हैं. इसके लिए अब आपको यूपी के बाराबंकी लिए चलते हैं.

बता दें कि प्रदेश की राजधानी लखनऊ से बाराबंकी की दूरी करीब 35 किलोमीटर है. समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा का जन्म बाराबंकी में ही हुआ था. पूरा घटनाक्रम जनपद के सुबेहा थाना क्षेत्र के अहिरन सरैयां गांव का है. पंचायत चुनाव में हार का सामना करने पर पूर्व प्रधान ने अपना गुस्सा सड़क खुदवा कर निकाला है. ये सड़क इसी पूर्व प्रधान ने अपने कार्यकाल में ग्रामवासियों के लिए बनवाई थी, लेकिन चुनाव परिणाम आने पर उसे हार ‘बर्दाश्त‘ नहीं हुई और उसने अपने समर्थकों के साथ मिल कर जेसीबी से पूरी सड़क ही खुदवा डाली. ग्रामीणों ने बताया कि इस बार के पंचायत प्रधान के चुनाव में दीपक तिवारी तीसरे नंबर पर आया. चुनाव में साइना गांव के निवासी रामबाबू शुक्ला यहां से प्रधान विजयी हुए हैं, लेकिन हार से गुस्साए दीपक तिवारी ने अपने समर्थकों के साथ मिलकर आठ साल पहले बनाई सड़क पर जेसीबी चलवाकर तहस-नहस कर डाला. इस दौरान गांव के लोग पूर्व प्रधान की इस हरकत को चुपचाप खड़े देखते रहे.

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जिस गांव में कम वोट मिले थे तिवारी ने वहीं निकाला अपना गुस्सा
बता दें कि प्रधान पद के प्रत्याशी दीपक तिवारी को सबसे कम मत अहिरन सरैया गांव से मिले. इसको लेकर वे आग बबूला हो गए और इस गांव की सड़क का नामोनिशान मिटा कर रख दिया. बता दें कि इन्होंने ही अपने कार्यकाल में गांव वालों के लिए यह सड़क बनवाई थी. हालांकि पूर्व प्रधान इस हरकत को देख कर बाद में आसपास के ग्रामीणों में आक्रोश फैल गया. सड़क खोदे जाने पर ग्रामीणों ने जिले के अफसरों से इसकी शिकायत कर दी. फिलहाल अधिकारियों ने ग्रामीणों को मामले की जांच कराने का भरोसा दिया है.

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लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि ऐसे हमारे नेताओं की सोच क्यों हो जाती है कि उन लोगों ने हमें वोट नहीं दिया हम उनके काम नहीं करेंगे. ऐसे ही अधिकांश केंद्र और राज्य सरकारों के बीच में भी देखा जाता है. पूरे देश में कांग्रेस की राज्य सरकारें भाजपा की केंद्र सरकार पर आए दिन विकास योजनाओं को लेकर सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाती रहती हैं. इन दिनों कोरोना महामारी को लेकर भी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और छत्तीसगढ़ के भूपेश बघेल मोदी सरकार पर वैक्सीन, ऑक्सीजन और अन्य संसाधनों के न देने को लेकर आरोप लगा रही हैं. ऐसे ही देखा जाता है किसी प्रदेश में अगर दूसरे दल की सरकार है और ऑफिसों में विपक्षी पार्टियों के नेता और जनता काम कराने जाती है तो उनका काम भी सरकारी महकमा आसानी से नहीं करते हैं. सही मायने में यह जनप्रतिनिधि जीतने के बाद जहां-जहां जनता ने उन्हें वोट दिया है उस स्थान और एरिया को तलाशने में लगे रहते हैं. जबकि इन माननीयों को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर जनता की सेवा भाव करने के लिए आगे आना चाहिए.

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