पाॅलिटाॅक्स ब्यूरो. दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों के लिए 8 फरवरी को चुनाव होने जा रहे हैं, 11 फरवरी को नतीजे आएंगे और 15 फरवरी तक होगा सरकार नई सरकार का गठन. तेज हुई चुनावी हलचल के बीच दिल्ली के अब तक मुख्यमंत्रियों से जुडे दो नाम ऐसे हैं, उनके बिना चुनावी चर्चा की रंगत फीकी सी नजर आती है. यह नाम हैं, भाजपा से सुषमा स्वराज और कांग्रेस से शीला दीक्षित. हालांकि आज ये दोनों ही दिग्गज नेत्रियां हमारे बीच नहीं हैं लेकिन जब-जब दिल्ली की राजनीति की बात होगी शायद शुरुआत इन दोनों नामों से ही होगी.
दोनों महिला नेत्रियां अपनी-अपनी पार्टी में एक कदृदावर नेता के रूप में पहचान बनाने में कामयाब रहीं. सुषमा स्वराज भले ही 52 दिनों की मुख्यमंत्री रहीं हो लेकिन दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री होने का गौरव उन्होनें हासिल किया. वहीं शीला दीक्षित ने दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में रिकार्ड 15 साल काम किया, लगातार 15 साल तक जनता के दिलों पर अपना राज कायम रखना बिना ऐतिहासिक कामों के तो मुमकिन हो नहीं सकता.
देश की राजधानी दिल्ली में अब तक रहे हैं 7 मुख्यमंत्री
- दिल्ली विधानसभा चुनाव का सफर 1952 से शुरू हुआ. दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री के रूप मे कांग्रेस नेता चौधरी ब्रहम प्रकाश ने 17 मार्च 1952 को शपथ ली थी, उनका कार्यकाल 2 साल 332 दिन का रहा. कांग्रेस से बढ़ती दूरियों के चलते ब्रहम प्रकाश ने जनसंघ का दामन थाम लिया था.
- इसके बाद 12 फरवरी 1955 को कांग्रेस के ही गुरूमुख निहाल ने दिल्ली के दूसरे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. लेकिन वो दो साल का कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाए और दरियागंज विधायक गुरुमुख निहाल 1 वर्ष 263 दिन तक मुख्यमंत्री रहे. 1956 में दिल्ली विधानसभा को भंग कर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया और उसके बाद 36 सालों तक दिल्ली की जनता विधानसभा चुनाव से वंचित रही.
- 36 साल बाद संविधान में कुछ संशोधन के बाद साल 1993 में दिल्ली के तीसरे विधानसभा चुनाव हुए. 2 दिसंबर 1993 में पहली बार दिल्ली की सत्ता पर भाजपा कायम हुई. मोतीनगर से विधायक बने मदनलाल खुराना ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. लेकिन खुराना के कार्यकाल के 2 साल 66 दिन ही बीते थे कि राजनीतिक घटनाक्रम के चलते शालीमार बाद से बीजेपी विधायक साहिबसिंह वर्मा 26 फरवरी 1996 को दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए. लेकिन साहिबसिंह वर्मा का कार्यकाल भी 2 साल 288 दिन का रहा. इसके बाद दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में सुषमा स्वराज का पर्दापण हुआ. 12 अक्टूबर 1998 से 3 दिसम्बर 1998 तक सुषमा स्वराज केवल 52 दिनों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं.
- इसके बाद 3 दिसम्बर 1998 को राष्ट्रीय कांग्रेस से शिला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं. मूलतः उत्तरप्रदेश की राजनीति से उभरीं शिला दीक्षित ने लगातार 15 साल 25 दिनों तक सूबे की मुखिया के रूप में दिल्ली की जनता के दिलों पर राज किया.
- इसके बाद 28 दिसम्बर 2013 को दिल्ली की राजनीति में सबको चौंकाते हुए नौसिखिया समझी जा रही आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने. लेकिन सिर्फ 49 दिन बाद ही दोनों पार्टियों में पड़ी फूट के बाद 14 फरवरी 2014 को केजरीवाल सरकार गिर गई और एक बार फिर से दिल्ली में राष्ट्रपति शासन कायम हो गया. जो कि पूरे एक साल यानि 13 फरवरी 2015 तक लागू रहा.
- ठीक एक साल बाद यानि 14 फरवरी 2015 को पूर्ण ऐतिहासिक बहुमत के साथ अरविंद केजरीवाल ने वापसी की और शिला दीक्षित के बाद दूसरे दिल्ली के पूर्णकालिक मुख्यमंत्री बने.
लेकिन दिल्ली के बाहर से आकर दिल्ली की राजनीति में जो अमिट छाप महिला नेत्रियों के रूप में दिवंगत सुषमा स्वराज और शिला दीक्षित ने छोड़ी है वो आज के युवा राजनीतिज्ञों के लिए प्रेरणादायक है. सुषमा स्वराज ने भारतीय राजनीति में महिला शख्सियत की ऐसी तस्वीर पेश की जो बेमिसाल है. प्रखर वक्ता से विदेशमंत्री तक का शानदार सफर तय किया सुषमा स्वराज ने. सुषमा स्वराज ने केवल 25 साल की उम्र में हरियाणा की अंबाला सीट से पहला चुनाव लड़ा था और वो सबसे कम उम्र में विधायक बनीं. इसके साथ ही वो देवीलाल सरकार में मंत्री भी बनीं. सुषमा स्वराज 1998 में 52 दिनों के लिए दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. सुषमा स्वराज के बाद दिल्ली की राजनीति में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता शीला दीक्षित ने कदम रखा.
शानदार रहा शीला दीक्षित का राजनीतिक सफर
शीला दीक्षित साल 1984 से 1989 तक उत्तर प्रदेश के कन्नौज से लोकसभा सदस्य रहीं. उन्होंने 1986 से 1989 के दौरान केंद्रीय मंत्री के रूप में काम किया और दो विभागों राज्यमंत्री पीएमओ और राज्यमंत्री संसदीय कार्य मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली थी. शीला दीक्षित वर्ष 1998 में दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं और 15 साल तक दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करने के बाद वर्ष 2014 में उन्हें केरल का राज्यपाल भी नियुक्त किया गया था.
दिल्ली की राजनीति की इन दोनों महान नेत्रियों का संयोगवश 2019 में बिमारी के चलते निधन हो गया.