बिहार की राजनीति में एक नया विवाद तब खड़ा हो गया जब हाल ही में लाए गए पीएम-सीएम को जेल भेजने वाले बिल पर कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गए. विपक्ष को घेरने के इरादे से बनाए गए इस बिल ने महागठबंधन के भीतर ही दरार पैदा कर दी है. बिहार विधानसभा चुनाव से ऐन वक्त पहले हुआ ये ‘खेला’ अब महागठबंधन के बीच भी खेल होते दिख रहा है. यही कारण है कि दोनों दलों की बैठकें लगातार विवादास्पद माहौल में हो रही हैं.
दरअसल, नए बिल में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को 30 दिन तक जेल में रहने पर खुद-ब-खुद अयोग्य ठहराने का प्रावधान है. अब तक यह मसौदा केवल सांसदों और विधायकों पर लागू होता था, लेकिन सरकार ने इसे सत्ता के उच्च पदों तक बढ़ाने की कोशिश की है. इस विधेयक की जांच के लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को लेकर विपक्ष दो धड़ों में बंट गया है. केंद्रीय संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू ने दावा किया है कि कांग्रेस ने जल्द ही JPC के लिए नाम भेजने का आश्वासन दिया है जबकि एनसीपी-एसपी सांसद सुप्रिया सुले ने भी समिति में शामिल होने की पुष्टि की है. वहीं राजद समेत कई विपक्षी दलों ने इसे ‘बेकार की कवायद’ बताते हुए बहिष्कार का ऐलान किया है. यही विरोधाभास अब सीधे बिहार चुनाव की राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है.
ठकराव की परिस्थितियां बनना तय
इससे पहले तक कांग्रेस का कहना है कि इस तरह का कानून लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है और इससे राजनीतिक द्वेष की स्थिति बन सकती है. पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल ने भी कहा था कि सरकार संसदीय समितियों का इस्तेमाल बिलों को आगे बढ़ाने के लिए कर रही है, इसलिए कांग्रेस भी बहिष्कार पर विचार कर रही है. जबसे संकेत मिल रहे हैं कि कांग्रेस विपक्षी खेमे से अलग जाकर JPC का हिस्सा बनने की तैयारी कर रही है, ठकराव की परिस्थितियां बनना तय है.
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दूसरी ओर, राजद का मानना है कि कांग्रेस का यह कदम विपक्षी एकजुटता को नुकसान पहुंचाएगा. खासकर उस समय जब बिहार चुनाव सिर पर हैं और विपक्ष INDIA गठबंधन की छवि को बचाने की कोशिश कर रहा है.
राष्ट्रीय राजनीति में वापसी की जुगत
बिहार में कांग्रेस और राजद लंबे समय से साझेदार हैं, लेकिन इस मुद्दे पर कांग्रेस का अलग रुख लेना भविष्य की राजनीति का इशारा माना जा रहा है. जानकार मानते हैं कि कांग्रेस JPC में शामिल होकर खुद को ‘जिम्मेदार विपक्ष’ की छवि देना चाहती है, ताकि आगामी चुनाव में वह अपना स्वतंत्र राजनीतिक वजन दिखा सके. उधर एनसीपी पहले ही समिति में शामिल होने की हामी भर चुकी है. इससे गठबंधन की एकता पर सवाल उठने तय हैं.
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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मुद्दा आने वाले दिनों में महागठबंधन के लिए सिरदर्द बन सकता है. बिहार चुनाव से पहले यह मुद्दा विपक्षी खेमे में नई दरार डाल सकता है. राजद को भर है कि कांग्रेस के इस कदम से विपक्षी एकजुटता की धार कमजोर होगी. वहीं कांग्रेस इसे राष्ट्रीय राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाने का मौका मान रही है.
अब देखना होगा कि क्या यह विवाद महज बयानबाजी तक सीमित रहता है या फिर कांग्रेस-राजद की दोस्ती वाकई में बड़ी तकरार में बदल जाती है.



























