उत्तर प्रदेश की सियासत में आज़म खां हमेशा से एक प्रभावशाली और विवादित किरदार रहे हैं. रामपुर से लेकर लखनऊ तक उनकी गूंज राजनीति के हर गलियारे में सुनाई देती रही है. अब जब लंबे समय तक जेल में रहने के बाद 23 महीने बाद उनकी रिहाई हुई है, तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि इसका असर प्रदेश की राजनीति और खासकर समाजवादी पार्टी (सपा) पर किस रूप में दिखाई देगा. अपने चिरपरिचित अंदाज में आजम ने ‘किसी से नाराजगी थोड़े ही है..’ बयान देकर भी यूपी के सियासी माहौल को गर्मा दिया है. अब उनके सपा के अलावा भी अन्य के साथ राजनीतिक सफर के कयास लगाए जा रहे हैं.
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सपा और आजम खां के रिश्ते
आज़म खां समाजवादी पार्टी के संस्थापक नेताओं में गिने जाते हैं. मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे और पार्टी को मुस्लिम समाज में मजबूती दिलाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उनका सपा नेतृत्व, खासकर अखिलेश यादव से दूरी और नाराजगी भी जगजाहिर रही. जेल के दिनों में उन्हें उपेक्षित महसूस हुआ और यह असंतोष अब उनके आगे के कदमों को दिशा देगा.
मुस्लिम राजनीति पर असर
रामपुर और पश्चिमी यूपी में मुस्लिम वोटरों पर आज़म खां का असर निर्विवाद है. उनकी रिहाई के बाद यह वोट बैंक किस ओर झुकेगा, यह बड़ा सवाल है. अगर वे सपा के साथ रहते हैं तो मुस्लिम वोटों में एकजुटता बनी रहेगी. लेकिन यदि उन्होंने अलग रास्ता चुना या नाराजगी गहराई, तो मुस्लिम वोटों में बिखराव तय है, जिसका अप्रत्यक्ष लाभ बीजेपी को मिल सकता है.
नए राजनीतिक विकल्प
आज़म खां के सामने तीन विकल्प हैं :
- सपा के साथ बने रहना: सम्मानजनक भूमिका और राजनीतिक हिस्सेदारी मिलने पर वे सपा का हिस्सा बने रह सकते हैं.
- अलग मोर्चा या दल: अपनी सियासी ताकत के बूते नई पार्टी बनाना, हालांकि यह जोखिम भरा कदम होगा.
- अन्य दलों से नजदीकी: कांग्रेस या छोटे क्षेत्रीय दल उन्हें अपने साथ लाने की कोशिश कर सकते हैं.
- सहानुभूति और छवि
लंबी कैद ने उनके समर्थकों के बीच सहानुभूति की लहर पैदा की है. वे इस छवि को राजनीतिक हथियार बनाकर फिर से अपनी पकड़ मजबूत कर सकते हैं. “राजनीतिक प्रतिशोध” का नैरेटिव उनके लिए नई ऊर्जा पैदा कर सकता है.
यूपी की सियासत में हलचल तय
आज़म खां की रिहाई यूपी की सियासत में हलचल मचाने वाली है. उनका अगला कदम यह तय करेगा कि क्या वे समाजवादी पार्टी की राजनीति में फिर से केंद्रीय भूमिका निभाएंगे या अपना अलग रास्ता चुनेंगे. इतना तय है कि चाहे वे सपा के साथ रहें या दूर हों, उनकी मौजूदगी प्रदेश की राजनीति में चर्चा और समीकरण दोनों को बदलने की ताकत रखती है.



























