लोकसभा चुनाव के रण में ज्यादा से ज्यादा सीट जीतने के लिए बीजेपी और कांग्रेस ने पूरा जोर लगा रखा है. राजस्थान में दोनों ही पार्टियां ‘मिशन-25’ के साथ मैदान में हैं. इसे हासिल करने के लिए दिग्गज नेता जमकर पसीना बहा रहे हैं. वैसे तो दोनों पार्टियों की सभी सीटों पर नजर है, लेकिन जोधपुर सीट पर फोकस सबसे ज्यादा है. जोधपुर से बीजेपी ने मोदी सरकार के मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को टिकट दिया है जबकि कांग्रेस ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को मौका दिया है.
अब तक के चुनाव प्रचार में यह माना जा रहा था कि यह सीट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से बदले घटनाक्रम के बाद अब ऐसा लगने लगा है कि बीजेपी नेतृत्व ने भी जोधपुर की सीट को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बीजेपी प्रत्याशी गजेंद्र सिंह शेखावत के समर्थन में जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 अप्रैल को आम सभा को संबोधित करने वाले हैं. शहर के रावण चबूतरा मैदान में आयोजित होने वाली इस आम सभा को सफल बनाने के लिए कार्यकर्ताओं को अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं और बीजेपी ने इस आम सभा में एक लाख से अधिक लोगों को इस आमसभा में लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है.
वहीं अब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जोधपुर में 26 अप्रैल को रोड शो करेंगे. यह पहली बार होगा जब एक ही चुनाव में एक ही सीट पर बीजेपी पार्टी के दोनों शीर्षस्थ नेता प्रत्याशी के समर्थन में प्रचार करने के लिए आएंगे. याद दिला दें कि पॉलीटॉक्स ने पहले भी अपने खबरों में इस बात का जिक्र किया है कि केंद्रीय मंत्री होने के बाद जहां गजेंद्र सिंह को अन्य सीटों पर जाकर चुनावी प्रचार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठानी थी, वहीं अब केंद्रीय नेतृत्व को खुद उनकी सीट बचाने के लिए मैदान में उतरना पड़ रहा है.
जोधपुर की यह लोकसभा सीट कांग्रेस के लिए तो प्रतिष्ठा का सवाल है क्योंकि यहां से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत चुनाव लड़ रहे हैं. गहलोत न केवल प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं बल्कि देश की राजनीति में भी उनका काफी बड़ा नाम है. ऐसा माना जाता है कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में राहुल गांधी के बाद दूसरा सबसे बड़ा नाम अशोक गहलोत का है. ऐसे में अशोक गहलोत के गृह क्षेत्र में वैभव गहलोत की हार और जीत उनके लिए कई मायनों में अहम होगी.
वहीं बीजेपी ने भी अब इस सीट को प्रतिष्ठा का सवाल बनाया है. इस सीट को जीतकर बीजेपी एक तीर से दो निशाने साधने का प्रयास कर रही है. यदि बीजेपी प्रत्याशी गजेंद्र सिंह शेखावत यहां से विजयी होते हैं तो उनका कद निश्चित रूप से राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ेगा. साथ ही पूरे देश में यह संदेश देने का प्रयास किया जाएगा कि बीजेपी ने कांग्रेस के मुख्यमंत्री के गृह जिले में जाकर सियासी स्ट्राइक की है.
चुनावी माहौल को पूरी तरह से अपने पक्ष में करने के लिए अब बीजेपी नई रणनीति पर विचार कर रही है. 22 अप्रैल को नरेंद्र मोदी की सभा से कार्यकर्ताओं में जोश का संचार करने का प्रयास होगा तो वहीं चुनाव से महज 2 दिन पहले अमित शाह का जोधपुर का दौरा कई मायनों में अहम माना जा रहा है. अमित शाह संगठन मैनजमेंट के गुरु माने जाते हैं. राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद जिस तरह से उन्होंने बूथ मैनेजमेंट का सिस्टम पार्टी में लागू किया, उसी का परिणाम है कि आज पार्टी लगातार अपना दायरा बढ़ा रही है.
अमित शाह जब जोधपुर आएंगे तो रोड शो के साथ ही वह यहां के संगठन के कार्यकर्ताओं में भी जान फूंकने का प्रयास करेंगे. अमित शाह का पूरा प्रयास होगा कि माइक्रो लेवल पर जाकर बूथ मैनेजमेंट किया जाए और कार्यकर्ताओं में यह भावना जागृत की जाए की बूथ जीता तो चुनाव जीता. यदि बीजेपी अपनी इस रणनीति में सफल होती हैं तो पार्टी के लिए यहां से उत्साहजनक परिणाम सामने आ सकते हैं.
नागौर के बारे में कहा जाता है कि जिस पर ना करें कोई गौर, वो है नागौर, लेकिन राजस्थान की इस सीट पर इन दिनों सबकी नजर है. कांग्रेस ने यहां से ज्योति मिर्धा को मैदान में उतारा है जबकि बीजेपी ने गठबंधन के तहत यह सीट राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी यानी आरएलपी को दी है. आरएलपी के मुखिया हनुमान बेनीवाल खुद नागौर से ताल ठोक रहे हैं.
आपको बता दें कि हनुमान ने पहले कांग्रेस से हाथ मिलाने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी तो बीजेपी से राष्ट्रवादी इश्क हो गया. बेनीवाल इधर बीजेपी के साथ हुए और उधर चुनाव आयोग ने आरएलपी से बोतल चुनाव चिन्ह छीन लिया. आयोग ने आरएलपी को चार टायरों की जोड़ी का चुनाव चिन्ह आवंटित किया है. बेनीवाल इन टायरों पर सवार होकर दिल्ली पहुंचने का दावा कर रहे हैं.
बाबा यानी नाथूराम मिर्धा की पोती ज्योति मिर्धा और हनुमान बेनीवाल के बीच अदावत पुरानी है. ज्योति मिर्धा लगातार तीसरी बार यहां से चुनाव लड़ रही हैं जबकि बेनीवाल दूसरी बार मैदान में हैं. दोनों के बीच आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गए हैं. ज्योति ने हनुमान को कलयुगी भाई और बहरूपिया तक करार दे दिया है जबकि बेनीवाल कह रहे है कि ज्योति पर्यटक प्रत्याशी हैं और वे हार क डर से मानसिक संतुलन खो चुकी हैं.
काबिलेगौर है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बेनीवाल ने निर्दलीय लड़ते हुए डेढ लाख से ज्यादा वोट लेते हुए ज्योति को हराने में अहम भूमिका निभाई थी, लेकिन इस बार बीजेपी और आरएलपी का गठबंधन ज्योति को फायदा पहुंचाता हुआ दिख रहा है. इलाके की राजनीति के जानकार यह मानते हैं कि बेनीवाल के चुनाव लड़ने से गैर जाट जातियां, खासतौर पर राजपूत ज्योति मिर्धा की ओर रुख कर सकते हैं.
ऐसे में नागौर का चौधरी कौन होगा, इसका फैसला जाट मतदाता करेंगे. अब देखना रोचक होगा कि जाट हनुमान बेनीवाल के साथ जाते हैं या फिर ज्योति मिर्धा के साथ. फिलहाल दोनों के बीच मुकाबला बराबरी का है. विश्लेषकों के अनुसार नागौर सीट पर मुकाबला कांटे का है. जीत-हार का अंतर 25 से 50 हजार तक रहने की संभावना है.
हनुमान बेनीवाल और ज्योति मिर्धा ने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक रखी है. दोनों को भीतरघात का सामना करना पड़ रहा है. ज्योति को महेंद्र चौधरी, चेतन डूडी और रिछपाल मिर्धा की नाराजगी भारी पड़ सकती है तो हनुमान को सीआर चौधरी, यूनुस खान और गजेंद्र सिंह खींवसर से खतरा है.
नागौर में सीएम अशोक गहलोत के नामांकन सभा में बेनीवाल को लेकर दिए गए बयान की खूब चर्चा हो रही है. गहलोत ने कहा था कि मैंने हनुमान को खूब समझाया पर वो कहां मानने वाला था. हमारे साथ आता तो मंत्री भी बन सकते थे, लेकिन अब उन्हें जीवनभर पछताना होगा.’ ज्योति मिर्धा के लिए ससुराल पक्ष हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा और रोहतक सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने पूरा जोर लगा रखा है.
पूरे नागौर में चर्चा टक्कर होने की हो रही है. हालांकि दोनों के समर्थक अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं. ऐसे में परिणाम को लेकर कयास ही लगाया जा सकता है. दोनों के लिए मुकाबला करो या मरो जैसा है. हनुमान के लिए खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है, क्योंकि वे विधायक हैं. यदि ज्योति मिर्धा चुनाव हारीं तो उनकी सियासी लौ ही बुझ जाएगी.
लोकसभा चुनाव का दूसरा चरण शुरू हो गया है. आज 13 राज्यों की 97 सीटों पर मतदान हो रहा है. तमिलनाडु की 39, कर्नाटक की 14, महाराष्ट्र की 10, यूपी की आठ, बिहार और ओडिशा की पांच-पांच, छतीसगढ़ की तीन, जम्मू-कश्मीर की दो और मणिपुर, त्रिपुरा और पुडुचेरी की एक-एक सीट पर वोट डाले जा रहे हैं. वोट सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक डाले जाएंगे. बता दें, 17वीं लोकसभा के लिए देश में कुल सात चरणों में लोकसभा चुनाव संपन्न होंगे. पहले चरण का मतदान 11 अप्रैल को हो चुका है.
इससे पहले चुनाव के पहले चरण में 18 राज्यों एवं दो केंद्र शासित प्रदेशों की 91 सीटों पर मतदान हुआ था. इस चरण में 68 फीसदी मतदान हुआ था. देश में सबसे बड़े लोकतंत्र पर्व लोकसभा चुनाव कुल 7 चरणों में संपन्न होंगे. आखिरी चरण की वोटिंग 19 मई होगी. चुनावी परिणाम 23 मई को घोषित किए जाएंगे.
बात करें राजस्थान की तो यहां पहले चरण के मतदान 29 अप्रैल को डाले जाएंगे. दूसरे और अंतिम चरण के लिए वोटिंग 6 मई को होगी. पहले चरण में अजमेर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, टोंक-सवाई माधोपुर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारां की 13 सीटों सीटों पर 29 अप्रैल को मतदान होंगे. इसी प्रकार गंगानगर, बीकानेर, चूरू, झुंझुनूं, सीकर, जयपुर शहर, जयपुर ग्रामीण, अलवर, भरतपुर, करौली-धौलपुर, दौसा और नागौर में वोटिंग 6 मई को होगी.
17वीं लोकसभा के गठन के लिये देशभर में लोकतंत्र का महापर्व मनाया जा रहा है. मरुधरा में चुनाव के पहले फेज में राजसमंद सीट पर 29 अप्रैल को मतदान होगा. राजसमंद से बीजेपी ने जयपुर घराने की पूर्व राजकुमारी दीया कुमारी तो कांग्रेस ने जिलाध्यक्ष देवकीनंदन गुर्जर पर दांव खेला है. दोनों ही प्रत्याशी धन कुबेर हैं, लेकिन बे‘कार’ हैं.
जी हां, आपने सही सुना. धनकुबेर हैं, लेकिन बे‘कार’ हैं. दोनों ने अपने नॉमिनेशन में यह बात स्वीकार की है. दीया कुमारी की ओर से दिए गए हलफनामे के अनुसार उनके पास 16.59 करोड़ रुपये की चल-अचल संपत्ति है. इसमें 92,740 लाख रुपये की चल संपत्ति, 64.88 लाख रुपये के गहने, 1.08 करोड़ रुपये की अचल संपत्ति, और 12.39 करोड़ रुपये की बैंक व पोस्ट ऑफिसों में नकद जमा है. दीया ने माना है कि उनके पास कोई वाहन नहीं है.
वहीं, देवकीनंदन गुर्जर के पास कुल 13 करोड़ रुपये की चल-अचल संपत्ति है. इसमें 1.93 करोड़ रुपये की चल संपत्ति, 5.5 करोड़ रुपये की अचल संपत्ति, 2 लाख रुपये नकद, 2 लाख रुपये बैंक व पोस्ट ऑफिस में जमा, 1.57 करोड़ रुपये कंपनी, न्यास आदि में निवेश, 84 हजार रुपये के गहने और 18.48 लाख रुपये की अन्य संपत्तियां शामिल हैं. उनके पास भी कोई कार नहीं है. हालांकि वे एक ट्रैक्टर जरूर है.
ऐसे में राजसमंद सीट से चुनाव लड़ रहे दोनों प्रत्याशी भले ही लग्जरी कारों के काफिलों के साथ अपने प्रचार में जी जान से जुटे हैं, लेकिन उनके चुनावी हलफनामे को देखकर तो ये ही कहा जा सकता है कि दोनों ही प्रत्याशी भले ही मालदार हों मगर बे‘कार’ हैं.
राजस्थान के मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी अशोक गहलोत ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को लेकर दिये गये अपने बयान पर सफाई दी है. गहलोत ने ट्वीट कर कहा है कि कुछ मीडिया संस्थानों द्वारा उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया है. वे राष्ट्रपति का सम्मान करते हैं. वह खुद राष्ट्रपति से व्यक्तिगत तौर पर मिलकर उनकी सादगी और व्यक्तित्व से प्रभावित हैं. उन्होंने कहा कि मेरे बयान में ऐसा कुछ नहीं था जैसा कि मीडिया बता रहीं हैं. गहलोत के इस बयान के बाद बीजेपी ने कड़ी आपत्ति जताते हुए माफी मांगने को कहा है.
It is very unfortunate that my comments during PC have been misquoted by few media houses. I have the greatest regards for the President of India, and personally for Sh. Ramnath ji whom I have met in person and highly impressed with his simplicity and humbleness.
— Ashok Gehlot (@ashokgehlot51) April 17, 2019
बता दें कि, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बुधवार को प्रेसवार्ता के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राष्ट्रपति के बहाने बीजेपी पर हमला बोला. जिसमें उन्होंने कहा कि, ‘मेरा ऐसा मानना है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को जातिगत समीकरण बैठाने के लिए राष्ट्रपति बनाया गया और बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी राष्ट्रपति पद की दौड़ से बाहर हो गए.’ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक गहलोत ने आगे कहा कि, ‘भाजपा ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि गुजरात के चुनाव आ रहे थे. भाजपा के लोग इस बात से घबराए हुए थे कि वहां उनकी सरकार नहीं बन पाएगी.’
इसके बाद बीजेपी ने इसे लेकर कड़ी आपत्ति जताते हुए गहलोत से इस बयान के लिए माफी मांगने को भी कहा. इस बीच बीजेपी नेता जीवीएल नरसिम्हा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इसे चुनावी मर्यादा का उल्लंघन बताते हुए चुनाव आयोग से गहलोत को नोटिस जारी करने की अपील भी की है और कांग्रेस पर देश के सर्वोच्च पद को लेकर निचले स्तर की राजनीति करने का आरोप लगाया. इसके बाद अशोक गहलोत ने अपने ट्विटर हैंडल पर एक पोस्ट जारी कर बताया कि मेरे द्वारा ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया, मीडिया द्वारा गलत तरीके से बयान को प्रस्तुत किया गया है.
देश में लोकसभा चुनाव का दूसरा चरण शुरू होने जा रहा है. इससे ऐन वक्त पहले बीजेपी ने मध्य प्रदेश की चार सीटों पर उम्मीदवारों की एक नई लिस्ट जारी की है. इस सूची में गुना, सागर, विदिशा और भोपाल सीट का नाम शामिल है. भोपाल सीट से साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को प्रत्याशी बनाया गया है जो कांग्रेस के दिग्विजय सिंह के सामने ताल ठोकेंगी. इनके अलावा, बीजेपी ने गुना से डॉ. केपी यादव, सागर से राज बहादुर सिंह और विदिशा से रमाकांत भार्गव को टिकट देकर चुनावी दंगल में उतारा है.
List of BJP candidates for ensuing general election to the legislative assembly 2019 of Madhya Pradesh by BJP CEC. pic.twitter.com/q9ZLbth28S
— BJP LIVE (@BJPLive) April 17, 2019
मालेगांव विस्फोट मामले के बाद से सुर्खियों में आईं साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने मंगलवार को ही बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की थी. इसके बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे कि वे भोपाल से चुनाव लड़ सकती हैं. कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह को टक्कर देने के लिए बीजेपी ने उन पर भरोसा जताया है. बता दें, मालेगांव ब्लास्ट के साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का नाम खासा चर्चित रहा था. हालांकि न्यायालय द्वारा उन्हें बरी कर दिया गया था. इससे पहले साध्वी प्रज्ञा ने भोपाल स्थित बीजेपी दफ्तर पहुंचकर एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात की. साध्वी प्रज्ञा ने कहा कि मैं चुनाव लड़ूंगी और जीतूंगी.
टीवी डिबेट्स में कांग्रेस का मजबूती से पक्ष रखने वाली पार्टी प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने आज ट्विटर पर अपनी ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस में मुझे धमकानेवालों को यूं ही छोड़ दिया गया, जिससे उन्हें काफी तकलीफ पहुंची है. अपने ट्वीटर हैंडल से उन्होंने ट्वीट किया है कि पार्टी में उन गुंडों को तवज्जो दी जा रही है, जो महिलाओं के साथ बदसलूकी करते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि अब पार्टी के कार्यकर्ताओं से उन्हें धमकी मिल रही है. ट्वीट के साथ एक लेटर भी जुड़ा हुआ है जिसमें पूर्व विधायक फज़ले मसूद द्वारा पार्टी के कुछ लोगों को माफीनामा दिए जाने की बात कही गई है.
प्रियंका ने ट्वीट में लिखा कि जो लोग मेहनत कर अपनी जगह बना रहे हैं, उनके बदले ऐसे लोगों को तवज्जो मिल रही है. पार्टी के लिए मैंने गालियां और पत्थर खाए हैं, लेकिन उसके बावजूद पार्टी में रहने वाले नेताओं ने ही मुझे धमकियां दीं. जो लोग धमकियां दे रहे थे, वह बच गए हैं. इनका बिना किसी कड़ी कार्रवाई के बच जाना काफी दुर्भाग्यपूर्ण हैं.
Deeply saddened that lumpen goons get prefence in @incindia over those who have given their sweat&blood. Having faced brickbats&abuse across board for the party but yet those who threatened me within the party getting away with not even a rap on their knuckles is unfortunate. https://t.co/CrVo1NAvz2
— Priyanka Chaturvedi (@priyankac19) April 17, 2019
चिट्ठी के अनुसार, उत्तर प्रदेश के मथुरा में जब प्रियंका चतुर्वेदी पार्टी की तरफ से राफेल विमान सौदे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आई थीं, तब स्थानीय कार्यकर्ताओं ने उनके साथ बदसलूकी की. इसके बाद सभी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हुई थी लेकिन घटना पर खेद जताते हुए सभी कार्यकर्ताओं को उनके पदों पर बहाल कर दिया गया है. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया की सिफारिश के बाद इन कार्यकर्ताओं को बहाल किया गया है. बता दें कि, सिंधिया लोकसभा चुनाव के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रभारी भी हैं. मामला बीते साल सितंबर के आसपास का बताया जा रहा है.
भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे श्रीगंगानगर लोकसभा क्षेत्र में इन दिनों मौसम अलग-अलग करवटें ले रहा है, वहीं चुनावी मौसम में राजनीतिक पारा भी चढ़ता दिख रहा है. एक तरफ बीजेपी ने यहां से जीतकर चार बार दिल्ली पहुंचने वाले निहालचंद चौहान पर दांव खेला है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने भी खासे विचार-विमर्श के बाद पूर्व सांसद भरत मेघवाल पर भरोसा जताते हुए मैदान में उतारा है. बता दें कि, गंगानगर लोकसभा सीट का एक दिलचस्प इतिहास रहा है कि यहां से कभी कोई गैर मेघवाल सांसद नहीं बना. वर्तमान में पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के निहालचंद मेघवाल यहां से सांसद हैं.
प्रदेश की गंगानगर लोकसभा सीट पर भले ही शुरू से ही कांग्रेस हावी रही हो, लेकिन बात की जाए पिछले दो दशकों की तो बीजेपी ने यहां अच्छी खासी पैठ जमाई है. बीजेपी के यहां पैर जमाने का श्रेय वर्तमान सांसद व केन्द्रीय मंत्री निहालचंद चौहान को दिया जाता है, जिन्हें यहां की जनता ने चार बार जितवाकर दिल्ली भेजा है. वहीं, साल 2009 के लोकसभा चुनाव में निहालचंद को पटकनी देने वाले कांग्रेस प्रत्याशी भरत मेघवाल अब फिर से मैदान में है. यहां कांग्रेस के मजबूत नेता की छवि रखने वाले भरत समाज के साथ-साथ अन्य समुदायों में भी अच्छी पकड़ वाले माने जाते हैं.
श्रीगंगानगर लोकसभा सीट पर कांग्रेस के दबदबे के तिलिस्म को तोड़ने वाले निहालचंद को इस बार टिकट की पूरी उम्मीद थी और वे पहले से ही लोगों से संपर्क में जुट चुके थे. पार्टी द्वारा उम्मीदवार घोषणा के बाद निहाल ने अपना प्रचार अभियान और तेज कर दिया. इस क्षेत्र में पड़ने वाली कृषि मंडी क्षेत्रों में जनता के बीच जाकर मत व समर्थन के लिए डटे हुए हैं और केन्द्र सरकार की योजनाओं और मोदी लहर के चलते अच्छे रेसपोंस का दावा भी किया जा रहा है.
वहीं खासी कसमकश के बाद कांग्रेस का टिकट पाने वाले पूर्व सांसद भरत मेघवाल भी प्रचार में जुटे हैं और पार्टी के घोषणा पत्र के साथ किसान कल्याण जैसे दावों की बात कर लोगों के बीच पहुंच रहे हैं. हांलाकि भरत मेघवाल का चुनाव प्रचार अभी निहालचंद के मुकाबले धीमा बताया जा रहा है. आलम ये है कि कई विधानसभा क्षेत्रों में तो भरत मेघवाल के चुनाव कार्यालय तक अभी नहीं खोले गए हैं. लेकिन जनता के बीच पहुंचना जारी है.
वहीं, दोनों ही प्रत्याशियों के लिए पार्टी की अंदरूनी नाराजगी चिन्ता का विषय है. जिससे भितरघात तक का खतरा दोनों उम्मीदवारों के लिए मंडरा रहा है. हांलाकि प्रत्यक्ष रूप से ऐसा कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा है. बात करें, गांव-गली और कस्बे-शहर के आम मतदाता की तो कहीं मोदी लहर और एयरस्ट्राईक के बाद माहौल में तब्दिली देखी जा रही है तो दूसरी ओर कांग्रेस भी जनता के मूड को अब साफ तौर पर सत्ता बदलने वाला बता रही है. अपने-अपने दावे ठीक है लेकिन आखिरी फैसला तो जनता को ही करना तय है.
बता दें कि, बीते साल के विधानसभा चुनाव में जीत कर प्रदेश की सत्ता में वापसी करने वाली कांग्रेस के हौसले बुलंद नजर आ रहे हैं. वहीं कम मत प्रतिशत अंतर से हारी बीजेपी इस हार की भरपाई करने की रणनीति अपनाने में लगी है. गौरतलब है कि साल 2013 के विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत से जीत कर आने वाली बीजेपी ने पिछले लोकसभा चुनाव में राजस्थान की सभी 25 सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन 2018 में हुए लोकसभा उपचुनाव में अलवर और अजमेर की सीट कांग्रेस के हाथों गंवा बैठी. वहीं, साल 2018 के आखिर में हुए विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने 73 सीटों के साथ बीजेपी को विपक्ष बिठाया और 99 सीटों के साथ कांग्रेस को सत्ता सौंपी.
गौरतलब है कि, श्रीगंगानगर जिले की पांच और हनुमानगढ़ की तीन विधानसभा को मिलाकर कुल 8 विधानसभा श्रीगंगानगर लोकसभा क्षेत्र में आती हैं. जिसमें गंगानगर जिले की सादुलशहर, गंगानगर, करनपुर, सूरतगढ़ और रायसिंह नगर विधानसभा और हनुमानगढ़ जिले की सांगरिया, हनुमानगढ़ और पिलीबंगा विधानसभा सीट शामिल हैं. 2018 की आखिर में हुए विधानसभा चुनाव में इस 8 सीटों में से 4 पर बीजेपी, 3 पर कांग्रेस और 1 पर निर्दलीय उम्मदीवार ने जीत दर्ज की. जिसमें बीजेपी ने सूरतगढ़, रायसिंह नगर, सांगरिया और पीलीबंगा सीटें जीती, जबकि कांग्रेस ने सादुलशहर, करनपुर और हनुमानगढ़ की सीट पर कब्जा जमाया, वहीं गंगानगर सीट निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की.
अब बात करते हैं गंगानगर लोकसभा सीट पर अब तक बने सांसदों की तो शुरू से ही कांग्रेंस का इस सीट पर दबदबा रहा है. आजादी के बाद हुए 16 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पर 10 बार जीत दर्ज की, जबकि 4 चार बार बीजेपी का कब्जा रहा. वहीं 1 बार जनता पार्टी और 1 बार भारतीय लोकदल ने इस सीट पर जीत दर्ज की. साल 1952 से 1971 तक लगातार 5 बार कांग्रेस के पन्नाराम बारूपाल यहां से सांसद रहे, जबकि साल 1977 में भारतीय लोकदल के टिकट पर बेगाराम ने इस सीट पर कब्जा जमाया. साल 1980 और 1984 में कांग्रेस के बीरबल राम यहां से सांसद रहे, लेकिन 1989 में जनता पार्टी के टिकट पर बेगाराम ने एक बार फिर वापसी की.
तो वहीं, साल 1991 में कांग्रेस से बीरबल राम एक बार फिर सांसद बने. तो वहीं साल 1996 के चुनाव में बीजेपी ने युवा नेता और पूर्व सांसद बेगाराम के पुत्र निहालचंद मेघवाल को टिकट दिया जिन्होंने कांग्रेस के बीरबल राम को शिकस्त दी. साल 1998 के हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के शंकर पन्नू ने जीत दर्ज की तो वहीं साल 1999 में बीजेपी से निहालचंद मेघवाल ने वापसी की. इसके बाद साल 2004 का चुनाव में निहालचंद फिर सांसद बने लेकिन साल 2009 के चुनाव में निहालचंद कांग्रेस के भरतराम मेघवाल से चुनाव हार गए. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में निहालचंद मेघवाल ने चौथी बार इस सीट पर कब्जा जमाया और केंद्र सरकार में मंत्री बने.