भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे श्रीगंगानगर लोकसभा क्षेत्र में इन दिनों मौसम अलग-अलग करवटें ले रहा है, वहीं चुनावी मौसम में राजनीतिक पारा भी चढ़ता दिख रहा है. एक तरफ बीजेपी ने यहां से जीतकर चार बार दिल्ली पहुंचने वाले निहालचंद चौहान पर दांव खेला है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने भी खासे विचार-विमर्श के बाद पूर्व सांसद भरत मेघवाल पर भरोसा जताते हुए मैदान में उतारा है. बता दें कि, गंगानगर लोकसभा सीट का एक दिलचस्प इतिहास रहा है कि यहां से कभी कोई गैर मेघवाल सांसद नहीं बना. वर्तमान में पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के निहालचंद मेघवाल यहां से सांसद हैं.

प्रदेश की गंगानगर लोकसभा सीट पर भले ही शुरू से ही कांग्रेस हावी रही हो, लेकिन बात की जाए पिछले दो दशकों की तो बीजेपी ने यहां अच्छी खासी पैठ जमाई है. बीजेपी के यहां पैर जमाने का श्रेय वर्तमान सांसद व केन्द्रीय मंत्री निहालचंद चौहान को दिया जाता है, जिन्हें यहां की जनता ने चार बार जितवाकर दिल्ली भेजा है. वहीं, साल 2009 के लोकसभा चुनाव में निहालचंद को पटकनी देने वाले कांग्रेस प्रत्याशी भरत मेघवाल अब फिर से मैदान में है. यहां कांग्रेस के मजबूत नेता की छवि रखने वाले भरत समाज के साथ-साथ अन्य समुदायों में भी अच्छी पकड़ वाले माने जाते हैं.

श्रीगंगानगर लोकसभा सीट पर कांग्रेस के दबदबे के तिलिस्म को तोड़ने वाले निहालचंद को इस बार टिकट की पूरी उम्मीद थी और वे पहले से ही लोगों से संपर्क में जुट चुके थे. पार्टी द्वारा उम्मीदवार घोषणा के बाद निहाल ने अपना प्रचार अभियान और तेज कर दिया. इस क्षेत्र में पड़ने वाली कृषि मंडी क्षेत्रों में जनता के बीच जाकर मत व समर्थन के लिए डटे हुए हैं और केन्द्र सरकार की योजनाओं और मोदी लहर के चलते अच्छे रेसपोंस का दावा भी किया जा रहा है.

वहीं खासी कसमकश के बाद कांग्रेस का टिकट पाने वाले पूर्व सांसद भरत मेघवाल भी प्रचार में जुटे हैं और पार्टी के घोषणा पत्र के साथ किसान कल्याण जैसे दावों की बात कर लोगों के बीच पहुंच रहे हैं. हांलाकि भरत मेघवाल का चुनाव प्रचार अभी निहालचंद के मुकाबले धीमा बताया जा रहा है. आलम ये है कि कई विधानसभा क्षेत्रों में तो भरत मेघवाल के चुनाव कार्यालय तक अभी नहीं खोले गए हैं. लेकिन जनता के बीच पहुंचना जारी है.

वहीं, दोनों ही प्रत्याशियों के लिए पार्टी की अंदरूनी नाराजगी चिन्ता का विषय है. जिससे भितरघात तक का खतरा दोनों उम्मीदवारों के लिए मंडरा रहा है. हांलाकि प्रत्यक्ष रूप से ऐसा कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा है. बात करें, गांव-गली और कस्बे-शहर के आम मतदाता की तो कहीं मोदी लहर और एयरस्ट्राईक के बाद माहौल में तब्दिली देखी जा रही है तो दूसरी ओर कांग्रेस भी जनता के मूड को अब साफ तौर पर सत्ता बदलने वाला बता रही है. अपने-अपने दावे ठीक है लेकिन आखिरी फैसला तो जनता को ही करना तय है.

बता दें कि, बीते साल के विधानसभा चुनाव में जीत कर प्रदेश की सत्ता में वापसी करने वाली कांग्रेस के हौसले बुलंद नजर आ रहे हैं. वहीं कम मत प्रतिशत अंतर से हारी बीजेपी इस हार की भरपाई करने की रणनीति अपनाने में लगी है. गौरतलब है कि साल 2013 के विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत से जीत कर आने वाली बीजेपी ने पिछले लोकसभा चुनाव में राजस्थान की सभी 25 सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन 2018 में हुए लोकसभा उपचुनाव में अलवर और अजमेर की सीट कांग्रेस के हाथों गंवा बैठी. वहीं, साल 2018 के आखिर में हुए विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने 73 सीटों के साथ बीजेपी को विपक्ष बिठाया और 99 सीटों के साथ कांग्रेस को सत्ता सौंपी.

गौरतलब है कि, श्रीगंगानगर जिले की पांच और हनुमानगढ़ की तीन विधानसभा को मिलाकर कुल 8 विधानसभा श्रीगंगानगर लोकसभा क्षेत्र में आती हैं. जिसमें गंगानगर जिले की सादुलशहर, गंगानगर, करनपुर, सूरतगढ़ और रायसिंह नगर विधानसभा और हनुमानगढ़ जिले की सांगरिया, हनुमानगढ़ और पिलीबंगा विधानसभा सीट शामिल हैं. 2018 की आखिर में हुए विधानसभा चुनाव में इस 8 सीटों में से 4 पर बीजेपी, 3 पर कांग्रेस और 1 पर निर्दलीय उम्मदीवार ने जीत दर्ज की. जिसमें बीजेपी ने सूरतगढ़, रायसिंह नगर, सांगरिया और पीलीबंगा सीटें जीती, जबकि कांग्रेस ने सादुलशहर, करनपुर और हनुमानगढ़ की सीट पर कब्जा जमाया, वहीं गंगानगर सीट निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की.

अब बात करते हैं गंगानगर लोकसभा सीट पर अब तक बने सांसदों की तो शुरू से ही कांग्रेंस का इस सीट पर दबदबा रहा है. आजादी के बाद हुए 16 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पर 10 बार जीत दर्ज की, जबकि 4 चार बार बीजेपी का कब्जा रहा. वहीं 1 बार जनता पार्टी और 1 बार भारतीय लोकदल ने इस सीट पर जीत दर्ज की. साल 1952 से 1971 तक लगातार 5 बार कांग्रेस के पन्नाराम बारूपाल यहां से सांसद रहे, जबकि साल 1977 में भारतीय लोकदल के टिकट पर बेगाराम ने इस सीट पर कब्जा जमाया. साल 1980 और 1984 में कांग्रेस के बीरबल राम यहां से सांसद रहे, लेकिन 1989 में जनता पार्टी के टिकट पर बेगाराम ने एक बार फिर वापसी की.

तो वहीं, साल 1991 में कांग्रेस से बीरबल राम एक बार फिर सांसद बने. तो वहीं साल 1996 के चुनाव में बीजेपी ने युवा नेता और पूर्व सांसद बेगाराम के पुत्र निहालचंद मेघवाल को टिकट दिया जिन्होंने कांग्रेस के बीरबल राम को शिकस्त दी. साल 1998 के हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के शंकर पन्नू ने जीत दर्ज की तो वहीं साल 1999 में बीजेपी से निहालचंद मेघवाल ने वापसी की. इसके बाद साल 2004 का चुनाव में निहालचंद फिर सांसद बने लेकिन साल 2009 के चुनाव में निहालचंद कांग्रेस के भरतराम मेघवाल से चुनाव हार गए. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में निहालचंद मेघवाल ने चौथी बार इस सीट पर कब्जा जमाया और केंद्र सरकार में मंत्री बने.

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