होम ब्लॉग पेज 3220

बिहार: RJD सुप्रीमो ने तोड़ी चुप्पी, कहा- राहुल का इस्तीफा होगा आत्मघाती

politalks.news

लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के अगुवाई में बीजेपी सहित एनडीए ने प्रचंड जीत दर्ज की और मोदी का फिर से दूसरी बार का कार्यकाल सुनिश्चित हो गया. दूसरी तरफ कांग्रेस की अगुवाई वाला विपक्ष मोदी लहर में कहीं टिकता नजर नहीं आया. बिहार में पहली बार पूर्व केंद्रीय मंत्री लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल लोकसभा चुनावों में खाता तक नहीं खोल पाई. बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 39 एनडीए उम्मीदवारों के पास गईं सिर्फ एक सीट कांग्रेस के खाते में गई.

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव इस वक्त रांची अस्पताल में इलाज करा रहे हैं. लालू सजायाफ्ता हैं सो चुनावी प्रक्रिया से भी दूर रहे. चुनाव के बाद पार्टी की हार पर लालू यादव ने चुप्पी तोड़ते हुए एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत की. इस बातचीत में लालू यादव ने इस लोकसभा चुनाव का विश्लेषण करते हुए नरेंद्र मोदी को बीजेपी और एनडीए का मजबूत नेता बताया है. साथ ही उन्होंने राहुल गांधी को इस्तीफा न देने की सलाह देते हुए कहा है कि यह इस्तीफा कांग्रेस सहित विपक्ष के लिए आत्मघाती सिद्ध होगा.

लालू यादव ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के इस्तीफे की पेशकश एक आत्मघाती कदम है न सिर्फ उनकी पार्टी बल्कि उन तमाम समाजिक और राजनीतिक ताकतों के लिए भी जो संघ परिवार से सीधी लड़ाई लड़ रहे हैं. यह बीजेपी के जाल में फंसने जैसा होगा. जैसे ही कोई गांधी-नेहरू परिवार के बाहर का व्यक्ति कांग्रेस अध्यक्ष पद पर काबिज होगा, मोदी-शाह ब्रिगेड उसे सोनिया और राहुल का प्यादा और रिमोट कंट्रोल ठहराने की कोशिश करेंगे. यह खेल अगले आम चुनावों तक चलेगा. राहुल गांधी को अपने विपक्षियों को ऐसा मौका देना ही क्यों चाहिए?

साथ ही लालू यादव ने कहा कि विपक्ष के पास बिन दुल्हे की बारात होने के कारण उन्हें जीत नहीं मिल सकी है. उन्होंने कहा कि यह एक तथ्य है कि मोदी की अगुवाई वाले बीजेपी से विपक्ष चुनाव हार चुका है. सभी विपक्षी दलों को जो इन असहिष्णु और सांप्रदायिक ताकतों को रोकना चाहते हैं, उन्हें अपनी साझी हार स्वीकार करनी चाहिए और इस पर विचार करना चाहिए कि आखिर गलती कहां रही. हार की वजह ढूंढना मुश्किल नहीं है.

यादव ने इस दौरान पीएम नरेंद्र की तारिफ भी की और कहा कि इस चुनाव में विपक्षी पार्टियों का एक ही लक्ष्य रहा कि बीजेपी को हटाना लेकिन वो सभी एक राष्ट्रीय विमर्श खड़ा करने में असफल रही हैं. इस चुनाव में बीजेपी के पास मोदी के रूप में एक निर्विवाद नेता था. लेकिन विपक्ष की बारात का कोई दुल्हा ही तय नहीं हो पाया. मोदी को विपक्ष ने बिहार जैसे राज्य में भी बड़ा जनादेश दे दिया. उन्होंने कहा कि विपक्षी पार्टियों को हर राज्य में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का कैंडिडेट के तौर पर पेश करना चाहिए था. राहुल को पीएम उम्मीदवार घोषित न करना बहुत बड़ी गलती रही.

लोकसभा चुनाव में विपक्ष की हार की वजह लालू यादव ने खराब रणनीति बताई. उन्होंने कहा कि पूरे भारत में विपक्ष ऐसे चुनाव लड़ा मानो यह देश का नहीं राज्यों का चुनाव हो. विपक्ष अपनी रणनीति और एक्शन को एकरूप करने से चूक गया. देश को एक राष्ट्रीय विकल्प की जरूरत थी, लेकिन विपक्षी दल अपने राज्यों में लड़ते रहे और यह विकल्प खड़ा ही नहीं हो पाया. हर चुनाव की अपनी अलग कहानी होती है. लालू प्रसाद ने इस दौरान साल 2015 के महागठबंधन का भी जिक्र किया और कहा कि सपा संरक्षक मुलायम सिंह के कहने पर उन्होंने नीतीश कुमार को सीएम पद का उम्मीदवार माना था.

इसके साथ ही लालू यादव ने कहा कि कांग्रेस का घोषणापत्र बीजेपी से कहीं ज्यादा बेहतर था. लेकिन बेहतर घोषणापत्र होने के बावजूद इसे विपक्षी पार्टियों का पर्याप्त समर्थन नहीं मिला. यह लड़ाई थी एक निरंकुश सरकार और हाशिये पर खड़े समाज, बेरोजगार यवाओं, परेशान किसानों और प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के बीच. आपस में बंटी हुई विपक्षी पार्टियां देश के ऐसे तबकों को मंच मुहैया कराने में नाकाम रहीं. साथ ही उन्होंने कहा कि एक चुनाव का रिजल्ट इस देश की सच्चाई को नहीं बदल सकता. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आते रहेंगे-जाते रहेंगे लेकिन देश बचा रहेगा.

लालू ने लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत को बीजेपी और उनके नेता नरेंद्र मोदी की जीत बताया और विपक्ष की रणनीतिक हार कहा. विपक्षी पार्टियों को अपने-अपने राज्यों में रणनीति के बारे में सोचना चाहिए.उन्हें अपने कार्यकर्ताओं और लोगों का हौसला बढ़ाना चाहिए जो इस तानाशाही सरकार के खिलाफ लगातार लड़ाई लड़ते रहे हैं. अपनी आरामतलबी को छोड़कर अब विपक्ष को सड़क पर उतरना चाहिए, लोगों को दर्द को साझा करना चाहिए.

उन्होंने आगे कहा कि विपक्षी दलों को धैर्य रखने के साथ संयम की जरूरत है. चुनावी बिसात आज नहीं तो कल जरूर पलटेगी. भारत एक बहुलतावादी देश है. यह गांधी, जेपी, टैगोर, पेरियार, ज्योतिबा फुले, अंबेडकर की धरती थी और रहेगी. हमारा देश सांप्रदायिक सदभाव वाला देश रहा है और आगे भी रहेगा. लालू यादव के इस विश्लेषण में विपक्ष को गहन मंथन के साथ रणनीतिक तौर पर मजबूत होने का आह्वान किया गया है. अब देखने वाली बात रहेगी कि दशकों से राजनीति के धुरंधर रहे लालू यादव की इन बातों पर विपक्ष कितना ध्यान दे पाता है.

मोदी की टीम में शामिल हो सकते हैं UP के ये खिलाड़ी, स्मृति ईरानी पर होगी नजर

लोकसभा चुनाव में धुंआधार वापसी के बाद एनडीए ने एक बार फिर ये साबित कर दिया है कि मोदी लहर आज भी कायम है. देश की राजनीति में सबसे अहम माने जाने वाले राज्य उत्तरप्रदेश पर सबकी निगाहें टिकी हुई थी. सबसे ज्यादा सीट रखने वाले इस राज्य की सियासी नब्ज को टटोलने में हर कोई लगा हुआ था. तरह-तरह के आंकड़ें भी सामने आ रहे थे लेकिन बीजेपी वहां इस बहुमत के साथ इतिहास रचेगी, ये शायद किसी को अंदाजा नहीं था.

सपा-बसपा और लोकदल के गठबंधन के बावजूद यूपी में एनडीए ने 64 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया है. इस प्रचंड जीत के बाद अब सुगबुगाहट तेज हो चुकी है कि उनकी इस टीम में कौन मंत्री बनेगा. साथ ही यहां से चुनाव जीते कई सांसदों की उम्मीदें आसमान छूने लगी हैं. नरेंद्र मोदी कैबिनेट में उत्तरप्रदेश से छह नए मंत्री भी शामिल हो सकते हैं. प्रधानमंत्री व गृहमंत्री को मिलाकर उत्तरप्रदेश से एक दर्जन से अधिक मंत्री केंद्र सरकार में रहेंगे. इसके लिए अंदर खाने प्रयास भी शुरू हो गए हैं और मोदी की सूची में शामिल होने के लिए हर संभव कोशिश हो रही है.

यह संकेत साफ है कि सरकार में उत्तरप्रदेश को विशेष महत्व मिलेगा क्योंकि यह नरेंद्र मोदी का राज्य है. जातीय संतुलन के साथ क्षेत्रीय समीकरण भी साधे जाएंगे. बीजेपी ने उत्तरप्रदेश में सहयोगी समेत 64 सीटें जीती हैं. 2014 में 73 सीटें जीतने के बाद मोदी सरकार में उत्तरप्रदेश से दर्जनभर मंत्री शामिल किए गए थे. अब जीते हुए मंत्रियों में किसे दोबारा शपथ लेने का मौका मिलेगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है लेकिन कुछ सांसदों की तकदीर का ताला जरूर खुल सकता है. अमेठी में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को पराजित करने वाली केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का मंत्रिमंडल में महत्व बढ़ेगा. गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ से अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत को सहेजते हुए रिकॉर्ड जीत दर्ज की है इसलिए उनके महत्व को कमतर नहीं किया जा सकता है.

उत्तरप्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन के जातीय समीकरण को ध्वस्त करने और 2022 में आने वाले विधानसभा चुनाव को लक्ष्य करते हुए बीजेपी पिछड़ों और दलितों के बीच कुछ चेहरे जरूर उभारेगी. सहयोगी अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल मोदी सरकार में राज्य मंत्री हैं और अबकी बार उनका कद बढ़ सकता है. कुर्मी बिरादरी पर मजबूत पकड़ बनाएं रखने के लिए आठ बार के सांसद संतोष गंगवार को फिर शामिल किये जाने की संभावना है. पहले भी मोदी सरकार में राज्य मंत्री रह चुके बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय को कैबिनेट में जगह मिल सकती है.

योगी सरकार के मंत्री आगरा के सांसद एसपी सिंह बघेल व इलाहाबाद से जीतीं रीता बहुगुणा जोशी, कल्याण सिंह के पुत्र एटा सांसद राजवीर सिंह भी इस दौड़ में हैं. मेनका गांधी और वरुण गांधी में भी किसी एक की ताजपोशी हो सकती है. देवरिया में कलराज मिश्र की सीट पर जीते बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और ब्राह्मणों के बड़े नेता डॉ. रमापति राम त्रिपाठी भी मोदी टीम में शामिल किए जा सकते हैं.

निषाद, कश्यप और बिंद बिरादरी में पकड़ बनाए रखने के लिए साध्वी निरंजन ज्योति की दोबारा ताजपोशी हो सकती है. सबसे बड़ी जीत हासिल करने वाले वीके सिंह, महेश शर्मा, डॉ. सत्यपाल सिंह का दावा फिर बरकरार है. तीन-चार बार के सांसद गोंडा के कीर्तिवर्धन सिंह, फैजाबाद के लल्लू सिंह, बलिया के वीरेंद्र सिंह मस्त, डुमरियागंज के जगदंबिका पाल और देवेंद्र सिंह भोले में से किसी न किसी को क्षत्रिय समाज के कोटे में मौका मिल सकता है.

दलित वर्ग में कोरी समाज के प्रतिनिधि के रुप में जालौन के भानुप्रताप सिंह की भी पैरवी हो रही है. अबकी बार संचार मंत्री मनोज सिन्हा को छोड़कर बाकी सभी मंत्री चुनाव जीत गए. सिन्हा का भी समायोजन हो सकता है.

इस्तीफे पर अड़े राहुल, मनाने की कोशिश नाकाम

politalks.news

लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत के बाद बीजेपी सहित एनडीए खुशियां मना रहा है और नई सरकार के गठन की कवायद में जुटा है. वहीं विपक्षी खेमे में करारी हार के बाद खासी हलचल देखी जा रही है. देश की सबसे पुरानी व बड़ी पार्टी रही कांग्रेस में शर्मनाक हार के बाद खलबली मची हुई है. पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे पर अड़े हैं तो वहीं कांग्रेस कार्य समिति की बैठक के बाद अब दिग्गज नेता राहुल गांधी को मनाने में जुटे हैं.

इसके अलावा कई प्रदेशाध्यक्षों ने इस्तीफे भेजने के साथ हार के कारणों पर मंथन करने व जिम्मेदारी तय करने की बात कही है. कांग्रेस की इस खलबली के बीच राजस्थान से भी हार के कारणों को लेकर जोर-शोर से आवाज उठ रही है. हार के मुख्य कारणों में शामिल कांग्रेसी खेमे के धड़े सीधे आलाकमान के संपर्क में जुटे हैं. प्रदेश सरकार के मंत्रियों व लोकसभा प्रत्याशियों द्वारा पार्टी हाईकमान को फीडबैक दिया गया है. कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा कथित रूप से वैभव गहलोत के टिकट पर की गई टिप्पणी के बाद यह सिलसिला और बढ़ा है.

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट आज दिल्ली में मौजुद है. उनके साथ संगठन महामंत्री केसी वेणुगोपाल व महासचिव प्रियंका गांधी ने राहुल गांधी से मुलाकात की है. सूत्रों के अनुसार आलाकमान द्वारा प्रदेशाध्यक्ष व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट से भी हार पर फीडबैक मांगा गया था. जिसके बाद पायलट आज दिल्ली पहुंचे है. राहुल से मुलाकात में उन्हें इस्तीफे की जिद्द छोड़ने की भी बात कही गई है. लेकिन राहुल फिर भी अ़ड़े हैं. माना जा रहा है कि राहुल अगर अड़े रहते हैं तो नए अध्यक्ष तय करने तक वे पद पर सशर्त रह सकते हैं.

सूत्रों के अनुसार कई प्रदेशाध्यक्षों के पद छोड़ने की इच्छा और खुद पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की इस्तीफे की जिद्द को देखते हुए आगामी दिनों में कांग्रेस नए रूप के साथ दिख सकती है. राजनीतिक जानकार तो यहां तक मान रहे हैं कि कांग्रेस शासित प्रदेशों में भी फेरबदल देखने को मिल सकता है. करारी हार के बाद कार्यकर्ताओं, नेताओं के अलावा पार्टी के पदाधिकारी तक इस बात से इनकार नहीं कर रहे हैं कि लगातार गर्त में जा रही कांग्रेस को खामियां सुधार कर नई दिशा देने की दरकार है.

वीर सावरकर ने माफी के लिए अंग्रेजों को दर्जनों पत्र लिखे: बघेल

PoliTalks news

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल स्वतंत्रता सैनानी और हिंदू महासभा के नेता विनायक दामोदर सावरकर पर एक विवादित बयान देकर सुर्खियों में आ गए हैं. आज वीर सावरकर की जयंती है और बघेल ने सोमवार को नेहरू की पुण्यतिथि पर आयोजित एक कार्यक्रम में सावरकर पर बयान देते हुए कहा, ‘सावरकर ने सबसे पहले दो राष्ट्र का सिद्धांत दिया जिसे बाद में मोहम्मद अली जिन्ना ने अपनाया.’ बघेल के इस बयान से अब बवाल मच गया है.

भूपेश बघेल ने कहा, ‘हिंदू महासभा के नेता विनायक दामोदर सावरकर ने धर्म आधारित हिंदू और मुस्लिम राष्ट्र की कल्पना की थी. बीजारोपण सावरकर ने किया था और उसे पूरा करने का काम जिन्ना ने किया. सावरकर ने देश की आजादी के लड़ाई जरूर लड़ी, लेकिन जेल जाने के बाद माफी के लिए अंग्रेजों को दर्जनों पत्र लिखे. जेल से छूटने के बाद वे आजादी के आंदोलन में शामिल नहीं हुए.’ यही नहीं, बघेल ने बयानों के जरिए सावरकर पर धार्मिक आधार पर देश बांटने का आरोप भी लगाया.

बता दें, बंटवारे के लिए भारत ‘जिन्ना’ और उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को जिम्मेदार मानता है, लेकिन कांग्रेस नेता और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इतिहास के पन्नों को पलटते हुए नए विवाद को फिर से हवा दे दी. हाल ही में कांग्रेस का लोकसभा चुनावों में प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा है. अभी कांग्रेस अपनी शर्मनाक हार का ठीक से विश्लेषण भी नहीं कर पाई है. ऐसे में भूपेश बघेल ने वीर सावरकर का नाम लेकर नए बवाल के लिए नई जमीन तैयार कर दी है.

वहीं दूसरी ओर, नरेंद्र मोदी ने वीर सावरकर को श्रद्धांजलि देते हुए अपने आॅफिशियल ट्वीटर हैंडल से एक वीडियो अपलोड किया है.

करारी हार के बाद सपा संगठन में होंगे बड़े बदलाव

Poli Talks

लोकसभा चुनाव के नतीजों में राहुल गांधी के अलावा जिस शख्स को बड़ा झटका लगा, वो हैं यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव. ये चुनाव उनको गहरा सदमा देकर गया है. उनकी पार्टी को करारी हार का सामना तो करना ही पड़ा है, मुलायम परिवार के तीन प्रत्याशी भी चुनाव हार बैठे. हालात इतने बुरे रहे कि कन्नौज से उनकी पत्नी डिंपल यादव को भी हार का स्वाद चखना पड़ा. पार्टी की स्थिति इतनी दयनीय क्यों हुई. इसके क्या कारण रहे. अखिलेश इन दिनों इसी के मंथन में लगे हुए हैं.

करारी हार के बाद यह तो तय है कि संगठन में अखिलेश यादव की वजह से जमे लोग अब बाहर किए जाएंगे. साथ ही जिस तरह के चुनावी परिणाम सामने आए हैं, उसके बाद संगठन में बड़े बदलाव होंगे, इस बात में कोई संशय नहीं है.

आइए जानते हैं कि संगठन में क्या बदलाव हो सकते हैं…

नरेश उत्तम पटेलः
विधानसभा चुनाव से पहले संगठन पर अखिलेश की पकड़ होने के बाद नरेश उत्तम पटेल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. लेकिन उनके अध्यक्ष बनने के बाद हुए विधानसभा चुनाव, निकाय चुनाव, जिला पंचायत उपचुनाव और लोकसभा चुनाव, किसी में पार्टी को सफलता नहीं मिली. हर बार उनके नेतृत्व में सपा को हार का सामना करना पड़ा. लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद नरेश उत्तम पटेल का जाना तय है.

रामगोपाल यादवः
सपा के कार्यकर्ता अगर किसी व्यक्ति को पार्टी में बिखराव का सबसे बड़ा कारण मानते हैं तो वो रामगोपाल यादव हैं. शिवपाल यादव तो उनपर कई बार पार्टी को कमजोर करने का खुलकर आरोप भी लगा चुके हैं. हाल ही में उनके काम के प्रति अखिलेश यादव ने नाराजगी जताई थी. लोकसभा चुनाव में मिली बड़ी हार के बाद उनसे प्रमुख महासचिव का पद छीनना तय है.

उदयवीर सिंहः
उदयवीर सिंह सपा की तरफ से विधानसभा परिषद के सदस्य हैं. इनकी तारीफ सिर्फ यह है कि ये अखिलेश यादव के करीबी है. उसके अलावा संगठन के कामकाज में इनका कोई योगदान नहीं है. इसके बावजूद भी अखिलेश यादव पार्टी के अहम फैसलों में इनकी राय लेते हैं. लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद उदयवीर सिंह के कद में गिरावट तय है.

दिग्विजय सिंह देवः
ये नेता समाजवादी छात्रसभा के प्रदेश अध्यक्ष हैं. लेकिन इनका भी वक्त संगठन को मजबूत करने में कम और अखिलेश यादव के आस-पास रहने में ज्यादा गुजरता है. सपा छात्रसभा किसी दौर में इतनी मजबूत थी कि मैन-पावर में सपा का मुकाबला कोई पार्टी नहीं कर पाती थी. पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष अतुल प्रधान का काम पार्टी दफ्तर में रहना नहीं अपितु युवाओं को सपा की विचारधारा से जोड़ना था. अखिलेश यादव खुद कई बार खुले मंचों से उनकी तारीफ कर चुके है. लेकिन अभी तक उनको कोई बड़ा पद नहीं दिया गया है.

सुनील सिंह साजनः
पार्टी की नीति-रीति तय करने में सुनील साजन का अहम योगदान रहता है. होगा क्यों नहीं, पार्टी में अखिलेश यादव के सबसे करीबी जो माने जाते हैं. उनके साथ हमेशा पहली पंक्ति में नजर आते हैं. साजन अभी सपा विधानपरिषद के सदस्य हैं और उन्नाव इलाके से आते हैं. सुनने में आ रहा है कि वह खुद के बूथ तक से सपा को नहीं जीता पाए. पार्टी में पहली लाइन नेता होना और उसके बूथ से पार्टी का हार जाना इंगित करता है कि पार्टी कितनी कमजोर हो चुकी है.

इन नेताओं की संगठन से छुट्टी के बाद कुछ नए चेहरों को अखिलेश यादव संगठनों की बागड़ोर सौंप सकते है.

ओमप्रकाश सिंहः
सपा नेता ओमप्रकाश सिंह को अखिलेश यादव पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष बना सकते हैं. वें सात बार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हो चुके हैं और चंदौली लोकसभा क्षेत्र से सांसद रह चुके हैं. उनकी गिनती पार्टी के बड़े नेताओं में होती है. ओमप्रकाश मुलायम सिंह यादव के काफी करीबी माने जाते हैं.

शिवपाल यादवः
सपा को पहले विधानसभा और अब लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कार्यकर्ता यह खुलकर कहने लगे हैं कि सपा संगठन को यूपी में शिवपाल यादव से बेहतर कोई नहीं चला सकता. वो सांगठनिक क्षमता के माहिर खिलाड़ी है. यादव अपने कार्यकाल के दौरान नीचे से ऊपर तक के सभी कार्यकर्ताओं को मैनेज करके रखते थे.

अतुल प्रधानः
सपा की यूथ विंग की कमान इस नेता को मिलना तय है. प्रधान पहले सपा छात्रसभा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. उस दौरान संगठन के लिए इनका काम अकल्पनीय रहा था. पश्चिमी उत्तरप्रदेश में इनका नाम काफी बड़ा है. गुर्जर बिरादरी में अतुल प्रधान की लोकप्रियता जबरदस्त है.

पवन पांडेः
सपा सरकार में मंत्री रहे पवन पांडे को पार्टी के भीतर बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है. अखिलेश यादव उन्हें ब्राह्मण चेहरे के तौर पर पार्टी में अहम पद दे सकते हैं. वैसे भी पार्टी के बड़े ब्राह्मण चेहरे माता प्रसाद पांड़े की शारीरिक हालत उतनी अच्छी नहीं है कि वे पार्टी के लिए सड़कों पर संघर्ष कर सके. पवन पांडे अयोध्या विधानसभा से सपा के टिकट पर 2012 में विधायक चुने गए थे.

इनके अलावा, अखिलेश यादव पार्टी के संगठन में दलित और गैर-यादव चेहरों को भी जगह देने जा रहे हैं.

सुभ्रांशु रॉय सहित कई विधायक बीजेपी में हो सकते हैं शामिल

PoliTalks news

लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी के किले में सेंध क्या लगी, उनका गढ़ ढहने के कगार पर आ गया है. ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस से सस्पेंड हुए मुकुल रॉय ने बड़ा दावा करते हुए कहा है कि पार्टी के कई विधायक बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. रॉय के इस बयान के बाद ‘दीदी’ के कुनबे में घमासान मच गया है. बता दें, लोकसभा चुनाव में बंगाल की 42 में से टीएमसी ने 22, बीजेपी ने 18 और 2 सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया है. बीजेपी ने भारी संख्या में सीट जीतकर ममता बनर्जी की मुसीबतें बढ़ा दी हैं.

वहीं मुकुल रॉय ने कहा, बंगाल में हार के बाद टीएमसी के कई विधायक भारतीय जनता पार्टी के संपर्क में हैं, जो मंगलवार को टीएमसी छोड़ बीजेपी में शामिल हो सकते हैं.’ टीएमसी के इन बागी विधायकों में मुकुल रॉय के बेटे और विधायक सुभ्रांशु रॉय भी शामिल हैं. रूमर है भी है कि शुभ्रांशु के साथ कई विधायक और दर्जनभर से ज्यादा स्थानीय पार्षद भी बीजेपी की सवारी करने की तैयारी कर रहे हैं. बता दें, मुकुल रॉय ने पिछले साल ही बीजेपी का झंडा थाम लिया था. अब सुभ्रांशु रॉय भी मोदी मोदी का नारा बुलंद करने की तैयारी में हैं.

लोकसभा चुनाव में दीदी के गढ़ में सफलता हासिल करने के बाद बीजेपी अभी से 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में लग गई हे. बीजेपी कोलकाता सिविक पोल (निकाय चुनाव) पर फोकस कर रही है. याद दिला दें कि हाल ही में चुनाव प्रचार के दौरान एक रैली में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि टीएमसी के 40 विधायक हमारे संपर्क में हैं. अब उनकी इस बात पर मुहर लगती नजर आ रही है.

लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस में शुरू हुआ इस्तीफों का दौर

लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस संगठन के भीतर इस्तीफों का दौर शुरु हो गया है. राहुल गांधी खुद अपने इस्तीफे को लेकर अड़े हुए हैं. हालांकि आज इस मामले को लेकर उनसे पार्टी के दो बड़े नेताओं ने बात की है. इसके बाद भी राहुल गांधी मानने को तैयार नहीं है. अब इस्तीफे देने की पार्टी में लहर सी चल पड़ी है. महाराष्ट्र में पार्टी अध्यक्ष अशोक चव्हाण ने लोकसभा चुनाव नतीजों के अगले ही दिन अपने इस्तीफे की पेशकश की थी. पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़, झारखंड कांग्रेस चीफ अजय कुमार और असम कांग्रेस अध्यक्ष रिपुन बोरा ने भी आज अपने इस्तीफे कांग्रेस अध्यक्ष को भेजे हैं.

पंजाब में कांग्रेस का प्रदर्शन तो अच्छा रहा लेकिन गुरदासपुर लोकसभा क्षेत्र से पंजाब कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष सुनील जाखड़ बीजेपी के सनी देओल से चुनाव हार गए. हार के बाद उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया है. इसी प्रकार, झारखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार, असम कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रिपुन बोरा, यूपी कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर और ओडिशा कांग्रेस अध्यक्ष निरंजन पटनायक ने भी अपना इस्तीफा आलाकमान को भेज दिया है.

Evden eve nakliyat şehirler arası nakliyat