Poli Talks

लोकसभा चुनाव के नतीजों में राहुल गांधी के अलावा जिस शख्स को बड़ा झटका लगा, वो हैं यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव. ये चुनाव उनको गहरा सदमा देकर गया है. उनकी पार्टी को करारी हार का सामना तो करना ही पड़ा है, मुलायम परिवार के तीन प्रत्याशी भी चुनाव हार बैठे. हालात इतने बुरे रहे कि कन्नौज से उनकी पत्नी डिंपल यादव को भी हार का स्वाद चखना पड़ा. पार्टी की स्थिति इतनी दयनीय क्यों हुई. इसके क्या कारण रहे. अखिलेश इन दिनों इसी के मंथन में लगे हुए हैं.

करारी हार के बाद यह तो तय है कि संगठन में अखिलेश यादव की वजह से जमे लोग अब बाहर किए जाएंगे. साथ ही जिस तरह के चुनावी परिणाम सामने आए हैं, उसके बाद संगठन में बड़े बदलाव होंगे, इस बात में कोई संशय नहीं है.

आइए जानते हैं कि संगठन में क्या बदलाव हो सकते हैं…

नरेश उत्तम पटेलः
विधानसभा चुनाव से पहले संगठन पर अखिलेश की पकड़ होने के बाद नरेश उत्तम पटेल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. लेकिन उनके अध्यक्ष बनने के बाद हुए विधानसभा चुनाव, निकाय चुनाव, जिला पंचायत उपचुनाव और लोकसभा चुनाव, किसी में पार्टी को सफलता नहीं मिली. हर बार उनके नेतृत्व में सपा को हार का सामना करना पड़ा. लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद नरेश उत्तम पटेल का जाना तय है.

रामगोपाल यादवः
सपा के कार्यकर्ता अगर किसी व्यक्ति को पार्टी में बिखराव का सबसे बड़ा कारण मानते हैं तो वो रामगोपाल यादव हैं. शिवपाल यादव तो उनपर कई बार पार्टी को कमजोर करने का खुलकर आरोप भी लगा चुके हैं. हाल ही में उनके काम के प्रति अखिलेश यादव ने नाराजगी जताई थी. लोकसभा चुनाव में मिली बड़ी हार के बाद उनसे प्रमुख महासचिव का पद छीनना तय है.

उदयवीर सिंहः
उदयवीर सिंह सपा की तरफ से विधानसभा परिषद के सदस्य हैं. इनकी तारीफ सिर्फ यह है कि ये अखिलेश यादव के करीबी है. उसके अलावा संगठन के कामकाज में इनका कोई योगदान नहीं है. इसके बावजूद भी अखिलेश यादव पार्टी के अहम फैसलों में इनकी राय लेते हैं. लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद उदयवीर सिंह के कद में गिरावट तय है.

दिग्विजय सिंह देवः
ये नेता समाजवादी छात्रसभा के प्रदेश अध्यक्ष हैं. लेकिन इनका भी वक्त संगठन को मजबूत करने में कम और अखिलेश यादव के आस-पास रहने में ज्यादा गुजरता है. सपा छात्रसभा किसी दौर में इतनी मजबूत थी कि मैन-पावर में सपा का मुकाबला कोई पार्टी नहीं कर पाती थी. पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष अतुल प्रधान का काम पार्टी दफ्तर में रहना नहीं अपितु युवाओं को सपा की विचारधारा से जोड़ना था. अखिलेश यादव खुद कई बार खुले मंचों से उनकी तारीफ कर चुके है. लेकिन अभी तक उनको कोई बड़ा पद नहीं दिया गया है.

सुनील सिंह साजनः
पार्टी की नीति-रीति तय करने में सुनील साजन का अहम योगदान रहता है. होगा क्यों नहीं, पार्टी में अखिलेश यादव के सबसे करीबी जो माने जाते हैं. उनके साथ हमेशा पहली पंक्ति में नजर आते हैं. साजन अभी सपा विधानपरिषद के सदस्य हैं और उन्नाव इलाके से आते हैं. सुनने में आ रहा है कि वह खुद के बूथ तक से सपा को नहीं जीता पाए. पार्टी में पहली लाइन नेता होना और उसके बूथ से पार्टी का हार जाना इंगित करता है कि पार्टी कितनी कमजोर हो चुकी है.

इन नेताओं की संगठन से छुट्टी के बाद कुछ नए चेहरों को अखिलेश यादव संगठनों की बागड़ोर सौंप सकते है.

ओमप्रकाश सिंहः
सपा नेता ओमप्रकाश सिंह को अखिलेश यादव पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष बना सकते हैं. वें सात बार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हो चुके हैं और चंदौली लोकसभा क्षेत्र से सांसद रह चुके हैं. उनकी गिनती पार्टी के बड़े नेताओं में होती है. ओमप्रकाश मुलायम सिंह यादव के काफी करीबी माने जाते हैं.

शिवपाल यादवः
सपा को पहले विधानसभा और अब लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कार्यकर्ता यह खुलकर कहने लगे हैं कि सपा संगठन को यूपी में शिवपाल यादव से बेहतर कोई नहीं चला सकता. वो सांगठनिक क्षमता के माहिर खिलाड़ी है. यादव अपने कार्यकाल के दौरान नीचे से ऊपर तक के सभी कार्यकर्ताओं को मैनेज करके रखते थे.

अतुल प्रधानः
सपा की यूथ विंग की कमान इस नेता को मिलना तय है. प्रधान पहले सपा छात्रसभा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. उस दौरान संगठन के लिए इनका काम अकल्पनीय रहा था. पश्चिमी उत्तरप्रदेश में इनका नाम काफी बड़ा है. गुर्जर बिरादरी में अतुल प्रधान की लोकप्रियता जबरदस्त है.

पवन पांडेः
सपा सरकार में मंत्री रहे पवन पांडे को पार्टी के भीतर बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है. अखिलेश यादव उन्हें ब्राह्मण चेहरे के तौर पर पार्टी में अहम पद दे सकते हैं. वैसे भी पार्टी के बड़े ब्राह्मण चेहरे माता प्रसाद पांड़े की शारीरिक हालत उतनी अच्छी नहीं है कि वे पार्टी के लिए सड़कों पर संघर्ष कर सके. पवन पांडे अयोध्या विधानसभा से सपा के टिकट पर 2012 में विधायक चुने गए थे.

इनके अलावा, अखिलेश यादव पार्टी के संगठन में दलित और गैर-यादव चेहरों को भी जगह देने जा रहे हैं.

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